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Satire on Faith

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag Buddha | Faith | God | leader

व्यंग्य- “भक्ति को दलाली मत कहिये , हुजूर !” – (Satire on Faith)

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Hindi Satire on Faith
Photo credit: dhester from morguefile.com

रामखेलावन खटाल में रहता है. मेरा चौपाल जस्ट उसके बगल में है. सच पूछिए तो मुझे लोग ( भूल से ) नेता समझने लगे हैं . जब सच्चाई कुछ ओर ही है. मैं लोंगों को कभी – कदार मदद कर देता हूँ और उनके दुःख-सुख में यदा – कदा शरीक हो जाता हूँ . अकेले चना भांड नहीं फोड़ता. कोई न कोई भक्त जैसा सख्स होना चाहिये काम – धाम को निपटाने के लिए . मैंने ऐसा ही एक आदमी सेलेक्ट किया – हजारों – लाखों में एक – हीरा का टुकड़ा . नाम है – रामखेलावन . रामखेलावन के बिना मेरा काम नहीं चलता और रामखेलावन का मेरे बिना . रामखेलावन का मेरे प्रति जो निष्ठा है उसे लोग भक्ति की संज्ञा देते हैं. मैं बूरा नहीं मानता .

एक दिन रामखेलावन के हाथ में फूल और बेलपत्र देखकर मेरा मन – मयूर नाच उठा. गेरुआ परिधान , गले में रुद्राक्ष की माला – कपाल पर एक सीधा लम्बा टीका . सोचा कि चलो अच्छा हुआ कम से कम एक नास्तिक तो आस्तिक बन गया वो भी बिना प्रयास के.  भक्तों की सूचि में एक नाम तो जुड़ा – भले ही देर से ही क्यों न हो . मेरे प्रवचन का असर उस पर कभी नहीं पडा. आज स्वतः स्फुरित भक्ति कैसे सृजित हो गयी – यह मेरे लिए सातवें आश्चर्य से कम नहीं था. सच पूछिए मुझे एकतरह से नास्तिकों से नफरत और आस्तिकों से मोहब्बत . इसलिए रामखेलावन को एक भक्त के रूप – रंग में देखकर मैं कोमेंट करने में अपने को रोक नहीं सका . हम जब भी आमने सामने होते हैं तो किसी न किसी को पहल करनी ही पड़ती है.

मैंने पहल किया , ‘ आज तुमको इस परिधान में देखकर मेरा दिल गार्डन – गार्डन हो गया . समझ में नहीं आया कि एकाएक आमूल परिवर्तन कैसे हो गया ?

क्या समझ में नहीं आ रहा है , हुजूर ? कहिये तो बता देता हूँ .

पहले यह समझाव कि अचानक भक्त का चोला कैसे धारण करना पड़ा ? मैंने किताबों में पढ़ा था कि रत्नाकर नामक एक डाकू था , जो नारद बाबा से मिलकर इतना प्रभावित हुआ कि एक दिन बाल्मीकि नामक ऋषि बन गया. अंगुलिमाल नामक महान डाकू गौतम बुद्ध के  दर्शन मात्र से ही उनका भक्त बन गया. लेकिन तेरे साथ ऐसा क्या हो गया अचानक भक्त बन गया ? अभी तो सावन का महीना भी नहीं आया कि फूल और बेलपत्र लेकर बाबाधाम निकलना पड़े.

हुजूर ! आप ने विपक्ष दल की तरह एकसाथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी – किस प्रश्न का उत्तर दूं किसको न दूं .

मंत्री की तरह संक्षेप में सवालों का जवाब दे सकते हो . ऐसे भी ज्यादा बोलोगे तो परेशानी बढ़ेगी . देखते नहीं हो संसद व विधान – सभा में ज्यादा बोलने से कितनी फजीयत होती है नेताऔं की. मैं तो परामर्श दूंगा कम से कम बोलो और सुखी रहो. मितभाषी बनो पा जी की तरह और राज – सुख भोगो . बिना किसे फीस का आजकल कोई सलाह – मशविरा देता है क्या ? तुम अपने हो तुमसे …….

हुजूर ! जैसे नारद जी ने रत्नाकर डाकू को बदल दिया , जैसे गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल को बदल दिया , ठीक उसी तरह आपने मुझे बदल दिया .

बेसलेस और इलोजिकल बात न बोलो तो अच्छा है.

समझ गया हुजूर ! अब मैं आपके दूसरे सवाल का जवाब देता हूँ जो यूं है – मैं जिन देवी – देवतायों की भक्ति में भाव – विभोर हूँ , वह वक़्त आ गया है . फूल और बेलपत्र लेकर रांची जा रहा हूँ . रांची झारखण्ड की ‘ब्लेक डायमंड’ की एकलौती राजधानी . कलयुगी देवी – देवता बिना फूल – पत्र के खुश नहीं होते . जब खुश ही न होंगे तो काम करेंगे ख़ाक ? ट्रांसफर – पोस्टिंग का मौसम आ गया है. चुनाव के गीद्ध भी नीलाम्बर में मंडरा रहें हैं. कुछ महीने ही बचे हैं . कुछ जोगाड़  – पाती न होगी पहले से क्या अंतिम वक़्त में मैदान जीत पायेंगें लोग ? मुझे सेटिंग – गेटिंग करनी – कुछ खाश हित – मित्रों को मनवांछित जगह पर पोस्टिंग करवानी है . भक्तों का रूतबा क्या होता है समझाने की जरूरत है क्या ? उन्हें ऐसी जगह सेट करवाना है जहाँ दिन – रात सोने के अंडा देनेवाली मुर्गियां हों . जब सब कुछ ठीक – ठाक हो जायेगा तो अपने भी दिन फिर जाएँगें और सुखा चौपाल में भी हरियाली आ जायेगी .

उसकी यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी. मैंने अपना थोबड़ा जरूरत से ज्यादा टेढ़ा करते हुए न्यूटन के लॉ ऑफ़ ग्रेविटेसन के थर्ड लॉ कि प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है के आलोक में अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की, ‘ इसका मतलब यह हुआ कि तुमने दलाली का काम शुरू कर दिया ‘

मैंने जब जान लिया कि भक्ति में अपार शक्ति होती है तो मैंने भी इसे शुरू कर दिया , तो कौन सा गुनाह किया है , हुजूर ? जिधर नजर दौड़ाएंगें , मेरे जैसे हजारो भक्त पायेंगें . हुजूर ! भक्ती को दलाली मत कहिये.

अबतक मैं सबकुछ समझ गया था . मेरे पास बहस करने का कोई रास्ता भी नहीं बचा था.

व्यंगकार – दुर्गा प्रसाद . बीच बाज़ार ,

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