सफेद रंग के सात रंग
“मुस्कान, ज़रा नीचे आना।”
“जी बाबूजी” कहती हुई मुस्कान नीचे आ गई ।
” बेटा, ये तुम्हारे मौसा जी के चाचा है। पैर छुओ इनके।”
“नही बेटा, श्यामा प्रसाद, बेटियाँ पांव नही छुती।”
“जी जी। मुस्कान, चाचा जी दूर से आए है, बढ़िया चाय नाश्ते का प्रबंध करो। और अपनी मा से कहना खाने मे नमक मिर्च कम दे।”
“श्यामा बेटा, मुस्कान इतनी बढ़ी हो गई है और घर पर बैठी है?”
“चाचाजी, इसके कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई है । अब आगे की तैयारी चल रही है।”
“अहा। श्यामा, तेरी बेटी इक्कीस की हो गई है, इसके पढ़ाई की छोड़ और इसके हाथ पीले करने की सोचो। कोई लड़का है तेरी नज़र में?”
“चाचाजी कोशिश तो यही है पर आजकल शहरों में अच्छा घर-वर मिलना काफी मुश्किल है । और मुस्कान ठहरी शहर में पली बढ़ी। घर के काम तो जानती है। प्रतिभाशाली है पर गाँव मे निभा नही पाएगी।”
“हूं। वैसे मेरी नज़र मे एक लड़का है सुनील। सांख्यिकी में एम ए है। और प्रशासनिक क्षेत्र की तैयारी मे जुटा है। तुम कहो तो बात आगे बढ़ाते है। अगर लड़केवाले चाहे तो पढ़ेगी आगे। रविवार को बुला लूं?”
“जी चाचाजी जैसा आप सही समझे।”
“मुस्कान, मै जानता हू कि अचानक इस रिश्ते की बात सुनकर तुम नाराज हो। अगर कुछ कहना है तो बिना डरे अपने मन की बात कहो।” शाम की चाय की चुस्की लेते हुए श्यामा प्रसाद ने मुस्कान से पूछा ।
“बाबूजी मै नाराज़ नही हूँ पर अगर मै अपने पैरो पर खड़ी हो जाती तो अच्छा होता।”
“बेटा, तेरी मर्जी के खिलाफ कुछ नही होगा। याद रखना सफेद रंग के भी सात रंग होते है । और ज़िंदगी के भी। खुशी, गम, प्यार, भरोसा, भाग्य, कर्म और इम्तिहान। इन सब रंगो से सराबोर होती है जिंदगी। अपने पर और अपने परिवार पर भरोसा रखो। कुछ गलत नही होगा।”
श्यामा जी चाय की प्याली लिए अंदर चले और मुस्कान उदास क्षितिज को ताकती रही।
रविवार की शाम आई। दोनो परिवार की सम्मति से दो लाख रुपए , तिलक के साथ मुस्कान और सुनील का रिश्ता भी तय हो गया।
एक हफ्ता बीत गया और सुनील के पिताजी घर आए।
“अरे विसंभर जी, आइये बैठिए। बढ़ी खुशी हुई आपको देखकर।”
“श्यामा जी, पहले आप मुँह मीठा कीजिए ।”
“ये मिठाई किस खुशी मे?”
“बड़ी प्रसन्नता एवं गर्व से आपको सुचित करता हूँ कि सुनील का चयन बी डी ओ के पद पर हो गया है। आपकी सुपुत्री लक्ष्मी स्वरूपा साबित हुई है। परंतु आजकल रिश्तेदारो ने कोहराम मचाया हुआ है। हर दिन कोई नया रिश्ता ले आते है। अब कल ही की बात है । मेरे चचेरे बहनोई अपने भतीजी का रिश्ता ले आए। पच्चीस लाख रुपए तिलक की भी बात कर गए।”
“अच्छा। आपने इस बारे मे क्रया सोचा है?”
“श्यामाप्रसाद जी, कैसी बाते कर रहे है आप? अब जुबान भी कोई चीज होती है। पर…”
“पर?”
“अब घर की औरतो को क्या कहूँ? भावना जी पीछे पड़ गई । कहने लगी इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई । पर मैने तो साफ साफ कह दिया कि मुस्कान जैसी सुंदर और सुशील कन्या और ऐसा घर परिवार विरले ही मिलते हैं।”
“हूं”
“और फिर चौधरी जी, आप प्रतिष्ठित भी है और समझदार भी है । समाज के रीति रिवाज बखूबी समझते है। अब आज्ञा दीजिए । प्रणाम ।”
“इतना कुछ कह गए समधी जी और आपने कुछ कहा क्यों नही? कहाँ से आयेंगे इतने पैसे?” कृपा जी झूठे कप उठाते हुए बोली ।
“बेटी के बाप को सोच विचार कर बोलना होता है । ताकि बाद में बिटिया को कुछ सुनना ना पढ़ जाये।”
“सच कहूं तो मुझे शुरू से ही परिवार पसंद नही था। न जाने क्यूं चाचाजी ने जल्दबाजी में तिलक करवा दिया ।
” भाभी ये मिठाई का डब्मुबा खुला छोड़ दिया आपने?”
“ले जा इसे शांति। इसका स्वाद अब कड़वा हो चुका है ।”
“मुस्कान की तो अभी से रो रो कर हालत बुरी है । न जाने आगे क्या होगा मेरी बच्ची का?”
“रूको मै देखता हूँ।”
खामोश बैठी मुस्कान को श्यामाप्रसाद ने सांत्वना देने की कोशिश की ।
तीन दिन बीत गए और विसंभर जी आज फिर आए पर आज उनके चेहरे का रंग उतरा हुआ था।
“श्यामा प्रसाद जी, अगर आपको मेरी बात बुरी लगी थी तो हमे बताते, रिश्ता तोड़ने की क्या जरूरत थी? ”
“विसंभर जी, मैने आपके किसी भी बात का कोई बुरा नही माना। सुनील काफी होनहार लड़का है । पर बात यह है कि मुस्कान का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी के पद पर हो गई है। और वो अपने से कनिष्ठ पदाधिकारी के साथ शादी करने की इच्छुक नही है।और फिर समाज के लोग भी बाते बनाएंगे । इसलिये दोनो बच्चो के भविष्य के लिए बड़े दुखी मन से यह रिश्ता तोड़ना पड़ा।”
“भाई साहब, शायद सुनील और मुस्कान का रिश्ता बना ही नही था। पर हा बेटी के अफसर बनने की खुशी मे आप मुँह मीठा ज़रूर कीजिए।” मिठाई का डिब्बा लिए कृपा जी मुस्कुरा रही थी ।
विसंभर जी रूवांसे से वही खड़े रहे।
श्यामा प्रसाद बड़े गर्व से अपने बेटी के नाम का नेम प्लेट साफ कर रहे थे।
मुस्कान अपनी ज़िंदगी के सफेद चादर में लिपटे सात रंगो को देखती रही। आज उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
–END–