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Apni Izzat

Published by MISHRA BRAJENDRA NATH in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag Friends | marraige | old man | son

Old Man with Flower in Hand on Wheelchair

Hindi Social Story – Apni Izzat
Photo credit: bjwebbiz from morguefile.com

बिशम्भर बाबू बहुत दिनों से मंडली में आ नहीं रहे थे.

मैंने ही महेंद्र बाबू से पूछा था, “क्या महेंद्र बाबू, बिशम्भर बाबू तो ठीक हैं न, बहुत दिनों से दिखाई नहीं दे रहे हैं.”

महेंद्र बाबू, “कुछ ही दिन पहले बात हुई थी. वे अपने लडके के पास हैदराबाद गए हुए थे.”

“अच्छा, अच्छा, कुछ गुड न्यूज़ होगा. उनके लडके की अभी शादी नहीं हुई है न.”

“शायद उसी के सिलसिले में गए हुए हों.” शर्मा जी ने गेस मारते हुए कहा था.

इतने में सेन दादा आते हुए दिखाई दिए थे.

“वो लो दादा भी आ गए. अब गप्प का मजा बढ़ जायेगा.” शर्माजी बोले थे.

“आइये, आइये, दादा, आप ही का इतजार था.” सबों ने उनका स्वागत करते हुए कहा था.

“कहिये, आपके पास हमेशा कुछ नई ताजी, चटपटी, चुलबुली – सी खबरें रहती हैं.” मैंने उन्हें उकसाने के लिए कहा था.

“देखा आपलोग, ई, मनुजीवा हमको से कुछ उगलवाना चाहता है,” दादा हँसते हुए मेरे प्रस्ताव पर बोले.

मैं यानि मनु, महेंद्र बाबू, शर्माजी, सेन बाबू और बिशम्भर बाबू पांचो साठ पार विशिष्ट, वरिष्ठ  दोस्तों  की पँचौकड़ी हमेशा इसी पुल के किनारे बने फुटपाथ के एक कोने पर हर शाम को जमती थी.

पांचो में से कोई भी अनुपस्थित रहने से सबों का मन कैसा – कैसा होने लगता था.

बिशम्भर बाबू पिछले कई दिनों से नहीं आ रहे थे.

सब उनके बारे में चिंतित रहते थे. क्यों नहीं आ रहे है?

दादा ने ही वातावरण को हल्का करने के लिए कहा था, “आपलोग जानता है. ट्वेंटी फस्ट को योग दिवस है. उसी दिन फादर्स डे भी है.”

“हाँ, तो क्या हुआ? यह तो एक संयोग है बस.” मैंने कहा था.

“नहीं, नहीं, मनु बाबू, यह एक संयोग नहीं है. आपलोगों को कोई आईडिया?

“नहीं, कुछ पता नहीं, आप ही बताइये.” महेंद्र बाबू ने आग्रह किया था.

“योग दिवस और फादर्स डे इसीलिये एक ही दिन रखा गया है कि उस दिन लोग योग को जीवन में उतारनें का सपथ ले और इस योग का  सूत्र जो आपको अपने पिताओं यानि बुजुर्गों से मिला है, उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखें.”

“वाह, क्या उत्तम विचार बतलाये दादा ने.” सबों ने तालियों से उनकी हौसला आफजाई की.

“अच्छा, दादा आप ये बताइये, कि अभी योग के सबसे बड़े शिक्षक कौन?” शर्माजी अभी तक जो चुपचाप बैठे थे, बोले.

“रामदेव बाबा, और कौन.”

“वे अभी तक पिता क्यों नहीं बन पाये?” अगला सवाल.

घनघोर चुप्पी.

“अरे भाई, शादी नहीं की तो पिता कैसे बनते?” मैंने साफ़ करते हुए कहा.

” कितने बाबा लोग बिना शादी किये हुए ही बाप बन गए हैं, कोई जानता है?” महेंद्र बाबू मजाकिया लहजे में बोले थे.

दादा ने खाँसकर थोड़ा गला साफ़ किया. अगर दादा ऐसा करें तो हमलोग समझ जाते थे कि कोई लम्बी स्पीच की तैयारी दादा की पूरी हो गई है.

“देखो भाई, रामदेव बाबा सच्चा योगी हैं. वह आज तक कोई चेली नहीं बनाया. एक बार मल्लिका शेरावत को योग सिखाने लगा था, उनका एक आँख थोड़ा मटका और छोटा हुआ तो वैसे ही रह गया. उसके बाद से वह योग सिखाने के लिए किसी चेली का सहारा नहीं लिया. और आजतक वह खुद ही योग सिखाता है. यह बहुत बढ़िया बात है “.

