This Hindi story highlights the social issue of society where the man is dominating so much in his thoughts that He not only thinks that Her wife is His personal property but also treated Her as a sex-object for His pleasure.The guy enjoyed his first night in such an extreme manner that her wife had to pay for this by bearing the pain and tortures given by him.
कितना अच्छा होता जो …………. मैं तेरे बिस्तर पर फूल बन बिछ जाती ,
कितना अच्छा होता जो …………. मैं तेरी गर्म बाहों में खुद को छिपाती ,
कितना अच्छा होता जो …………. तू मेरे अधरों का रस अपने अधरों पर लगाता ,
कितना अच्छा होता जो …………. गर हम दोनों का मिलन ………आज सदा के लिए हो जाता ।
यही सोचते-सोचते छवि कि आँखों से आँसू बहने लगे और क्यूँ न बहें ,जिसे उसने पिछले सात सालों से अपने तन-मन में बसा रखा था आज उसी की सुहागरात की सेज़ को सजाकर वो उसी के घर में तन्हाई में बिस्तर पर पड़े हुए अपनी रात काट रही थी । उसे नैतिक बहुत पसंद था , इतना कि उसके लिए एक दिन वो अपना सर्वस्व देने को भी तैयार हो गई थी मगर नैतिक उसके लिए अपने माता-पिता से बात तक नहीं करेगा ऐसा तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था । पर उसे पता नहीं अब भी रह-रहकर यही क्यूँ लग रहा था कि शायद बात कुछ और ही थी जिसकी वजह से नैतिक ने उससे शादी करने से इंकार कर दिया था और वो बात ना तो अब तक वह खुद और ना ही आशी दीदी समझ पाई थीं । पिछले दो हफ्ते से वह इसी तरह अकेले में ना जाने कितनी बार रोई थी मगर सबके सामने उसे अपने मन पर काबू रखना ही पड़ता था क्योंकि वो अपने नाकामयाब इश्क़ का और उपहास नहीं कराना चाहती थी । उसकी मम्मी भी शायद उसके दर्द को समझ रही थीं और इसीलिए उन्होंने उसको ये विश्वास दिलाया था कि वो नैतिक से ज्यादा अच्छा लड़का उसके लिए ढूँढ़ेंगी और साथ ही दो बहनो का एक घर में जाने पर छोटी-छोटी बातों पर विवाद होने जैसी कई खामियाँ भी उसके आगे गिनवा चुकी थीं ,मगर छवि अपनी माँ की झूठी दिलासायों पर कुछ बोल ना पाती थी और मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगती थी ।
दस साल पहले नैतिक और छवि दोनों आशी दीदी और रितेश जीजाजी की शादी में ही तो पहली बार मिले थे । हर शादी की तरह उन दोनों का भी जूते छिपाने की रस्म को लेकर विवाद हो रहा था । छवि जीजाजी से और पैसे देने की माँग कर रही थी और नैतिक अपने भाई पर पैसे ना देने का दबाव बना रहा था । तभी छवि के दिमाग में एक युक्ति सूझी । उसने नैतिक को अलग ले जाकर अपनी टोली में शामिल कर लिया और सगन का आधा हिस्सा उसे भी देने का वादा किया । उस समय दोनों की बच्चा उम्र ही तो थी और जैसा कि बच्चे अक्सर पैसों के लोभी होते हैं इसलिए नैतिक भी छवि की बातों में आ गया । खैर अपनी साली को जीजाजी भला कैसे नाराज़ करते इसलिए उन्होंने उसे मुँह माँगी रकम दे दी । रकम पाकर दोनों खुश हो गए और तुरंत जाकर बाज़ार से अपने-अपने लिए एक-मोबाइल खरीद लाए । अभी तक घर में उन्हें कोई अपने मोबाइल को हाथ भी नहीं लगाने देता था पर अब शादी जैसे मौहल में कोई कुछ बोल ना पाया । बस तभी से उन दोनों के मोबाइल की कॉन्टैक्ट लिस्ट में एक-दूसरे का नाम सबसे ऊपर लिखा गया ।उस समय छवि दसवीं कक्षा में पढ़ती थी और नैतिक बारहवीं में । दोनों ही बोर्ड की परीक्षा देने जा रहे थे इसलिए अपनी पढ़ाई में दिन भर जुटे रहते थे । जब पढ़ते-पढ़ते थक जाते तो एक-दूसरे को फ़ोन मिला देते । बात शुरू तो पढ़ाई से होती थी पर ख़तम होते-होते उनकी बातों में एक अजीब सा रस आ जाता था ,शायद यही वो रस था जिसे अक्सर युवावस्था में पाने को युवा लालायित रहते हैं । धीरे-धीरे ये रस एक आकर्षण में बदलने लगा और फिर प्रेम में ।
