स्लीपर क्लास का जुर्माना – This Hindi story is based on a true incident happened with the writer, Its about an ordinary train journey which gave an extra-ordinary experience with a very valuable learning of life.It teaches us how some totally strange poeple can change our way of thinking.
वैसे तो कहानी का नाम पढ़कर ही आपको समझ आ गया होगा के कहानी एक रेल सफ़र की है. हम अपनी ज़िन्दगी में न जाने कितनी ही बार रेल का सफ़र तय करते है कितने ही अनजान लोगो से मिलते है, हर सफ़र की एक अपनी ही कहानी होती है. पर ये कहानी मेरी ज़िन्दगी के सबसे यादगार सफ़र की है. तो आप सब का जादा वक़्त न लेते हुवे मैं सीधे कहानी पे आती हूँ.
कहानी तब की है जब मैं पहली बार दिल्ली गयी थी और अब वहां से लौट रही थी वापस अपने घर धनबाद . स्लीपर क्लास की रिजर्वेशन थी मेरी. जब ट्रेन स्टेशन से खुल रही थी उसी वक़्त सामने वाली सीट पे एक अंकल आ कर बैठे. उम्र कोई 50-55 की रही होगी. आते ही उन्होंने मुझे से पूछा , कहा जा रही हो बेटा?
मैंने कहा “अंकल धनबाद”
इसपर वो मुस्कुराये,बोले “हमको तो उससे भी आगे जाना है.”
फिर हम अपने अपने सामान को अरेंज करने लगे. सारा सामान अरेंज करने के बाद मैंने कान में हैडफ़ोन लगा लिया और गाने सुनने लगी. अठारह घंटो का सफ़र था टाइम काटने के लिए कुछ तो चाहिए था. वैसे मैं जहाँ बैठी थी वहां से डब्बे का दरवाजा जादा दूर नहीं था. ट्रेन पे चढ़ने उतरने वाले लोग मुझे दिख रहे थे.
पता नहीं ट्रेन चले हुवे कितने घंटे गुजर गए होंगे, गाड़ी एक स्टेशन पे रुकी, चहल पहल काफी थी वहां. तभी मैंने देखा एक औरत हमारे डब्बे में चढ़ी. गोद में बच्चा लिए,पुरानी मेली कुचेली सी साड़ी पहने हुवे,उसकी ये दशा ही बता रही थी के वो औरत बहुत ही गरीब है.वो चढ़ी और बच्चे को गोद में लिए हुवे ही दरवाजे के पास ही बैठ गयी.कुछ देर बाद मैं भी उसपर से ध्यान हटा कर अपने गानों में मगन हो गयी. पर उस औरत ने मेरा ध्यान तब खींचा जब उसे एक टिकेट चेकर ने पकड़ा. मैंने देख टिकेट चेकर उसपे चिल्ला कर कुछ बोल रहा था और वो औरत हाथ जोड़ कर गिदगिड़ा रही थी.मैंने अपना हैडफ़ोन निकला तब उनकी आवाज सुनायी दी, “ये जेनरल नहीं स्लीपर है.तू इस डब्बे में क्यों चढ़ गयी.”
वो चिल्ला रहा था, औरत अपनी लोकल भासा में कुछ बोल रही थी,”जाने दीजिये न बाबूजी बहुत जरुरी था जाना और बाकी डिब्बा में बहुत्ते भीड़ था पाँव रखने का भी जगह नए है अब आप ही बोलिए इतना छोटा बच्चा लेके हम कैसे जाए उसमे “
पर बाबूजी को उसपे कोई दया नहीं आई, “वो सब हम नहीं जानते अब या तो जुर्माना भरो या जेल चलो सीधे”
इसपर वो औरत रोने लग गयी, काफी देर तक मिन्नतें करती रही और वो काफी देर तक अड़ा रहा,” जितना बोलना है बोल ले अभी अगला स्टेशन आएगा तो लेडिस पुलिस को बुलाएँगे वही लेके जाएगी तुमको.”
मुझे भी उसपर दया आने लगी थी, डब्बे के सारे लोग उसी तरफ देख रहे थे. तभी वो अंकल, जो सामने बैठे हुवे थे, अपनी जगह से उठे और उनके पास जाकर कहा,”सर छोड़ दीजिये बिचारी गरीब है बच्चा भी है साथ में,जाने दीजिये.”