“वाह, दादा वाह!! क्या विश्लेषण है आपका. मान गए.” महेंद्र बाबू ने दादा की प्रशंसा करते हुए कहा था.

“अच्छा, अभी का संत लोग योग से ज्यादा भोग सिखाने में इंटरेस्ट लेने लगा है. इसका कारण क्या है, दादा?” शर्माजी ने सीधा और सटीक सवाल किया.

“वह तो हमारे तुम्हारे जैसे साठा पार पाठा (बकरा) लोगों क़े कारण हैं.”

“क्या बोलते हैं दादा?” आश्चर्य से मेरी आँखें भी फ़ैल गईं थी.

“तुमको पता है, रामदेव बाबा और सारे आयुर्वेद का जोशवर्धक दवाई सबसे ज्यादा कौन खरीदता है? पचास – पचपन से ऊपर का उम्र वाला लोग.”

“दादा, आपको कैसे पता?”

“यही तो तुम लोग का थेथरई है. कुछ इनफार्मेशन दिया तो पूछता है कि आपको कैसे पता? पेपर और मीडिया वाला लोग बोल देगा कि विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है तो सब लोग मान लेगा, और हम बोल रहे हैं तो कोई मानता ही नहीं.”

“नहीं, नहीं, दादा बुरा मत मानें. हम सब लोगों को आप पर पूरा भरोसा है.”

मैंने दादा को बूस्टर डोज़ देते हुए कहा था.

थोड़ी देर खामोशी क़े बात फिर दादा बोले, “तुम लोगों को सांप काहे सूंघ गया? एकदम चुप हो गया. अच्छा, सुनों, आज के संत की मॉडर्न परिभाषा, थोड़ा हटके, कविता में है.”

“हाँ, दादा सुनाइए..” शर्माजी दादा की तारीफ़ करते हुए बोले.

“आज क़े संत – महात्मा क़े बारे में कहा गया है,

गेरुआ वस्त्र पहन,

ईश्वर को ध्यावै,

प्रवचन करे, दीक्षा देवै,

कामिनी को शिक्षा देवै,

चेली संग रात बितावै,

वही सच्चा संत कहावै.”

सारे लोगों क़े ठहाके से माहौल आनंदमय हो गया. सामने नदी की धार भी लहराती हुई बही जा रही थी. इन बूढ़ों क़े आनंद रस में वह भी तरंगित हो रही थी.

इतने में बिशम्भर बाबू आते हुए दिखाई दिए. शर्माजी बोले, “देखिये, बिशम्भर बाबू आ रहे हैं.”

सब लोगों की दृष्टि उधर गई. ये बिशम्भर बाबू ही थे. बिशम्भर बाबू नवोदय विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद से सेवा निवृत्त हुए थे. उनका नाम शिक्षकों के जमात में बहुत ही आदर के साथ लिया जाता था. वे अपने कार्यकाल में बहुत ही अनुशासनप्रिय, कर्मठ और सत्यनिष्ठ शिक्षक थे. उन्हें राष्ट्रपति का श्रेष्ठ शिक्षक पदक और अवार्ड भी मिल चुका था.

बिशम्भर बाबू के आते ही सभी उठ खड़े हुए.

मैंने ही पूछा, “कहाँ गए थे इतने दिन, सर? आपके बिना यह महफ़िल कितनी अधूरी लग रही थी. अब जाके शतप्रतिशत उपस्थिति हुई.”

“हैदराबाद गया था, बेटे के पास.”

“कैसा है, सब ठीक – ठाक तो है?” दादा ने पूछा था.

“सब ठीक है, दादा.”

“तब फिर, कुछ विशेष या नई – ताजी?” महेंद्र बाबू बोले.

“नहीं, महेंद्र बाबू, जो कुछ आपलोग सोच रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है, सुनाने के लिए. मगर फिर भी बहुत कुछ है सुनाने के लिए.”

“तो सुना डालिये न, हमलोग तो उसी के लिए उत्सुकता जगाये, आस लगाये बैठे हैं.”

“ठीक है, तो ध्यान से सुनिए.. आप लोगों को शायद मालूम ही होगा कि मेरा लड़का हैदराबाद में ओरेकल नामक आई टी कंपनी में काम करता है. काफी मशहूर कंपनी है. पैकेज भी अच्छा है. सब कुछ सेट हो गया है. तो मैंने सोचा कि अब सही समय है जब उसकी शादी कर दी जाय. बेटे का घर बस जाय, ये हर माँ – बाप की तमन्ना होती है.”

