सुन्दरी
ये तब की बात है जब मैं छोटा था. कोई चौदह पंद्रह साल का. हमारे गाँव में एक आदमी रहता था. नाम था विरजपाल. वह बहरा था तो जोर से बोलने पर सुनता था. लोग इसका फायदा उठा उससे मजाक किया करते थे. उसकी पत्नी भी थी. सुंदरी. नाम बेशक सुंदरी था लेकिन दिखने में आम महिला थी. शरीर पतला और छोटा कद. लोग उसे पागल समझते थे. कारण था उसकी हरकतें.
थोडा सा भी कोई चिड़ा दे तो गालियां देती थी. कुछ भी फेंक कर मार देती. कोई उसके दरवाजे पर पैर फटफटा कर जाता तो अंदर से कुछ न कुछ आ कर उसके ऊपर पड़ता. चिमटा, फूंकनी या चकरा-बेलन. जो हाथ में होता वही फेंक कर मार देती थी सुंदरी. इसी कारण लोग उसके दरवाजे पर पैरों की आवाज जरूर करके जाते थे. इस काम में कई लोग चोट भी खा चुके थे.
जब लोग शिकायत करते तो विरजपाल उसको मारता था और वो गालियां देती हुई रोती थी. सुंदरी के कोई बच्चा नही हुआ था. विरजपाल मजदूरी करता था. जब वह मजदूरी को जाता तो सुंदरी हमारे घर आ जाती थी और माँ के पास घंटो बैठी रहती थी. उनके सर में तेल डालती. चावल से कंकड़ निकलवाती.
कभी-कभी उसकी बात मुझे बहुत समझदारी भरी लगती थीं. सच बात तो यह थी कि उससे प्यार से बोलने पर वह बहुत खुश रहती थी. जब कोई उसे चिढाता तो गुस्सा करती. उसको एक ही साड़ी में हमेशा देखा था मैने. सोचता था कैसे रहती होगी एक ही साड़ी में? उसी को धो लेती फिर उसी को सुखाकर पहन लेती.
मोहल्ले में उसे कोई साड़ी दे देता तो रख लेती पर पहनती न थी. कहती अपने गाँव जाऊंगी तब पहनूंगी. मैं उसे चाची कहकर बुलाता था. एक बात और थी कि उसकी उम्र न मालूम पड़ती थी. मैंने जब से देखा तब से एक ही जैसी लगती थी.
एक दिन की बात थी. मैं घर के दरवाजे पर बैठा था. मेरे साथ चार पांच लड़के और थे. तभी सुंदरी ने मुझे बुलाया. मैं उसके घर गया तो उसने मुझे बताया कि उसके कमरे में भूत है. मैं भी थोड़ा डर गया. कमरा अंधेरे में डूबा था जबकि दिन छिपे का समय था. टार्च जलाकर डरते-डरते देखा तो कमरे में कुछ नहीं था.
फिर वह चूल्हे में बनी चिमनी में भूत बताने लगी. मैंने सोचा सुंदरी पागल हो चुकी है. मुझे एक शरारत सूझी. मैंने सुंदरी से कहा कि चिमनी और चूल्हे को तोड़ डालो, भूत अपने आप भाग जायेगा. सुंदरी ने ऐसा ही किया.
मैं और सारे बच्चे नांच-नांच कर चूल्हे को फोड़वाते रहे. उसके बाद हम घर चले आये. रात के समय विरजपाल मजदूरी कर लौटा तो उसने देखा कि चूल्हा और चिमनी टूटा पड़ा है. उसका माथा ठनक गया. क्योंकि विरजपाल ने दो दिन की दिहाड़ी छोड़ कर चूल्हा और चिमनी को बनाया था. उसने सुंदरी को बुलाकर पूछा, “ये सब किसने किया सुंदरी?” सुंदरी अपने ही अंदाज़ में बोली, “मैंने तोड़ा. इसमें भूत था तो तोड़ दिया.”
विरजपाल को काफी गुस्सा आया. उसने सुंदरी को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. मोहल्ले की औरतों ने आकर सुंदरी को बचाया. इसके बाद पंचायत बैठी. पंचायत ने विरजपाल से सख्त हो कहा, “अगर तुम इसे ठीक से नही रख सकते तो इसके घर छोड़ आओ. इस पर आत्याचार क्यों करते हो. कब तक यूं ही पीटते रहोगे बात-बात पर?”
विरजपाल सुंदरी को गाँव छोड़ने के लिए तैयार हो गया. उसने पंचायत से सुबह को सुंदरी उसके गाँव पहुंचाने का वादा कर दिया. दरअसल सुंदरी का गाँव बिहार में था. जिसे विरजपाल उसके घरवालों को पैसा दे कर खरीद लाया था. घर वाले गरीब थे. खाने को घर में था नहीं तो लड़की की शादी कैसे करते.
उन्होंने विरजपाल से पैसे लेकर सुंदरी को दे दिया. सुंदरी तब काफी छोटी थी और विरजपाल पूरा आदमी. बचपन में माँ-बाप का घर छोड़ना और विरजपाल की मार उसे पागल बना गयी. आज सुंदरी को घर जाने की ख़ुशी थी लेकिन वह ये न समझ पा रही थी कि घर जाकर क्या होगा. कहीं दोबारा बेच दी गयी तो! इस बात की उसको चिंता न थी.
विरजपाल दूसरे दिन उसे गाँव छोड़ने चल दिया. सारा गाँव उदास था क्योंकि आज सुंदरी जा रही थी. पूरे मोहल्ले की रौनक सुंदरी समेट कर ले जा रही थी. आज न तो गाँव का कोई आदमी उसे चिढ़ाता, न सुंदरी गालियाँ दे रही थी. वह तो खुश थी. सब औरतों के पैर छूती हुई चल दी.
हर एक आदमी औरत की आँखे भीगी हुई थी. मुझे भी रोना आ रहा था. सोचता था कि न मैं कल उसका चूल्हा तुड़वाता और न सुंदरी गाँव से जाती. फिर सोचा बड़ा होकर सुंदरी के गाँव जाऊंगा तब मिलूंगा उससे. बहुत खुश होगी सुंदरी मुझे मिलकर. अगर कहीं बेचीं न गयी. पैसे लेकर. इतने में सुंदरी आँखों से ओझल हो गयी.
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