सुबह सुबह सब अपने अपने कामों में व्यस्त थे कि अचानक फोन की घंटी घनघना उठी,
मनोरमा ने अपने पति सुदीप को आवाज़ लगाई.. “अरे कहाँ हो…सुनो ज़रा देख लो प्लीज़ किसका फोन है मेरे हाथ घिरे हैं”
“आता हूँ” कहते हुए सुदीप ने अपनी पत्नी की ओर मुस्कान उछालते हुए उसके बेसन से सने हाथ देख कर पूछा “क्या बन रहा भई?”
“पकौड़े, आप फोन देखो ना किस का है?”
सुदीप ने लपक कर फोन उठाया और बहुत जोर से नमस्कार ठोका. उसके तरीके से मनोरमा को समझ आ गया किसी परिवारी जन का है. सुदीप को बात करता छोड़ मनोरमा वापस किचेन मे आ गई और अपने काम मे लग गई. तभी कमरे से जोर जोर से बोलने और खुशी भरी चिल्लाहटें सुनाई देने लगी. अंदर का हाल जानने जैसे ही मनोरमा किचन से बाहर निकली, मनोरमा की बेटी अर्पिता लगभग दौड़ती सी आई “माँ अप्पी दी को बेटा हुआ है ताई जी का फोन आया है”
मनोरमा तौलिए से हाथ पोछती माँजी के कमरे की ओर बढ़ी तो सुदीप खुश-खबरी के साथ पहले ही मांजी के पास पहुँच चुके थे
“अरे बहू तूने सुना, अपनी अप्पी के बेटा हुआ है चलो भगवान ने भी खूब सुनी, एक बेटी थी अबकी बेटा हो गया, उसका परिवार पूरा हो गया..”
“हाँ मांजी बहुत बधाई हो… आपको” फिर अपने पति से पूछा “और क्या बात हुई भाभी से? अप्पी ठीक है और बच्चा?”
“सब बढ़िया है बच्चा और अप्पी दोनों ठीक हैं…” सुदीप ने उत्तर दिया
“चलो अच्छा है” बोल कर मनोरमा फिर से नाश्ता बनाने में जुट गई. सबको खिला पिला कर विदाकर मनोरमा अपना बाकी का काम निपटाने में जुट गई मगर मन तो अप्पी की खबर मे ही अटका था. अप्पी -अपराजिता, सुदीप के बड़े भाई की बेटी, अपने तीन बहन भाइयों में सब से बड़ी, मनोरमा और सुदीप की शादी के समय दसवीं कक्षा का इम्तिहान दिया था. कैसे पूरी बारात में आगे आगे नाचती रही थी. कोई बाराती ऐसा न छोड़ा जिसको अप्पी ने नचाया ना हो. लड़की वालों में भी चर्चा का विषय था, दुल्हे की भतीजी का नाच. खुशी भी तो थी अप्पी को अपने प्यारे चाचा की शादी की…
शादी के बाद सारे मेहमानों के साथ ही सुदीप के भाई भी अपने परिवार के साथ वापिस चले गए थे.. मनोरमा तब ज्यादा ठीक से तो किसी को जान भी ना पाई थी मगर बाद मे भाई साब बच्चों के साथ जब छुट्टियों में घर पर आये तब मनोरमा की जान-पहचान हुई अप्पी और उससे छोटी गुड़िया से, अप्पी की भी अपनी चाची से खूब पटरी खाती थी, हर छुट्टियों मे बच्चे घर आते रहे दादी बाबा और अपने चाची चाचा के पास.
इस बीच अर्पिता का जन्म हुआ सुदीप की पहली संतान होने के कारण किसी ने सोचा तक भी नही कि बेटा है कि बेटी…दादी माँ तो निहाल थी अपने सुदीप की संतान को देख कर और बाबू जी को भी बस ये ही चिंता थी कि बहू और बच्चा स्वस्थ तो है मनोरमा से मिलने और बच्चे को देखने परिवार के सभी लोग आ रहे थे , मनोरमा के मायके मे भी ज्यादा कोई तो था नहीं मगर जो भी थे सब आये. सुदीप के भाई भाभी भी देखने आये मगर मनोरमा को अप्पी का न आना कहीं ना कहीं चुभ रहा था ,और तो और उसने फोन पर भी चाची का हाल ना पूछा, मन ही मन महसूस कर गई मनोरमा मगर छोटी छोटी बातों को तूल देने में कुछ रखा भी नही था ..
