बजरंगी
बजरंगी एक सीधा सादा इंसान था । आज उसकी बेटी मिनी की शादी थी । मिनी को उसने फूल की तरह पाला था और आँखौ में उसने शादी के सपने संजोये थे।बजरंगी सौच रहा था कि वक्त कितनी तेज़ी से गुज़र जाता है । आज बजरंगी सेठ के नाम से जाना जाता है ।वह यादों में खो गया जब खुद अपने बचपन के मज़े ले रहा था पिता बडे व्यापारी थे । उनका नाम धनिक लाल था । वे बजरंगी को बज्जू कहते थे बज्जू उनका सबसे छोटा और सबसे लाडला बेटा था । यूं तौ बज्जू के दौ और बडे भी थे और वे पिताजी का कारोबार देखते थे । बज्जू जो भी मांगता उसे उसी समय मिल जाता था ।
मस्ती में दिन बीत रहे थे । बज्जू स्कुल जाने लगा मगर वह लापरवाही से पढ़ाई करता था । पैसौं की घर में कौई कमी नहीं थी इसलिए पिताजी भी कुछ नहीं कहते थे । जब बज्जू पन्द्रह सोलह साल का हुआ तो बेटे कहने लगे कि अब उसे भी व्यापार में साथ देना चाहिए बस बैठा बैठा आराम करता है लेकिन पिताजी उन्हें चुप कर देते और कहते कि मेरा सब कुछ तुम तीनौं का है इसलिए इसे काम करने की कौई ज़रूरत नहीं । बीस साल के करीब था कि धनिक लाल ने बज्जू की शादी अपने दोस्त की लड़कीे शीबा के साथ कर दी ।
शीबा एक समझदार लडकी थी । शादी होने पर फिर भाई भाभियौं नें बज्जू को काम करने पर ज़ोर दिया बहस इतनी बढ़ गई की धनिक लाल जी को दिल का दौरा पड़ा और वे वहीं गिर पड़े ओर फिर कभी नहीं उठे । बज्जू सब देखकर सन् रह गया अपने पिता की मौत कौ बरदाश्त नहीं कर पा रहा था ।
भाइयों ने बज्जू को बहला फुसलाकर घर जमीन व्यापार सब अपने नाम करवा लिया । अंदर ही अंदर भाई बज्जू से बहुत नफ़रत करते थे । आखिर उन्होंने बज्जू और शीबा को घर से निकाल दिया । शीबा एक स्वाभिमानी लड़की थी वह अपने पिता के घर जाकर नहीं रहना चाहती थी । इसलिए उसने बज्जू से कहा दोनों मिल कर कुछ भी कर लेंगे और अपना पेट भर लेंगे । बज्जू शीबा के साथ घर से चला गया ।
बज्जू सोचने लगा काश मैने कुछ पढ़ाई की होती तो कुछ तो कर पाता । एक चाय की दुकान पर शीबा को बिठाया और कहने लगा कि तुम यहाँँ से कहीं मत जाना मैं काम ढ़ूंढने जा रहा हूँ ।यह कहकर बज्जू वहॉं से चला और दूर जंगल में एक पहाड़ी पर पहॅुंच गया सोचा कि मैं मर जाऊँगा तो शीबा को तो उसके घर वाले ले ही जाएँगे ।
ऐसा सोचकर जैसे ही नीचे कूदने को हुआ कि पीछे से किसी “बाबा” की आवाज़ सुनई दी उसे देख कर बज्जू रूक गया और उसने बाबा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई । बाबा ने कहा जो इंसान हिम्मत कर के जीने की और कुछ भी करने की सोचता है भगवान उसका ही साथ देता है और कहा कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारे बिना जी तो लेगी पर सारी उमर तुम्हारी याद में तड़पती रहेगी । बज्जू की समझ में कुछ तो आ रहा था वह वापिस आने के लिए मुड़ा फिर सोचा कि बाबा का धन्यवाद तो कर दूँ उसने चारों तरफ़ देखा मगर बाबा कहीं नज़र न आए ।
बजरंगी वापस शीबा के पास आया अब वोे परेशान दिखाई नहीं दे रहा था । उसने चाय वाले से शीबा को चाय पिलाई और खुद भी चाय पी बदले में चायवाले की दुकान के बरतन साफ़ कर दिए फिर शीबा और बज्जू बस स्टैंड पर चल दिए । शीबा ने बज्जू से पूछा कि वे कहाँँ जा रहें हैं तो बज्जू मुस्करा कर कर बोला जहाँँ भगवान ले जाए ।
