These days boys & girls while failing in love tend to commit suicide. Due to lack of education Parents must come closer Be friendly
जीवन कितना अमूल्य है , यह व्याख्या करने का विषय नहीं है , इसे अनुभव किया जा सकता है. शास्त्रों , वेदों , उपनिषदों व पुराणों के अनुसार चौसठ लाख योनी में जन्म लेने के पश्यचात ही मानव शरीर की प्राप्ति होती है. यह सभी धर्मों का मत है कि आत्मा अमर है – इसका विनाश नहीं होता . प्राण – पखेरू उड़ जाने के बाद भी आत्मा किसी दूसरे जीव में जन्म ले लेती है और मृत्य शरीर , जो पञ्च तत्वों से निर्मित होता है , वह अपने – अपने मूल तत्वों में विलीन हो जाता है . शाश्त्रानुसार शरीर पांच तत्वों से निर्मित है :
क्षिति, जल ,पावक ,गगन , समीरा |
पञ्च तत्व रची यह अधम शरीरा ||
अर्थात यह निकृष्ट व मूल्यहीन शरीर पांच तत्वों , जैसे मिट्टी , पानी , अग्नि , आकाश और वायु ( हवा ) से बना हुआ होता है. मरणोपरांत शरीर या देह को जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है या चीलों – ग्रिधों को परोस दिया जाता है – अंतिम संस्कार अलग – अलग धर्मों के अनुसार किया जाता है . चाहे जिस धर्म से , जिस विधि – विधान से हो , लेकिन मृत्य शरीर की गति एक ही होती है – जिन पाँचों तत्वों से शरीर निर्मित होता है , वे पाँचों तत्व अंततोगत्वा अपने – अपने मूलरूप में विलीन हो जाते हैं . यह एक दैविक या प्राकृतिक नियम के तहत होता रहता है. यह क्रिया एक चक्र की भांति घूमते रहता है. जीवन कितना अमूल्य है – इस पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है.
एक कदम आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि इसे पाने के लिए माता – पिता की अहम् भूमिका रहती है. दोनों के सहयोग से ही शिशु का आविर्भाव इस संसार में हो पाता है. गर्भाधान के बाद माँ करीबन नौ – दस महीनों तक शिशु को अपने पेट में वहन करती है और हर प्रकार व दृष्टी से उसका ख्याल रखती है तबतक जबतक शिशु का जन्म नहीं हो जाता . शिशु जन्म लेने पर कितना असहाय और असहज होता है , यह बात किसी से छुपी हुयी नहीं है , क्योंकि सब के घर में बच्चे – बच्चियां जन्म लेते ही हैं . इसके बाद तो माँ – बाप की जिम्मेदारी दोगुनी – चौगुनी हो जाती है , क्योंकि शिशु को चौबीसों घंटे भली – भांति देख – रेख की आवश्यकता होती है. शिशु की सेवा – सुश्रुषा के लिए माँ को रात – दिन चौकन्ना रहना पड़ता है . जी – जान से मेहनत – मशक्क़त करनी पड़ती है. इसपर भी विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है , क्योंकि लोग अपने घरों में शिशु के जन्म लेने के बाद माँ की व्यस्तता से वाकिफ हैं . शिशु के लिए माँ का त्याग आंकलन से परे है. शिशु का जरा सा रोना , माँ का बेतहासा दौड़ पड़ना , चाहे वह किसी भी आवश्यक कार्य में कितना भी व्यस्त क्यों न हो , एक ऐसी मिसाल है ममता या ममत्व की जो किसी भी लोक या परलोक में खोजने से भी नहीं मिल सकती .
