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Satya Aur Sandesh

Published by BR Sunkara in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag artist | competition | message | prize

Hindi story of artist moral

Hindi Story with Moral – Satya Aur Sandesh
Photo credit: undefined from morguefile.com

एक शहर में करुणाकर नामक एक अपार धनवान था। वह हर साल कलाकारों और शिल्पियों के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया करता था। विजेताओं को सुख-संतोष से आजीवन  जीने के लिए उन्हें घर-जमीन आदि का पुरस्कार दिया करता था।

करुणाकर ने एक साल शिल्पियों के लिए विशेष प्रतियोगिता का आयोजन किया। पहले तीन विजेताओं को घर, जमीन और हजार स्वर्ण मुद्राओं के पुरस्कार घोषित किये गये।

एक पहाड़ पर शिल्पियों ने अपने शिल्प बनाये। उनमें से अनेक शिल्प अत्यंत सहज थे। लोगों ने श्ल्पाचार्यों की भूरिभूरि प्रशंसा की।

करुणाकर और उसके कला-विश्लेषक शिल्पाचार्य उन शल्पों की परीक्षा करने लगे। किसी शिल्पी ने एक मुर्गी और चूज़ों का शिल्प बनाया था जो बिलकुल सहज मुर्गी और चूजों की तरह था। आसमान में उड़ने वाले चीलों नॆ इस शल्प को असली मुर्गी और चूज़े समझकर, उन चूज़ों को पकड़कर ले जाने के लिए उस शिल्प पर बार-बार हमला करने लगे।

एक जगह कुछ फूलों का शिल्प बनाया गया था। भौरे उन फूलों को असली समझकर, उन फूलों वाले शिल्प पर मंडराने लगे। इसे देखकर करुणाकर ने मंदहास किया।

एक जगह किसी शिल्पकार ने एक भयानक नाग का शिल्प बनाया जो एक मेंढक को निगल रहा था। यह सर्प-मंडूक शिल्प भी बहुत ही अच्छा था, लेकिन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। करुणाकर के साथ जो शिल्प-पारखी आये थे, उन्हों ने भी इस शिल्प पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। करुणाकर को इसकी विशिष्टता मालूम थी, मगर वे शांत-चित्त होकर चुप रह गये। कुछ बोले बिना उन को साथ लेकर आगे चल दिये।

शिल्पों की परीक्षा के अनंतर, करुणाकर ने एक आम सभा का आयोजन किया। यहाँ लोगों को इन शिल्पों पर अपने सुधी विचार प्रकट करने के लिए आमंत्रित किया गया।

सब लोगों ने मुर्गी और चूजों वाले शिल्प को प्रथम और फूलों को दूसरा पुरस्कार देने के योग्य बताया। तृतीय पुरस्कार के लिए किसी भी शिल्प को लोगों ने नहीं चुना।

तभी उस सभा में अनंत नामक एक युवक खड़ा हुआ और उसने कहा, “करुणाकर जी, मैं एक दूर नगर वाराणसी से आया हूँ। मुझे आप की प्रतियोगिता के बारे में मालूम हुआ और इसे देखने के लिए ही मैं  इतनी दूर यहाँ आया हूँ। क्या आप मेरे विचार प्रकट करने की आज्ञा देंगे? “

करुणाकर ने उसे अपना विचार प्रकट करने के लिए अनुरोध किया। तब अनंत ने अपना विचार इस प्रकार प्रकट किया –

“करुणाकर जी, मुर्गी और चूज़े एक उत्तम प्रमाणों का शिल्प है। यह सत्य का प्रति रूप है। वैसे ही फूलों का शिल्प भी जिन का यहाँ के सब सुधी जन प्रशंसा कर रहे हैं। सत्य को किसी परदे के नीचे अप्रकट रूप से रखना किसी के लिए भी संभव नहीं होता। लेकिन मेरे विचार में यहाँ अप्रकट रूप से एक और शिल्प है जो महान है और जिसके अंदर गुप्त रूप से एक महान विचार निक्षिप्त है। मैं उसे अब प्रकट करना चाहता हूँ।“

सब उसकी ओर आश्चर्य से देखने लगे। करुणाकर भी उसकी प्रभावशाली वचनों पर उत्सुकता से अपना संपूर्ण ध्यान केंद्रित किया। अनंत अपने वचनों को इस तरह प्रकट किया –

“करुणाकर जी, किसी भी वस्तु की सार्थकता उसकी उपयोगिता पर निर्भर होती है। उसी तरह इन शिल्पों के संदेश पर उनकी उत्कृष्टता निर्भर होती है। चूज़ों और फूलों में सहजता है, मगर कोई विशिष्ट संदेश उन में नहीं है। सर्प-मंडूक शिल्प में एक महान संदेश है। सर्प तो शोषण का प्रति रूप है। मंडूक शोषित का उदाहरण है। समाज में शोषक अनेक हैं जो लोगों पर प्रताडन करते हुए उन्हें शोषित कर रहे हैं। जैसे सांप उस मेंढक को खाने के लिए उसके पीछे पड़ा हुआ है, उसी तरह समाज के कुछ दुष्ट लोग भी अबोध जनता के पीछे इस सर्प की तरह पड़कर, उन की जान लेने पर पड़े हुए हैं। इस महान संदेश को प्रकट करने वाले उस सर्प-मंडूक शिल्प को ही मेरे विचार में प्रथम पुरस्कार मिलना चाहिए।“

अनंत के सुधी विचार पर करुणाकर और उसके सुधी शिल्पाचार्य मुग्ध हुए। सर्प-मंडूक शिल्प को अन्हों ने प्रथम स्थान में घोषित किया। पुरस्कार विजेताओं के साथ, अनंत को भी एक अच्छा सा पुरस्कार देकर करुणाकर ने उसका अपार सत्कार किया।

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