This Hindi story highlights the dreams of a mother regarding Her daughter which made Her culprit to fulfill the same. Here the film industry glamour is so much influenced on a particular mind that the mother is unable to think about the study of Her child and spoil herself for the same.
आज फिर पूजा सुबह के चार बजे अपनी माँ की उंगली पकड़ आधी नींद में हरयाणा के लिए दिल्ली से रवाना हुई । बस अड्डे कि वही रोडवेज बस जिसमे अक्सर बैठते ही पूजा को उल्टी जैसा एहसास होने लगता था इसलिए उसने आज भी भूखे पेट रह कर ही सफ़र करने का निश्चय किया था । इसी साल उसने अपना बारहवाँ जन्मदिन मनाया था और वह आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी । इतना गुस्सा तो उसे स्कूल जाते वक़्त भी नहीं आता था जितना वह इस तरह के ऑडिशन के लिए जाते वक़्त करती थी । पिछले दो सालों में ना जाने कितने ही ऑडिशन उसने दिए थे मगर इस लाइन में कामयाबी अगर इतनी आसानी से मिलने लगती तो हर दूसरा विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को छोड़कर एक्टिंग को ही अपना व्यवसाय नहीं बना लेता क्या ?और वैसे भी एक्टिंग के लिए पढ़ना भी तो बेहद जरूरी ही है । परन्तु पूजा कि माँ ,उषा ,इतना सब कहाँ समझती थी । खुद इतना पढ़ी होती तो ही तो पढ़ाई का महत्व समझ पाती ना ? उसे तो बस कैसे भी ,किसी भी तरह से पूजा को स्टार बनाना था ,एक बड़े परदे का स्टार ,चाहे उसके लिए उसे कुछ भी क्यूँ ना करना पड़े । इसी बात पर आए दिन उषा का पूजा के पिता ,किशोरी लाल से अक्सर झगड़ा हो जाता था । किशोरी लाल एक आर्ट डायरेक्टर थे और इसीलिए वह इस लाइन कि खूबियाँ और खामियाँ बाखूबी समझते थे । यहाँ ज्यादातर या तो पैसा काम आता है और या फिर पहचान और दोनों ही उनके पास इतने अच्छे नहीं थे । बस घर का खर्च ठीक से चल जाता था इसी से वह संतुष्ट थे और इंसान को कहीं ना कहीं संतुष्टि करनी ही पड़ती है यही बात वो अक्सर उषा को समझाते थे । मगर उषा एक ज़िद्दी औरत थी ,जो अपने पति से ज्यादा बाहर वालों पर भरोसा करती थी ,चाहे वो भरोसा उसे कितना भी महंगा क्यूँ ना पड़े ।
लगभग दो घंटे के सफर के बाद पूजा ऑडिशन वाली जगह पर पहुँची । वहाँ भी चार घंटे तक लाइन में लगने के बाद जब उसका नंबर आया तो डायरेक्टर ने उसे लम्बाई कम होने की वजह से रिजेक्ट कर दिया । वह तो मासूम थी तो इतना सब महसूस नहीं करती थी मगर अगर डरती थी तो बस माँ की डाँट से क्योंकि उसे पता था कि अब सारे रास्ते उसकी माँ उसे सिर्फ लेक्चर ही सुनाती घर ले जाएगी और उसके बाद ही उसे कुछ खाने को मिल सकेगा जब वह उन्हें यह विश्वास दिलाएगी कि अगली बार उसे काम जरूर मिलेगा । आज भी ऐसा ही हुआ लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पूजा ने कभी कोई रोल अब तक किया ही ना हो । अपने पिता कि पहचान से वो एक -दो जगह काम करके आयी भी थी मगर उषा को उन छोटे-मोटे रोल से संतुष्टि कहाँ होने वाली थी ,वह तो बस उसे एक बड़ा स्टार देखना चाहती थी। …एक बड़ा स्टार, और वह भी बहुत ही कम समय में ।
किशोरी लाल अपनी पत्नी के अंदर घर कर चुकी इस भयानक सी मानसिकता को जानते थे और इसलिए हर वक़्त उस पर लगाम कसने कि कोशिश में लगे रहते थे ।उधर उषा आए दिन छुप-छुप कर ना जाने कितने ही फ़र्ज़ी विज्ञापनों से मुम्बई के फ़ोन नंबर खोज-खोज कर डायरेक्टर ,प्रोडूसर्स को फ़ोन करने में लगी रहती थी क्योंकि उसके सर पर तो बस मुम्बई जाने का एक जूनून सा सवार था । ऐसे ही एक दिन किसी बात पर किशोरी लाल और उषा की कहा-सुनी हो गयी । बस गुस्से में उषा ने अपना सामान बाँधा और आधी रात को पूजा का हाथ पकड़ किशोरी लाल को अकेला छोड़ कर मुम्बई की ट्रेन पकड़ ली । सुबह जब किशोरी लाल की आँख खुली तो वह उसके द्वारा लिखे ख़त को पढ़कर एकदम निढाल से हो गए । अब क्योंकि वह इसी लाइन से जुड़े थे इसलिए वह यह बात जानते थे कि इतनी आसानी से वहाँ काम नहीं मिल पाता है इसलिए उन्होंने इस बार उषा को फ़ोन नहीं किया और यह तय किया कि अपनी गलती का एहसास होने तक वह उसका इंतज़ार करेंगे और एक दिन उषा खुद ही उनके पास लौट आएगी ।
