This Hindi story is about a queen who had no children even after 7 years of marriage. She poured water in the Peepal’s root ,
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Hindi Story – Magic carpet
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मैंने मामा जी से जादुई चटाई के बारे सुन रखा था . उन्होंने बताया कि जब वे मेरी उम्र के थे तो उनकी नानी जादुई चटाई की कहानी सुनाई थी.
बहुत साल की बात है सुंदरगढ़ राज्य में एक बड़ा ही नेक और साफ़ दिल का राजा राज्य करता था . उनकी रानी लीलावती भी सौम्य एवं शांत स्वभाव की थी. पुरे राज्य में अमन चैन था. प्रजा लोग राजा के गुणगान किया करते थे . आस – पड़ोस के राज्यों से राजा का मधुर सम्बन्ध था . राजा को अपने दायित्यों एवं कर्तव्यों का पूरा ज्ञान था. वे सर्वदा अपनी प्रजा का ख्याल रखते थे. सबों के साथ उनका वर्ताव एक सा था . वे अत्यंत न्यायप्रिय थे . यदा – कदा ही राज्य में कोई अनहोनी घटना घटित हो जाती थी तो राजा दोषी को बुलाकर गुनाह की वजह जानते थे . वे गुनाहगार की मजबूरी को ध्यान में रखते हुए सजा सुनाते थे . राज्य की ओर से कोई कमी होने या त्रुटि रह जाने पर उसका निराकरण करने में यकीन रखते थे . इसलिए कोई व्यक्ति गुनाह करने के बारे में स्वप्न में भी नहीं सोचता था. दूर – दूर तक राजा की ख्याति फ़ैली हुयी थी. सब कुछ होते हुए भी राजा – रानी खुश नहीं थे. जब भी अकेले होते थे तब उनका मन उदिग्न हो जाता था . इसका मुख्य कारण था कि उनकी कोई संतान नहीं थी. बिना संतान का राजमहल सुना – सुना रहता था. राजा एवं रानी के मुखारविंद से उनकी आन्तरिक व्यथा साफ़ झलकती थी. महामंत्री एवं राजदरवार के लोग अपने राजा के इस आन्तरिक व्यथा से वाकिफ थे. प्रजा में भी इस बात की चर्चा हुआ करती थी. कईयों ने तो अपना शिशु भी देने की ईच्छा प्रकट की थी , लेकिन रानी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. उनका विचार था कि किसी माँ की गोद सूनी करके स्वार्थवश गोद लेना न्यायसंगत नहीं है. राजा रानी के विचारों में दखलअंदाजी करना उचित नहीं समझते थे . सोचते – सोचते सात साल बीत गये , लेकिन कोई संतान नहीं हुयी.
एक बार रानी की एक बचपन की सहेली उससे मिलने आयी . उसके साथ दो – दो बच्चे थे . दोनों ही जुड़वाँ थे और दोनों की शक्ल एक – दुसरे से मिलती थी. बहुत गौर से देखने पर मामूली सा फर्क दिखलाई देता था. सहेली को जब मालूम हुआ कि रानी की कोई संतान सात साल बीत जाने के बाबजूद भी नहीं हुयी तो उसने आप बीती बतलाई . तीन वर्षों तक उसे भी कोई संतान नहीं हुयी तो उसे बड़ी चिंता सताने लगी . घर के तो घर के बाहर के लोग भी ताने कसने लगे . उसे रात में सपना आया कि किसी पीपल के पेड़ की जड़ में हरेक शनिवार को नहा धोकर शुबह जल डाला जाय तो मनोकामना पूर्ण होती है. दूध सा धवल परिधान में कोई देवदूत था , जिसने यह बात उसे बतलाई थी. जब नींद टूटी तो सामने कोई नहीं था . मैंने देवदूत की सलाह को गाँठ में बाँध ली थी. शनिवार का दिन था . पौ फटते ही मैंने स्नान – ध्यान कर लिया और कलश में जल भरके आगन के पीपल पेड़ की जड़ में पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पूजा – अर्चना की और जल ढाला . यह क्रम अनवरत तीन महीने तक चले ही थे कि मैं गर्भवती हो गयी . घर में सभी लोग यह जानकार की मैं माँ बननेवाली हूँ , बहुत खुश हुए. नौ महीने के बाद ये दोनों बच्चे हुए .
मेरी सलाह है कि तुम भी किसी पीपल के पेड़ की जड़ में जल डालो तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी.
कलावती ! जब तुम्हें इतना विश्वास है तो मैं कल से ही नियमित जल डाला करूंगी . महल के पीछे ही एक पीपल का पेड़ है. कोई असुविधा भी नहीं होगी मुझे.
