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Say Good For The Good

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag election | leader | politics | wife

शुभ – शुभ बोलो  – Say Good For The Good (Read Hindi story: In local election, period to use loudspeaker is over. General public is feeling better now but Gopal is still looking sad & worried)

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Hindi Story – Say Good For The Good
Photo credit: jdurham from morguefile.com

नगर निकाय के चुनाव में उम्मीदवारों ने जो शौर मचा रखा था , वह शांत हो गया तो आमलोंगो ने चैन की सांस ली. , लेकिन गोपाल बाबू के दुखों का अंत नहीं हुआ क्योंकि अब घर-घर जा कर चुप- चुप प्रचार करने का वक़्त आ गया था. क्या था क्या हो गया ? अब तो रूटीन बन गयी है. शुबह उठकर झाड़ू- बुहारू करना, बच्चों को नहला –धुलाकर तैयार करना, उनके लिये नास्ता-पानी बनाना, उनका टिफिन सरियाना , फिर उन्हें बस स्टॉप तक स्कूल बस में चढ़ा कर घर लौटना. मैं अकेला जीव , क्या – क्या करूँ ? पेट के लिए काम- धाम करना ही पड़ता है. सबको तो मनाया जा सकता है , लेकिन पेट को नहीं. पेट तो चंडाल होता है , चंडाल . चिरकुंडा चेक-पोस्ट के पास उसकी चाय-पकौड़ी की दुकान है. खूब चलती है. यह नाका बंगाल और झारखंड के बोर्डर पर अवस्थित है. जी.टी.रोड के जस्ट बगल में. चूँकि दिल्ली से कोलकाता तक फोर लेनिंग की सड़क है , चेकिंग हेतु ट्रकों की लम्बी क़तार लग जाती है. मैंने तो कभी नहीं देखा , लेकिन लोग कहते हैं कि यहाँ बारहों महीने चहल – पहल बनी रहती है. गोपाल बच्चों से फारिग हो जाने के बाद सीधे दूकान चला आता है , फिर दो बजे घर लौटता है जब बच्चों का स्कूल से आ जाने का वक़्त हो जाता है. गोपाल को ज्यादा कमाने की हवश नहीं . उसकी सिर्फ दिली ख्वाईश है कि बच्चे पढ़ लिखकर इंजिनियर या डाक्टर बन जाय. उसने बहुत से लोगों को अपनी छोटी सी जिन्दगी में देखा कि जो माँ – बाप पैसों के पीछे भागते रहे , उनके लड़के जिंदिगी की दौड़ में पिछड़ गये .
जब उसने अपना दुखड़ा सुनाया तो रामखेलावन का पत्थर का दिल पसीज गया. पूछ दिया , ‘ गोपू भाई ! तेरी घरवाली बीमार है क्या ? या झगडा – झंझट कर मैके चली गयी है ?

इतना सुनते ही गोपाल फूट फूट कर रोने लगा . सिसकते हुए बोला , ‘ उसकी बातें न पूछिये तो ही अच्छा है .मैं बर्बाद हो गया .उसे आजकल एक अलग किस्म का नशा चढ़ा हुआ है. वह चुनाव में खडी है . क्या शुबह , क्या शाम हर समय प्रचार – प्रसार में निकल जाती है – गली – गली , मोहल्ले – मोहल्ले – वोटरों की चिरौरी – विनती करने .पता नहीं कहाँ से सहेलियों – सखियों का झुण्ड खड़ा कर लिया है. देर रात तक लौटती है घर , जब बच्चे सो जाते हैं . उधर ही खाना – पीना होता है उसका . इधर जो घर का हाल है , उसे देखकर रोना आता है मुझे. दिमाग काम नहीं करता कि ऐसे हालात में क्या करना चाहिए या क्या नहीं .मैंने तो जुझारू किस्म की लडकी से शादी इसलिए की थी कि वह घर और बाहर दोनों मोर्चों पर बहादुरी के साथ लडेगी और सारे संकट दूर कर देगी , कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके जुझारूपन का परिणाम ऐसा निकलेगा. वह चुनाव में खडा हो जायेगी . रामखेलावन भाई ! मुझे राजनीति से नफरत है. जिसके घर में यह घुसी , निगल गयी सब को – चाहे देर चाहे सबेर . मुझे बड़ा डर लगता है कि बूरे शोहबत में आकर लड़के बर्बाद न हो जाय. तुम्हीं समझा सकते हो अपनी दुलारी बेटी ( मेरी पत्नी ) को . वह तुम्हारी बात जरूर मानेगी . ‘

देखो गोपू ! एक बात तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि एक बार औरत का पाँव घर से बाहर हो गया तो समझो हाथ से बेहाथ हो गयी . अब तो पानी सर के ऊपर चला गया है , कुछ भी किया नहीं जा सकता . कुछ भी उसे बोलोगे तो घर में बेवजह अशांति होगी – बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा सो अलग . जो करती है हंसकर झेलो . वक़्त का इन्तजार करो . साईं को याद करो . जब झटका लगेगी तो सबकुछ नार्मल हो जायेगा . बच्चों का ख्याल रखो . उन्हें दिल से प्यार करो और अशुभ बात दिल से निकालकर फेंक दो . बीवी के बारे में अन्यथा मत सोचो, उसे भी उसके कामों में सहयोग करो . उससे विमुख होना घर –गृहथी के हेल्थ के लिए अच्छी बात नहीं . उसे समझो , भरपूर प्यार दो . साईं के दो अनमोल वचन हैं – श्रध्दा और शबूरी . समझो व जीवन में उतारो इसे . सबकुछ ठीक हो जायेगा एक दिन – ऐसा मुझे विश्वास है.

