खाली पेट और बुझी आग से कुछ आये या ना आये, नींद जरूर नहीं आती….ऐसी ही बिना नींद वाली रात का सामना कर रही थी मोती और उसकी माँ. वैसे तो उनको आदत है बिना कुछ खाए-पिए सोने की, लेकिन आज मोती-माँ से नाराज़ है.
मोती… अपने नाम की तरह…. सुन्दर, चंचल, काले बिखरे बाल और मोती जैसी आँखों वाली ..5 फीट लम्बी, दुबली-पतली 14 साल की लड़की.. . मोती. अपने कद से लम्बी सफेद फ्राक….सफेद या धुमेली कुछ कह नहीं सकते….
बाप को देखा नहीं था और बड़ा भाई किसी बीमारी के चलते कुछ महीनों पहले ही चल बसा…रह गए थे तो बस मोती – माँ और उनकी गरीबी…..दिन भर दोनों मजदूरी करते और शाम को शहर के 1 फूटपाथ पर सो जाते.
मोती हमेशा से इतनी गरीब नहीं थी की फुटपाथ पे सोना पड़े, उसका भी एक 4 ईंटो वाला घर था या हमारी भाषा में कहे तो झोपडी थी…लेकिन एक दिन किसी बड़ी बिल्डिंग बनाने का आदेश आया और फिर…..वो बिल्डिंग उनका घर खा गयी. अजीब बात है की उस बिल्डिंग को बनाने में लगे मजदूरो में से मोती का परिवार भी था, आखिर छत्त तो चाहिए थी ना….बिल्डिंग बनकर खड़ी हुई और सारे मजदूर चले गए…ऐसा लगा जैसे उनका अस्तित्व था ही नहीं, ये ऊंची इमारत तो जैसे किसी जादू से बना दी गयी हो.
मोती कहाँ जाती… उसका घर तो यहीं था….
“मोतिया…. मोतिया… देख मेरी अम्मा का लायी है ”
आँखों को मलते हुए मोती उठी, तो सामने खुशी थी… पर ये वो खुशी नहीं थी जो वो चाहती थी, ये तो उस फूटपाथ पर सोने वाली रूपा ताई की बेटी का नाम है, जो मोती की दोस्त भी है..
“मेरे संगे चल, तोये 1 चीज़ दिखायें..” कहते हुए खुशी उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी
“हम नहीं जाए रहे कहूँ.. सोअन दे” कहते हुए मोती ने फिर से आँखे बंद कर ली
“देख तो चलके.. अम्मा रज़ाई लायी है” खुशी की आवाज़ में खनक थी..
“रज़ाई… “ मोती के कानो में ये शब्द गूंजा,
“कां है ?” मोती ने पूछा
खुशी ने मोती का हाथ पकड़ा और कहा “चल..” और घर की तरफ दौड़ गयी.
( घर… ??? जी ये फूटपाथ का कोना है, आखिर सड़क पर सोने वालों के लिए वो सिर्फ 1 सड़क नहीं होती.. घर ही तो होता है )
खुशी मोती को अपने घर लायी.
मोती ने देखा कि रूपा ताई मुस्कुरा रही है, मुसकुराते हुए उन्होंने रज़ाई की तरफ इशारा किया जो उन्होंने ओढ़ रक्खी थी. एक छोटी सी रज़ाई, जिसकी ऊन अब बिखरे सीपों की तरह थी.
कहीं बड़ी सीप कही छोटी….. और बहुत सी जगह कुछ भी नहीं…
“कैसी है ? ” ये खुशी थी
“बहुत अच्छी..” मोती ने धीमी आवाज में कहा और एक टक उसको देखती रही..
उसे अपने पुराने घर की याद आ गयी …. वहां उसके पास भी एक रज़ाई थी जिसमे वो- माँ और उसका बड़ा भाई दिन भर काम से थक कर जैसे ही रज़ाई में पैर डालते, सारी थकान दूर हो जाती.. और ठंड….ठंड का तो पता ही नहीं चलता था…
लेकिन खुशी अगर ज्यादा देर तक टिक जाए तो वो खुशी ही कैसी ? 1 दिन जब उसके भाई की तबियत खराब हुयी तो… माँ ने डॉक्टर की फीस देने के लिए सब कुछ बेच दिया..
रज़ाई भी…
मगर उस बीमारी ने उसके भाई को ऐसे पकड़ा कि फिर….छोड़ा ही नहीं…..
“अम्मा !! खुशीया जैसी रजाई लाये देओ” आशावादी नज़रों से मोती ने माँ से कहा.
“हमाये पास रुपया टक्का नाइ है, दोए वखत को खाना मिल जाए वही बहुत बड़ी बात है..” अम्मा ने लगभग चिल्लाते हुए कहा.
“अम्मा कल नओ साल है.. बस रजाई लाये देया.. हम पुरे साल कछू नहीं मांगिये..” मोती ने फिर से कहा
इस बार अम्मा चुप थी… सोच रही थी की ” ठंड बढ़ रही है.. और रात में सर्दी भी बहुत लगती है..”खुला आसमान चादर की तरह तान तो सकते है लेकिन इसमें से गिरने वाली ओस की बूंदो से नहीं बच सकते…
कुछ सोचते हुए माँ ने फिर कहा..” नाइ…..अबे नाइ, जब पैसा हुई जाएगा तब लाये दिये”
” नहीं हमे अबे चहियें ” रोनी सूरत बनाकर मोती बोली…
“कहाँ से लाये दे” कहते हुए माँ उठी और चली गयी….