पर सर तो सर थे,कहा किसी की सुनेंगे. बोलने लगे, “ऐसे कैसे छोड़ दें अभी अगर मजिस्ट्रेट साहब आ गए और इसको पकड़ लिए तो इन्क्वायरी हम पर होगी न के बिना टिकेट चलने कैसे दिया, जरुर पैसा लिया होगा हमने इससे. नहीं नहीं सर हम अपनी नौकरी रिस्क में क्यों डाले.”
अंकल ने देखा वो आदमी किसी की भी सुनने वाला नहीं तो उन्होंने शांत होकर थोड़ी देर सोचा फिर अचानक से बोले ,”ठीक है सर जुर्माने के पैसे हमसे ले लीजिये इस बिचारी को छोड़ दीजिये. कितने पैसे भरने होंगे?”
उसने कहा, “पांच सौ रुपये”
अंकल ने सीधे निकल कर दे दिया फिर उससे रसीद ली और उस देते हुवे कहा, “ये लो अभी तुमको उतरना नहीं पड़ेगा,और कोई तुमको परेसान भी नहीं करेगा.”
उस औरत ने रसीद ली और हाथ जोड़ लिए उनके सामने, “बहुत बहुत कृपा बाबूजी”
फिर अंकल अपनी सीट पे आकर बैठ गए, मुझे बहुत ताज्जुब हुवा के आज कल भी अछे लोग हैं दुनिया में. कुछ घंटो बाद वो औरत उतर कर चली गयी और सबकुछ फिर से पहले जैसा चलने लगा रात होने लगी थी मैंने सोचा अब खाना खाकर सो जाना चाहिए. मैं अपना खाना खा ही रही थी मैंने देखा अंकल चुपचाप बैठे हुवे खिड़की के बहार देख रहे थे, मैंने यूँ ही पूछ लिया “अंकल आप खाना नहीं खा रहे?”
वो मुस्कुराये और धीरे से कहा,”तुम खा लो बेटा हमको अभी मन नहीं है”.
मैं अपना खाना खाने में मगन हो गयी, तभी मुझे ध्यान आया के दोपहर में भी खाना खाते वक़्त अंकल ने खाना नहीं खाया था, ओह माय गॉड इन्होने तो सुबह से कुछ खाया ही नहीं.और अभी तो आधा सफ़र बाकी था. मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया, “अंकल आप खाना क्यों नहीं खा रहे सुबह से?क्या ट्रेन का खाना पसंद नहीं है?”
उन्होंने मुस्कुरा कर कहा , “मेरे पास पैसे नहीं है.जितने भी थे उस औरत के जुर्माने में चले गए.”
मेरे मुह से निवाला छूटने ही वाला था, “क्या?!! इस आदमी ने सारे पैसे एक अनजान औरत के लिए दे दिए मुझे तो लगा था इसके पास काफी पैसे होंगे” ,
मैंने खाना ख़तम किया जैसे तैसे,और फिर प्लेट रखते उनसे पूछा, “अंकल आप काम क्या करते हैं और कहाँ से आ रहे है?”
उन्होंने कहा, “बेटा हम सब्जी बेचते हैं ,लेकिन मेरा बेटा दिल्ली में पढता है उसी से मिल के वापस आ रहे थे,सारा पैसा अपना बेटा को दे दिए सोचे के घर ही तो जा रहे हैं पैसे रख के क्या करेंगे इसलिए सिर्फ 500 रुपये रखे रस्ते के खर्च के लिए.”
मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. मैंने कहा,”अंकल आपने सारे पैसे उस अंजन औरत के लिए दे दिए और खुद इस तरह भूके प्यासे रहेंगे,”
इस पर उन्होंने कहा, “तो क्या हुवा हम गरीब लोग हैं भूके सोने की आदत है हमें,पर सोचो अगर उस औरत को पुलिस पकड़ के ले जाती तो न जाने उसके साथ क्या क्या होता? वैसे भी हम गरीबो की जान सबसे सस्ती होती है, फिर उसकी गोद में तो छोटा सा बच्चा भी था. अगर मेरे एक दिन भूके सोने से वो औरत परेशानी उठाने से बच जाती है तो ये मेरा सौभाग्य होगा की हम किसी के तो काम आ सके.”
वो तो अपनी बात बोल कर खिड़की से बहार देखने लगे पर मैं अभी यकीन नहीं कर पा रही थी के जो मैं देख रही हु वो सच में हो रहा है, वो इन्सान गरीब था शायद अनपढ़ भी, पर उसने मुझे ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा सबक सिखाया, के किसी की मदद करने के लिए हमारे पास बहुत जादा होना जरुरी नहीं बस पर्याप्त होना भी काफी है.
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