कॉलेज तक जाते-जाते दोनों में अब शारीरिक आकर्षण भी होने लगा , और इस आकर्षण को रोक पाना बहुत ही मुश्किल होता है । अब तो दोनों अक्सर कॉलेज से भाग जाते थे और किसी पार्क में घंटो पेड़ के नीचे बैठ अपने भविष्य़ के सपने बुना करते थे । मगर पता नहीं क्यूँ छवि को अब नैतिक में वो पहले वाला प्यार नज़र नहीं आता था । अक्सर वो मिलने आते ही उससे सिर्फ जिस्म की फरमाइश करने लगता था ,छवि हर बार मना कर देती थी तो नैतिक रूठ कर चला जाता था । धीरे-धीरे अब उन दोनों ने मिलना भी कम सा कर दिया था । छवि नैतिक की मनोस्थिति को समझती थी पर शादी से पहले वो ये सब नहीं करना चाहती थी । ऐसे ही एक दिन जब छवि ने नैतिक को अपने होठों को चूमने से हटाने की कोशिश की तो नैतिक ने बड़ी ही बेरहमी से उसके होठों को अपने दाँतों से काट दिया । बेचारी छवि रोती हुई काफी देर तक तड़पती रही मगर नैतिक से प्रेम जो कर बैठी थी , तो उसकी हर खता को उसे माफ़ करना ही था ।
अभी इसी साल दीवाली की बात थी ,छवि अपनी मम्मी के साथ आशी दीदी के घर मिठाई देने आई थी । सभी लोग ड्रॉइंग रूम में नीचे बैठे थे और नैतिक छवि को कंप्यूटर सिखाने के बहाने ऊपर अपने कमरे में ले गया था । कुछ देर प्यार भरी बातें करने के बाद , अचानक से ही नैतिक ने छवि के कपड़े उतारने शुरू कर दिए । पहले तो छवि कुछ समझ नहीं पाई क्योंकि वो भी तो कहीं न कहीं उसे प्यार करती ही थी , मगर अचानक से नैतिक का हाथ उसपर भारी पड़ने लगा । छवि ने घबराकर उसकी आँखों में जैसे ही देखा तो उसकी आँखों से एक वासना झलक रही थी । छवि डर गई ,उसने नैतिक को पूरे वेग से रोकना चाहा तो नैतिक ने ना केवल उसके कपड़े ही फाड़ दिए बल्कि शर्म से लाल हुए उसके गोरे गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा भी जड़ दिया । छवि घबरा कर कमरे से बाहर की और दौड़ी । उसकी मोटी-मोटी आँखों से आँसू बह रहे थे ।पता नहीं वो नैतिक के इस रूप को अपने अंदर नहीं समेटना चाहती थी ।
नैतिक से उस दिन के बाद छवि ने कोई बात नहीं की और ना ही उसका ही कोई फ़ोन आया । छवि चाहती थी कि नैतिक खुद अपनी गलती का एहसास करे ,लेकिन नैतिक कुछ अलग ही स्वभाव का था । उसने कभी झुकना नहीं सीखा था ,और करीब दो हफ्ते के बाद आशी दीदी का उसके पास फ़ोन आया । वो कह रही थीं कि नैतिक की शादी पक्की हो गई है और नैतिक ने अपने माता-पिता की पसंद की लड़की से शादी करने का निर्णय किया है । यह सुनकर छवि के पैरों तले ज़मीन खिसक गई । वो समझ ही नहीं पाई कि नैतिक ने ऐसा क्यूँ किया ?
छवि तुरंत ही आशी दीदी के घर जा पहुँची । नैतिक अपने कमरे में अकेला था । ऊपर जाते ही उसने नैतिक को अपनी बाहों में भर लिया और उससे लिपट कर रोने लगी । छवि ने कहा ,” तुम यही चाहते हो ना कि मैं शादी से पहले तुम्हे अपना सर्वस्व सौंप दूँ , तो आज मैं तुम्हे अपना सर्वस्व सौंपने आयी हूँ । मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती नैतिक । मुझे अपने से दूर मत करो । “
नैतिक पहले तो कुछ बोला नहीं मगर फिर बहुत देर बाद सोचने के बाद उसने कहना शुरू किया ,” जानती हो छवि ,मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ मगर अपनी मनः स्तिथि को मैं ही बेहतर समझ सकता हूँ ।मैं जैसा दिखता हूँ ना छवि , मैं वैसा हूँ नहीं । मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि अगर मैंने तुमसे शादी कर भी ली तो भी तुम मेरे साथ कभी खुश नहीं रह पायोगी । तुम मेरी भाभी की बहन हो इसलिए मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता । लड़की अगर कोई और हो तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन लड़की अगर जान-पहचान की होगी तो मेरे लिए रोज़ की एक समस्या रहेगी । वो शादी ही क्या जिसमे पुरुष अपने मन की इच्छा भी पूरी न कर सके । अच्छा ही हुआ जो तुमने अब तक खुद को मुझसे बचाए रखा । कम से कम जिस किसी के साथ भी तुम्हारी शादी होगी ,उसे तो अपनी दुल्हन पर गर्व होगा । ” इतना कहकर वह कमरे से बाहर चला गया और छवि वहीँ पर खड़ी काफी देर तक उसकी बातों में छिपे किसी गूढ़ अर्थ का मतलब खोजती रही ।