लेकिन एक बात का ध्यान रहे कि कोई शनिवार छूटना नहीं चाहिए . दूसरी बात कि पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धा के साथ जल डालना है.
सहेली की विदाई बड़े ही धूम – धाम से की गयी. अनेकों उपहार भी दिए गये. राजा ने पहली वार रानी के मुखाविंद पर प्रसन्नता की किरण देखी.
शनिवार आने में तीन दिन बाकी थे. रानी को बेचैनी सता रही थी . वह राजा को बताना नहीं चाहती थी , लेकिन छुपाना भी उचित नहीं था . इसलिये उसने राजा को सभी बातें बता दी. राजा स्वं आस्तिक थे और पूजा – पाठ में विश्वास रखते थे. उसने सहर्ष अनुमति दे दी. फिर क्या था दूने उत्साह के साथ पूजा – अर्चना की तैयारी में रानी निमग्न हो गयी. शुक्रवार की रात पलकों में ही कटी . शुबह ही नहा – धोकर तैयार हो गयी . जल – कलश लेकर पीपल के पेड़ के पास गयी – पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से पूजा की और जड़ में जल डालकर परिक्रमा की . रानी ने अपने मन की बात भी रख दी. पूजा के पश्च्यात उन्हें सुख व शांति की अनुभूति हुई. ऐसा प्रतीत हुआ कि अब उनकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी .
आज रानी को गहरी नींद आयी. सपने में उसने एक देवदूत को देखा जो दूध से धवल परिधान में प्रकाशपूंज की तरह चमक रहा था.
देवदूत ने कहा : मैं तुम्हारी पूजा एवं भक्ति से प्रसन्न हूँ . तुम जो चाहो मांग सकती हो.
ईश्वर ने किसी चीज की कमी नहीं की है . कमी है तो केवल संतान की .
तुम्हारी संतान होगी , लेकिन इसके लिए तुम्हें जान खतरे में डालना पड़ेगा .
में संतान सुख के लिए कुछ भी कर सकती हूँ . संतान न होने से अच्छा मर जाना है एक औरत के लिए. आप खुलकर बताएं , मुझे क्या करना है ?
यहाँ से हजारों कोस दूर जाना है . सात समुन्दर पार करने के बाद आठवां समुन्दर मिलेगा जिसके मध्य में एक विशाल टापू मिलेगा . इसी टापू में कई नारियल के दरख़्त मिलेंगे . जिस पेड़ पर पीले रंग के नारियल होंगे , उसमे से एक तोड़कर बिना पीछे देखे द्रुतगति से चले आना है. बहुत से डरवाने हिंसक जानवर टापू पर विचरण करते नजर आयेंगे , लेकिन उनकी परवाह नहीं करनी है.
ये सब काम रातभर में कर लेना है ताकि कोई देख न ले.
लेकिन इतनी दूरी मैं कैसे तय करूंगी और रातोरात कैसे लौट के आ जाऊंगी ?
कठीन है , लेकिन असंभव नहीं. मन में एक बार ठान लो तो काम आसान हो जाता है.
लेकित मैं इतनी दूरी जाऊँगी कैसे ?
उसके लिए मैं हूँ न ! अँधेरा छाते ही मैं महल के ऊपर एक जादूई चटाई लपेट के रख दूंगा . वक़्त निकाल कर तथा सभी काम को सलटाकर अँधेरा छाने के तुरंत बाद छत पर चले जाना – चटाई खोलना तथा उसपर बैठ जाना . जो आदेश देगी , चटाई वहीं आपको ले जाएगा . सीधे इधर – उधर देखे बिना सात समंदर पार करना और आठवें समुन्दर के बीच अवस्थित टापू पर चले जाना . आपको नारियल के दरख्त दूर से दिखलाई देंगे. जिस दरख़्त की पत्तियां पीली होगी , समझ लेना उसका फल भी पीला होगा . झटपट एक नारियल तोडना और वगैर कुछ देखे , कुछ सुने फूर्ती से चल देना . डरावनी आवाज़ सुनाई देगी. डरावने भूत – प्रेत दिखेंगे . डरना नहीं .
इतना काम हो जाने के बाद मैं पुनः कल सपने में आऊँगा.
रानी की आँखें खुली तो सामने कोई नहीं था. था तो केवल मस्तिष्क में देवदूत की सलाह व परामर्श की स्मृति .
