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Game of Kabaddi

Published by Durga Prasad in category Funny and Hilarious | Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag money | Mother | shop

पांच सौ के नोट बनाम कबड्डी का खेल : Game of Kabaddi (My mother told me to get salt from nearby shop but the shopkeeper was not ready to give salt as I was not having enough money. Read Hindi funny story )

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Hindi Story – Game of Kabaddi
Photo credit: kumarnm from morguefile.com

‘छोटू , जरा पास वाली दूकान से नमक ले आना , जल्दी’.

मम्मी ने हुक्म फरमा दी .उन्होंने पैसों का कोई जिक्र नहीं किया . मैंने छुट्टे पैसे तलाशे तो नहीं मिले . अब्बा लेट्रिन में घुसे थे .उन्हें पाईल्स की बीमारी है . पैखाने से निकलने में उन्हें कुछेक घंटे लग जाते हैं. देखा उनकी कमीज खूंटी पर झूल रही है. फिर क्या था जेब टटोलना शुरू कर दिया . जेब में एक पासबुक मिली तथा उसके अन्दर पांच – पांच सौ के कई नोट . नमक खरीदने में इन हाथियों की क्या जरूरत ? मुझे बिलकुल जंची नहीं . शीघ्र ही ख्याल आया दादाजी का गोलक का .निकाल लाया और उलटकर सिक्के निकालने की कवायद शुरू कर दी . एक सिक्का गिरा बड़ी मुश्किल से – वो भी पंचपैसी थी. उठाया और चल दिया दूकान की और गुनगुनाता हुआ , छल कबड्डी आवे दे तबला बजावे दे , तबला में पैसा ! पैसा !! पैसा !!! बनारसी अंकल दूकान पर बैठे थे उनका लड़का पवन सामान तौल रहा था . मैंने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कहा , “ नमक दीजिये , अंकल ! ”

दूकान पर भीड़ थी. शुबह के सात बज रहे थे .लोगों को चाय पीने की तलब हो रही थी. चीनी और चायपत्ती लेने के लिए लोग पंक्ति में लगे हुए थे. मोहल्ले के नथ्थू चाचा भी क़तार में खड़े थे. उन्होंने मुझे देखते आदतन बत्तीसी चमकाई और बोले ,” छोटू ! नमक की ऐसी क्या जरूरत पड़ गयी तेरी अम्मी को – शुबह – सवेरे ? ’’

मुझे बड़ा गुस्सा आया , लेकिन खून की घूँट पीकर रह गया . फिर सोचा जबाव देना लाजिमी है , नहीं तो ऐसे लोगों का मन – मिजाज सातवें आसमान पर उड़ने लगता है . हाँ चाचाजान ! , वही समझिये . चीनी तो आपलोंगो के लिए है . हमें नशीब कहाँ ? आपको तो चाल्लिस रुपये किलो भी खरदते हुए दर्द नहीं होता और हमें तो दस रुपये किलो में ही जान निकलती है . हम तो नमक से चाय बनाते हैं .

दूकानदार का लड़का हमारी बातों को सुनने में दिलचस्पी ले रहा था . दूसरे ग्राहक भी कान पाते हुए थे. बनारसी चाचा मुझे छोटा बच्चा समझकर मेरी बातों को अनसुनी कर दे रहे थे .

मैंने पवन भैया को खीजकर ऊँची आवाज में कहा , “ पवन भैया ! एक पाकिट नमक दीजिये . उसने एक पाकिट नमक निकाली और मेरे हाथों में थमा दी और पूछा , “ पैसे ?

मैंने पंचपैसी उसके हाथ पर रख दी और जाने को उद्दत हुआ था कि उसने झपटकर पाकिट मुझसे छीन ली और मेरी पंचपैसी को फोरलेनिंग की तरफ उछाल दी . मुझसे रहा नहीं गया . मैंने उसे चेतावनी दे डाली , पवन भैया ! आपने नमक भी नहीं दिए और उलटे मेरे पैसे भी फेंक दिए .आपने अच्छा नहीं किया . मैं अम्मी से शिकायत करूंगा .

हमारे दादाओं का जमाना कब का गुजर गया , जब महज दो पैसों में सेर भर नमक मिलता था . बच्चू ! तुमने बहुत देर कर दी .अब तो पंचपैसी में एक चुटकी भी नमक नहीं मिलती , पाकिट की बात तो … ?

जानते हो नमक की पाकिट की कीमत दस रुपये – वजन एक किलो अर्थात १० रुपये में एक किलो अर्थात १००० पैसों में १००० ग्राम नमक – एक पैसा प्रति ग्राम कीमत हुयी .

छोटू ! अब बताओ पंचपैसी में कितने ग्राम नमक आयेंगे ?

