जीवनसंगिनी
जीवनसंगिनी, हाँ यही नाम था उसका। आज मैं मॉल में घूम रहा था, अचानक से दिख गयी। काफी खुश थी। अब उसकी एक बेटी भी है। और मेरा दोस्त उसका काफी ख्याल रखता है। ये उसे देखकर ही पता चल रहा था।
मैंने जीवन को बोला – उल्लू इतने दिन से कहाँ थे तुमलोग, कोई खबर नहीं।
जीवन – क्या करूँ भाई पहले का मोबाइल चोरी हो गया। और तुम्हारा पहले का फेसबुक अकाउंट पे request send किया but कोई response नहीं।
हाँ यार उस account को बंद कर दिया मैने।
कुछ और बातें हुई और फिर बीदा हुए।
जाते जाते जीवनसंगिनी ने बोला – भैया घर आओ न कभी। हम सबको तो पता ही नहीं था की आप इस शहर में हो।
मैं – हाँ कुछ clients से मिलने आया था। जरूर आऊंगा घर।
इन सबको खुश देखकर कितना अच्छा लग रहा है। उस दिन का लिया फैसला सही साबित हुआ।
बात उस समय की है जब मैं एक ऐसी संस्था से जुड़ा था, जो सचे प्यार करने वाले, दो दिलों को मिलाने का काम करता था। कई लोग तो ये भी कहते की अरे अपने बच्चों को इससे दूर रखो नहीं तो ये भी हमारे खिलाफ खड़ा होगा। ये प्यार व्यार का रोग हमारे बच्चों को हमसे दूर कर देगा। ऐसे कई ताने सुनने पड़ते थे उन दिनों। पर जब जब उन जोड़ो को हस्ते खेलते ख़ुशी से दिन गुजरते देखता तो इन सब का असर ही न होता।
यही जीवन ने मेरे कंधे पर सर रखकर इस लड़की के लिए रोया था कभी। जीवन जीवनसंगिनी को स्कूल टाइम से ही बेहद पसंद करता था। पर जीवनसंगिनी के parents ये प्यार व्यार के हमेशा खिलाफ रहते थे। इस कारण जीवन के प्यार को उसने accept नहीं किया। और जब तक प्यार दोनों तरफ से न हो मैं उनमे दखल अन्दाजी नहीं करता। ये हमारी संस्था का rule था।
अंततः एक दिन जीवनसंगिनी की शादी हो गयी। और वो दूसरे शहर चली गयी। लेकिन कुछ ही महीनों बाद एक हादसा हुआ। एक आतंकवादी हमले में जीवनसंगिनी के पति की मौत हो गयी। अभी जिना सुरु ही किया था उसने, की ज़िन्दगी का उजाला अन्धकार में समां गया। एक चंचल सी लड़की की चंचलता, होठो की मुस्कान गायब हो गयी। उसके जिंदगी की रंगीनियाँ सफ़ेद साड़ी में परिवर्तित हो चुकी थी। लोग आते और अफ़सोस जताकर चले जाते। उसके ससुराल के कुछ लोगों ने तो ये तक कह डाला था की कैसी लड़की आई इस घर में जिसके पैर पड़ने के कुछ महीनों में ही इस घर का चिराग बुझ गया।
वो अपने मायके आ गयी। वहीँ रहने लगी। एक दिन जीवन से उसका सामना हुआ। वो नजरे बचाकर निकल गयी। और इधर जीवन बेचैन हो गया। उसके बारे में सब कुछ पता कर आया मेरे पास। और बोला भाई मैं उसे अपनाने को तैयार हूँ। बस मुझे मेरे प्यार से मिला दे।
मैं – पागल है तू, पहले की बात और थी, अब की बात और है। पहले वो लड़की थी, अब बिधवा है। (ऐसा बोलकर प्यार की गहराई को परखना पड़ता था)
जीवन – भाई ऐसा थोड़े ही है की कल का प्यार आज बदल गया है। मैं तो उसे किसी भी रूप में अपनाने को तैयार हूँ।
मैं – पक्का, सोच लो, बहुत बगावत करना पड़ेगा। बहुत ताने सुनने पड़ेंगे। सबके लिए तैयार हो न।
जीवन – हाँ, अब तो कैसे भी जीवनसंगिनी को खुश रखना है, उसके ज़िन्दगी में फिर प्यार का दीपक जलाना है।
मैं – तो चलो फिर।