दिन भर बेचैन रही रानी कि कब दिन बीते और रात्रि का आगमन हो. आखिरकार सूर्यास्त होने के बाद अँधेरा शनैः – शनैः अपना पाँव पसारना शुरू कर दिया . रानी खा –पीकर निश्चिन्त हो गयी . सोने का वक़्त हो गया . राजा की आँखें जैसे ही लग गईं , वह आहिस्ते – आहिस्ते छत पर चली गयी . एक कोने में जादुई चटाई पडी मिली . उसे देखते ही देवदूत की बातों पर विश्वास हो गया . उसने चटाई को खोलकर फर्श पर बिछा दी. उस पर पालथी मारकर बैठ गयी . देवदूत को आहवान किया. जैसा बताया गया था , मंत्र को तीन बार पढने के बाद चटाई को आठवें समुन्दर चलने का आदेश दिया. आदेश मिलना था कि चटाई हवा से बातें करने लगी. आकाश मार्ग से होते हुए जब चटाई समुन्दर के ऊपर से उड़ने लगी तो रानी ने गिनना शुरू कर दिया कि कितने समुन्दर पार हो रहें हैं. जब आठवां समुन्दर आनेवाला था तो वह सचेत हो गयी. दूर से एक विशाल टापू दिखलाई दे रहा था . टापू रोशनी से जगमगा रहा था . उसने चटाई को टापू पर चलने के लिए कहा. चटाई ने एक चौकड़ी भरी तो सामने ही नारियल के दरख़्त दिखलाई देने लगे . पीले नारियल के दरख़्त के पास चटाई को रुकने के लिए रानी ने आदेश दिया और झट से एक नारियल तोड़ ली. नीचे धरातल पर शेर और बाघ विचरण कर रहे थे. जानवरों की डरावनी आवाज़ सुनाई पड रही थी. रानी के हाथ में ज्यों ही नारियल आया , उसने चटाई को राजमहल चलने का आदेश दे दिया. पौ फटने से पहले ही महल पहुँच गयी. शयन कक्ष में राजा अब भी सो रहे थे. रानी की जान में जान आयी. नारियल को पूजा घर में रखकर स्नान – ध्यान में लग गयी. शनिवार का दिन आ गया . कलश में जल , पूजा सामग्री एवं नारियल ले कर पीपल के पेड़ के पास गयी . पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पूजा की और जड़ में जल डाली . लौट के आने के बाद बड़ी समस्या थी कि अब क्या किया जाय क्योंकि देवदूत ने पूरी बात बतलाई नहीं थी. देवदूत ने आश्वस्त किया था कि नारियल लाने के बाद ही वह बाकी बातें बताएगा.
देवदूत की प्रतीक्षा में कई दिन बीत गये . बेसब्री सताने लगी थी. रानी को किसी काम में मन नहीं लग रहा था. राजा भी चिंतित थे कि अचानक रानी को क्या हो गया . खुदा खुदा करके कुछ दिन कटे कि एक रात को रानी के सपने में देवदूत पुनः आया और बताया कि पीपल पेड़ की पूजा करने के बाद नारियल का पानी जड़ में अर्पित करना है और वहीं प्रसाद स्वरुप बचा हुआ नारियल का पानी पीना है . एक साल के भीतर ही पुत्र – रत्न की प्राप्ती होगी. पुत्र का नाम देवाशीष रखना है. इतना कहकर देवदूत अंतर्ध्यान हो गया .
जैसा कहा गया था वैसा ही रानी ने किया और एक बालक का जन्म हुआ. पूरे राज्य में खुशियाँ मनाई गईं . रानी ने अपनी सहेली को आमंत्रित किया . उसके प्रति अपना आभार प्रकट किया और ढेर सारे उपहारों के साथ खुशी – खुशी उसकी विदाई की.
पीपल के पेड़ के चारो तरफ चबूतरा बना दिया गया . समीप ही एक भव्य मंदिर बनवाया गया जिसमें देवदूत की मूर्ति की स्थापना की गयी.
राजा इतने प्रसन्न थे कि राज्य के सभी पीपल पेड़ों की देखरेख व रख रखाव की जिम्मेदारी खुद ले ली .
रानी को सात वर्षों के बाद संतान सुख प्राप्त कैसे हुआ , यह बात ज्यादा दिनों तक छुपी नहीं . राज्य के सभी लोग जान गये कि पीपल पेड़ की जड़ में जल डालने से मनोकामना पूरी होती है. विश्वास एवं आस्था के साथ हर शनिवार को जल डालना सभी लोगों का नियमित कार्य बन गया .देवदूत की कृपा ऐसी रही कि राज्य में ऐसा एक भी घर नहीं बचा जहाँ बच्चे की किलकारियां न गुँजती हो.
क्रमशः
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : ७ जून २०१३ , दिन : शुक्रवार |
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