जीवन – दर्शन – Philosophy Of Life: (This Hindi Article on philosophy of life tells that life is precious & nature gives us everything free of cost. It’s our duty to give back to this nature.)
आज शुबह – शुबह रामखेलावन बिन मौसम बरसात की तरह चौपाल चला आया . मैं उस समय योगासन कर रहा था . हमारी नजरें मिली – एक दूसरे को देखे . साथ – साथ रहते – रहते हम नजरों की भाषा भी समझने लगे हैं . फारिग होकर उठे ही थे कि न्यूज पेपर सामने रख दिया और बोला :
हुजूर ! इधर कुछ महीनों से राज्य में आत्महत्या व बलात्कार की घटनाएँ आदि लगातार हो रही हैं . विशेष कर युवक – युवतियां द्वारा . आप इतना कुछ लिखते हैं . अच्छा सन्देश भी देते हैं अपनी कथा – कहानी , लेख व वृतांत के माध्यम से लोगों को , तो क्यों नहीं कुछ ऐसा लिखते , जो युवक और युवतियों को मार्गदर्शन करे , उनकी सोच और विचार में बदलाव लावे , वे जीवन के अर्थ को भली – भांति समझ सके और एक आदर्श जीवन जी सके .
कोई भी साथी जब कोई अच्छी सलाह या परामर्श देता है तो मैं उसे गंभीरता से लेता हूँ . आज भी मैंने उसके सुझाव को गंभीरता से लिया और इस विषय पर एक लेख लिख डाला , “ जीवन – दर्शन ’’ अर्थात “ Philosophy Of Life ’’
आशा ही नहीं , अपितु मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह संक्षिप्त आलेख पढने के पश्च्यात सम्बंधित सुधि पाठक को अवश्य लाभ पहुंचाएगा .
अब आप के पास है जीवन – दर्शन अर्थात Philosophy Of Life . तो देर किस बात की , उठिए और पढ़ डालिए इसे :
ईश्वर ने हमें जीवन दिया – वो भी मुफ्त ( Free of cost ) . माता – पिता ने हमें जन्म दिया – वो भी निश्वार्थ . हमारा क्या दावित्व बनता है – क्या आपने कभी सोचा है ? हमारी क्या जिम्मेदारी बनती है ? क्या आपने कभी इस पर चिंतन किया है ? हमारा क्या कर्तव्य ( Duty ) होना चाहिए उनके प्रति ? क्या इस पर कभी आपने विचार किया है ?
हमरा दावित्य एवं कर्तव्य बनता है कि हम उन्हें इसका समुचित रिटर्न अदा करें . ऐसी धारना /मत / विचार है कि हम इस अनमोल जीवन व जन्म का हमारे ऊपर जो कर्ज है , उसे हम चूका नहीं सकते. हम उनके उपकारों से उऋण नहीं हो सकते. लेकिन यदि हम चाहें तो बहुत कुछ कर सकते है, एक मिशाल कायम कर सकते हैं . कैसे ? यही एक अहं सवाल है जिसका उत्तर आज हमें ढूंढना है. यही जीवन – दर्शन है.
हमें जिन बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना है वे हैं :
१ आचार – विचार
२ आहार – विहार
३ सद्व्यवहार – सद्कर्म
ये ऐसे मानवीव गुण हैं जिनके अपनाने से – जीवन में ढालने से आदर्श चरित्र का निर्माण होता है और व्यक्तित्व में निखार आता है. इसलिए अपने आचरण को ठीक रखना , विचार को विशुद्ध रखना , हम जो शारिरीक , मानसिक एवं आधात्मिक पोषण – शोषण हेतु जो आहार – भोजन , जल व वायु के रूप में ग्रहण करते हैं,वे सभी पोषक होनी है न कि विनाशक . जो भी हम खाएं , मुँह में डालने से पहले तीन बार सोचे कि यह हमारे लिए स्वास्थवर्धक है कि नहीं . ह्मारी आत्मा से जो आवाज निकलती है , उसका हमें पालन करना चाहिए. विहार व विषय जीवन की रक्षा एवं संरक्षण के लिए है न कि विनाश के लिए . इसलिए क्षणिक सुख के लिए स्थाई सुख से विमुख नहीं होना चाहिए . उत्तेजना व उन्माद में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे माता – पिता के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे और समाज में उनका सिर अपमान से झूक जाय. सदा – सर्वदा हमारा व्यवहार अनुशाषित एवं मर्यादित होना चाहिए. हमारा आचरण व व्यवहार सहज एवं सरल हो , नीतिगत व न्यायसंगत हो , सबके लिए समुचित आदर , प्रेम और सम्मान हमारे अन्तःस्थल में होना चाहिए.