किसी कवि या शायर ने अपने दिल की बात , मन के भाव या अंतरात्मा की आवाज को इस सन्दर्भ में उढ़ेल कर रख दी है : उसको नहीं देखा हमने कभी , पर इसकी जरूरत क्या होगी , ये माँ,ये माँ, तेरी सूरत से अलग,भगवान की सूरत क्या होगी | क्या होगी , उसको नहीं देखा हमने कभी ! ( फिल्म : दादी माँ – 1966 , गायक : महेंद्र कपूर और मन्ना डे ) एक दूसरी जगह कवि या शायर ने माँ के प्रति अपने मन के उदगार को इस प्रकार प्रकट किया है : तू कितनी अच्छी है , तू कितनी भोली है , प्यारी – प्यारी है , ओ माँ ! … ओ माँ … !! ये जो दुनिया है , ये वन है काँटों का , तू फूलवारी है ! ओ माँ ! … ओ माँ !! … !!! ( फिल्म : राजा – रंक – 1968 , गायिका : लता मंगेशकर एवं ग्रुप )
माँ का जितना भी गुणगान किया जाय – कम है. जग की सारी स्याही भी – सारे कागज़ भी कम पड़ जायेंगे यदि माँ की कथा को प्रारंभ से अंत तक लिखी जाय माँ अपने फूल से भी ज्यादा नाजुक व कोमल हाथों से अपने जिगर के टुकड़े को सहेजती – सम्हालती है , उसका लालन – पालन करती है . माँ संतान की प्रथम गुरु होती है. वह उसे अंगुली पकड़कर चलना – फिरना सीखाती है . तुतली जुबान में बोलना सीखाती है . मातृभाषा का ज्ञान माँ की गोद में ही प्राप्त होता है. यही वह पाठशाला है जहां शिशु का चरित्र का निर्माण होता है. माँ की गोद , उसके आंचल की छाँव ऐसी जगह होती है जहां बच्चे – बच्चियां जीवन मूल्यों और जीवन आदर्शों के पाठों को पढ़ते है.
इसीलिये तो कहा गया है : “ जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ” अर्थात माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है .
माँ के साथ – साथ पिता के सहयोग और साहाय्य को भुलाया नहीं जा सकता . उनका ध्यान अपनी संतान , अपनी जीवन संगिनी के देख – रेख , पालन – पोषण में अहर्निश लगा रहता है . अपनी संतान के साथ माता – पिता की कितनी आशाएं , उम्मीदें जुडी रहती हैं , यह व्यक्त नहीं किया जा सकता , केवल अनुभव किया जा सकता है. माँ – बाप के बुढ़ापे का सहारा , यदि कोई होता है , तो उनकी संताने हैं . माँ – बाप की दिली ईच्छा रहती है कि – उनकी आशा बंधी रहती है कि उनकी संतान पढ़ – लिखकर , बड़े होकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाय – उनकी देख – रेख समुचित आदर व सम्मान के साथ करे . उनके यश , साख व नाम को अपने सद्कर्मों से रौशन करे . समाज और देश में अपने आचरण व कर्म से एक ऐसी मिसाल कायम करे जिससे माता – पिता का सर गर्व से उंचा हो जाय.
सबसे भयावह स्थिति तब हो जाती है जब किसी युवक या युवती आवेश , उत्तेजना , उन्माद व अवसाद में आत्महत्या कर लेते हैं और अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं . ऐसा जघन्य और घिनौनी हरक़त करने के पहले क्या उसे अपने माता – पिता के बारे नहीं सोचना चाहिए था ? क्या यह उसका कायरतापूर्ण कार्य नहीं कहा जा सकता ? क्या जीवन , जो इतनी मुश्किल से मिली है , को क्षणभर में अंत कर देने का अधिकार उसे है ? जिन माँ – बाप ने इतनी आशाओं और उम्मीदों के साथ उसे पाला – पोशा , पढ़ाया – लिखाया , क्या उसका दायित्व नहीं बनता कि वह उनकी उम्मीदों और आशाओं पर खरे उतरे ? युवक या युवती प्रेम में जब असफल हो जाते हैं , तब क्या आत्महत्या कर लेना ही सच्चे प्रेम का एकमात्र प्रतिदान है ? क्या प्रेम की यही परिणति है ? इतना बड़ा कदम उठाना क्या बेवकूफी नहीं ? क्या इसे कायरता की श्रेणी में रखा नहीं जा सकता ?
प्रेम में असफल होने पर क्या जीवन जीने का कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं हो सकता ? क्या ऐसी मिसाल कायम नहीं की जा सकती कि दुनिया और दुनियावाले उनके क़दमों पर सर झुका दे ? माँ – बाप का सर गर्व से उंचा हो जाय ? क्या ऐसे आत्महत्यारों को एक बार भी अपनी माँ – बाप की याद नहीं आती – ऐसे जघन्य कार्य को अंजाम देने के पहले ? क्या वे इतने निर्दयी,निष्ठुर व मदांध हो गये ? इससे भी घिनौनी हरक़त तब होती है जब युवक युवती के प्राणों का प्यासा हो जाता है. युवती को किसी हथियार से मार देता है या जहर दे देता है और खुद भी मार लेता है या जहर खा लेता है. इसे पागलपन नहीं तो और क्या कहा जा सकता ? पढ़ – लिखकर इतनी नासमझी , इतनी नादानी , इतनी क्रुरता वो भी क्षणिक प्रारब्ध हेतु , क्षणिक भोग – विलास , आमोद – प्रमोद , विषय – वासना के लिए ? क्या जीवन में यही सबकुछ होता ? कदापि नहीं .
