आइये मैं आपको अपना परिचय देता हूँ और उस दुनिया मैं आपको ले चलता हूँ जहाँ से मैं आया हूँ, जहाँ मेरी ज़िन्दगी का सार छिपा हुआ है. मेरा नाम राजू है. मैं सुबह ५ बजे उठ कर ईशवर का नमन करता हूँ और उसे धन्यवाद देता हूँ, एक खुशहाल ज़िन्दगी के लिए नहीं दोस्तों, परन्तु एक ज़िन्दगी के लिए. एक ऐसी ज़िन्दगी जिसे उसने जीना सिखाया, एक ऐसी ज़िन्दगी जिसने मुझे अपनी भुजाओं में समेट लिया और अपना बना लिया .
फिर ६ बजते ही मैं अपना सामान लेकर और अपना सम्मान छोड़ कर निकल पड़ता हूँ अपने रोज़ के सफ़र पर. आप कहीं दुविधा में तो नहीं पड़ गए दोस्तों? आज के इस संसार में जहाँ किसी भी व्यक्ति का अहम् उसके लिए सर्वोपरि है, ऐसे में मेरा अहम् घर के दरवाज़े के भीतर कैसे बंद हो कर रह गया! क्या करू दोस्तों, लाचार हूँ, दीन दुनिया के इस भोज से दबा हुआ हूँ. मैं ६:३० बजे अपने काम पर पहुच जाता हूँ. अपनी कमर कस कर अपने काम को पूजना आरम्भ करता हूँ. अपने हाथ में हथोडा उठा कर शुरू हो जाता हूँ. एक पत्थर को चोट दी, फिर दूसरा, फिर तीसरा. ऐसे करते करते करीब ७०-८० पत्थर तोड़ लेता हूँ एक दिन में. जब मैं १५ वर्ष का था, तबसे यही तो करता हूँ. अब मैं ३५ का हूँ. पत्थर तोड़ तोड़ कर मेरी कमर अब जवाब देने लगी है, सीधा खड़ा रहना तो जैसे चुनौती सा बनता जा रहा है. मेरे सेठ आते ही होंगे. २ मिनट रुकना उन्हें समय की बर्बादी लगता है. हमें खाना खाने हेतु भी केवल ५ मिनट मिलते हैं. उससे ज्यादा वक्त लगा देने पर पगार में से एक हिस्सा कट जाता है. कम पत्थर तोड़े तो एक और हिस्सा छिन जाता है हमारे पेट से. दोस्तों, ये छोटे छोटे हिस्से ही तो हैं जो मिल कर हमारा पेट भरते हैं. जो मिल कर मेरे एक दिन की कमाई बनाते हैं…८० रूपये, केवल ८० रूपये. जिसमे से २० रूपये आने जाने का किराया और १० रूपये की २ रोटी एवं सब्जी.
५० रूपये से ज़िन्दगी काटना बहुत कठिन है हम मजदूरों के लिए. मेरे घर में मेरी पत्नी और ६ महीने की प्यारी सी बेटी है. जानते हैं, आज उसने मुझे पहली बार बापू कह कर पुकारा. अपनी ख़ुशी को शब्दों से बयान नहीं कर सकता मैं. पर मैं एक कुशल बाप होने का फ़र्ज़ निभाना चाहता हूँ, अपनी गुडिया को नए कपडे और खिलोने ले कर देना चाहता हूँ, उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा बनाना चाहता हूँ, जिससे उसे मेरी तरह मजदूरी न करनी पड़े, किसी का गुलाम न बनना पड़े . मेरी पत्नी ने ३ वर्ष से नयी साडी नहीं ली. कल सवेरे मैं सेठ जी से बात करने जाऊंगा, उनसे अपना हक मांगूंगा, अपना इन्साफ. मैं जानता हूँ की मुह से ये शब्द सुन कर उनकी छड़ी मेरी पीठ को रौन्घ्ती हुई जाएगी. पर मैं कल आवाज़ उठाऊंगा, दृढ निष्चय के साथ घर से निकलूंगा और हाँ अपना सम्मान साथ लेकर जाऊंगा . रात हो गयी है दोस्तों, अब मैं ईशवर का धन्यवाद् करके सो जाता हूँ, एक सरल ज़िन्दगी के लिए नहीं, परन्तु एक कठिन ज़िन्दगी से लड़ने की ताकत देने के लिए.
शुभ रात्री मेरे दोस्तों, दुआ करना की मुझे मेरा इन्साफ जल्द ही मिल जाये.
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