लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में … (Love Letter to Her): A man was not getting words to write love letter to his lover. Finally, he ended up describing earlier love failure in his love letter.
तुझे ख़त लिखना मेरे लिए एवरेस्ट फतह करने जैसा है . सच पूछो तो मैं इस फन में माहिर भी नहीं हूँ. सबसे बड़ी बात यह है कि तुझे मैं क्या लिखूं. क्या न लिखूँ. दूसरी वजह प्रेम – पत्र लिखना कितना जोखिम भरा काम है यह सब को मालुम नहीं. जो लव – लेटर लिखते हैं . वे ही समझते हैं . यह ससुरी कहीं भूल से भी किसी के हाथ लग गयी तो लेने के देने पड़ सकते हैं . ( यहाँ यह बताना जरुरी नहीं है कि जूते भी पड़ सकते हैं ). लव – लेटर लव – लेटर होता है . कोई कनटेंट्स को थोड़े ही देखता है – पढता है. यदि लोग पढ़ते , फिर एक्सन लेते , तो मेरी समझ में आशिक को दस – बीस झापड़ ( चपत ) की जगह दो – चार ही लगते या संदेह का लाभ ( Benefit Of Doubt ) भी मिल जाता और ? और शहजादे साहब महज वार्निंग के साथ छुट जाते वो भी बाईज्जत जैसे कभी – कभी कोर्ट – कचहरी द्वारा … बेगुनाह साबित होने पर … सजायाफ्ता मुजरिम को भी बाईज्जत बरी कर दिया जाता है.
चूँकि फूंक – फूंक कर एक –एक कदम बढ़ाना पड़ता है इसमें क्योंकि यह खेल मौत के कुएं की तरह रिस्की है. इसलिए मैंने इस फन के फनकार से सलाह – मशविरा कर लेना उचित समझा : अल्ला – ताला ने इंसान को एक दिल दे रखा है जो वक़्त बेवक्त काम आ सके उसके . मैंने सोचा इससे बड़ा फनकार कोई दूसरा हो ही नहीं सकता . मेरी बात जारी रही :
मैं ख़त लिखना चाहता हूँ . मन पर बोझ है मनों का , उसे उतारकर फेंकना चाहता हूँ.
आखिर बात क्या है ?
वादाखिलाफी .
किसने की ?
उसी ने ( यहाँ नाम बताना आवश्यक नहीं समझता मैं ) . मतलब ?
मेरी प्रेमिका ( माशूका ) ने .
तो फिर सोचना क्या है , लिख डालो ख़त , जितना जी चाहे निकाल लो भडांस .
तो मैंने निश्चय कर लिया सलाहकार की बात पर यकीन करके मुझे हर हाल में ख़त लिखना है .
इसलिए , मुन्ना ! , फिर शुरू हो जा के तर्ज पर ‘ अपुन ’ भी तैयार हो गया – ख़त लिखने के लिये .
किस वक़्त ख़त लिखूँ इसे चयन करना अहम् बात थी. मैंने सोचा सबसे उपयुक्त वक़्त मध्य रात्रि के बाद का होगा क्योंकि इस वक़्त सारी दुनिया नींद के आगोश में चैन से सो जाती है – घोड़ा बेचकर . कुछ ही लोग मेरे जैसे दीवाने जागते रहते हैं . रात्रि अपनी युवा अवस्था में पाँव रख चुकी होती है. चारों तरफ नीरवता . श्मशान सी शान्ति , शीतल – मंद – सुगंध हवा के मादक झोंके . नीलाम्बर में चौदहवीं का चाँद – टिमटिमाते सितारों के समूह – बेदर्द – बेरहम सब के सब .मोहब्बत में ये सब आम बात है.
‘बसंत आ गया’- एक सॉर्ट स्टोरी पढी थी बचपन में . चारों तरफ हरियाली ही हरियाली . रंग – विरंगे फूल खिले हैं पेड़ों पर . लेखक बीमार है. बेड पर पड़ा है.मित्र कहता है , ‘ देखो, बसंत आ गया . बाहर झांको – रंग – विरंगे फूल खीले हैं . हरियाली ही हरियाली . लेखक कहता है, मैं बीमार हूँ , मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता .
जब अपना ही मूड ठीक न हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता .
पहले संबोधन के मीठे बोल से ख़त शुरू करनी है . ‘ प्रिय ’ शब्द जंच गया . फिर तुम्हारा पुकार नाम चैती , भदोही , फाल्गुनी . ये सब वाहियात नाम हैं . पुराना पड़ चूका है. मैंने एक – एक कर हार्ड डिस्क मेमोरी से रिट्रीड करना शुरू कर दिया – सैकड़ों नाम आये और विलुप्त हो गये . मुझे एक भी नाम जंचा नहीं.
श्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता ( Labor never goes in vain ) एक लोकप्रिय कहावत है . इसलिए मेहनत – मशक्कत जारी रखी . हाथ लग गया उपयुक्त नाम – रेखा या बिंदु . ये दोनों नाम ज्यामिति के विषय से ताल्लुक रखते हैं . ठीक तुम्हारी चाल – ढाल , स्वभाव व प्रकृति भी तो ज्यामितीय गुणों से मेल खाती है .अब रेखा को पारिभाषित किया जाय तो रेखा सीधी होती है या टेढ़ी – मेढ़ी तुम तो सीधी हो नहीं . इसलिए टेढ़ी – मेढ़ी हो . तुम्हारी सोच या विचार , तुम्हारा वर्ताव या व्यवहार जीग – जैग सड़क की तरह है. मैं ही जानता हूँ इस डगर पर चलना कितना कठिन है. अब उस दिन की ही बात को लो . तुम्हारी एक बहुत बड़ी दिली ख्वाहिश थी कि एकसाथ बैठकर किसी अच्छे रेस्टराँ में जैसे अनारकली में या क्वालिटी में ,लंच लिया जाय. मैं टालता आ रहा था कि पता नहीं … फिर मैं तैयार कैसे हो गया ?
उस दिन , उस तिथि , निश्चित समय एवं स्थान पर मैं घंटों तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा , लेकिन तुम नहीं आयी . मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था . मैंने बड़ी मुश्किल से गाड़ी ली थी . होटल में सीट बुक करवाए थे. तुम्हारी पसंद के डीस ऑर्डर किये थे . जो काम इस अवधि में मुझे करने थे , उसे दुसरे दिन पर टाल दिया था . जब मैं आशा – निराशा के बीच पेंडुलम की तरह झूल रहा था और बीच – बीच में रूमाल से चेहरे पर पसीने की अनचाही बूंदों को पोछने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था तब …
तब तुमने खबर भेजवायी उस हराम … कासिद ( मेसेंजर ) से कि तुम्हारे पाँवों में मेहंदी लगी है , तुम आने – जाने के काबिल नहीं हो.
यह सुनकर मेरे पाँव तले की जमीन धंस गयी और मैं वहीं … हो गया . मेरा ड्रायवर बेचारा चिल्लाया , ‘ बचाव , बचाव …मजमा लग गया .
ड्रायवर ने बताया , ‘ साहब सुबह से शाम तक इन्तजार करते रहे इसी नुक्कड़ पर , वो भी भूखे – प्यासे . किसी ने चारा तक नहीं डाला . गश खा गये जब सुने कि …
मुझे बड़ी मुश्किल से लोगों ने निकाला . अस्पताल तक पहुंचाया . आई. सी.यूं.में भरती करवाया .
चिकित्सक ने कहा , ‘ कुछ ही दिनों का मेहमान हैं . फिफ्टी – फिफ्टी चांस है जीने का . कोई अंतिम ईच्छा हो पेशेंट की तो उसे अबिलम्ब पूरी कर दी जाय .
‘मुझे अपनी प्रेमिका को ख़त लिखने की माकूल व्यवस्था की जाय ’- मैंने गुजारिश ( हकीकत में हुक्म फरमाया ) की.
पता नहीं मुझमें कहाँ से इतनी ताक़त व कुब्बत आ गयी कि मैं उठकर बैठ गया .
पास ही कलम , कागज और स्याही मौजूद थी.
मैंने ख़त लिखना शुरू ही किया था कि सभी लोग हट गये . ( सभी के सभी सज्जन व्यक्ति थे , आज की तरह ताकने – झाकने वालों में से नहीं )
मैंने लिखना प्रारंभ किया :
प्रिय रेखा ,
बीच की बात तो आप जानते ही हैं , तो दोहराने से क्या फायदा ?
एकमात्र तुम्हारा प्रेमी , त्रिभुज |
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक – २९ अप्रील २०१३
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