इससे भी बड़ी चीज होती है . इससे भी परे एक दुनिया है – इससे भी ऊपर एक जिन्दगी है . जीवन – मूल्यों व जीवन आदर्शों को आत्मसात करना और अपने जीवन को इस प्रकार तरासना ताकि जनहित , जनमंगल व जनकल्याण की कल्पना को साकार किया जा सके , मरणोपरांत भी दुनिया में नाम , यश व कृति कायम रहे . ऐसे अनेकों महान व्यक्तियों की सूची उपलब्ध है जिन्होंने ऐसे क्षणिक सुख का त्याग करके परम व शाश्वत सुख के रास्ते अपनाए . जनहित और जनकल्याण के कार्यों में अपना सारा जीवन अर्पित कर दिए . आज सारी दुनिया उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के समक्ष नतमस्तक है . इतिहास के पन्नों में ऐसे व्यक्तियों के नाम , कृति व यश सुनहले अक्षरों में अंकित हैं . एकबार पढ़कर तो देखिये . स्वाश्थयवर्धक वार्तालाप , शिक्षाप्रद पुस्तकें और सुसंगति आप के जीवन को सार्थक बनाने में अहम् भूमिका निभा सकती है.
स्वामी विवेकानंद को कौन नहीं जानता ? एक बार एक महिला उनके व्यक्तित्व से इतनी प्रभावित हुयी कि उसने स्वामी जी के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया . स्वामी जी ने धैर्य से उसकी बातें सूनी और बड़े ही शांत भाव से अपने जीवन के मिशन के बारे समझाये , फिर भी वह अड़ गयी . स्वामी जी के पास हर समस्या का समाधान रहता था , ऐसे प्रखर बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे वे . तत्काल उन्होंने उसे स्पष्ट कर दिया कि यदि उसे उनके साथ रहना ही है तो बहन बनकर रह सकती है . उस दिन से स्वामी जी ने उसका नाम दे दिया – भगिनी निवेदिता , जो आजीवन स्वामी की शिष्या बन कर उनके मिशन को सफल बनाने में सहयोग करती रही.
अब मूल विषय पर बात करना आवश्यक प्रतीत होता है. अभी हाल में एक युवक ने एक युवती पर टांगी से वार कर दिया और खुद जहर खा ली. युवक की मौत हो गयी और युवती मरणासन्न है . यह घटना जे एन यू , दिल्ली की है. मेरे पड़ोस में मेरे मित्र के पोते , जो दसवीं वर्ग का स्टूडेंट था , अपनी सहपाठी ( एक लडकी ) से लव करने लगा , लेकिन वह लड़की उसे नहीं चाहती थी.
लड़का जब भी मिलता लड़की से कहता – आई लव यू . इसपर लड़की का जबाव होता – आई हेट यू .
कुछेक महीनों के बाद एक दिन लड़की ने कहा , “ क्या तुम मुझसे शादी करोगे ? ”
लड़के ने कहा , “ हाँ करूंगा . ”
लड़के ने यह बात अपने माँ – बाप से बताई . माँ ने कहा , “ अभी तुम्हारी पढने – लिखने की उम्र है , बाद में देखेंगे . ”
अब लड़के ने , जब माँ – बाप घर से बाहर थे , फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. आठ महीने हो गये , न तो माँ के आंसू थम रहे हैं न पिता के . दादा जी का शरीर सोचते – सोचते टूट गया है. सदमे से अभी तक परिवार उबर नहीं सका है. इसे आप क्या कहेंगे ? किसी वजह से परिवार वाले शादी के लिए राजी नहीं थे , युवक और युवती ने पेड़ पर फांसी लगा कर झूल गये और जान दे दी. इसे आप क्या कहेंगे ? उफनती हुयी नदी में युवक और युवती – दोनों ने पूल से छलांग लगा दी और जान दे दी इसे आप क्या कहेंगे ? किसी होटल के कमरे में युवक और युवती ने जहर खाकर जान दे दी . इसे आप क्या कहेंगे ? किसी युवक ने युवती के ऊपर तेज़ाब फेंक दी – सबक सीखाने के लिए या प्रतिशोध में . इसे आप क्या कहेंगे ? परीक्षा में युवती फेल हो गयी . माँ या पिता ने पुत्री को किसी बात पर डांट पिलाई , पुत्री ने फांसी लगा ली. इसे आप क्या कहेंगे ?