सभी लोग ध्यान से बिशम्भर बाबू की बातें सुन रहे थे.

उन्होंने थोड़ा विराम लेकर अपनी बात कहनी जारी रखी.

मेरे पास भी एक – दो अच्छे प्रस्ताव आये थे, इसीलिये सोचा कि वहीं जाकर बेटे से डिसकस कर लिया जाय. सो मैं हैदराबाद चला गया, पत्नी के साथ. हमलोगों के अचानक वहाँ पहुँचने पर उसे कुछ आश्चर्य भी हुआ. .. और ऐसा भी लगा हो कि अचानक इतना अर्जेंट क्या हो गया कि माँ – पिताजी को यहाँ आना पड़ गया. खैर उस दिन तो वह हमलोगों को अपने फ्लैट में कम्फर्टेबल करके अपने ड्यूटी चला गया.  शाम में आने पर बात उसकी माँ ने ही शुरू की.

‘ बाबू, देखो एक, दो लड़कियों के परिवार से तुम्हारी शादी का प्रस्ताव  आया है . अगर तुम्हारी राय हो तो बात आगे बढ़ाई जाय. ये लड़की का फोटो और बायोडाटा है.’ उसपर मैंने भी जोड़ा कि लड़की के परिवारवाले हमलोगों के काफी करीबी रहे हैं. हमलोग उन्हें अच्छी तरह जानते हैं. इसलिए लड़की का संस्कार भी अच्छा होगा. देखने – सुनने में भी फोटोग्राफ से ठीक ही लग रही है. उनके पिताजी ने भी साफ़ – साफ़ कह दिया है कि लड़की को पसंद कर लें, देख – परख लें तभी बात को आगे बढ़ाया जायेगा. उन्हें इस स्टेज पर अगर रिजेक्शन भी होता है तो कोई अफ़सोस नहीं होगा. बहुत ही सीधे और सपाट शब्दों में उन्होंने बिना  कुछ छिपाए हुए  सारी बातें कहीं. उनके इस साफगोई से मैं बहुत प्रभावित हुआ. लड़की भी पढ़ी लिखी है. आई टी फर्म में ही काम कर रही है. उन्हें तुम्हारे उससे बात कर लेने में भी कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन दोनों परिवार के सदस्यों के सामने परिचय का दौर समाप्त होने के बाद. तुम्हारा क्या विचार  है? तुम अच्छी तरह से सोच समझ लो तभी अपने विचार देना.

थोड़े देर खामोशी – सी छाई रही.

इसके बाद उसने जो कहा उसकी तो न तो मैंने कल्पना की थी और न ही उससे ऐसा एक्सपेक्ट किया था. उसने कहा था , “मैं आप लोगों से कहना ही चाह रहा था. मैंने एक लड़की पसंद कर ली है जो मेरे साथ मेरे ही प्रोजेक्ट  में काम करती है.”  उसकी माँ की तो पैरों तले से जमीन हेई खिसक गई. उसका ऐसा बिलकुल ही अनुमान नहीं था कि उनका बेटा भी ऐसा करेगा.

फिर भी मैंने धैर्य रखा और उससे पूछा, “बेटे, तुम लड़की और उसके परिवार वाले से मिलाओ. हम उनसे मिलना चाहते हैं. उसके परिवार वाले से तो जाने कि क्या वे इस रिश्ते से खुश हैं?”

उसने कहा, “पिताजी, उसके परिवार वाले से क्या लेना – देना. शादी हमलोगों को करनी है न कि परिवारवालों को.”

“देखो बेटे, शादी तो हस्बैंड और वाइफ की ही होती है. परन्तु इस शादी से दो परिवारों का भी जुड़ना होता है, जिससे रिश्ते का विस्तार होता है.”

“पिताजी, यही तो मुश्किल है, आपलोग उसी पुराने जमाने के दकियानूसी सोच में फंसे हैं .जिंदगी हमें जीनी है, इसमें परिवारवालों का क्या रोल?”

“क्या शादी  के बाद तुम्हारा हमलोगों से या तुम्हारी होनेवाली पत्नी का अपने माँ- बाप से जुड़ाव ख़त्म हो जाएगा ?”

इसका कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था, उसे. मैंने ही कहा, “ठीक है, आज सोया जाय, कल इसपर पुनः विचार किया जाएगा.”

