रैना छत पर तारों को देखकर मन ही मन यह सोच रही थीं, काश !!! उसकी जिन्दगी भी इन तारों की तरह होती जिनमें सिर्फ रोशनी ही रोशनी होती, और इस रोशनी में उसको अपनी मां दिखाई दे जाती…. पर तभी एक आवाज ने उसका ध्यान इन तारों से हटा दिया। यह आवाज उसके पिता पंकज की थी।
पंकज ने आवाज़ लगाई “जल्दी आओ रैना। तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है।”
आज रैना का जन्म दिन था। पंकज उसके लिए केक ले कर आया था। दोनों ने मिलकर बर्थडे केक काटा।
पंकज ने रैना से पूछा “क्या गिफ्ट चाहिए आपको बेटा?”
रैना ने कहा “आज तक आप ने मुझे मेरी मां के बारे में कुछ नहीं बताया – कौन थी, कैसी थी। जब भी मैं आप से मां के बारे में पूछती हूं आप इधर-उधर की बात कर के टाल देते हैं। लेकिन आज मेरे इस जन्म दिन पर आप को बताना ही होगा कि मेरी मां कौन है।”
रैना ने जैसे मानो प्रण ही कर लिया था कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, वह जान कर ही रहेगी कि उसकी मां कौन है।
पंकज ने जो बात रैना से इतने सालों से छुपाई थी वह इतनी आसानी से कैसे बता देता। पंकज बड़े असमंजस में पड़ गया। पर रैना को अब बहला फुसलाकर बात को छुपाना, पंकज के लिए मुश्किल हो गया था। पंकज ने सोचा था कि उचित समय आने पर वो रैना को उसकी मां के बारे बताएगा। लेकिन वो समय इतनी जल्दी आएगा, ये पंकज ने नहीं सोचा था।
पंकज ने रैना से कहा कि तुम इतना जिद कर रही हो, तो मैं बता देता हूं, पर सच जान कर तुम्हें बहुत दुख होगा मेरी बच्ची।
रैना ने कहा कि मैं फिर भी सुनना चाहती हूं।
पंकज ने कहा “तुम मेरी बेटी नहीं हो रैना!!!!!!”
इतना सुनते ही रैना ने कहा ,कि आप झूठ बोल रहे है। अगर मैं आप की बेटी नहीं तो मै किस की बेटी हूं। मैंने तो अपनी मां के बारे में पूछा था आप से। वाह! आप ने तो मुझे ही अपनी बेटी मानने से इंकार कर दिया।
पंकज ने कहा, कि यही सच्चाई है मेरी बच्ची।
पंकज ने बताया कि आज से दस साल पहले वह ट्रेन से किसी काम के सिलसिले में बनारस से दिल्ली जा रहा था। लेकिन उसकी ट्रेन कुछ घंटे लेट हो गई, तो वह प्रतीक्षा करने के लिए एक बेंच पर लेट गया।
लेकिन तभी उसकी नींद एक बच्चे के रोने की आवाज की वजह से खुल गई। उसने कहा कि मैं उठा और इधर उधर देखने लगा कि वह आवाज कहां से आ रही है। पर इधर उधर देखने के बाद भी वह आवाज कहा से आ रही थी पता नहीं चल पा रहा था मुझे।
लेकिन बच्चे के रोने की आवाज कम ही नहीं हो रही थी। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और सोच में पड़ गया कि आखिर ये कौन है जो रो रहा है। तभी मेरी नज़र एक कूड़े के डब्बे के उपर गई। जब पास जाकर देखा तो उसमें एक नवजात मासूम बच्चा रो रहा था।
मैं उस बच्चे को गोद में उठा कर चुप कराने लगा, ओर इधर-उधर देखने लगा कि कौन अपने बच्चे को ऐसे छोड़ कर चला गया है। काफी तलाश के बाद भी कोई उस बच्चे को लेने नहीं आया। पुलिस ने भी बहुत खोजा उस नन्ही सी बच्ची के मां बाप को लेकिन कुछ पता नहीं चल सका कि किस ने इतनी मासूम बच्ची को इस तरह बेसहारा छोड़ दिया।
वह बच्ची तुम थी रैना। इतना सुनते ही रैना के आंसू रोके रूक नहीं रहें थे और पंकज ने रैना को सीने से लगा लिया। रैना ने पंकज से पूछा कि आप ने मुझे क्यों अपनाया जब उसके अपने मां बाप ने ही उसे नहीं अपनाया।
तब पंकज ने कहा कि तुम मुझे “अपनी सी लगी” क्योंकि मुझे भी तुम्हारी तरह कोई अनाथ आश्रम के दरवाजे पर छोड़ गया था।
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— रितु गुप्ता