This Hindi social short story is based on the case of Sanjay Dutt. In India, court is the highest authority and every one has to obey it’s decision
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Hindi Short Story – The Message
Photo credit: octaviolopez from morguefile.com
रामखेलावन का पेट का पानी जब नहीं पचता तो दौड़े – दौड़े मेरे पास चला आता है. मना भी तो नहीं कर सकता ? उसके बिना तो मेरे पेट में भी गैस होने लगता है. शुबह का सात से ऊपर हो रहा था . मुझसे रहा नहीं गया. मैंने झगडुआ से पूछ डाला , ‘ झगडू ! तुम्हारा काकू का आज कोई अता – पता नहीं , क्या बात है ?’
“पीछे मुड़ कर तो देखिये , हुजूर !”
देखा तो सचमुच में रामखेलावन खरामा-खरामा चौपाल की ओर आ रहा है – हाथ में कोई अखबार है. आते ही छुटभैये नेता की तरह गरज पड़ा , ‘ हुजूर ! गजबे हो गया . ’
आखिरकार हुआ क्या , बताओगे कि केवल पहेलियाँ ही बुझाते रहोगे ?
संजू बाबा को अदालत द्वारा माफी नहीं मिली . गौतम बुद्ध व महावीर का यह देश तो पर भी … क्षमा को दरकिनार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पांच साल की सजा सुना दी. मुन्ना भाई लगे रहो की गांधीगीरी भी काम नहीं आयी. संजू बाबा ने सारे जग को गांधीगीरी के पाठ पढ़ाये , लेकिन सब व्यर्थ.
‘वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है’ – यह बात सैकड़ों साल पहले किसी ने कहा है. अल्ला – ताला को यही मंजूर था तो कोई क्या करे ?
आज पूरा देश रो रहा है , और आप को कोई गम नहीं ? हुजूर ! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपके सीने में दिल नहीं है . संजू बाबा भी भोकार फाड़ के रो रहे थे – आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे थे.
ऐसा होता है , रामखेलावन ! संजू बाबा भी तो हमारे जैसे सामान्य जन हैं, उनके सीने में भी तो दिल है जो ….. यही वह जगह होती है जहाँ इंसान का कोई बस नहीं चलता . किसी ने कहा भी है कि इंसान परिस्थितयों का दास होता है . संजू बाबा ही पहला सख्स नहीं है जिसके साथ ऐसा घटित हुआ. हजारों ऐसे मामले हैं जिसमें दोषियों को सजा हो गयी .
सुना है , हुजूर ! संजू बाबा के हाथ में कई फ़िल्में है , जिसकी सूटिंग अधूरी पडी हुयी है . उन फिल्मों का क्या होगा , हुजूर ?
न्यायालय ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए एक महीने की मोहलत दी है . संजू बाबा और उनके सहकर्मी जी जान से लगे हैं कि वक़्त रहते सूटिंग का सारा काम पूरा हो जाय. हित- मित्र – कुटुंब की भी दुआएं भी उनके साथ है.
हुजूर ! फिर उनको जेल जाना होगा ?
जाना होगा तो जाना होगा , इसमें चिंता की क्या बात है ? छः वर्ष की सजा को न्यायालय ने पांच वर्ष में तब्दील कर दिया है . जितने दिन संजू बाबा जेल काट चुके हैं , उन्हें इस पांच वर्ष की सजा से घटा दिया जायेगा . यह भी फैसले में सुनाया गया है. कानून से बड़ा न तो व्यक्ति होता है न ही देश . कानून का हाथ बहुत लम्बा होता है . वह दोषी के गर्दन तक पहुँच ही जाता है चाहे सवेर या देर से ही क्यों न हो.
हुजूर छोटी सी नादानी के लिए ….
रामखेलावन ! तुम्हारी नजरों में जुर्म छोटा हो सकता है , लेकिन हो सकता है कि कानून की नज़रों में वह बड़ा हो. जिन लोगों ने कानून की किताबें गढ़ी हैं और जिन लोगों ने इन्हें पढी हैं , उनके मुताबिक जुर्म करना या जुर्म को प्रश्रय देना एक समान है. हम और तुम इस मुद्दे पर इतना बहस कर रहें हैं , वह बहस का विषय नहीं है , चिंतन का विषय है. पूरे प्रकरण के बारे में जरा शांत मन से सोचो व समझो तो सबकुछ स्पष्ट हो जायेगा.
हुजूर ! अब सबकुछ क्लियर हो गया. कोई शिकवा – गिला नहीं है – किसी से भी नहीं . मेरे मन में जो बोझ था , वह भी हल्का महसूस कर रहा हूँ .
रामखेलावन ! यदि और हल्का हो जाय तो ?
हुजूर ! तब तो कल मंगलवार है , हनूमान जी का दिन . सवा किलो लड्डू चढाऊंगा और आपको प्रसाद खिलाऊँगा वो भी अपने हाथों से .
रामखेलावन ! मैं भी संजू बाबा को उतना ही चाहता हूँ जितना तुम . फर्क बस इतना है कि तुम्हारा प्यार बाहर छलकता है जबकि मेरा ……
हुजूर ! फिर मुझे उलझा देते हैं . असली बात पर क्यों नहीं आते ?
कौन सी बात ?
वही जिससे मन का बोझ हल्का हो जाएगा ?
तो मेरा यह सन्देश संजू बाबा तक पहुँचाने की जिम्मेदारी लो .. ( बात भी पूरी नहीं हुयी थी कि आदतन बीच में ही टपक पड़ा रामखेलावन )
कौन सा सन्देश , हुजूर !
‘ तेरा राम जी करेंगें बेडा पर , उदास मन काहे को डरे ‘
देखा रामखेलावन गिलहरी की तरह फुदकता हुआ खटाल की और जा रहा है.
और मैं ? मैं सोच में निमग्न हो जाता हूँ – ‘ सुख और दुःख प्रत्येक के जीवन में आते रहता है , जो दोनों अवस्थाओं में समान भाव से जीता है , वही वास्तव में पुरुषार्थी है. ’
लेखक : दुर्गा प्रसाद ,
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