दिक्कत किसे ?
“मेरे छोटे लडके की हाल ही में शादी हुई थी। शादी के बाद एकतरह से कहें तो बहु भी बस चौथारी तक ही रह पाई थी। यानि बिलकुल ही नहीं रह पाई थी। बहु के आने के दूसरे दिन चौथारी की रश्म हुई थी। चौथारी के दूसरे दिन रिसेप्शन था। वह दिन भी पार्टी और उसकी तैयारियों में ही बीत गया था। उसी के दूसरे दिन कोलकता से फ्लाइट था। सुबह की ही ट्रेन से बहु और बेटा दोनों निकल गए थे।”
बिंदेश्वरी बाबू पखेरू की तरह उड़ते दिन को याद कर रहे थे।
उन्होंने सोचा था कि उनकी पत्नी जानकी भी बहु के साथ ज्यादा दिन नहीं रह पाई थी। क्यों नहीं कुछ दिनों बाद नई बहु के साथ पुणे में थोड़े दिन रहा जाय? उनके छोटे बेटे और बहु दोनों पुणे में दो अलग – अलग आई टी फर्म में काम करते थे।
बहु और बेटे ने जाते ही खुश खबरी दी थी। अरे वो वाली खुशखबरी नहीं। उन्होंने दोनों मिलकर एक बड़ा फ्लैट जिसमे दो बड़े – बड़े कमरे थे और ड्राइंग रूम कम हॉल भी था ले लिया था। उसी में शिफ्ट करने की खुशखबरी दी थी।
जानकी ने प्रकाश से कहा था कि भगवान् का फोटो भी घर में लगा लेना और घर में उनकी पूजा कर लेना। इस पर छोटी बहु ने व्हाट्सप्प पर लकड़ी का एक मंदिर जैसा बना हुआ भगवान् के सुन्दर सिंहासन की तश्वीर भेजी थी।
इसपर जानकी बहुत खुश हुई थी, “रीता बहुत संस्कार वाली बहु मिली है।”
बिंदेश्वरी बाबू के छोटे बेटे का नाम प्रकाश था। रीता उसकी पत्नी का नाम था। बिंदेश्वरी बाबू सेवानिवृत्ति के बाद बस ये अपनी आख़िरी जिम्मेवारी को पूरा करके निश्चिन्त हो गए थे।
बिंदेश्वरी बाबू ने नई बहु के साथ पुणे में थोड़े दिन बिताने के लिए सोचा ही था कि उनकी पत्नी जानकी ने पुणे जाने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। उनकी एकलौती बेटी हैदराबाद में रहती थी। जानकी ने बेटी से इसके बारे में बताया तो वह भी बहुत खुश हुई। उसने अपनी माँ से कहा था, “माँ, क्यों नहीं गरिमा की गर्मियों की छुट्टियों के समय प्लान किया जाय?” गरिमा क्लास 4 में वहीं हैदराबाद में पढ़ती थी।
फैमिली गेट टुगेदर की पूरी योजना बना ली गई।
गर्मी की छुट्टी प्रारम्भ होते ही 17 मई को जानकी के साथ बिंदेश्वरी बाबू पुणे के लिए रवाना होंगें। उसके एक दिन बाद उनकी बेटी अपनी बेटी गरिमा के साथ पुणे के लिए प्रस्थान करेगी। इसतरह दोनों ही उसी दिन पुणे पहुंचेंगे।
इस सारी योजना के बारे में प्रकाश को बताना चाह रहे थे। इसीलिये आज उन्होंने प्रकाश को कॉल किया था था। आज शनिवार था और शनिवार के दिन ऑफिस से छुट्टी रहने के कारण शाम में प्रकाश से ज्यादा समय तक बात की जा सकती थी।
बिंदेश्वरी बाबू ने जैसे ही फोन किया, प्रकाश ने ही फोन उठाया था। फोन पर तेज़ संगीत के बजने की आवाज़ें आ रही थीं। कई लोगों के ठहाकों की भी आवाज़ आ रही थी। उन्हें लगा कि उन्होंने गलत समय पर कॉल कर दिया है।
उन्होंने फोन पर ही कहा था, “बेटे लगता है कि तुम ब्यस्त हो। बाद में फोन करता हूँ।”
प्रकाश ने कहा था, “हाँ, पापा, आज कुछ दोस्त जो शादी में शरीक नहीं हो सके थे, उनको खाने पर बुलाया था। वही पार्टी चल रही है, जिसका शोर गुल आप सुन रहे होंगें। बाद में बात करते हैं।”
बिंदेश्वरी बाबू समझ गए थे उन लोगों ने क्यों बड़े फ्लैट में शिफ्ट किया था।
दूसरे दिन रविवार था. आज तो प्रकाश को सूचित करना निहायत ही जरूरी था। शाम में उन्होंने करीब आठ बजे फोन किया था। फोन पर आज भी कुछ आवाज़ें आ यहीं थीं।लेकिन आज शोरगुल नहीं था।
“प्रकाश मैं और तुम्हारी माँ कल ही ट्रेन से तुम्हारे पास आ रहे हैं। परसों हमलोग वहाँ पहुंचेंगे। परसों तुम्हारी दीदी हैदराबाद से गरिमा के साथ पहुंचेगी। हमलोग गरिमा की गर्मी की छुट्टी भर वहीं रहेंगें।”
प्रकाश ने तुरत उत्तर दिया था, “पापा, आपने आज फिर गलत समय पर फोन कर दिया। रीता के ऑफिस के बॉस आये हुए हैं और इसी समय आप फोन कर दिए?”
