लटकले तो गयले , बेटा !- (Funny Signboard Painting): This is social Hindi story about an illiterate painter who has more manners, knowledge and patriotism than any other so-called literate person.
देश –भक्ति न तो पारिभाषित करने की विषय वस्तु है , न ही इसकी व्याख्या की जा सकती है. यह तो स्वतः स्फुरित होती है – व्यक्ति के व्यवहार एवं आचरण से. तो चलिए मैं आपलोगों को देश – भक्ति के कुछ नमूने दिखाता हूँ- वो भी हमारे आस – पास – हमारे ही बीच. तो भाई ! अब भी हमारे देश में कुछेक लोग हैं जिनके मन – मस्तिष्क में देश – भक्ति कूट – कूट कर भरी हुयी है. ऐसे लोंगो के लिए जननी एवं जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. ये अपनी जुबान से यह प्रमाणित करने का कभी प्रयास नहीं करते , बल्कि अपने आचार – व्यवहार एवं कार्यशैली से इसे प्रदर्शित करते हैं .
ऐसे में ही है एतवारी पेंटर . एतवारी पेंटर पेंटिंग का काम करके अपना संसार चलाते हैं. एक दिन मेरे मित्र श्रीवास्तव जी ने एक ट्रेकर ( भाड़े में चलनेवाली सवारी गाड़ी ) खरीदी . उसने अपने पुत्र शैलेश को नंबर प्लेट आदि लिखवाने के लिए एतवारी पेंटर के पास भेजा. लड़के ने तो अपनी इच्छानुसार नंबर प्लेट तो लिखवा लिया , लेकिन ट्रेकर के पीछे ‘ लटकले तो गयले , बेटा ’ लिखवाने के लिए जिद्द करने लगा . पहले तो एतवारी पेंटर ने शैलेश को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए देखा और बाद में ऐसी उत्तेजक बात लिखने से इनकार कर दिया. शैलेश जी बाद – विवाद पर उतर गया , लेकिन एतवारी पेंटर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. जब शैलेश शांत हो गया तो एतवारी पेंटर ने समझाते हुए अपनी बात रखी कि वह पेंटिंग की कमाई जरूर खाता है , लेकिन उल्टी – सीधी , भड़काऊ बातें कभी नहीं लिखता. इस महंगाई के दौर में पैसा किसको प्यारा नहीं है , लेकिन जमीर बेचकर वह पैसा नहीं कमाना चाहता. उल्टी – सीधी बातें सब चाव से पढेंगे और इसका परिणाम उल्टा ही होगा. नकारात्मक बातें बहुतों में उत्तेजना पैदा कर सकती है जिससे अन्ततोगत्वा देश को ही नुकसान होगा.
तो क्या लिखना चाहिए , वही लिख दीजिये .
शैलेश नार्मल होते हुए आग्रह किया.
एतवारी पेंटर मोढा खींचकर जमकर बैठ गया और कुछेक मिनटों में लिख दिया , “ कृपया सम्हल कर चढिये . ’’
शैलेश पुणे में पढता है . वह एम.बी. ए. का स्टूडेंट है . वह इसे पढ़कर अचंभित हो गया कि समाज का एक सामान्य आदमी की सोच कितना महान है भले ही देश विगत पैसंठ वर्षों में महान न हो सका. और एक हम हैं पढ़े – लिखे लोग कि … ?
अभी भी देश – भक्ति की बात अधूरी है , यदि इससे आगे की घटना का जिक्र न किया जाय.
एक दिन एतवारी पेंटर को बैंक मोड़ जाना था – रंग – रोगन लाने के लिए . बंद का एलान था. कोई गाड़ी नहीं चल रही थी सिवाय दो पहिये वाहन के. मोड़ पर किसी परिचित की प्रतीक्षा में एतवारी पेंटर खडा था. उसी वक़्त शैलेश फटफटाता हुआ आ धमका , ब्रेक देकर अपनी बाईक खडी कर दी और बोला ,”धनबाद जाना है तो बैठिये , अंकल ! मैं वहीं जा रहा हूँ .
रास्ते में शैलेश को पेशाब लग गयी. बाईक रोकी और बोला :
अंकल ! एक मिनट , जरा लघु शंका करके आता हूँ.
ठीक है, मगर जल्द आना .
शैलेश ने देखा कि एक दीवार के सामने तीन लड़के मजे से पेशाब कर रहे हैं और आपस में बातचीत भी कर रहें हैं .
