[Hindi article on corruption – Anna Hazare’s revolution.]
This revolution is getting momentum because Anna has become thought of common man.
“मैं अन्ना हूं, तुम अन्ना हो अब ये सारा देश अन्ना हो चुका है, आखिरकार ये अन्ना कौन है ? ”
74 वर्ष का एक अवकाश प्राप्त सैनिक या 74 वर्ष का समाजसेवी या विकासशील भारत का एक ऐसा सपूत जिसने लोगों में एक नयी प्रेरणा, एक नई ऊर्जा प्रदान करने का बीड़ा उठाने वाला ऐसा सिपाही जो रहता सबके सामने, परन्तु दिखता नहीं है ।
जिस जनआन्दोलन का नाम भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम बताया जा रहा है, जिसका नाम लोकपाल कानून बनाने के लिए सार्थक प्रयास बताया जा रहा है, उसमें मुझे कहीं भी किसी भी तरह से यह बात समझ में नहीं आ रही की, क्या भ्रष्टाचार 15 दिन के जनआन्दोलन से मिटाया या समाप्त किया जा सकता है? या क्या रामलीला मैदान से आह्वान कर पूरे भारत को जगाया जा सकता है ? हमें ही नहीं बल्कि आपको भी शायद ऐसा न लगे ?
क्योंकि यह आन्दोलन ऐसा नहीं है । न ही इसका कोई ऐसा आधार है, जो भ्रष्टाचार को लोकपाल के तहत देश से मिटाया जा सके । मैं जानना चाहूंगा आपसे और उन तमाम देशवासियों से जो अपना योगदान इस आन्दोलन में क्या पाने के लिए कर रहे हैं । आप शायद मेरे इन तमाम प्रश्नों से यह सोच रहे होंगे कि मैं आशावादी नहीं हूं, या मुझको इस आन्दोलन के नतीजे और प्रभाव का अनुमान नहीं है, तो यह गलत है, मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि क्या आप सभी इस आन्दोलन से सन्तुष्ट हैं या नहीं ? अगर हैं तो क्युं और नहीं तो क्यूं ?
यह आन्दोलन एक व्यक्ति विशेष का नहीं है, एक समिति तक ही नहीं सीमित है, परन्तु यह इतना व्यापक और हजारों ऐसे नये मुद्दों को जन्म देने वाला है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष का योगदान महत्वपूर्ण होते हुए भी नहीं है । अगर इसका महत्व है तो इसलिए क्योंकि यह जनता को जागरूक करने का एक प्रयास अवश्य किया गया है ।
एक बार सबको दूसरे की गलतियों को देखने का आभास अवश्य कराया है ? चाहे वह मौजूदा सरकार की हो या पुलिस प्रशासन या किसी भी स्तर का क्यूं न हो !हम जहां ये नारे लगा रहे हैं कि “अब तो जनता जाग गई है” उसको हम केवल कहने में विश्वास रख रहे हैं !
क्या वास्तव में जनता जाग गई है तो रात नहीं आयेगी ? या हमेशा के लिए जाग गई है ! क्या आज जिन नेताओं को मंचों से अभद्र और गवार बताया जा रहा है, वो वास्तव में उसे कल तक याद रख पायेंगे या नहीं ?
भाइयों हमारा इतिहास रहा है , कि हम रोज जागते और रोज सोते हैं । इसलिए यह आन्दोलन और मुद्दे जन्म लेते हैं ।
आज हम जिस आन्दोलन के तहत किसी विशेष तंत्र को कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, वह कितना प्रभावशाली या भ्रष्टाचार निरोधक होगा यह तो समय ही बतायेगा, परन्तु एक बात तो अवश्य निकल कर सामने आयी है और वह है, जनता की अदालत की चौखट पर कोई भी सरकार, कोई भी नेता, कोई भी पार्टी बड़ी नहीं है, न ही उसकी मनमानी चलेगी ।
हमलोग जो आम आदमी है, उसकी आवाज को बुलंद करने का एक रास्ता मिल गया है, जिससे कोई भी सरकार कोई भी जनप्रतिनिधि एक बार गलत काम करने से पहले अवश्य सोचेगा । दूसरी जो सबसे बड़ी उपलब्धि इस जनआन्दोलन की है वो है इसमें सरकार में शामिल लोगों तथा जनप्रतिनिधियों को समझने और परखने का मौका ।
इस जनआन्दोलन से एक बार लोकतंत्र को मजबूती अवश्य मिली है, जिसमें यह कहा गया है, कि जनता सर्वोपरि है, और उसके अहित की बातें करने वालों को बख्शा नहीं जा सकता ।
भाइयों आजादी मिल जाना ही महत्वपूर्ण नहीं होता, महत्वपूर्ण यह होता है कि, उस आजादी का उपभोग उस देश का हर एक नागरिक कर रहा है कि नहीं – संविधान में नये नियम कानून बना देने से ही किसी समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि जरूरी यह होता है कि वह कितना प्रभावशाली है ?अगर हम उदाहरण के तौर पर देखें तो बहुत सारे कानून हैं, जो भ्रष्टाचार को मुक्त करने के लिए सक्षम हैं, परन्तु होता क्या है, न हम भ्रष्टाचार मिटने देना चाहते हैं और न ही वैसे लोगों का समर्थन ही करते हैं ।
परन्तु सौभाग्यवश आजादी के बाद पहली बार जनता के जागरूकता की वजह से इतना बड़ा जनआन्दोलन सार्थक रूप से सफल रहा । हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें अन्ना जैसे व्यक्ति के अत्यंत प्रभावशाली नेतृत्व की वजह से एक नयी सुबह को देखने और भाग लेने का मौका मिला ।
120 करोड़ आबादी वाले देश में लोकपाल का अर्थ और प्रभाव न जानने के बावजूद भी जनता ने बढ़चढ़कर जो दिलचस्पी ली, वो सिर्फ यही संकेत देता है कि- अब हम जाग चुके हैं । हमी गांधी, भगत सिंह और सुभाष के सपूत हैं । अब यहां कोई जयचंद या धृतराष्ट्र नहीं राज कर सकता न ही उसकी मनमानी चलेगी ।
इतनी जागरूकता और युवाओं के समर्थन और प्रदर्शन के बाद भी अगर कुछ राजनेता नजर अंदाज और संसद की गरिमा की बात करने वाले संसद में संसद की मर्यादा का हनन कर रहे हैं, उन्हें अवश्य ही यह सोच लेना चाहिए कि अब सारा देश जो अन्ना या गांधी अपने को मान लिया है वो उन्हें बख्शने वाली नहीं है ।क्योंकिओ अन्ना और गांधी कोई व्यक्ति नहीं एक सोच है, जिससे पूरा भारत का जनसैलाब एक नये परिवर्तन की ओर अपने आप को अग्रसर देख रहा है-
क्योंकि मैं वो अन्ना हूं, जो एक नये युग का निर्माण करने में एक नये भविष्य को जन्म देने वाला है ।
जय हिन्द
मुकेश पाण्डेय