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Apraadhbodh..

Published by Reetu Tyagi in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag shop

अपराध बोध की चोट———

मैंने फ़्रिज़ टटोलते हुए विमल से बोला। ओह टमाटर ही नहीं है अब दाल में तड़का कैसे लगाऊँ।

विमल तपाक से बोले -रश्मि तुम्हारा रोज़ का यही काम है।मैं नहीं जाऊँगा लेने आज भारत और श्रीलंका का क्रिकेट मैच है। बस शुरू ही होने वाला है।

मैंने भी कुछ नहीं बोला बस तिलमिला कर कार की चाबी ली और लिफ्ट से नींचे आ गयी।

मैंने कार स्टार्ट की और चल पड़ी – लग रहा था। की अब दूर जाना पड़ेगा क्योकि इतना अंदाज़ा भी नहीं हुआ था। नए शहर के सब्जी बाज़ार का किधर लगता है । हमे शिफ्ट हुए अभी टाइम भी नहीं हुआ था ज्यादा।

अपनी सोसाइटी से मैं अभी ज्यादा दूर भी नहीं आयी थी।  सामने ही सड़क किनारे एक छोटी सी सब्जी की दुकान नज़र आयी।  मैंने  मन में सोचा की अगर गाड़ी  दुकान के सामने रोकूंगी तो ये गाड़ी देखकर सब्जी महँगी देगा। वैसे भी मैं  इस जगह पर नयी थी और आमतौर कई बार ऐसा हुआ  था।

मैंने गाड़ी थोड़ा किनारे लगायी और दुकान पर पहुँच गयी।  मैंने सब्जी वाले  को बहुत जगाने की कोशिश की जो की दोपहर में ठंडी ठंडी  हवा में घोड़े बेचकर सो था।

मैंने सोचा  – वाह क्या बात है दुकानदारी का वक्त है और ये आराम से सो है। उसको काफी जगाने पर भी  वो टस से मस नहीं हुआ। पास की सोसाइटी का गार्ड ये सब देख रहा था।  वो आया और सब्जी वाले को हाथ लगाकर जगाने लगा।

सब्जी वाले की नींद खुल गयी थी। पर जैसे ही वो जागा मुझे  अपने मन पर एक अपराध बोध की चोट बहुत तेज़ महसूस हुई – वो एक पैरालाइज़्ड व्यक्ति था। जो की बोलने में भी लगभग असमर्थ था। उसने इशारे से मुझसे पूछा की आपको क्या लेना है।

मैंने बोला भईया प्याज़ टमाटर क्या भाव है।  उसने सही भाव बताया और सब्जी तोलकर मुझे दे दी। उसने बिना मांगे ही बहुत सा धनिया और हरी मिर्च भी थैले में रख  थी।

मुझे बहुत ही अपराध बोध महसूस हो रहा था। मैंने बिना सोचे समझे जाचें परखे क्या क्या सोच लिया था उस व्यक्ति के लिए की ये एक आलसी व्यक्ति है।

जो की गाड़ी देखकर मुझे सब्जी महँगी देगा जाने क्या क्या। पर ये व्यक्ति तो इस अवस्था में भी अपने परिवार के जीवन यापन के लिए इज़्ज़त से दुकानदारी कर रहा  है। मैं खुद को बहुत ही लज़्ज़ित महसूस कर रही थी।

उसके मुफ्त में दिए गए धनिया मिर्च और ईमानदारी के बोझ से मेरा सब्जी का थैला और मेरा मन दोनों ही बहुत भारी होकर घर लौट रहे थे , पर एक जीवन की बहुत ही बड़ी सीख़ के साथ की बिना किसी को जाने पहचाने कोई राय नहीं बनानी चाहिए।

–END–

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