बिंदेश्वरी बाबू ने कहा था, “बेटे आज बताना जरूरी था। इसीलिये फोन करना पड़ा।
प्रकाश ने प्रश्न किया था,”क्या आप सभी लोग आ रहे हैं?”
उसके प्रश्न से बिंदेश्वरी बाबू को लग रहा था कि वे लोग स्वागतयोग्य अतिथि की केटेगरी में नहीं आ रहे हैं शायद। उन्होंने कहा था, “सभी लोग से क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारे माता – पिता और तुम्हारी दीदी, बस। तुम्हारे जीजा जी भी नहीं आ रहे हैं। उन्हें छुट्टी नहीं मिली।”
प्रकाश ने कहा था, “पापा, दिक्कत हो जाएगी।”
“हमें तो कोई दिक्कत नहीं होगी। क्यों अपने घर में क्या दिक्कत हो सकती है?”
“आपको दिक्कत नहीं होगी, लेकिन हमें दिक्कत हो जाएगी।”
प्रकाश के इस जवाब से तो बिंदेश्वरी बाबू को काठ मार गया। पांव के नीचे की जमीन खिसक गई। जानकी भी बगल में खड़ी – खड़ी सारी बातें सुन रही थी। अब वे अपनी बेटी को क्या बताएंगें? कैसे बताएंगें? क्या यही बताएंगें कि प्रकाश ने आने से मना कर दिया है। शादी के पहले तक तो प्रकाश ऐसा नहीं था। शादी के बाद क्या हर कोई इतना बदल जाता है कि अपना परिवार ही उसको पराया लगने लगता है?
बिंदेश्वरी बाबू ने रात का खाना भी नहीं खाया। कल उन्हें अपनी बेटी को बताना होगा कि वे लोग पुणे नहीं जा रहे है, इसलिए वह भी पुणे जाने का अपना कार्यक्रम स्थगित कर दे। लेकिन इसका कारण क्या बताएंगें? क्या यह कहना उचित होगा कि प्रकाश ने आने से मना कर दिया है? ये सारी बातें सोचते – सोचते रात भर वे करवटे बदलते रहे।
जब अपने किसी करीबी का ब्यवहार अप्रत्याशित रूप से बदला हुआ लगता है तो चोट सीधे कलेजे पर लगती है।
सवेरे बिंदेश्वरी बाबू उठे थे तो कलेजे में हल्का – हल्का – सा दर्द महसूस हो रहा था। सुबह आठ बजे प्रकाश का कॉल आया था।
कांपते हाथों से बिंदेश्वरी बाबू ने फोन उठाया था, “पापा, सॉरी कल मैंने रीता से बिना डिसकस किये हुए कह दिया था कि दिक्कत हो जाएगी। मैंने रात में रीता से डिसकस किया। रीता आप लोगों को जरूर बुलाने पर जोर दे रही है। आप लोग अवश्य आएं। कार्यक्रम में कोई फेर – बदल मत कीजिये।”
बिंदेश्वरी बाबू चुप ही रहे। प्रकाश ने फिर फोन किया, “पापा, आपलोग आ रहे हैं न?”
मोबाईल जानकी ने अपने हाथ में ले लिया, “हाँ, बेटा हमलोग अवश्य आ रहे हैं।”
फोन काटने के बाद जानकी ने अपने पति को झकझोरकर संज्ञाशून्यता की स्थिति से जगाया था.
वह बोली थी, “मैं कह रही थी न, कि बहु बहुत संस्कार वाली है। वह सब सम्भाल लेगी।”
बिंदेश्वरी बाबू को अभी भी समझ नहीं आ रहा था, “दिक्कत किसे था?”
लेकिन यह समझ में आ गया था कि बच्चों को दी गई परवरिश में जरूर कहीं कोई कमी रह गई थी।
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–ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
तिथि: 16-05-2016
वैशाली, दिल्ली एन सी आर।