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Gumshuda

Published by raviduttmohta in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag father | house | Mother

गुमशुदा-This Hindi story is about general condition of our parents,in today’s society, actually they have lost in their own house….in front of own children.

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Hindi Social Story – Gumshuda
Photo credit: chilombiano from morguefile.com
(Note: Image does not illustrate or has any resemblance with characters depicted in the story)

”’संध्या हो गयी है… जरा दीपक तो जलाओ… ?”

उसके बूढ़े पिता ने उसे देखते ही कहा। उसने पिता का चेहरा गौर से देखा।  कोहरे से भरी इस डरावनी ठण्डी शाम में उसके पिता एक ठण्डे लोटे की तरह चारपाई पर बैठे थे।

शाम ने अपने ठण्डे पैरों में रात के बर्फीले घुंघरू बांध लिए थे। और अब वह धीरे -धीरे उसके घर के आंगन में घुस कर टहलने लगी थी…

”बेटा… आज ठण्ड बहुत है ?”

”हां… ” उसने अपने पिता को जीने की एक और उम्मीद देते हुए कहा।

बचपन से लेकर आज तक वह एक बात नहीं समझ पाया था कि बुढ़ापा मनुष्य की  देह में अपना घौंसला क्यों बनाता है?उसे याद आया कि किस तरह देखते -देखते ही उसके कई रिश्तेदार , दोस्त,और शहर के सुन्दर चेहरों को शमशानों की चिताओं ने जलाकर राख  कर दिया  था। कभी-कभी वह सोचता था कि एक दिन वह इन सभी क्रूर कब्रिस्तानो को कहीं दफना आएगा…  और इन आवारा शमशानों को कहीं जला आयेगा  …कि जिससे इस सुंदर धरती पर मौत को कभी आराम करने का स्थान न मिल सके !

”क्या सोच रहे हो बेटा ?”उसके पिता ने कुछ चिंतित होते हुए उससे पूछा।

”कुछ नहीं बाबा…. बस यूँ ही कोई पुराना गीत याद आ गया था। ”

”कौन सा गीत….?मुझे सुनाओ… क्या हेमंत दा का कोई गीत है ?…. ”

उसके बाबा पुराने फ़िल्मी गीतों के बहुत शौकिन थे। उसने धीरे से वो गीत अपने होंठों के सितार पर रख कर छेड़ा …

”या दिल की सुनो दुनियाँ वालों….या मुझको…”

”अरे वाह बेटा! … क्या गाया है हेमंत दा ने !… अच्छा ,तुझे पता है क्या…तेरा नाम मैंने ‘रवि’ क्योँ रखा था ?”

”क्यों रखा है बाबा…… ?”

”इसलिए बेटा  … कि उस ज़माने में ,60 के दशक में संगीतकार ‘रवि’का संगीत बहुत लोकप्रिय था। मुझे लगा कि तेरा नाम ‘रवि’  रख कर मैं उनको इस तरह एक ‘हार्दिक सलाम’  तो कर ही सकता हूँ  … ‘

”इसका मतलब यह हुआ कि मैं संगीतकार ‘रवि’ को एक सलाम मात्र हूँ…?”

”हाँ बेटा…. ऐसा ही समझ तूं… ”

इधर वे दोनों बाप -बेटा बातें कर रहे थे… उधर उसकी माँ उनके लिए चाय बनाकर ले आयी।

”ठण्ड बहुत है बेटा आज… ले… अदरक की चाय पी ले… ”’उसकी बूढी माँ ने अपने कांपते कमजोर हाथों से उसे चाय का कप पक्रड़ा दिया।

अब रात घिर आयी थी। उसे अँधेरी रातों से बहुत डर लगता था। क्योंकि उसने देखा था कि किस तरह इन अँधेरी रातों ने उसके कई प्रियजनों को मौत की  नींद सुला दिया था  … और इन अँधेरी रातों ने ही बेवफा औरतों की आँखों का काजल बन कर उसके कई होनहार दोस्तों को आत्महत्या करने को मजबूर किया था।

”क्या सोच रहे हो बेटा फिर…. ?”उसके बाबा ठण्ड से कांपते हुए बुदबुदाये….

”वही पुराना गीत बाबा… ”

”किसका ?… लता का ?”

”हाँ”

”सुनाओ… ”

”रातों के सांये घने… (फिल्म -अन्नदाता )

उसके बाबा यह गीत सुनकर बिल्कुल चुप हो गए। चाय का कप मेज पर कुछ इस तरह रख दिया जैसे कि हम सभी एक दिन खुद को भगवान के भरोसे रखा हुआ पाते हैं… बाबा रात के अँधेरे में कुछ खोजने लगे थे… इधर माँ भी आकाश में अपनी आँखें गडाये कुछ खोद रही थीं…

अचानक उसके बाबा बोले…

”बेटा… एक दिन हम दोनों नहीं रहेंगे… तब तुम किससे बातें करोगे?किसे अपने गीत सुनाओगे ?”

”आप ऐसा क्यों कहते हैं बाबा?” उसकी आँखें भर आयी…

”बेटा… यह तो सत्य है। हमें तो अब जाना ही होगा। और तुझे अभी कुछ ठहरना ही होगा… पर बेटा ,हमारी एक बात याद रखना… माँ-बाप और जीवन एक बार ही मिलता है। इन्हें कभी भूलना नहीं।”

यह सुनकर वह फूट -फूटकर रोने लगा… उसने अपने बाबा की दोनों बूढ़ी बांहों को थाम कर पूछा ?

”बाबा…. ऐसा क्यों होता है ?आप हम बच्चों को जन्म देते हैं… और हम बच्चे आपका दाहसंस्कार कर देते हैं !ऐसा क्यों होता है बाबा ?”

बाबा की आँखों में आंसू भर आये थे… पर वो चुप नहीं हुआ। बोलता ही रहा…

”और ऐसा क्यों होता है बाबा ?…कि आप हमें जीवन -संस्कार देते हैं… और हम सभी बच्चे आपका अंतिम-संस्कार कर देते हैं… ऐसा कब से हो रहा है बाबा… ?”

अब तो उसके बाबा की आँखों में भी आँसू की कुछ बूंदे काजल  सी भर आई थी … पास में बैठी उसकी माँ भी अब सुबकने लगी थी… उसके बाबा तब धीरे से बोले –

”बेटा…. आज तुझे एक राज की बात बताता हूँ… देख  … इस दुनियाँ में सभी शादी-शुदा होकर घर बसाते हैं… परन्तु वास्तव में होता क्या है… तुझे पता है ?”’

”नहीं बाबा… ”

”मेरे मासूम बच्चे… एक दिन वे शादीशुदा दम्पति जब बूढ़े हो जाते हैं ,तो अपने ही घर में, अपने बच्चों की आँखों  के सामने ”गुमशुदा ”हो जाते हैं… यही आज की इस धरती का कटु सत्य है मेरे बेटे ! जिस तरह मौत इस दुनिया का कटु सत्य है… वैसे ही जीवन भी एक गुमशुदा मौत बनता जा रहा है… इन दोनों सत्यों को स्वीकार करो बेटे  … ”

”पर बाबा… मैं आपको इस तरह मरने नहीं दूंगा… मैं आपकी यह बात पूरी दुनिया को बता दूंगा…  फिर तो आपकी मौत गुमशुदा नहीं होगी ?”

उसके बाबा एक रहस्य्मयी हंसी हंस दिए… आधी रात हो चुकी थी। और इस आधी रात को उसने अपने बाबा से शादीशुदा जीवन का पूरा सच जान लिया था।

 

रविदत्त मोहता

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