काफी दूर तक बस चली आखिर वे एक अन्जान शहर में उतर गए सामने एक चाय वाले की दुकान थी ,दोनों ही भूखे प्यासे और खाली हाथ थे । बज्जू ने चाय वाले से पूछा कि कोई काम मिल सकता है उसने बताया कि सामने एक परचून वाले को एक आदमी की ज़रूरत है ।
बज्जू शीबा को लेकर उस दुकान पर गया परचून वाले ने कहा कि वह दो दिन काम देखेगा फिर उसे अपने पास रखेगा ।तभी उस दुकान वाले की पत्नी बाहर आई वो एक भली औरत थी ।बज्जू और शीबा से उनके रहने और खाने के बारे मे पूछने लगी ,बज्जू ने इसे सारी बात बताई । ये सभी बातें दुकान वाला सोमेश भी सुन रहा था उसने बज्जू से कहा कि पीछे एक टूटा सा कमरा है अगर वहाँँ रहना चाहते हो तो रह सकते हो।बज्जू ने तुरंत हाँ कर दी ।
शीबा ने साफ़ सफ़ाई कर दी , मकान माल्किन ने उसे पुराने बरतन दिए । बज्जू और शीबा को खाना खिलाया । फिर बज्जू देर रात तक सोमेश की दुकान पर काम करता रहा , फिर आटा प्याज लेकर घर आया । सोमेश ने उस दिन उसे काम करने के चालीस रूपये दिए । बीस रूपये मे बज्जू ने आटा प्याज़ लिए । शीबा और बज्जू ने रोटी प्याज़ के साथ खाई ।
अगले दिन से बज्जू दुकान पर काम करने लगा ।दोपहर को जब खाना खाने अपने कमरे मे आया तब बाहर से एक कबाड़ी वाले ने आवाज़ लगाई “कुछ कबाड़ हो तो देदो “तब कबाड़ी वाला जाने लगा तो बज्जू ने उसे रोका उसके पास जितने भी पुराने अखबार थे खरीदे रात को दुकान से आने के बाद बज्जू ने शीबा के साथ मिलकर काफ़ी देर तक लिफ़ाफे बनाए ।सुबह छः बजे बज्जू ने कुछ दुकानों पर अपने लिफा.फे बेचे लिफाफे अच्छे से बने हुए थे इसलिए तुरंत बिक गए ।
कुछ दिन यही काम चलता रहा ।बज्जू के पास कुछ पैसे इकट्ठठे हो गए ।एक दिन दुकान पर खड़े खड़े ग्राहक को सामान दे रहा था कुछ बच्चे आईसक्रीम खाते हुए वहाँँ से निकले, अचानक बज्जू के दिमाग में विचार आया । उसने सोमेश से इस बारे में बात की ।स्कूल पास मे ही था सोमेश ने कहा दोपहर को जब खाने का टाईम होता है तो आईसक्रीम बेच सकता है ।
अब बज्जू ने आईसक्रीम का ठेला खरीदा और स्कूल के आगे आईसक्रीम बेचने लगा । यह काम तो उसका चल निकला ।अब तो बज्जू बच्चों का बज्जू अंकल बन गया । धीरे धीरे बज्जू के पास पैसे जुड़ने लगे उसकी मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया था बज्जू ने अपना छोटा सा मकान खरीदा कुछ वक्त बाद बज्जू ने एक ऑटो रिक्शा खरीदा बस अब तो बज्जू की किस्मत रंग दिखाने लगी ,बज्जू के दो बच्चे हु्ए बड़ी बेटी मिनी और छोटा बेटा श्लोक ।
बज्जू के दिन फिर गए रिक्शा से गाड़ी और छोटे मकान से बड़े घर मे बज्जू आ गया था ।बज्जू अक्सर जंगल मे मिले बाबा के बारे मे सोचा करता था कि “उसने कहा था”।
अचानक ऐसा लगा जैसे नींद से किसी ने जगा दिया हो घर महमानों से भरा था शीबा और बज्जू मिनी को देख खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ।
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