Hindi Short Story – Naseeb Apna Apna
बहुत समय पहले की बात है. अम्बाला शहर के पास एक गरीब लोगो की बस्ती हुआ करती थी. जहाँ के लोग भीख मांगकर ही अपना गुज़ारा किया करते थे. वो इलाका एकदम पिछड़ा हुआ था. उसी इलाके के २ भिखारी थे ‘स्वरुप’ और ‘छोटू’ . दोनों में काफी अच्छी मित्रता थी. एक दुसरे के दुःख को समझना, एक दुसरे के काम आना, आपस में संयोग देना दोनो को अच्छी तरह आता था.
दोनों पास के एक सिग्नल पे भीख मांगेने जाते और रोज़ शाम को बस्ती लौटते. ऐसा रोज़ चलता रहता था. कोई मौसम , कोई त्यौहार उनको कोई फर्क ना पड़ता. आखिर भिखारियों के लिए क्या त्यौहार., क्या मौसम l छोटू अकेला था उसका कोई ना था अपितु स्वरुप का पूरा परिवार था. पर इतनी घनिश्ता होने पर भी दोनों में एक बात बिलकुल अलग थी. और वो था उनका भीख मांगे का तरीका. छोटू हमेशा दया भाव से भीख के लिए याचना करता और कहता
” भगवन के नाम पे दे दो, भगवान् भला करेंगे ”
परन्तु स्वरुप इसके एक दम विपरीत दया को नहीं नसीब को मानता था. और कहता की ” लूँगा तो नसीब से ले लूँगा “. आने जाने वाले लोग छोटू को भीख दे जाते और कोई १-२ लोग ही स्वरुप को देते. लोगो को लगता की स्वरुप भिखारी होने पर भी अकडू है.
समय बीतता गया ,दिन गुज़रते रहे. दोनों की दिन चर्या वही रही. मगर कभी ना कभी वक़्त अच्छा हो या बुरा बदलता ज़रूर है. एक दिन उसी सिग्नल पे एक लम्बी से गाडी आकर रुकी.हमेशा की तरह छोटू ने हाथ जोड़कर याचना करके भीख मांगी और कहा
” भगवन के नाम पे दे दो, भगवान् भला करेंगे ” .
गाडी वाले सेठ ने उसको ५ रुपे दिए. दूसरी ओर स्वरुप ने भी अपने नसीब पर भरोसा करता हुए अपने तरीके में जोर से कहा
” लूँगा तो नसीब से ले लूँगा ” .
सेठ थोडा हैरान हुआ पर उसने उसको भी ५ रुपे दिया. फिर गाडी वहां से चल दी.
सेठ घर जाकर सोचने लगा की दोनों भिखारी है पर दोनों में कितना ज्यादा फर्क है. एक हाथ जोड़कर मांगता है ओर दूसरा अपनी तैश में नसीब पे भरोसा करते हुए. सेठ ये सब सोच कर रात भर सो ना सका. उसने उन दोनों को आजमाने की सोची. उसने सोचा की देखता हूँ कैसे नसीब से किसी को क्या मिलता है. सेठ ने अपने ड्राईवर को बुलाया ओर उसको एक तरबूज दिया, सेठ ने इस तरबूज के अन्दर सोने चांदी के सिक्के भर कर बंद कर दिया था और अपने ड्राईवर को कहाँ की ये उस भिखारी को जाकर देना जो हाथ जोड़कर भीख मांग रहा था. और सेठ ने अपना एक पुराना फटा हुआ कोट निकाला और ड्राईवर को कहा कि इसको उस भिखारी को जाकर दे देना जो अपने नसीब के दम पे तैश में भीख मांग रहा है.
ड्राईवर ने सेठ के बताये हुए आदेश के अनुसार वैसा ही किया और आकर सेठ को इतिला दी. सेठ अब अपने मन में सोचने लगा कि कैसे उसका नसीब साथ देता है मैं भी देखता हूँ.
उसी शाम को स्वरुप और छोटू घर जाने लगे. छोटू ने स्वरुप से कहाँ
” अरे भाई ये तरबूज तो काफी बड़ा दीखता है , तू एक काम कर अपना कोट मुझे दे क्यूंकि मैं तो अकेला रहता हूँ मगर तेरा यहाँ तो पूरा परिवार है तो तू ये तरबूज अपने बीवी बच्चो के लिए ले जा उनका पेट भर जायेगा .”
स्वरुप उसकी बात मान लेता है और दोनों आपस में अदला बदली करके घर चले जाते है.
अगले दिन सुबह सेठ उसी सिग्नल पे आता है तोह देखता है कि हाथ जोड़कर भीख मांगे वाला भिखारी आज भी भीख मांगे आया हुआ है. सेठ लपक के उसकी तरफ जाता है और पूछता है कि
” तुम आज क्यूँ आये हो ?, कल मैंने तुम्हारे लिए एक तरबूज में सोने चांदी के सिक्के भरके दिए तो थे …और तुम्हारा दूसरा साथी कहाँ है? ”
इतना पूछने पर छोटू भिखारी उसको पूरी बात बताता है और कहता है कि कैसे उसने वो तरबूज दुसरे भिखारी को देकर उसका कोट ले लिया. ये सब सुन के सेठ दंग रह जाता है और मान जाता है कि दूसरा भिखारी एक दम सही कहा करता था ” लूँगा तो नसीब से ले लूँगा ” . सेठ को अहसास होता है कि इस दुनिया में कोई कितनी भी तरकीब लगा ले मगर किसी के नसीब को नहीं बदल सकता. जिसको जो मिलना है वोह मिलकर ही रहता है. किसी के किये कुछ नहीं बनता.
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