और हम दोनों पहुँच गए उसके घर। पहले तो उसके पापा ने मुझे देखते ही कहा था – ये लफंगा यहां क्या कर रहा है, क्यों आया है? लेकिन उसके माँ के कहने पर की एक बार पूछ तो लो क्या बात है।
फिर बाते सुरु हुई, मैंने बोला – अंकल ज्यादा घुमा फिरा के बात नहीं करूँगा, ये जीवन है, आपकी बेटी के साथ ही पढता था, और तबसे इसे पसंद करता है, और अब ये जीवनसंगिनी को अपनाना चाहता है।
तुम्हे पता है तुम क्या बोल रहे हो। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। उसके पापा ने तमतमाते हुए कहा।
अंकल जब जीवन इतना कुछ होने के बाद जीवनसंगिनी को अपनाने का हौसला रख सकता है, तो इसे मिलाने की जिम्मेदारी मेरी है – मैंने कहा।
“तुम समझ रहे हो क्या कह रहे हो। समाज में मेरी नाक कटवाना चाहते हो। चले जाओ यहाँ से” – वैसे ही गुस्से में उसके पापा ने कहा।
मैंने कहा – “अंकल समझने की जरुरत आपको है। आप किस समाज की बात कर रहे हैं, उस समाज की जो कभी किसी की ख़ुशी नहीं देखना चाहता। कोई खुश रहे तो जलता है और किसी को दुःख हो तो ताने मारता है। आज आपके हाथ पैर सलामत हैं तो देख रेख कर ले रहे हो अपनी बेटी की। कल को खुदा न करे आपको कुछ हो जाये तो जय इसे जीने देगा आपका ये समाज। ताने दे दे कर, विधवा बोल बोल कर जिना मुश्किल कर देगा इसका। क्या ऐसी ज़िन्दगी की कल्पना की है अपनी बेटी के लिए। ये जानता हूँ की जीवनसंगिनी आज भी आपके मर्जी के बिना कुछ नहीं करेगी लेकिन आज अगर जीवन के प्यार को नकारने की हिम्मत होती इसमें तो ये जो आँखों में आंसूं देख रहे हो, ये न होता” (मैंने जीवनसंगिनी को दरवाजे के ओट से खींचते हुए कहा, जो ये सब बात छुप कर सुन रही थी)
अब अंकल का दिल पिघल रहा था, क्योंकि बाप का दिल कितना भी कठोर क्यों न हो, बेटी के आंसू उसे पिघला ही देता है।
finally सभी मान गए। ऐसे ही जीवन के माँ बाप को भी समझाना पड़ा था। मैंने जाकर यही बोला था – “समाज की बुराईयों को सभी गिनाते हैं, लेकिन उन्हें साफ़ करने कोई नहीं आता। आपका बेटा तो आज महान काम करने जा रहा है। इसकी क्या गारंटी है की जो बहु आप लाएंगे वो सही ही निकलेगी। अनजान पे भड़ोसा करने से अच्छा है, आप जिसे जानते हो उसे मौका दो। पहले तो खूब बड़ाई किया करते थे जीवनसंगिनी की, आप ही न कहा करते थे ऐसी ही बहु लाऊंगा अपने घर में, फिर वो ही क्यों नहीं? सिर्फ इसलिये की वो विधवा हो गयी। उस मासूम की क्या गलती अंकल। और आपको तो खुश होना चाहिए आपका बेटा जिसे प्यार करता है उसे ला रहा है। आप जैसा चाहते थे वैसी बहु ला रहा है। अगर जीवनसंगिनी आपकी बेटी होती तो आप भी तो यही चाहते न। किसी की ज़िन्दगी संवर जाने दीजिये। सभी खुश रहेंगे।”
और सभी मान गए, ख़ुशी ख़ुशी बन ही गयी जीवन की जीवनसंगिनी।
आज 3 साल बाद सबको देखकर बहुत अच्छा लगा। जब आपका प्यार आपको न मिले तो ऐसे प्यार करने वालों को मिला दिया कीजिये, दिल को सुकून और मन को शांति मिलेगी।
भाई साहब एक अच्छा सा गिफ्ट couple वाला और एक चॉकलेट का पैकेट देना, आज जीवन, जीवनसंगिनी और उसकी बेटी से मिलने जाना है।
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