सो बात आई गई हो गई…कोई साल भर तक आना जाना न भी हुआ . इसी बीच खबर आई की अप्पी को दिखाना है कोई रिश्ता अच्छा मिला है तो घर पर ही देखने दिखाने का प्रवंध करना होगा. अगली पीढ़ी का पहला बच्चा थी अप्पी जिसके रिश्ते की बात चल रही थी सब बहुत खुश थे. चाचा चाची जी-जान से तैयारियों मे लगे थे. अच्छा रिश्ता था सब चाहते थे बात फिक्स हो जाए.
सुदीप के भैया भाभी और बच्चे भी दो दिन पहले आ गए. अप्पी को सामने पाकर मनोरमा से रहा ना गया उसने उलाहना देते हुए कहा “क्यों अप्पी अब याद आई हमारी जब शादी के लिए लड़का देखना है, तूने तो अर्पिता के होने की बधाई भी ना दी”
“कौन बेटा हुआ था चाची आपको जो बधाई देती…लड़की होने की भी बधाई दी जाती है कोई..”
अप्पी से इतने रूखे जबाब की तो मनोरमा को उम्मीद भी ना थी सुन कर सन्न रह गई. मनोरमा जल्द से कुछ बोलते ना बना क्या उत्तर दे पाती. मगर अप्पी की माँ मनोरमा की जिठानी ने मौके पर पर बात को संभाल लिया अप्पी को फटकारते हुए चुप करा दिया और मनोरमा से कहा “पागल है ये लड़की कुछ भी बोलती है मनोरमा ऎसी कोई बात नही है हमारे लिए जैसे ये बच्चें है वैसी ही अर्पिता भी है.”
मनोरमा ने भी बात को ना बढाना ही उचित समझा और कहा.”अरे भाभी ये हसी मजाक तो हम दोनों में चलता रहता आप क्यों परेशान हो रही हैं.”
मगर क्या मनोरमा सच में इतनी आसानी से इस बात को अनदेखा कर पाई .ना सिर्फ इसलिए दुःख हुआ कि उसकी बेटी के लिए ऐसा कहा गया बल्कि उसका दुःख इसलिए और भी बड़ा था क्योकि ये शब्द एक लड़की नें दूसरी लड़की के लिए कहे थे. सच मे समाज मे सही कहावत प्रचलित है औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है .मन में मैल रखना मनोरमा का स्वभाव न था पर अप्पी के शब्दों की कटुता चाह कर मनोरमा के मन से मिट नही रही थी.मनोरमा नें रिश्ता तय होने से लेकर विवाह सम्पन्न होने तक सभी कार्यों मे अपना पूरा सहयोग दिया मगर उसके मन मे वो उल्लास वापस ना आ सका जो अप्पी से मिलने से पहले था.
अप्पी भी विवाह के बाद अपने पति के साथ एक शहर से दूसरे शहर घूमती रही और बाकी सब भी अपने अपने में व्यस्त हो गए. अर्पिता भी अब बड़ी हो गई थी उसने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया मनोरमा अपने घर के काम काज और पति सास ससुर बेटी में उलझी रहती.
अचानक एक दिन मनोरमा की जिठानी का फोन आया तो पता चला अप्पी माँ बननें वाली है इस लिए अपनी माँ के घर आ गई है और चाची से बात करना चाहती है, मनोरमा ने भी पिछली बातें भुला कर सामान्य तरीके से बात की. अप्पी को सामान्य से निर्देश देकर फोन रख दिया. नियत समय पर अप्पी ने बिटिया को जन्म दिया पूरा परिवार उल्लास से झूम उठा नन्ही परी के आगमन से. मनोरमा और सुदीप भी नए नए नाना नानी बननें के उत्साह से अविभूत हो उठे. जा पाना संभव नही था तो.
मनोरमा ने सोचा क्यों ना अप्पी को माँ बनने की शुभकामनाएं फोन से ही दे दूं. फोन जिठानी ने उठाया . मनोरमा ने अप्पी से बात करने को कहा अप्पी ने बात तो कि मगर बहुत रूखेपन से. मनोरमा को अजीब तो लगा मगर सोचा शायद तबियत ठीक न हो. समय बीतता गया अर्पिता भी धीरे धीरे नवीं कक्षा मे पहुच गई.. सुदीप और मनोरमा ने पहले ही सोच रखा था कि हमारा सिर्फ एक ही बच्चा होगा . ये किस्मत की बात है बेटा या बेटी. सो अर्पिता के बाद न दूसरे की उम्मीद थी ना आवश्यकता. सारी उम्मीदें अपनी इकलौती संतान से ही जोड़ रखी थी उन्होंने. माँ चाहती थी कि सुदीप के भी एक बेटा हो जाये मगर उन दोनों के दृढ निश्चय के आगे माँ की भी ना चली.
