Shahanshah Ne Khwaja Ke darbar Me Haajri Di – Hindi Article
जहागीर का बेटा शाहजह भी खवाजा का अकीदतमंद था. वह जवानी में भी और बादशाह बन्ने के बाद भी कई बार दरगाह पर हाजिर हुआ. अजमेर से कोसो दूर वह सवारी से उतर कर पैदल अजमेर में दाखिल होता था और लाखो रूपये गरीबो और मिस्कीनो में बट्टा हुआ दरगाह में हाजिर होता था. उसने दरगाह में संगमरमर की एक सुन्दर मस्जिद बनवायी थी जो आज भी उसकी अकीदत की गवाही दे रही है.
अंग्रेज अफसर खवाजा अजमेरी के दरबार में:
मुग़ल राज के पतन के बाद जब हिंदुस्तान पर अंग्रेजी राज हुआ तो अंग्रेजो ने भी खवाजा गरीब नवाज के आगे अपना सर झुकाया.चुनांचे हिंदुस्तान ने अनेक वायास्राए आस्ताने पर हाजिर हुए.
शाह अफगानिस्तान:
१५०७ में अमीर हबीबुल्लाह खान शाह अफगानिस्तान खवाजा गरीब नवाज के आस्ताने पर हाजिर हुआ और वह बड़ी देर तक ठहरे.
राजाओ के शासकों की हाजरी:
हिंदुस्तान के राजाओ के शासको में से अधिकांश खवाजा गरीब नवाज से अपनी माननेवाले का प्रदर्शन करते थे कुछ ने खुद मजार पर जाकर हाजिरी दी और कुछ ने दरगाह के लिए नजराना धन-दौलत और तोहफे भेजे. इसमें हिन्दू, मुस्लिम ,सिया और सुन्नी सभी शामिल थे.
राजनीती रहनुमा और आम जनता
हिंदुस्तान व पाकिस्तान में औलिया अल्लाह के असंख्य मजार है लेकिन अजमेर में खवाजा गरीब नवाज के उरश पर लोगो की जो बड़ी भीड़ होती है उसकी मिसाल मिलना मुस्किल है जिनमे हर धर्म और समुदाय के लोग होते है. बड़े-बड़े राजनितिक रहनुमा ने भी अक्सर खवाजा गरीब नवाज के मजार पर हाजिरी दी है. मजार पर हाजिरी होने वाले समय के महान राजनीतिज्ञ में महात्मा गाँधी ने भी खवाजा गरीब नवाज के दरबार पर सर जुख कर फैज़ हासिल क्या , पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी गरीब नवाज के दरबार पर सर जुख कर फैज़ हासिल क्या और डॉक्टर राजेंद्र प्रशाद ने भी गरीब नवाज के दरबार पर सर जुख कर फैज़ हासिल क्या , इन्द्र गाँधी ने भी गरीब नवाज के दरबार पर सर जुख कर फैज़ हासिल क्या और संजय गाँधी ने भी गरीब नवाज के दरबार पर सर जुख कर फैज़ हासिल क्या है.
अजमेर की तारीख:
अजमेर हिंदुस्तान का एक बड़ा पुराना और तारीखी शहर है. यों तो इसे तारीख के हर दौर में कुछ न कुछ महत्व हासिल रहा है. लेकिन खवाजा गरीब नवाज का आस्ताना होने की वजह से इसे जो शोहरत और नाम मिला है वह अनोखा और न भुलाने वाला है. यह शहर हिंदुस्तान के उत्तर-पश्चिम में अरावली पहाड़ के दामन में बसा है. चारो तरफ कई छोटी-छोटी पहाड़िया है. इसके पूर्व में किश्न्गढ़ राज्य , पश्चिम में सरस्वती नदी, उत्तर में गोग्रा घाटी और दक्षिण में अरावली पहाड़ है.आगरे से इसकी दुरी २७० मील, दिल्ली से २३५ मील, मुंबई से ६८७ मील और लाहोर से ५७० मील है. बड़ा सुन्दर और अच्छी जलवायु वाला शहर है.
बुनियाद:
अजमेर की बुनियाद दुसरी सदी इसवी में राजा वासुदेव (और एक दुसरी रिवायत से मुताबिक राजा अजयपाल) ने डाली थी. पुराना शहर वर्तमान शहर के दक्षिण -पश्चिम में था आज भी इस के खंडहर आखों के लिए सबक का सामान है. विभिन काल में इसे अलग-अलग नामो से पुकारा गया. जैसे जेदरुक, जपमीर,अदमीर,जियागीर और जलोपुर आदि.
मशहूर बुद्ध राजा कनिष्क (मौत १२० इसवी ) के बाद उसके बेटे हवेशक ने १४० इसवी तक बड़ी आन-बान से हुकूमत की. हवेशक के बाद राजा वासुदेव गद्दि पर बैठा. लेकिन वह अपने बाप-दादा की तरह एक मजबूत शासक साबित न हुआ और जगह-जगह बगावत होने लगी. बागियों में अनहलपुर का राजा अजयपाल भी था. इसकी राजधानी तख़्त पटन(गुजरात ) का और वह कनिशक खानदान का टैक्स देने वाला था उसने राजा वासुदेव की सेना को हरा कर उसके कई इलाके पर कब्ज़ा कर लिया. इनमे अजमेर का इलाका भी शामिल था. अजयपाल ने अजमेर को अपनी राजधानी करार देकर एक-एक अलग-अलग राज्य कायम कर लिया. कहा जाता है की बुनियाद राजा वासुदेव ने पहले ही डाल दी थी. अलबत्ता उस को अच्छा और बड़ा राजा अजयपाल ने किया.
इससे आपको ये समझाना चाहते है की खवाजा गरीब नवाज के दरबार पर राजा, महाराजा और राजनीतिज्ञ ने भी अपने सर को झुका कर खवाजा गरीब नवाज से लाभ उठाना है.ये बात अलग है की कोई उनके दरबार में धन के लिए आता है कोई राजगद्दी के लिए आता है कोई राज्य पर विजय प्राप्त करने के लिए आता है और हमारे पायरे खवाजा गरीब नवाज सब की मुरदे सुन्नते है और उसकी हर मुरदे बा तुफैल हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पूरी करते है.