मोती उदास हो गयी…उस रात दोनों ने बात नहीं की…नाराज़गी…अक्सर बच्चो को भी बड़ा बना दिया करती है..अगली सुबह हुई, रोज की तरह मोती उठी और आँख मलते हुए देखा तो उसकी खुशी रुक ना सकी
वो रजाई में थी !! पास में बैठी माँ उसको खुश होता देखकर मुस्कुरा रही थी.
“कित्ती अच्छी है….बिलकुल खुशीया जैसी…” रजाई पर अपने सर को रखते हुए मोती बोली
“कहाँ ते लायी” उसकी आँखों में चमक थी.
माँ ने बात घुमाते हुए कहा “ऊपर आसमान में बैठे बाबा ने दई.. वो सब देखत है… कल तूने मांगी सो आज वाने दे दई”
अब वो ये तो नहीं कह सकती थी की 2 दिन बाद ये रज़ाई रूपा ताई को वापस देनी है…आज आम रात के मुकाबले ठण्ड ज्यादा थी. मोती और उसकी माँ रोज की तरह रोड के किनारे, धरती पर 1 पुराना कम्बल बिछाये, और खुले आसमान के नीचे सो रहे थे
देर रात मोती ने कुछ महसूस किया, वो उठी तो देखा की माँ ठिठुर रही है उसके दांत किट-कीटा रहे थे. माँ बीमार थी, आज सुबह से ही वो कुछ खायी भी नहीं. वैसे तो ये हर साल होता है पर इस बार लगता है की माँ ज्यादा जी नहीं पाएगी….
कितनी बार लोगों को कहते सुना था “किसी सरकारी हॉस्पिटल में इलाज़ क्यों नहीं करवा लेती ?”
मगर रोड पर सोने वालों के लिए कोई डॉक्टर भी कहाँ होते है…..उनका तो घर और अस्पताल सब वही फूटपाथ का कोना ही तो होता है. मोती माँ को सहज ही देखे जा रही थी… कुछ सोचते हुए उसने, पुरानी और मटमैली रजाई से खुद को निकाला और माँ को ढक दिया,
और खुले आसमान की तरफ देखने लगी, जैसे बाबा से पूछ रही हो “क्या अब माँ ठीक हो जाएगी…?”
वो आसमान की तरफ देखे जा रही थी.. उसे आसमान के बादल रज़ाई में भरी रुई जैसे लग रहे थे. सफेद… मुलायम… रुई जैसे बदल… थोड़ी देर बाद उसने माँ की तरफ करवट ली, माँ अब आराम से सो रही थी, रजाई ओढे….
मोती मुस्कुराई….वो मटमैली और फटी हुई रजाई…मोती ने धीरे धीरे आँखे बंद कर ली और… फिर क्या देखती है कि नए साल के दिन सब लोग उससे मिल रहे है और तोफेह में रजाइयां- कम्बल दे रहे है. ढेर सारी सफ़ेद और मखमली रजाइयां..
वो बहुत खुश है क्योंकि उसे सबसे ज्यादा रजाइयां मिली है, अब वो और उसकी माँ आराम से सो सकेगी. बिना सर्दी के….मौसम बिगड़ता जा रहा था.. आसमान नीला और वर्फ सा ठंडा हो रहा था हवाओं ने भी रफ़्तार पकड़ ली थी, मगर मोती आँखे बंद किये मुस्कुरा रही थी सपने में ही सही लेकिन आखिर उसने रजाई जो ओढ़ रख्खी थे.
नए साल की सर्द सुबह हुयी.
मोती की माँ जागी तो देखा,
“नए साल मुबारक हो” का तो जैसी नारा चल रहा था, सब तरफ लोग एक दूसरे के गले मिल रहे थे.
फुटपाथ-वासियों ने भी सुबह से ही काम ढूढ़ना शुरू कर दिया था. वो कहते है ना… कि नए साल की शुरुआत जिस काम से करे तो वो पुरे साल होता है. ये लोग भी कोई काम करना चाहते थे, आखिर गरीबी और भीख माँगना किसको पसंद है.
” उठ जा री मोती, सुबह हो गयी. काम पर नहीं चलना है” मोती को जगाते हुए माँ बोली
मोती नहीं जागी… माँ ने फिर से आवाज तेज कर के कहा..” मोतिया…चल उठ जा..”
रोज माँ की एक आवाज़ से उठ खड़ी होने वाली मोती तो जैसे आज माँ की 1 नहीं सुन रही थी.. शायद काम पर जाने का मन नहीं था… इस बार मां ने मोती का कंधा हिलाते हुए बोली “काम नहीं करेगी तो खायेगी क्या….” कहते हुए उसकी आवाज़ रुंध गयी….
आस पास के अन्य साथियों ने सुना तो भागकर मोती के पास आये. किसी ने उसकी नब्ज देखी तो किसी ने उसकी रुकी हुई साँसे….माँ जोर जोर से चिल्ला रही थी
“का हुआ मेरी मोतिया को.., का हुआ मेरी बिटिया को…”
मोती का शरीर ठंडा था…लेकिन चेहरे पर अब भी एक हल्की-सी मुस्कुराहट थी
“सर्दी ने एक और जान ले ली…” कहते हुए मैं भी दुसरो की तरह आगे बढ़ गया.
मुझे भी कहाँ पता था की मोती मरी नहीं है, वो तो बस सो रही है…अपने सपनो की रजाई में…..
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