यह हर आम इंसान से जुडी कहानी है। हर लेखक को न जाने कब कौन सी बात दिल को छू जाये और कब एक कविता या कहानी की शक्ल में तब्दील हो जाये। यह कह नही सकते। आम इंसानो को वो बात साधारण सी लगेगी पर लेखक के लिए वो एक महत्वपूर्ण बात या मुद्दा हो।
आज सुबह जब मै अपने पति के ऑफिस जाने की तैयारियों में लगी थी। तभी मेरे कानो में बैंड -बाजे की धुन सुनाई पड़ी। मैंने उत्सुकतावश पति महोदय से पूछा -आज तो कोई त्यौहार नही है और न हीं शादियों का सीजन है। तो ये बिन मौसम कैसी बैंड -बाजे की धुन क्यों बजाए जा रहें हैं ? पति महोदय ने बड़े शांत लहजे में कहा – की हमारे घर से थोड़ी दुरी पर शहर के एक पुराने वाशिन्दे के यहां घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की तड़के सुबह मौत हो गयी है। उनकी अंतिम बिदाई की तैयारियां जोर -शोर से चल रही है। खैर पति इतना कह अपने ऑफिस के लिए रवाना हो गए।
पर मेरे मन में कौतुहल बना था की शादी -विवाह के मौके पर बैंड-बाजे की धुन सुनी थी पर किसी की मृत्यु पर ख़ुशी जाहिर करते मैंने पहली बार देखा या सुना था। संजोगवश उस मरे हुए व्यक्ति की अर्थी फूल -मालाओं से लदी मेरे घर के आगे से गुजर रही थी। अर्थी के पीछे ढेर सारे लोगों का काफिला पीछे -पीछे चल रहा था। उस बुजुर्ग व्यक्ति के परिजन अपने हाथों से रूपये की बारिश कर रहे थे। हाथी -घोड़े ,बैंड -बाजे ताल से ताल मिलाकर चल रहे थे।
लोग अपनी खिड़कियों और छतों से इस दृश्य को देख रहे थे। कोई बुजुर्ग व्यक्ति इस दृश्य को देखकर सोच रहा था की काश मेरे मरने पर मेरे घरवाले ऐसी ही शानदार बिदाई करे। ताकि लोग बरसों मुझे याद कर सकें।
जिनकी अर्थी ले जाई जा रही थी। उनके परिजन अपने को काफी गौरान्वित महसूस कर रहे थे। पर क्या यह वास्तविक गर्व था। हम सब इस बात पर गौर करें। नही वास्तविक गर्व तो तब करते जब हम अपने बूढ़े माँ -बाप के जीवित रहते हम उनकी हर इच्छाओं को पूरा करते। हम उनके बुढ़ापे को अपने ऊपर बोझ न समझते की कब ये बोझ सर से उतरे। क्या कभी हमने सोचने की कोशिश की है की जो माँ -बाप हमारे जन्म पर जश्न मनाते हैऔर हम उनकी बिदाई पर खुश होते हैं।
कुछ लोग उस मरे हुए व्यक्ति का हिसाब -किताब लगाने बैठ जातें हैं ,इसने इतने गलत काम किये। जैसे मानो सारे अच्छे काम काम उन्ही ने किये हो। शायद वो तो कभी इस दुनिया से जानेवाले ही नही। हम कौन होतें हैं किसी का हिसाब -किताब लगनेवाले। क्या कभी हमने खुद से पूछा -की कितनी गलतियां हुई।
दोस्तों जब मैंने उस मृत शरीर को जाते देखा तो मेरे मन में यही भाव आया। ये जीवन छंभंगुर हम कब तक यहां टिक पाए उसकी कोई गॉरन्टी नही। फिर भी हम छोटी -छोटी बातों पर आपसी वैमनस्य स्थापित कर लेते हैं। जब सभी को इस दुनिया से एक दिन जाना है तो हर दिन हम ऐसे जिए की ये मेरा आखरी दिन हो। तब हमारा जीवन दूसरों के लिए यादगार बन जायेगा। और जब हम इस दुनिया से बिदा लेंगे तो भी लोगों के जेहन में अपनी एक अलग पहचान छोड़ जायेंगे। उस दिन हमारी शांतिपूर्ण विदाई भी जश्न बन जाएगी।
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