शैलेश भी एक किनारा ले लिया . खड़े हो कर जैसे ही पेशाब करने को तैयार हुआ , उसकी नज़र दीवार पर लिखी इबारत पर पड़ गयी. लिखा था मोटे – मोटे बड़े – बड़े अक्षरों में , “ यहाँ पेशाब करना मना है . ’’
एतवारी पेंटर सड़क के किनारे खड़े होकर सबकुछ देख रहा था . तबतक तीनों लड़के पेशाब कर लिए थे और अपनी पेंट की चेन लगा रहे थे. तभी चार लड़के और आ गये . उनकी नज़र इबारत पर पडी . वे बोल पड़े :
एक लड़का : बड़ा चला है हमें सीख देनेवाला .
दूसरा : पाठ पढाता है हमें !
तीसरा : देखता हूँ कौन रोकता है हमें , यहाँ पेशाब करने से . हिम्मत है तो रोक ले हमें पेशाब करने से , उसकी ऐसी की तैसी .
चौथा : जागीर समझ ली है अपनी . मिले तो … ?
पहले के तीनों लडको ने रूककर उनकी चुटकी ली . कोमेंट का लुत्फ़ उठाया और उनकी पीठ थपथपाकर शाबाशी देते हुए आगे बढ़ गये.
शैलेश बिना पेशाब किये लौट गया .
एतवारी पेंटर : तुम खड़े ही रहे कि पेशाब भी की ?
शैलेश : नहीं की .
एतवारी पेंटर : क्यों ?
शैलेश : अंकल ! जब आप उल्टी – सीधी बात लिखने से परहेज करते हैं तो क्या आप चाहते हैं कि … ?
एतवारी पेंटर : क्या हुआ ?
शैलेश : दीवार पर साफ – साफ मोटे – मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है , “ यहाँ पेशाब करना मना है .’’ हमें इसका पूरी निष्ठां से पालन करना चाहिए एक अच्छे नागरिक की तरह , न कि … ?
एतवारी पेंटर एक बालक के मुख से नैतिक सीख सुनकर दंग रह गया . वह मन ही मन मुस्करा रहा था यह सोचकर कि अब भी देश में अच्छे लोंगों की कमी नहीं है , भले ही इनका प्रतिशत नगण्य ही क्यों न हो .
शैलेश को एतवारी पेंटर की बात चुभ गयी थी और उसने उनकी सीख को जीवन में उतारने का निश्चय कर लिया था.
उसने एक टी – स्टाल के सामने बाईक रोकी . उसने बोझिल मन से चाय पीते – पीते एक प्रश्न किया , “ अंकल ! यदि आप को उस दीवार पर लिखने के लिए कहा जाता तो आप क्या लिखते ?
क्षण भर तो एतवारी पेंटर मौन रहा इस अप्रत्याषित प्रश्न को सुनकर , लेकिन अपने को संयमित करते हुए शांतभाव से उत्तर दिया , “ जब तुम जानना ही चाहते हो कि मैं क्या लिखता तो अच्छी तरह से जान लो , “ मैं लिखता , “ इस स्थान को कृपया स्वच्छ रखें . ’’
शैलेश एतवारी पेंटर को आश्चर्यभरी निगाहों से देखा तो देखता रहा – कुछ देर तक .
यही नहीं ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जैसे :
यहाँ थूकना मना है , लोग थूकते हैं .
धुम्रपान निषेध , लोग खुले आम धुम्रपान करते हैं .
नो पार्किंग , लोग पार्किंग करने से बाज नहीं आते .
नो हॉर्न प्लीज , आगे अस्पताल है , हॉर्न बजाने में गर्व महसूस करते हैं .
इन हालातों में हमारा सामूहिक दायित्व व कर्तव्य क्या बनता है , यह विषय अनुभूति की है न कि बहस की .
आये दिन बहस , हुज्जत , तू – तू , मैं – मैं इन मुद्दों पर पर होती रहती है , क्या हम इसे सकारात्मक सोच व भाईचारे से रोक नहीं सकते ?
तो देर किस बात की ?
उठकर शपथ लीजिये कि …
कि लटकले तो गयले , बेटा ! की जगह हम लिखें , “ कृपया सम्हल कर बैठिये ’’
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिन्दपुर , धनबाद , दिनांक : १६ मई २०१३ , दिन : वृस्पतिवार |
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