घर के सभी लोग शादी में जाने को तैयार खड़े थे । छवि को भी जाना ही था ,क्या कहती वो बेचारी ………. ना जाती तो दीदी बहुत बुरा मानती और फिर उसे भी नैतिक को ये दिखाना था कि वो उसके बिना भी जी सकती है । शादी भी संपन्न हो गई और नैतिक की दुल्हनिया “रूपा” भी दीदी की देवरानी बनकर घर में आ गई । रूपा बहुत ही सुन्दर थी, बिलकुल अपने नाम के अनुरूप लेकिन नैतिक से उम्र में पूरे दस साल छोटी थी । छवि यही सोच रही थी कि नैतिक ने इतना ज्यादा उम्र का अंतर अपने विवाह में क्यूँ रखा ? खैर अब वो अपने घर जाना चाहती थी मगर दीदी ने उसे एक दिन और रुक जाने को कहा और इसी वजह से उसे आज अपने ही प्रेमी की सुहागरात का बिस्तर सजाना पड़ा । छवि ने वैसे तो अपने दिल से नैतिक के साथ गुज़ारा वो सभी वक़्त एक हसीन सपना समझ कर भुला सा दिया था मगर पता नहीं क्यूँ जब वो रात को बिस्तर पर दीदी के साथ सोने लगी तब अचानक से ही ये पंक्तियाँ उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ी …………
कितना अच्छा होता जो …………. मैं तेरे बिस्तर पर फूल बन बिछ जाती ,
कितना अच्छा होता जो …………. मैं तेरी गर्म बाहों में खुद को छिपाती ,
कितना अच्छा होता जो …………. तू मेरे अधरों का रस अपने अधरों पर लगाता ,
कितना अच्छा होता जो …………. गर हम दोनों का मिलन ………आज सदा के लिए हो जाता ।
शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि दिल की चोट का ज़ख्म इतनी आसानी से नहीं भरा करता, अक्सर वो एक नासूर बनकर हमारे दिल के किसी कोने में छिपकर बैठ जाता है और समय-समय पर रिस कर अपने होने का दर्द दे जाता है । आज छवि की पलकें भी उसी दर्द के घाव से भीगी हुई थीं और उसी को याद करते-करते वो बिस्तर पर ना जाने कब अपनी आँखें बंद करके सो गई ।
सुबह नैतिक के कमरे से आते शोर की आवाज़ सुनकर उसकी भी एकदम से नींद टूट गई । उसने फटाफट से अपने सिरहाने रखा दुपट्टा उठाया और ऊपर की ओर भागी । वहाँ जाकर देखती है तो रूपा आशी दीदी की बाहों में लेटी तड़प रही थी और सारा बिस्तर खून से लाल था । नैतिक अपने बिस्तर पर ही औंधा मुँह किये हुए नींद और शराब के नशे में धुत पड़ा था और आशी दीदी अपने ही मन में बड़बड़ा रही थी ,” पत्नी सिर्फ एक रात के लिए ही पुरुष की अर्धांगनी नहीं बनती ,बल्कि सारे जीवन के लिए अपना घर छोड़ कर अपने पति के घर आती है , इसलिए पुरुष को भी ये समझना चाहिए कि पहली रात वो उसके साथ उतना ही भोग-विलास करे जितना कि वो सहन कर पाए । नैतिक ने तो उसे किसी जंगली जानवर की तरह नोच डाला । अगर इसी मानसिकता के साथ वो अपनी सारी ज़िंदगी उसके साथ गुज़ारेगा तो बहुत जल्द ही रूपा जैसी रूप सुंदरी अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठेगी । “
अब मुझे नैतिक की कही उन गूढ़ बातों का अर्थ समझ में आ रहा था । हाँ , वो सच में जैसा दिखता था वैसा वो बिलकुल भी नहीं था । बार-बार मेरी नज़र रूपा के चेहरे पर टिक रही थी मानो उसका दर्द कहीं मुझमें समा रहा हो और मेरे मन -मस्तिष्क पर ये पंक्तियाँ उभर कर मेरे ज़हन को कहीं अंदर तक कुरेद रही थीं ……………
क्या होता अगर ………मैं तेरे बिस्तर पर फूल बन बिछ जाती ?
क्या होता अगर ………मैं तेरी बाहों में अपनी फाँसी का फंदा पाती ?
क्या होता अगर ………तू मेरे अधरों को अपनी वहशियत से काट जाता ?
क्या होता अगर ………हम दोनों का मिलन ………कल रात सदा के लिए हो जाता ??????
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