ज़िन्दगी एक अजीब पहलु है, जिसे सुलझाना बहुत ही मुश्किल है। हम भागते रहते है, भागते रहते है कुछ न कुछ पाने के लिए, अपनी ज़िन्दगी सुलझाने के लिए, और एक दिन ज़िन्दगी की इस दौड़ में भागते भागते हम कहीं दूर चलें जाते है, खुद से, अपनों से, अपनी परछाईं से, अपने वजूद से, इस अनोखी दुनिया से, सबसे दूर। कुछ अगर पीछे छुट जाता है तो हमारी अभिलाषा, हमारी सोच जो हम दुनिया से कभी भी नहीं बयां कर पाते। यह एक अहम् पहलु है ज़िन्दगी का।
हम अपनी इच्छाओं को दुनिया की जरूरतों को पूरा करने के लिए त्याग देते है। और हमारे अन्दर जो आग का विशाल गोला भड़क रहा है, उसको हम यूँही जलने देते है, जब तक वो सहन कर सकता है। आखिर हम अपने जूनून को ऐसे जलाकर दुनिया के रंग में क्यूँ रंग जाना चाहते है। हम अपने सपनो की उड़ान भरने से पहले ही क्यूँ अपने सपनों के पंखों को काट कर जमीन पर ही समेट कर क्यूँ रह जाना चाहते है। किससे डरते है हम, किस चीज़ से डर लगता है हमे। खुद से? दुनिया से? या फिर खुद को बदलने से, ज़माने के साथ चलने से। हमें अपने आप से डर लगता है, हमें खुद को बदलने से डर लगता है, हम डरते है की कहीं हमारे इस नए रूप को दुनिया पसंद न करें।
हमने बहुत सारी फिल्में देखी है, बहुत सी किताबें पढ़ी है, जो हमें अपने जूनून को अपनाने का सन्देश देते है। हम वो फिल्म देखकर या फिर वो किताब पढ़कर यह मन बनालेते हैं की अबसे हम अपने सपनो के लिए जियेंगे, पर बस कुछ ही पलों का वो दृढ निश्चय होता है, शायद एक रात का। और फिर अगली सुबह से हम फिर हमारे रोज़ के दिनचर्या का अनुकरण करना शुरू कर देते है। हम वो नहीं करते जो हमे पसंद है, हम वो करते है जो हमारे लिए दुनिया पसंद करती है, और हम भी दुनिया की राय लेने में माहिर है, और बस उलझ के रह जाते है अपनी दुनिया के मंसूबों के बीच जिसे हमारे लिए बुना गया है।
लोगों की मनोस्तिथि अक्सर यह व्यक्त करती है की वो क्या करें खुद को प्रसन्न रखने के लिए। शायद जवाब उनके अन्दर ही छुपा होता है, पर आज कल के हाई प्रोफाइल लोग कहाँ मेहनत करना जानते है, कतराते हैं अन्दर झाकने से। मुझसे अगर कोई यह प्रश्न पूछता है तो में तुरंत अपनी मोगत बता देता हूँ।
दुनिया जिसमे हम जीते है, यह अंधी है, यह वोही देखेगी जो तुम इसे दिखाओगे। ये तुम्हारे अन्दर के हुनर को तभी परख पायेगी जब तुम अपनी विवशता से निकलके अपनी कला की परख कराओगे।
ज़िन्दगी एक दौड़ है जहाँ लोग भागते रहते है, अनजान से रास्तों पे, बेखबर इस बात से की वो क्यूँ भाग रहे है। बस सब भाग रहे है तो वो भी भाग रहे है। बहुत ही अबोध और नीरस होते है ये लोग, अपनी शमताओं से बेखबर, अपने आप को दुनिया के रंगों में ढाल लेते हैं, शायद अपने आप से समझौता कर लेते हैं। और यह लोग इसी दौड़ में एक मध्यम श्रेणी के प्रतियोगी बनकर रह जाते है, पूरी ज़िन्दगी।
अगर ये लोग अपनी ज़िन्दगी की दौड़ खुद चुनते तो शायद प्रथम आते, आसानी से। पर शायद दुनिया के साथ चलने में एक अलग ही मज़ा मिलता है लोगो को। हम वो नहीं है जो हम दिखते हैं, हम वो भी नहीं है जो हम दिखाते हैं। हम वो हैं जो हम अपनी आत्मा में महसूस करते हैं, हम वो हैं जो अपने मन के भीतर किसी कोने में बैठे हुए मिलते हैं। बस पहचानने भर की देरी है।
दुनिया तुम्हें उसी नज़र से देखेगी जिस नज़र से तुम उसे दिखाओगे। बस अब यह फैसला तुम्हें करना है की तुम दुनिया को कौनसा चश्मा पहनाना पसंद करोगे।
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