मेरे एक बड़े ही अच्छे मित्र थे – क साहब . बड़ा ही खुशहाल जीवन था . बेटी महिला विद्यालय में पढ़ती थी . ऑफिस से जब भी घर लौटते थे तो लड़की को अक्सरां एक लड़के से बात करते हुए पाते थे. एक दिन उनसे रहा नहीं गया और लड़की को डांट – फटकार लगाई , एक दो चपत भी रशीद कर दी . लड़की को अपने साथ लेते चले गये घर तक . दू सरे दिन मुझे समाचार मिला क साहब की लड़की ने खुदकशी कर ली कमरे में बंद होकर फांसी लगा ली . लड़की अति सौम्य , अति सुशील , अति आकर्षक थी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि लड़की ऐसा जघन्य कदम उठायेगी . पूरा परिवार हिल गया इस घटना से. मेरा मित्र इतना शौक – संतप्त हो गया कि कुछेक महीनों में ही दुनिया छोड़कर चले गये . इसे आप क्या कहेंगे ?
मैं सबसे पहले अपनी बात ( विचार , फीलिंग ) बताना चाहता हूँ कि जब कभी प्रेम प्रसंग को लेकर कोई युवक या युवती या दोनों आत्महत्या कर लेते हैं तो मैं मर्माहत हो जाता हूँ इतना हद तक कि मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पाता हूँ . चिंतन के अथाह सागर में डूबने – उतराने लगता हूँ . आज थोड़ा ज्यादा ही भाऊक हो गया हूँ . आठ अगस्त २०१३ का दैनिक जागरण समाचार पत्र का पृष्ठ संख्या तीन मेरे सामने है .
नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार प्रेम प्रसंग में देश भर में आत्महत्या करनेवालों की संख्या करीब चार हज़ार है – एक वर्ष में . झारखण्ड राज्य में २०१२ में ४८ युवक – युवतियों ने प्यार के नामपर जान दे दी. इनमें २७ पुरुष और २१ महिलायें हैं .
एन सी आर बी के अनुसार इनका शैक्षणिक स्थिति प्रतिशत में :
१ . अशिक्षित : १९.७ %
२ . प्राथमिक : २३.५ %
३ . मैट्रिक : १९.२ %
४ . उच्च वि : ९.७ %
५ . स्नातक : ३.४ %
६ . डिप्लोमा : १.५ %
७ . स्नातकोत्तर : ०.६ %
उपरोक्त आकड़ों से विदित होता है कि समुचित उच्च शिक्षा के अभाव में आत्महत्या अधिक होते हैं . जिनके सामने उज्जवल भविष्य है , वे इस कुकृत्य से अपने को वंचित रखते हैं . अशिक्षा या न्यून शिक्षा आत्महत्या का मूल कारण है.
अब मनोचिकत्सक के विचार को भी जाने :
डाक्टर मिली सिंह के अनुसार प्रेम प्रसंगों में ब्रेकअप के लोग अवसाद में चले जाते हैं . इस समय उसे परिवार के सहयोग की अपेक्षा होती है. अपेक्षित सहयोग न मिलने पर वे आत्महत्या की और प्रेरित होते हैं . दूसरी वजह शिक्षा की कमी और अल्प शिक्षा है , क्योंकि ऐसे मामलों में युवक – युवतियों के पास कोई लक्ष्य नहीं होता . ऐसे मामलों से निपटने के लिए परिवार के लोगों को ऐसे युवक – युवतियों के करीब आना चाहिए और उनकी पीड़ा को समझना चाहिए – उनका वक़्त – वक़्त पर समुचित कौन्सिलिंग करनी होगी . एक समाजशास्त्री एवं मानवाधिकारविद होने के नाते मेरा मत है कि प्रेम प्रसंगों से आये दिन होनेवाली आत्महत्या पर बहुत हद तक अंकुश लगाया जा सकता है या इसे न्यूनतम प्रतिशत में लाया जा सकता है जब माँ – बाप और परिवार के सारे सदस्य युवक – युवती के साथ नियमितरूप से संपर्क बनाए रखें – खुलकर बातचीत करें – उसकी भावनाओं की कद्र करे . उसकी जगह अपने को रखकर किसी निर्णय को लें. व्यस्क युवक , युवतियों के साथ यदि दोस्ताना अंदाज़ में बात – चीत करें , तो वे कभी भी आत्महत्या की बात सोच भी नहीं सकते – यह विचार मैं अपने अनुभव , अध्ययन और अन्वेषण के आधार पर व्यक्त कर रहा हूँ .
लेखक : दुर्गा प्रसाद , बीच बाज़ार , जीटी रोड , गोबिंदपुर , धनबाद – ८२८१०९ , दिनांक : ८ अगस्त २०१३ , दिन : वृस्पतिवार |
***********************************************************************