बिशम्भर बाबू थोड़ा रुके थे. हमलोगों की तरफ उन्होंने देखा. हमलोग सभी ध्यानमग्न होकर उनकी बातें सुन रहे थे. कोई भी प्रतिक्रिया ब्यक्त करने का न कोई स्कोप था और न ही हमलोग चाहते थे.

बिशम्भर बाबू ने आगे कहना जारी रखा, “दूसरे दिन शुक्रवार  था. शुक्रवार के बाद शनिवार और रविवार दो दिनों  तक ऑफिस का वीकली ऑफ रहता है. इसलिए  आज रात को बात के लिए काफी समय था. और इस बातचीत के आधार पर कल  मिलने का कार्यक्रम भी बनाया जा सकता था. रात में डिनर के समय फिर बात का सिलसिला जारी रखा. मैंने उससे पूछा, “क्या हमलोग कल लड़की के माता – पिता और लड़की  से मिलने वाले हैं?” इसपर उसने कहा कि यह सब उसे पसंद नहीं है. ये सारे रिचुअल्स उसे पसंद नहीं हैं.”

तब मेरे अंदर का सुलगता हुआ असंतोष और गुस्सा ऊपर धरातल पर आने लगा, “तुम अजीब बात करते हो, या वह लड़की अजीब बात करती है? उसे शादी के पहले हमसे मिलना पसंद नहीं है. शादी के बाद हमारी क्या इज्जत करेगी? वह अपने  माता -पिता से हमें  मिलवाना  नहीं  चाहती. और तुम कहते हो  यह रिश्ता कायम हो रहा है. जिस रिश्ते की बुनियाद ही शर्तों की बिना पर रखी जा रही है उसके कायम रहने के आसार क्या हैं?  उसे तुम भी अच्छी तरह समझ लो. तुम्हारी उम्र के लडके जब प्यार – मुहब्बत के फेर में पड़ जाते है, तो वे सिर्फ दिल की सोचते है. वह भी सिर्फ इंस्टेंट रिएक्शन  होता है. लेकिन उसे ही जब शांतिपूर्वक, कूल होकर दिमाग और मन से सोचोगे तब इस का पता चलना शुरू होगा कि क्या यह रिश्ता दूर तक जा सकता है या टिक सकता है. जिस रिश्ते में डिमांड होता है, वह रिश्ता नहीं होता सिर्फ शर्तों पर जिंदगी बिताने का एग्रीमेंट होता है. जिस रिश्ते में त्याग और एक – दूसरों के लिए जीने और एक दूसरे को देने की मन में होड़ लगी होती है, उसमें गहराई भी होती और ऊंचाई भी.  तुम सोचो कि तुम्हारी उस लड़की से रिश्ता क्या उस गहराई और ऊंचाई को प्राप्त कर सकेगी, जिसकी शुरुआत ही शर्तों पर हो रही है? तुम जान लो शर्तों का कोई अंत नहीं होता है…

यह सब कहकर मैंने दूसरे दिन का टिकट कटाया और कल रात मैं यहाँ आ गया.”

अब आप लोग बताएं कि हमारे करने को क्या रह गया था.”

हमलोग सभी शांत थे. हमलोगों के लिए कहने को कुछ नहीं रह गया था.

बिशम्भर बाबू ने ही हँसते हुए कहा, “आज पत्नी मुझे बेटे से बात करने के लिए कहने लगी. मैंने उनसे कहा, ‘देखिये बात कर सकता हूँ. लेकिन अब उस टॉपिक पर नहीं जिसे हमलोग हैदराबाद में छोड़ आये हैं.  सच पूछिये तो मुझे अब डर भी लगने लगा है. बेटे के लिए नौकरी मांगनी हो तो किसी से मांग सकता हूँ, वह भी मेरी बेइज्जती ही है. उसे मैं सह लूंगा. लेकिन अगर बेटे ने मेरी सर्वथा उचित बात को नहीं माना तो वह बेइज्जती मेरे बर्दास्त की सीमा लांघ लेगी. इसी लिए मैं अपनी इज्जत अपने पास बचाकर रखना चाहता हूँ.”

सभी लोग शांत थे. बिशम्भर बाबू की एक – एक बात में कितनी सच्चाई छुपी हुई थी!! हमलोग सभी चुपचाप वहाँ से उठकर चल दिए .. कोई कुछ नहीं बोल रहा था. नदी की धार में भी कोई तरंग नहीं थी. वह भी शांत बही जा रही थी ..

***

— ब्रजेंद्र नाथ मिश्र

तिथि: 20-06-2015, 12:30 AM

जमशेदपुर

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