दिन भर नोट गिनते-गिनते अब सुस्ती आने लगी थी… शुरू-शुरू में खुद को नोटों से घिरे देखना, इतना बुरा नहीं लगता था… हर दिन लाखों रुपये आपके हाथों से होकर गुजरते हों, तो बुरा क्यों लगेगा ? वैसे भी इस सरकारी बैंक की नौकरी का अपना तो सुख था ही. एक सिक्यूरिटी थी, जिसके बल पे शादी हो गई, घर के लिए लोन आसानी से मिल गया.. बच्चे की एजुकेशन….सब कुछ secure तो है. …लेकिन इन सारी चीज़ों के बावजूद ना जाने क्यों इस काम से जी मचलने सा लगा है. कुछ चीज़ें होती है, जो आपके समय के साथ आपके भीतर एक कोने में अपनी जगह बना लेती है. और फिर रह-रह के आपको कुरेदती है…यही हाल अब मेरा था. सब कुछ अच्छा चलते हुए भी, कुछ खालीपन सा लगता था. एक जैसी दिनचर्या से ऊब सा गया था…वही रोज़ सुबह उठके नाश्ता करना, ऑफिस के लिए तैयार होना..ऑफिस आना, साथ वालों के साथ गपशप मारना, फिर काम में जुट जाना, और ५ बजते ही, वापस घर… क्या येही सब कुछ था , जो कॉलेज पास out करने के बाद मैं करना चाहता था…?
घर पहुंच कर अलमारी खोली और स्कूल के, कॉलेज के फोटोग्राफ देखने लगा….या हूँ कहें , अपने अन्दर छिपे पिंटू को जगाने लगा… छोटे-छोटे हाथों में बड़े-बड़े prize लिए मैं खड़ा था. स्कूल से शुरू ही वो पुरस्कारों की दौड़ कॉलेज में भी जारी थी… कॉलेज छोड़े १२ साल हो चुके थे…पर कल का ही दिन लग रहा था…
“क्या लड़कियों वाले खेल खेलते हो…. इस badminton से carrier बनाओगे तुम ?-
पापा सरकारी नौकरी वाले आदमी थे, और अपने अनुभव के आधार पर अपने बेटे से भी सरकारी नौकरी की अपेक्षा रख रहे थे..
” पापा state level competition में 1st आया हूँ… छोटी बात नहीं है…”
“एक काम करो बेटा, तुम कंचे खेलो…कैरम खेलो…क्या पता आने वाले टाइम में ओलिंपिक में ये खेल भी खेले जाएँ, और तुम्हें गोल्ड मैडल मिल जाए….हैं?….क्या है तुम्हारा badminton…. ये चिड़िया को एक आदमी इधर से मारेगा, एक उधर से मारेगा…. हो गया खेल? बरखुर्दार खेल-कूद की एक उम्र होती है. अब जिम्मेदारियों की गाडी पर सवार हो जाओ….छोटे-मोटे स्टेशन पर रुको मत….”
पापा से बहस का कोई औचित्य नहीं था…फिर भी सोचा आखिरी बार पापा के सामने अपनी बात रख लूँ…
“मैं एक बार national टीम के लिए खेलना चाहता हूँ….ऐसा मौका दोबारा नहीं आएगा पापा.”
“देख पिंटू…मेरी जितनी saving थी, वो तुम्हारी बहनों की शादी में खर्च हो गई… अपने लिए ना सही, माँ-बाप के रहने के लिए एक घर ले ले…कब तक किराए के घर में किश्तें भरते रहेंगे…….” पिताजी ने फरमान सुना दिया…
दिनचर्या बदलने लगी, जिन हाथों में बैडमिंटन का रैकेट होता था, उसकी जगह बैंक परीक्षा की किताबें आ चुकी थी…
एक दिन रास्ते में मेरे बैडमिंटन कोच मिल गए…
“पागल मत बनो….state level का chimpion एक looser जैसे बात कैसे कर सकता है… चलो practice के लिए” – कोच ने मेरा हाथ पकड़ लिया…