This Hindi story is about dying relationships in this materialistic world. Importance should always be relations but its irony that same parents who took care of their children could not get even emotional support from their kids when they are old.
उस लम्बे सफ़र की याद आज भी ताज़ा है ज़हन में ..बात कुछ ख़ास न थी ..मगर न जाने शरीर के उस सबसे कोमल अंग को छु के घर कर गयी …वक़्त था साँझ का लगभग सात -आठ ..रेलगाड़ी हवा को चीरती हुई .बिजली की रफ़्तार से आगे बढती जा रही थी ..साथ था बोगी में अलग अलग विचार धाराओं का ,अलग अलग भाषा भूषा का ,कुछ अभिमानी, कुछ विनम्र ,कुछ सुवर्ण कुछ पक्के वर्ण के!! !रेलगाड़ी के सफ़र में एक बात बहुत ख़ास है,आप दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी कोने में जा रहे हो आपको ग्यानी पुरुष जरूर मिलेंगे ,और अस्चार्यजनक रूप से चाटुकारिता के इन जीते जागते नमूनों के स्रावानकर्ता भी ! कुछ चुनावी रंग में सराबोर,कुछ समाज के सुधारक,कुछ आध अहंकार की भावना से लिप्त होकर मूक दर्शक!
सबसे अलग एक कोने में एक वृद्ध दम्पति अपनी पोटली लिए ,फटे पुराने कपड़ो में ,ज़मीन पे चादर बिछाये दूसरों की बातों से अनजान चुप चाप बैठे थे!निगाह एका एक टिक गयी उनपर ! गरीबी का अभिशाप उनके वस्त्रों और भाव भंगिमाओं से छलक रहा था ! वृद्धा तो मेरी माँ जैसी उम्र की थी..! न जाने क्यों दिल की धड़कन कुछ धीमी सी लगी,एक उदासी सी ,एक मार्मिक पीड़ा सी हुई,तो अन्तः मन ने आवाज़ दी,की मानवता की दुहाई देने वालों ,एक गरीब वृद्धा का कुशल मंगल भी पूछ लो ,क्या धरती पर गरीब वृद्धा को दिए दया और प्यार के दो शब्द मानवता में सर्वोपरि न है ?!!
अनायास ही कदम बढ़ गये , उनसे पुछा “माँ बाबु जी कहाँ जा रहे हो.और क्या ही प्रयोजन है .इस उम्र में अपने कुटुंब को छोड़ अकेले निकलना बुद्धिमता तो नहीं ,अवश्य ही कोई विवशता जान पड़ती है ”
उत्तर माँ के आंसू दे गया . एक अश्रु एक साथ बहुत कुछ कह गया ..पीड़ा ,मर्म दुःख ,विस्मयता सबका समागम वो अश्रु धारा प्रवाह का पथ प्रदर्शक था ! माँ के पहले शब्द “बेटा अपने पलक का बाल आँखों में सबसे ज्यादा चुबता है “!!
भेद गयी वो बात दिल की सारी सीमाओं को !! लगा इस गरीब वृद्धा ने करोडो की बात एक पल में कह दी.! शब्द आखिर मोहताज़ नहीं बहरी शक्सियत के,वो निकलते है,जब दिल से तो उनकी खनक गूंजती है चिरस्थायी अनंतिया वातावरण में !जान गया ..जख्म दिए है किसी अपने ने..शायद औलाद ने !! एका एक अपनी माँ की तस्वीर चक्षु पटल में उभर आई !! याद आया उसके भी बाल तो सफ़ेद हो चले है ,त्वचा कुछ मुरझा सी गयी है ,याद आया पिताजी का वो चेहरा ,जो भागा है धूप में ,बारिश आंधी तूफ़ान में ..निरंतर अथक अविचल परिश्रम ,लक्ष्य और उम्मीद.”औलाद का उज्जवल भविष्य ही पारितोषक होगी कर्म प्रतिभद्धता की, बस और बस !!हिम्मत न हुई उस वृद्ध से आगे का हाल पूछने की ! “ख्याल रखना ” कहकर चुप हो गया ! वापस आके अपनी जगह बैठा ही था की पलक का बाल महसूस हुआ आँखों से नीचले गड्ढो पे !! इस बार उसकी कीमत कुछ अलग ही लग रही थी ! सोचा माँ की दुआ का असर है की कष्टकारी ना बनके ये पलक का बाल मुट्ठी के ऊपर सुशोभित हो किसी के दुआ के लिए उठेगा.!!
दुआ मांगी ..अवश्य मांगी ..”कब्र में पाँव रखे उन सभी माँ बाबु जी के लिए , खुश रखना उन्हें जिन्होंने ताउम्र गुजार दी हमारी ख़ुशी के लिए ! शक्ति देना इतनी की हम उनके पलक के बाल न बने नासूर,ना चुबे उनके आँखों में!!थे ,रहे,आँखों के तारे !!”
मांगी ये दुआ दोनों माओं के लिए..!!दुआ का कुछ तो लेखा झोखा होगा इश्वर के खाते में !! सोच आत्म्खुशी से फिर से आत्ममंथन को बैठ गया..!! रेलगाड़ी अभी भी हवा को चीरती हुई चली जा रही थी..!!!!
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