Mr Sharma first child female baby, Didn’t follow Dr’s advice for family planning. In hope for son he became father of 6 daughters Faces huge problems
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Hindi Social Story – Mountain Of Problems (Part–6)
Photo credit: bobby from morguefile.com
चाहत या ईच्छा एक ऐसी चीज है जिसके वशीभूत होकर इंसान मुशीबतों को मोल लेता है और जो भी मिलता है उससे कहते फिरता है , “ मेरे ऊपर तो मुशीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है.” ऐसे ही में एक सज्जन हैं – शर्मा जी . सिर्फ शर्मा जी ही नहीं हैं , बल्कि शर्मा जी की तरह हमारे बीच अनेकों सख्स हैं . शर्मा जी की श्रीमती जब गर्भवती हो गयी तो घर – आँगन में खुशी का माहौल छा गया – सभी ने उम्मीद बाँध रखी थी कि लड़का ही होगा , लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था , लड़का न होकर लडकी हो गयी . लड़का होने से जो चेहरे में चमक होती है , वो घर के या बाहर के लोगों को नशीब नहीं हुआ .
माँ – बाप ने यह कहकर संतोष कर लिया कि चलो घर में लक्ष्मी आ गयी . बहन का मुंह लटका हुआ था – यह उसके मुखारविंद से ही पता चल रहा था . हंसकर या रोकर खुशियाँ मनाई गईं . छट्ठी के दिन न चाहते हुए भी मन मार कर एक उत्सव का आयोजन किया गया जिसमें विशेषरूप से ससुराल वालों को आमंत्रित किया गया और इस बात का ध्यान रखने की हिदायत कर दी गयी कि किसी भी तरह से उन्हें इस बात का पता न चले कि लड़की होने से घरवाले नाखुश हैं . शर्मा जी ऊपर से तो खुश नज़र आ रहे थे , लेकिन उनके बोडी लेंगुएज से साफ़ – साफ़ झलक रहा था कि वे भी लड़की पैदा होने से प्रसन्न नहीं है. श्रीमती शर्मा का भी चेहरा उतरा हुआ था इस बात को जानकार , जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए , क्योंकि माँ के लिए सभी बच्चे बराबर हैं – लड़का , क्या लड़की. श्रीमती शर्मा डेलिवरी पेन से तो निजात पा गयी थी पर एहसास किसी बुरे सपने की तरह खौफनाक अब भी बना हुआ था. यही यदि लड़का होता तो बहिश्त ( स्वर्ग ) का सुख एहसास होता .
इस कटु सत्य को मैं इस आधार पर शेयर करना चाहता हूँ कि जब मेरी श्रीमती जी को मालुम हुआ कि उसे लडकी हुयी है तो उसका दर्द दोगुना हो गया था और जब दूसरी बार उसे पता चला कि लड़का हुआ तो उसका दर्द रफ्फू चक्कर हो गया . जहां पहली बार मुझसे वह पेट दर्द का बार – बार शिकायत करती थी , वहीं दूसरी बार इस पर कभी चर्चा ही नहीं की. मैंने अपनी पत्नी से सवाल भी कर दिए , लेकिन वह चालाकी से टाल गयी थी. मैंने भी उससे दुबारा सवाल करना उचित नहीं समझा . जो भी हो मैंने निष्कर्ष निकालने में कोई चूक नहीं की थी कि माँ भी लड़का ( पुत्र ) होने पर निहायत खुश होती है. ऐसा क्यों होता है , यह विषय मनोविज्ञान का है और मेरे विचार में इस पर शोध होना चाहिए.
शर्मा जी की पत्नी पुनः गर्भवती हुयी तो घरवाले शशंकित थे कि कहीं इसबार भी लडकी न हो जाय. लड़का होगा कि लडकी होगी पूर्वानुमान ही लगाया जा सकता है , भविष्यवाणी नहीं की जा सकती . शर्मा दंपत्ति भी आश्वस्त नहीं थे . सक कुछ भगवान की मर्जी पर छोड़ दिया गया. दिन और समय आ गया . इस बार भी शर्मा जी को लड़की हुयी . अब तो घर में एक तरह से मातम का माहौल छा गया. लोग खुलकर अपना – अपना विचार प्रकट करने लगे. महिला चिकत्सक ने शर्मा जी को परामर्श दी थी कि वे पत्नी का बंध्याकरण ( Sterilization ) करवा दे , लेकिन सास के दबाव में आकर ऐसा करना मुश्किल हो गया. वक़्त के साथ – साथ इस प्रकार लड़के की चाहत ने शर्मा जी को पांच बेटियों का पिता बना दिया . जब पांच हो ही गईं तो एक बार और प्रयास किया जा सकता है – यह सोचकर आशा व निराशा के बीच श्रीमती शर्मा पुनः गर्ववती हो गयी .
ईश्वर की लीला को कौन जान सकता है ? इस बार एक लड़का और एक लड़की याने जुड़वाँ (Tween Babies ) बच्चे पैदा हुए . थोड़ी खुशी , थोड़ा गम का माहौल घर में हो गया . लोगों ने यह कहकर संतोष कर लिया कि जो ईश्वर करते हैं , सब अच्छे ही करते हैं . बड़े ही धूम – धाम से छट्ठी मनाई गयी . इस बार सबों ने एक स्वर से बंध्याकरण ( Sterilization ) के लिए ‘हाँ’ कर दी . शर्मा जी एवं श्रीमती शर्मा को भी कोई आपत्ति नहीं हुयी .
