एक दिन दोपहर में टीवी खोला तो दिखा रहे थे एक विद्यालय के अध्यापक को कुछ छात्र पीट रहे थे । मन खिन्न हो गया। बाद के प्रसारण से पता चला कि मामला ठेके पे नकल कराने का था । अध्यापक ने नकल कराने का वादा करके बहुत से छात्रों से हजारों रुपए एडवांस ले लिए थे । किन्तु सरकार नकल के प्रति सख्त हो गयी और छात्र नकल नहीं कर पाये । अतः छात्र अध्यापक से अपने रुपए वापस मांग रहे थे और वो आना कानी कर रहा था। मैंने टीवी बंद कर दिया । मैं सोच में पड़ गया कि किस को दोष दें अध्यापक को या छात्रों को । मुझे अपनी क्लास याद आ गयी ।
तब मैं 10वीं क्लास में था। मेरे दोस्त विजय ने एक दिन रात वाले शो में पिक्चर देखी थी। दूसरे दिन क्लास में उसको बहुत तेज नींद आ रही। नींद के कारण सर ढलक ढलक जा रहा था। आखिर में उसने अपना सर मेज से टीका ही दिया। बापू ने देख लिया सारी क्लास को चुप रहने का इशारा करके दबे पाँव रजीव के पास आये और मेज के नीचे से टांगों में दो तीन संटीयाँ मारीं । उनमें एक आध मुझको भी पड़ गयी। मैं उसके ठीक बगल मैं बैठा था । विजय हड़बड़ा के खड़ा हो गया । यादव मास्साब मोटे लैन्स का गोल फ्रेम वाला गांधी जी जैसा चश्मा लगाते थे और गंजे थे इसलिये छात्रों ने उनका नाम बापू रख दिया था किन्तु अहिंसा से उनका कोई वास्ता नहीं था । दो तीन संटीयों से मन नहीं भरा था ।
बापू विजय से बोले, “हाथ आगे करो । क्लास में पढ़ने आते हो कि सोने के लिये आते हो ”
हिन्दी मीडियम का स्कूल था इसलिए सॉरी बोलने की किसी को आदत नहीं थी । इसकी उतनी मान्यता भी नहीं थी । क्योकि कभी किसी ने सॉरी बोला भी तो भी कोई रियायत नहीं मिली थी।
विजय बापू का स्वभाव अच्छी तरह जानता था । उसने दोनों हाथ एक साथ आगे बढ़ा दिये । बापू ने दोनों हथेलियों पर एक एक संटी और सूतीं और विजय से बोले, “जाओ मुंह धोकर आओ।”
विजय भागकर गया और प्याऊ पर मुंह धोकर आ गया और अपनी जगह बैठ गया। क्लास सुचारु रूप से चलती रही । मास्साब ने उस दिन कोर्स का अंतिम पाठ निबटाने की ठानी थी । पाठ खत्म हुआ तो पीरियड की घंटी बज गयी । सत्र के आखरी दिन का अंतिम पीरियड था । इसके बाद परीक्षा के लिये तैयारी की छुट्टी और फिर सीधे परीक्षा। विजय ने यादव मास्साब उर्फ बापू के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। अन्य छात्रों और मैंने भी आशीर्वाद लिया। परीक्षा हुई अच्छा परिणाम आया तो पुनः जाकर अपने अध्यापकों के पैर छूए ।
पढ़ाई छूटे दशकों गुजर गये। पुराने अध्यापकों में कुछ से संपर्क आज भी । बापू से पिछले साल मुलाक़ात हुई थी । मिलकर बहुत खुश हुए थे । बता रहे थे कुछ महीनों पहले विजय भी मिला था । मुझे ज्ञात था । विजय ने फोन पर इस बात का जिक्र किया था ।
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