अजनबी मेहरबान
इस बार दुर्गा पूजा में मैं अपने घर, पटना नहीं जा पायी थी. इंस्टिट्यूट में छुट्टी बस २ दिनों की थी, और दिल्ली से पटना की ट्रेनों में जगह भी खाली नहीं थी. मैं अपने दोस्तों के साथ वसंत कुञ्ज के एक फ्लैट में रहती थी. हम चारों ने अष्टमी का उपवास किया था और पूरे नियम से दुर्गा पूजा मनाया.
दो साल पहले मैं गुड़गाँव में जिनकी पीजी में रहती थी, उन आंटी ने मुझे दुर्गा पूजा के लिए घर पर बुलाया था. वो खुद तो क्रिश्चियन थी, मगर उन्होंने हिन्दू से शादी कि थी. इसलिए उनके घर पर हिन्दू और क्रिश्चियन, दोनों के त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता था. उनके पति काम के सिलसिले में बाहर थे. घर पर थी तो बस वह और उनकी बेटी, जो की मेरी ही उम्र की थी. नवमी वाले दिन उपवास ख़त्म होने के उपरांत मैं उनके घर पहुंची. उन्होंने इतने प्रकार के व्यंजन बना रखे थे, की उनका वर्णन संभव नहीं है. ममता से ओत-प्रोत उनकी व्यवहार में मेरा मन पूर्णतया भीगा हुआ था.
दशमी वाले दिन पास के ही एक मैदान में रावण वध का कार्यक्रम तय हुआ. उनकी एक पारिवारिक महिला मित्र, सुमेधा आंटी, हमें वहां अपने साथ ले जाने वाली थी.
तय समय पर हम तैयार हो कर सुमेधा आंटी की जारी में मैदान की तरफ चल पड़े. गाड़ी में सुमेधा आंटी, प्रिया और जूलिया आंटी के अलावा सुमेधा आंटी की बूढी माँ भी थी. गाडी आंटी खुद चला रही थी. मैदान के पास पहुँच कर हमने देखा की पार्किंग के लिए सिर्फ एक ही गाडी की जगह थी.
ज्यों ही सुमेधा आंटी ने गाडी पार्क करने के लिए रिवर्स गियर लगाया, एक व्यक्ति ने पूरी गति के साथ अपनी गाडी उस जगह पर लगा दी. आंटी ने जोड़ का ब्रेक लगाया. हम सारे लोग हतप्रभ रह गए. फिर गाडी से उतर कर आंटी ने उसे डांटा तो वह उल्टा उनको ही सुनाने लग परा. गाडी में उसके साथ उसके बीवी- बच्चे भी थे. हमने बात को बढ़ाना उचित नहीं समझा, और अपनी गाड़ी मैदान से थोड़ी दूर पार्क कर दी. रामलीला के दौरान मेरा मन कर रहा था की उसकी गाडी की हवा निकल दूँ. बहुत गुस्सा आ रहा था. मैंने यह बात प्रिय को बताई भी. फिर लगा की वह परिवार के साथ आया है और उसके बच्चे नाहक परेशान होंगे.
रावण वध के उपरांत हम वहां से निकले, तो थोड़ी ही देर में पता चला की हमारे गाड़ी की टायर से किसी ने हवा निकल दी थी. शायद यह उसी बद्तमीज का काम रहा होगा. खैर, अँधेरी रात में मैं और प्रिय लग गए उसकी टायर चेंज करने.
तभी एक बड़ी महंगी सी स्पोर्ट कार वहां आ कर रुकी, और एक बड़े ही हैंडसम लड़के ने उससे उतरकर हमसे पूछा ,
” डु यू नीड एनी हेल्प”
उसने काले रंग की स्लीवलेस टी-शर्ट पहन रखी थी और खाकी रंग के शॉर्ट्स. उसका पसीना देख कर लगा की शायद वह जिम से आ रहा था. उसके तराशे हुए मजबूत बाजू भी यही कह रहे थे. हम दोनों मंत्रमुग्ध से उसे बस देखे ही जा रहे थे, की तभी जूलिया आंटी ने कहा, ” यस यस, कैन यू हेल्प उस इन फिक्सिंग दिस फ्लैट टायर”
” श्योर” उसने कहा.
उसने अपनी गाडी की हेडलाइट्स ऑन कर दी और नीचे आ कर हमारी गाडी की टायर चेंज करने लगा. मैं और प्रिया कुछ बोल ही नहीं पाए, बस उसे टकटकी लगा कर देखते रह गए. उसने थोड़ी ही देर में टायर चेंज कर दिया. दोनों आंटी ने उसे थैंक यू बोलै.
पर हम अब भी बस उसे घूरे ही जा रहे थे. शायद उसे भी इस बात का एहसास था, क्यूंकि वह हमसे आँखें चुरा कर चला गया. उसके जाते ही दोनों आंटी हमें छेड़ने लगी. और हम भी झेंपे जा रहे थे. जितना गुस्सा हमें उस मैदान वाले आदमी पर आ रहा था, वो सब तो कब का छू हो गया. अब तो बस हमारे सफर का छोटा सा पल हमें गुदगुदा रहा था. अचानक इस बात का एहसास हुआ की अगर हमारा टायर पंक्चर नहीं हुआ होता, तो शायद यह प्यारी सी मुलाक़ात न हो पाती.
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