यह कहानी का पहला अध्याय है , दूसरा अब शुरू होता है :
शर्मा जी एक निजी कंपनी में लेखापाल ( Accountant ) हैं . मेरे घर के पास ही किराए के मकान में रहते है. घर का किराया कंपनी दे देती है , लेकिन घर खर्चा तो उन्हें ही चलाना पड़ता है. गाँव में माँ – बाप एवं बहन है . पिता जी पेंशन की राशि से मैनेज कर लेते हैं . शर्मा जी को छ लड़कियों एवं एक लड़के के खान – पान , कपड़े – लत्ते , सौन्दर्य प्रसाधन , पढाई – लिखाई , पर्व – त्यौहार , दवा आदि में मासिक क्या खर्च होता होगा , आप अनुमान लगा सकते हैं . उनका मासिक वेतन करीबन पद्रह हज़ार रुपये हैं . वे घर खर्च को कैसे मैनेज करते हैं , यह सोचनेवाली बात है. गंभीर चिंता का विषय है. समस्या ही समस्या है . रविवार को साप्ताहिक अवकाश रहता है , लेकिन इनके लिए बारहों महीने , तीन सौ पैंसठ दिन काम रहता है. क्या ग्रीष्म , क्या शरद, क्या बसंत , क्या वर्षा – सभी ऋतुएं एक समान है. दूर से ही शर्मा जी को पहचान सकते हैं . छरहरा बदन – लम्बे , गोरे – चिट्टे , दुर्बल काया , दोनों गाल चिपके हुए , सर के बाल आधे काले आधे सफ़ेद , आँखों पर मोटे फ्रेम के चश्में , चेहरे पर चिंता की रेखाएं .
आज किसी वजह से जिले भर में बंदी है. शर्मा जी फुरशत में हैं . मेरे पास आकर बैठ गये . मैंने ही बात प्रारंभ की :
शर्मा जी ! कैसे आना हुआ ? वो भी महीनों बाद .
क्या बताऊँ आप को ? इधर काफी मुशीबत में था .
किस बात से ?
एक रहे तब न बताऊँ ? एक समस्या सुलझाता हूँ , तबतक दूसरी आ जाती है .. बस इसी तरह … आप तो सब कुछ जानते हैं . आप से क्या छुपाना ! इधर दो पार्ट टाईम काम भी पकड़ लिया है , इसलिए कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहता हूँ . बच्चियों को भी बच्चे की तरह ही समुचित शिक्षा देनी है ताकि पढ़ – लिखकर काबिल हो जाय , अपने पैरों पर खड़ी हो जाय , उपयुक्त घर – वर मिले .
आपका यह विचार तो प्रशंसनीय है , काबिले तारीफ़ है.
आप से अपना दुखड़ा सुनाता हूँ तो मन का बोझ हल्का हो जाता है , भले ही कुछेक घंटों के लिए ही क्यों न हो .
मुझसे एक बड़ी भूल , गलती हो गयी . मुझे परिवार नियोजन दो , नहीं तो तीन बच्चियों के पैदा लेते ही करवा देना चाहिए था . मुझे किसी की सलाह नहीं माननी चाहिए थी , यहाँ तक कि सासू जी का भी नहीं . अब देखिये , मैं पीस रहा हूँ साथ – साथ बेचारी पत्नी भी . वो तो बच्चियों के पीछे सती हो गयी है. दिन – रात कोल्हू के बैल की तरह खटती रहती है. मुझसे देखा नहीं जाता , सोचता हूँ कि आत्महत्या … ?
ऐसी घिनौनी बात सपने में भी आपको नहीं लानी चाहिए . मुशीबत किस पर नहीं आती ! मुशीबत से न तो घबड़ाना चाहिए न ही दुनियादारी से भागना चाहिए , बल्कि एक पुरुषार्थी की तरह विषम परिस्थितियों में भी डटकर मुकाबला करना चाहिए.
शर्मा जी ! अब जो गलती हो गयी सो हो गयी , अब पछताए होत क्या , जब चिड़िया चुग गयी खेत !
बच्चियों को समुचित शिक्षा दीजिये . मुझसे जो मदद होगी मैं करूंगा , वादा करता हूँ .
आप पर मुझको बहुत भरोसा है . दो बच्चियों का एड्मिशन पैसे के अभाव से नहीं हो पाया है .
कितने रुपये देने हैं ?
इंग्लिश मीडियम स्कूल है , इसलिए फीस कुछ ज्यादा ही है . तीन हज़ार सात सौ .
अभी मैं देता हूँ . चिंता की कोई बात नहीं है . जैसे आपकी बेटी वैसी मेरी .
पहले मुंह – हाथ धोईये . भाभी जी के हाथ से बने आलू परोठे खाईये . चाय पीजिये कमफोर्टेबुल फील कीजिये . ज्यादा टेंसन लेने की आवश्कता नहीं है.
हमने खुलकर दुःख – सुख की बातें की . हंसी – मजाक भी हुआ कि कैसे वक़्त निकाल पाते हैं भाभी जी के लिए … ?
मैं तो मौका देखकर … और आप ?
घर में मैं और आप की भाभी , बस दो ही जन हैं , जब मन चाहे , वक़्त निकाल ही लेता हूँ , सभी लड़के बाहर काम करते हैं , साल में एक आध बार आ जाते हैं . ऐसे फोन और मेल से समाचार का आदान – प्रदान होते रहता है.
हमने साथ – साथ जलपान किया . बड़ा आनंद आया . जाते वक़्त मैंने चार हज़ार रुपये शर्मा जी को थमा दिए . उनके चेहरे पर जो खुशी देखी आज मैंने , मेरा मन प्रफुल्लित हो गया इस कदर कि मैं उसे लफ्जों में बयाँ नहीं कर सकता !
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २ अगस्त २०१३ , दिन : शुक्रवार |