सुदीप अपने भाई का हाल चाल फोन से लेता रहता ..कुछ अपने मन से कुछ माता-पिता की खुशी के लिए बातों से पता चला अप्पी फिर से मायके आई है .मनोरमा को पता चला तो सोचा बात कर लूँ.बातों बातों मे मे पता चला अप्पी फिर से माँ बननें वाली है. मनोरमा ने कहा “सही तो है परी भी पांच साल की हो गई है .कब की डेट बताई है डॉक्टर ने?”
”अभी डेट क्या चाची दूसरा महीना है मै तो चेक कराऊंगी अगर लड़का होगा तभी रखूगी नही तो नही चाहिए मुझे.”
मनोरमा के हाथ से फोन छूट गया खुद को सम्भालते हुए उसने कहा “कैसी बात कर रही है अप्पी ?? ये पाप है . धर्म समाज कानून कोई भी तो इज़ाज़त नही देता है.फिर तू खुद भी लड़की है तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है दामाद जी की ओर से कोई दवाब हो तो तेरे चाचा को बोलूं? वो उनको समझायेंगे.हम उनसे मिल कर बात करेंगे.”
“अरे नहीं चाची उनसे कुछ न कहना! उनको तो बताया तक नही है मैंने अपनी प्रेगनेंसी के बारें में.उनको पता चला तो वो अबोर्ट नही करनें देंगे.” अप्पी ने बड़ी ढिठाई से कहा.
“अप्पी सोच तो सही तेरे ऊपर कोई दवाब नही फिर तू ये पाप करने का कैसी सोच सकती है.”
अपनी बात का कोई असर पड़ता ना देख मनोरमा ने फोन रख दिया. मनोरमा का मन बहुत व्यथित हो उठा.कैसी लड़की है ये.आज के युग मे किस सोच मे जी रही है .बेटा होना इतना आवश्यक है कि अपनी अजन्मी बेटी को खुद अपने हाथों से मारने को बैठी है.ये नई पीढ़ी है जिसके हाथों मे हमारा भविष्य है. इस से आगे मनोरमा सोच ना पाई. सामने से अर्पिता आती दिखी.मनोरमा ने झट से आंसू पोछ लिए.
मनोरमा ने तारीखें गिनना शुरू कर दिया शायद अप्पी को उसकी बात समझ आ गई हो मगर.ये सिर्फ मनोरमा का वहम था.ऐसे ही दो बार और अप्पी के मायके आने की सूचना मिली और कुछ दिन रह कर वापस जाने मगर अब तो मनोरमा जान चुकी थी अप्पी क्यों आती है और वापस चली जाती है इसके बाद मनोरमा कभी अप्पी से बात ना कर पाई भीतर से घृणा सी होती थी अप्पी के नाम से ही.और अप्पी भी कतराती थी मनोरमा से कहीं चाची फिर से उपदेश ना देने लग जाएँ.
पिछली बार जब भाई साब आये तो मांजी को बता कर गए कि दो तीन माह बाद अप्पी माँ बनने वाली है .मनोरमा अच्छी तरह समझ गई थी इस बार बेटा ही होगा अप्पी ने कई बेटियों की बलि जो दी है जन्म से पहले ही. और आज जब अप्पी के बेटा होने की सूचना मिली तो वो चाह कर भी खुशी व्यक्त ना कर पाई. मनोरमा को शिकायत ये ना थी कि अप्पी जैसी पढ़ी लिखी लड़की को बेटे की इतनी चाह है .बस मनोरमा को तो ये दुःख साल रहा था कि अप्पी जैसी नए ज़माने की जींस पहनने वाली गिटपिट इंग्लिश मे बात करने वाली खुद कार चला ने वाली लड़की ऐसी सोच रखती है तो गाँव की उन लड़कियों से क्या उम्मीद रखी जाये जो हर छोटे-बड़े फैसले में दूसरों के आधीन है कितनी आसानी से बोल दिया उसने कि एक बेटा और एक बेटी . बस मेरी फॅमिली तो कम्प्लीट हो गई . उसको नासमझ को अंदाज़ा भी नहीं है कि उसने कितने परिवार अधूरे कर डाले है अजन्मी बेटियों को मार कर. टप-टप दो बूँदें मनोरमा की आँखों से गिर गई. ये उन बेटियों की आत्मा को शांति तो न दे पायें मगर मनोरमा की ओर से उनको श्रधांजलि अवश्य थीं.
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