जिम्मेदारी(Responsibilities): This Hindi story about those people who are devoted to their family. When he opposes violence against his wife, both were evicted from Maanav’s family house.
‘रुपा! ये क्या कर रही हो? डेहरी के पैर क्यू छू रही हो?’
मानव ने बड़े आश्चर्य से रुपा की ओर देख के बोला।
‘ मानव! मेरी माँ ने मुझे सिखाया है कि अगर सास ना हो तो घर की डेहरी के पैर छूना।’ डबडबाई आँखों से मानव की ओर देख के बोली।
फिर दोनों अपने सामान उठाएं और main गेट की ओर चल दिए। मैन गेट के बाहर आते ही मानव ने घर की ओर निहारा, मानव की आँखों से तेजी से आंसू बहने लग गए मानो किसी ने बाँध तोड़ दिया हो किसी नहर का। आंसू थे जो थमने का नाम नही ले रहे थे। ये घर उससे हमेशा के लिए जो छूट रहा था। उसके ‘अपने’ जो दूर जा रहे थे उससे, शायद जा ही चुके थे।
मानव अपनी माता पिता की एकलौती पुत्र संतान था और उसकी दो बहिने भी थी। मानव ने अपने 35 वर्षो में कभी अपने बारे में नही सोचा। उसको तो बस एक धुन सवार थी अपनी जिम्मेदारी निभाने की। वह एक आदर्श पुत्र ही नही बल्कि एक आदर्श भाई भी था, कोई भी माता पिता, बहने ऐसा भाई पुत्र पा के अपने को धन्य समझते। 35 वर्षो के बाद उसके जीवन में खुशियाँ आई थी रुपा के रुप में। उसे पा के मानव को लगा मानो वर्षो की तपश्या सफल हो गई हो। रुपा जो एक आदर्श बहु भाभी ही नही एक आदर्श पत्नी भी थी। रुपा ने भी आते ही मानव की तरह अपनी जिम्मेदारी निभाने लगी थी। पर कहते है न कि जिसके पास जो चीज होती है उसे उसकी कदर ही कहा होती है।मानव ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसकी जिम्मेदारी निभाने की कीमत इस तरह से मिलेगी।
बस हर वक़्त सबसे खुद से यही पूछता रहा कि उसकी गलती क्या थी? कहा कमी रह गई जिम्मेदारी निभाने में? मानव डिफेंस में जाना चाहते थे। वो उसका ख्वाब था, पर पापा की अचानक तबियत खराब होने की वजह से परीक्षा देने कहा जा पाया था वो, फिर तो दिन रात एक कर दी थी सेवा करने में। उसकी गलती बस इतनी ही तो थी कि उसने अपना पति धर्म जो निभाया था। क्या गलत किया था उसने बस अपनी पत्नी के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ ही तो उठाई थी बस। उसे और उसकी पत्नी को घर परिवार जायेजाद सबसे बेदखल कर दिया गया। जो भी हो रहा था वो बुरे ख्वाब से कम कहा था दोनों के लिए। कितना फूट- फूट के रोया था मानव। ‘अपनों’ की आँखों में खुद के लिए इतनी नफरत सह नही पा रहा था वो।
मानव तुरंत गेट से सड़क की ओर पलटा…रुपा! चलो अब यहाँ से।’ मानव ने आँखों से आंसू पोंछे और दोनों तेजी से वहां से चल दिए…साथ अपनी जिम्मेदारियों कीमत ले के जा रहे थे दोनों..।
*समाप्त*