पांच ग्राम . मैंने झट से उत्तर दे दिया .

और दुःख की बात है कि न तो कंपनी और न सरकार पांच ग्राम नमक की पाकिट बनाती है. यदि ऐसा होता तो मैं तुम्हें देने में देर नहीं करता . उठता और मुँह पर दे … ?

पवन भैया ने दो टूक जबाव दे कर अपना पल्लू झाड लिया . मैं मुँह लटकाकर घर वापिस आ गया . मम्मी चंडी बनी हुयी थी . उसने मेरा कान ऐंठते हुए डांट पिलाई , “ इतनी देर कहाँ लगा दी नमक लाने में ? सारा काढ़ा सुखकर अधिया गया . अब क्या पीऊँगी , तेरा सर ?सामान खरीदने गये थे कि दूकान पर तमाशा देखने ?

मैंने डरते – डरते जबाव दिया , “ पवन भैया ने नमक की पाकिट दे कर छीन ली और पैसे सड़क की ओर उछाल दी .

आखिर क्यों ? पैसे नहीं दिए थे क्या ?

दिए थे , लेकिन पंचपैसी .

पंचपैसी ! गधा कहीं का !कहाँ मिले तुझे ये पैसे ?

गोलक से – दादाजी के .

वो तो तेरे दादाजी की निशानी है . क्या जरूरत पडी थी उस गोलक को छेड़ने की . मुझसे बोलते या पापा की जेब से ले लेते .

वो तो मैंने देखी थी . लेकिन उनकी जेब में तो केवल पांच – पांच सौ के नोट थे .

तो वही लेकर क्यों नहीं चले गये ? आजकल तो पांच सौ के नोट नंगों के पास भी रहते हैं. इसकी अब कीमत ही क्या रह गयी है !वक़्त पर तो नमक ले कर आ जाते. अब तो काढ़ा भी पेंदी चाट रहा है. क्या पीऊँ , तेरा सर ?

मम्मी ने दूसरी कनैठी दे डाली.

मम्मी ने अधीर होते हुए कहा , “ अब भी दो – चार चम्मच काढ़ा पेंदी में बचा हुआ है . पांच सौ का नोट लेकर जल्दी से जा और नमक जल्द लेते आ.”

मैंने आदेशनुसार वही किया . लपककर दूकान पहुँच गया और गर्व से नोट पवन भैया के मुँह पर दे मारा. बोला : भैया ! रख ले गांधीजी का नोट और दे दे नमक अतिशीघ्र .

छोटू ! नमक तो ले जा , लेकिन छुट्टा बाद में ले जाना . नकली नोटों की बाज़ार में बाढ़ सी आ गयी है . हमारे पड़ोसी मेहरवान हैं . रार – रात भर नोट छापते हैं और दिन को खपा देते हैं . उनको हमसे ज्यादा गांधी जी से प्रेम है. जांच – पड़ताल के लिए इस नोट को दिल्ली सरकार के पास भेजनी पड़ेगी .

मैं पुनः पाकिट को हवा में उछालता हुआ तथा कहता हुआ – छल कबड्डी आवे दे तबला बजावे दे , तबला में पैसा ! पैसा !! पैसा !!! घर में प्रवेश किया . मम्मी मुखातिब हो गयी . मम्मी ! कैच कीजिये – कहते हुए नमक की पाकिट उनकी तरफ उछाल दी. मम्मी सतर्क थी . उसने कहा पाकिट कैच करते हुए ,” शाबाश ! बेटे .

मम्मी ! आप तो कमाल की कैच करती हैं ! बैट्समैन थी कि बालर ?

बालर .

तब तो पांचो उँगलियाँ घी में होगीं .

वो ऐसे – मन माफिक बालिंग करने के एक ओवर के लाखों रूपये – श्रीसंत और चान्दीला की तरह .

गधा कहीं का , उस ज़माने में आईपीएल कहाँ था ?

रहता तो ?

उल – जलूल सवाल करता है खुपिया बिभाग की तरह . चल हट . बडा बातूनी बना है आजकल .

उसने एक तीसरी कनैठी देती हुयी कही , “ पांच सौ रुपये के नोट के छुट्टे कहाँ गये ?

जाँच – पड़ताल के लिए दिल्ली , अपने देश की राजधानी – मैंने भी उसी लहजे में जबाव दिया .

मम्मी चौथी कनैठी देने के लिए लपकी ही थी कि मैं “ चल कबड्डी आवे दे , तबला बजावे दे , तबला में पैसा ! पैसा !! पैसा !!! कहते हुए भाग खड़ा हुआ पलटन टाड़ की ओर कबड्डी खेलने के लिए .

 

लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १६ मई २०१३ , दिन : वृस्पतिवार |
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