देखा उसका उदास चेहरा शनैः – शनैः प्रफुल्लित हो रहा है . फिर भी मेरे मन में उत्सुकता जाग उठी थी यह जानने के लिए कि यह सब हुआ कैसे ? मुझसे रहा नहीं गया और पूछ बैठा .

‘ गोपू ! यह सब हुआ कैसे ?

‘ क्या बताऊँ ! विवाह के बाद ही वह मोहल्ले की औरतों से दोस्ती करने लगी . उनके दुःख – सुख में शरीक होने लगी. उनका दिल जितने लगी – अपने कार्य एवं व्यवहार से . फिर क्या था घर में ही बैठकें एवं सभाएं होने लगी . समाज सेविका बन गयी .पूरे शहर के दुःख व कष्ट से दुबली होने लगी. पुरुष भी इन बैठकों व सभाओं में आने लगे. फिर उसने यूनियन बना लिया और उसी में रातों – दिन संलिप्त हो गईं . अब तो ऐसी समर्पित हैं कि उसे घर – परिवार की कोई चिंता नहीं. अब तो वह चुनाव में भी खडी हो गयी है. बस, चुनाव ही चुनाव का धून सवार है उसपर. पता नहीं वह चुनाव में जीतेगी या नहीं , लेकिन एक बात दीगर है दोनों हालतों में मैं ही हार जाऊँगा .’

“गोपू ! मन छोटा मत करो इस प्रकार हार नहीं मानते, जो वीर होते हैं . तुम स्वामी विवेकानंद , परमहंस रामकृष्ण के प्रान्त के हो. बहादुरी के साथ मैदान में डटे रहो और प्रतिकूल परिस्थितयों का डटकर मुकाबला करो . यही वक़्त का तकाजा है . मैं मानता हूँ कि घर-गृहस्थी संभालना भी कोई रणभूमि से कम नहीं होता . तुम वीर हो – बहादूर हो . तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम्हें इतनी जूझारू पत्नी मिली है.”

मैं उस दिन गोपू को समझा- बुझाकर चल दिया . देखा जो चेहरा म्लान था , अब खिल उठा है . शुबह ही वह चला आया मेरे पास . काफी खुश नज़र आ रहा था . चौकी पर बैठ जाने का इशारा किया तो वह बैठ गया . मैंने झट दो कप चाय बना कर ले आया . एक कप उसे थमा दिया और दूसरा स्वं लेकर बगल में बैठ गया . चेहरा खिला – खिला सा प्रतीत हो रहा था .

गोपू ! बड़ा खुश दीख रहे हो ? क्या बात है ?

दादा ऐसी बात ही है. आप को बताने चला आया .

तो देर किस बात की ? बता डालो . सुनकर मुझे भी खुशी होगी .

‘ दादा ! बता रही थी कल आप उससे ( मेरी पत्नी ) मिले थे . क्या जादू आप ने कर दिया ? आज रात को वह जल्द ही घर आ गयी. मेरे पास आकर बैठ गयी और गले में हाथ डालकर बोली, ‘ आप काहे को चिंता करतें हो जी ? चुनाव होने में अब कुछ ही दिन तो बाकी हैं . चुनाव जितना तय है. एकबार जीत गयी तो सब शुभ – शुभ ही होगा . रही बात कष्ट की तो समझ लीजिये , अब आप का कष्ट दूर ही हुआ समझिये. तभी मोबाइल का रिंगटोन बजा पत्नी का . वह बोली , ‘ मीटिंग है. जरूरी है जाना . जा रहीं हूँ .एकाध घंटे में आ जाऊंगी .

वह चली गयी. लेकिन जल्द ही आ गयी. साथ – साथ खाना खाए हम . दोनों बच्चे माँ से घुल –मिलकर खूब बातें कीं . रात कैसे बीत गयी – हमें पता ही न चला. शुबह हुयी तो आप को शुक्रिया अदा करने चला आया . गोपाल उठा ही था पाँव छूने को कि रामखेलावन ने उसे गले से लगा लिया और बोले , घर जाओ. सब शुभ – शुभ ही होगा .

गोपाल तो चल दिया , लेकिन दादा की बातें उसके मन- मानस में छाई हुयी थी. मुड़ कर देखा तो पाया उनकी परछाईं थी जो उसकी पीछा कर रही थी. उसके कानों में बस एक ही आवाज गूंज रही थी , ‘ शुभ – शुभ बोलो . ’

****
लेखक : दुर्गा प्रसाद ,

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