पुर्षोतम राम ने इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ठ किया है :
निर्मल जन – मन सो मोहि पावा , मोहि कपट , छल , छिद्र न भावा |
संत शिरोमणि कबीर दास जी ने इसी भाव को अपने अनुपम दोहे में व्यक्त किया है :
कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा के नीर , पाछे – पाछे हरि फिरत कहत कबीर – कबीर |
कर्म के बारे जितनी विशेषता बतलाई जाय , कम ही होगी . कर्म का क्षेत्र अति व्यापक है. यह सर्वोपरि है. कर्म करना हमारा धर्म है . हमारा कर्तव्य है. लेकिन कैसा ? सद्कर्म अर्थात अच्छा कर्म जो दूसरों की नजर में , विचार में व विश्लेषण में धर्मसंगत , न्यायसंगत , मर्यादा , परंपरा एवं संस्कृति के अनुकूल हो . अंगरेजी की छोटी सी बात है – Do Good , Be Good . इसे हमें समझना चाहिए .
महाकवि संत शिरोमणि श्रीराम भक्त गोस्वामी तुलसीदास ने अपने महाकाव्य रामचरित मानस में कर्म पर अपना विचार बड़ा ही सटीक दिया है :
कर्म प्रधान विश्व करी राखा , जो जस करहिं सो फल चाखा |
४ निष्कर्ष : सभी सुख चाहते हैं, लेकिन इस दिशा में नगण्य लोग ही हैं जो तन – मन से प्रयास करते हैं . सुख व शांति में चोली – दामन का सम्बन्ध है. हमारे विद्वान संतों एवं महर्षियों ने इसका भी हल ढूँढ निकाला है –
“ विद्या ददाति विनयम , विनयात याति पात्रत्वाम , पात्रतवात धनाम आप्नोति , धनात धर्म तत सुखम | ’’
अर्थात विद्या से विनम्रता प्राप्त होती है , विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है , योग्यता से धन प्राप्त होता है , उस धन से जब धर्म होता है तो सुख प्राप्त होता है . कहने का तात्पर्य यह है कि जिसके पास धन हो जाता है , यदि वह धर्म नहीं करता , तो वैसा धन का विनाश हो जाता है और वह व्यक्ति अमूल्य मनुष्य जन्म लेकर भी सांप – छुछुंदर की तरह मर – खप जाता है. उस व्यक्ति का अमूल्य जीवन व्यर्थ चला जाता है.
रामखेलावन पास ही गुमसुम बैठा हुआ था और मेरी बातों को बड़े गौर से सुन रहा था . उससे रहा नहीं गया . कहा :
हुजूर ! आपने लाख टके की बात एक ही पृष्ठ में कह दी .
पता नहीं कितना फायदा …
मैं आशावादी हूँ और आस्तिक भी हूँ . मैं पूर्णरूप से विश्वास करता हूँ – “ जिन ढूंडा तिन पाईयां , गहरे पानी पैठ , जो बौरा डूबन डरा , रहा किनारे बैठ ’’
देखा , रामखेलावन एक दार्शनिक की मुद्रा में किसी सोच में आकंठ निमग्न है .
और मैं ?
और मैं भी इस सोच में डूबा हूँ कि लिखना तो आसन है पर पालन करना कितना कठीन है !
लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १३ मई २०१३ , दिन : सोमवार |
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