मुम्बई पहुँच कर उषा अब प्रोडक्शन हाउसेस के रोज़ चक्कर लगाने लगी । कोई उसे कहता कि इतने पैसे दो और कोई कहता कि अभी थोड़ा और इंतज़ार करो । परन्तु उषा यह बात समझ ही नहीं पा रही थी कि हर कामयाबी के पीछे एक मेहनत और सच्ची लगन छिपी होती है । अपनी जल्दबाज़ी के चक्कर में उसने अब पूजा को पढ़ाई से भी कोसों दूर कर दिया था । बेचारी पूजा अब तो स्कूल सिर्फ सपने में ही देख पाती थी और माँ के बताये हुए रास्ते पर खुद को चलाने का निरंतर प्रयास करती रहती थी । तभी एक दिन उषा की मुलाक़ात मैडम शीना से हुई । मैडम शीना अपना खुद का एक प्रोडक्शन हाउस चलाती थी और अक्सर ऐसे ही मज़बूर लोगों को अपना शिकार बनाती थी । उसने उषा को शाम को अपने घर पर मिलने का समय दिया । उषा तो मानो एक हलकी सी उम्मीद से ही पागल सी हुई जा रही थी । अब तक ना जाने कितने ही मंदिरों में जाकर उसने अपनी बात बन जाने की अरदास लगायी थी । मगर दिन है कि आज बीत ही नहीं पा रहा था ।
शाम होते ही उषा ने अपनी सबसे बढ़िया साड़ी निकाली और एक नयी नवेली दुल्हन की भाँति तैयार होकर मैडम शीना से मिलने के लिए चल पड़ी । पूजा को घर पर ही रहना था इसलिए उसे ही शाम का खाना बनाने का निर्देश दे उषा ने एक टैक्सी पकड़ ली । “शीना प्रोडक्शन हाउस” के बाहर टैक्सी रुकते ही उषा के दिल कि धड़कने तेज़ होने लगी । आज उसे किसी भी कीमत पर पूजा के लिए काम लेना ही था इसी सोच को मन में रखकर उसने दरवाज़े कि घंटी बजाई । मैडम शीना भी उसी का इंतज़ार कर रही थी । दरवाज़ा खोलते ही बड़े ही प्यार से उन्होंने उषा को अंदर आने को कहा ।
मैडम शीना ,” आओ बैठो ,मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी । बताओ क्या लोगी ,चाय या कॉफी ?”
उषा ,” जी नहीं कुछ नहीं ,बस पूजा के लिए काम । पूजा बहुत अच्छी आर्टिस्ट है इसीलिए उसे दिल्ली से मुम्बई लायी हूँ । एक महीने से भटक रही हूँ मैडम । हर कोई पैसा या पहचान माँगता है और दोनों ही मेरे पास नहीं है । ”
मैडम शीना ,” हाँ जानती हूँ ……मगर एक तीसरा विकल्प भी तो है ,क्या वो नहीं बताया तुम्हे किसी ने अभी तक?”
उषा ,” तीसरा विकल्प ……????? बताइये ना मैडम ……मुझे हर विकल्प स्वीकार होगा आज । ” उषा की आँखों में अब अनगिनत सपने तैर रहे थे ।
मैडम शीना ,” अरे इतनी सुन्दर हो तुम । इसी सुंदरता को बस इस्तेमाल करना होगा । जहाँ पैसा और पहचान काम नहीं आती ना वहाँ जिस्म काम आता है उषा जी । शायद तुम नहीं जानती कि मुम्बई में बिस्तर अक्सर ठन्डे रहते हैं । उन्ही में से कुछ बिस्तरों को तुम्हे गर्म करना होगा । जितनी अधिक गर्मी तुम दोगी उतनी ही अधिक पूजा कामयाब होगी । तो बस सीधे और साफ़ से लफ़्ज़ों में मेरे कहने का अर्थ यही है कि इस मुम्बई नगरी में कामयाबी का दूसरा नाम “बिस्तर गर्म” ही है । ”
किशोरी लाल से दूर हुए उषा को अब एक महीना हो चुका था । उसे अचानक से अपनी शारीरिक भूख का एहसास होने लगा । उसने सोचा कि इसमें हर्ज़ भी क्या है । ये भी तो एक तरह से उसके लिए एक फायदे का सौदा ही है । और फिर इतने बड़े शहर में कौन जानता है कि उसने पूजा के लिए क्या किया । कुछ देर सोचने के बाद उसने मैडम शीना के प्रस्ताव को रज़ामंदी दे दी । आज उसने अपने और किशोरीलाल के साथ हुई शादी के बंधन को बँधे हुए उन चौदह सालों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा ……. शायद इसी वजह से आजकल शादी सिर्फ एक पहचान बनकर रह गयी है ।
बस उसी दिन से उषा की बेटी पूजा को मुम्बई में एक प्लेटफार्म मिल गया । उषा रोज़ वहाँ किसी ना किसी का बिस्तर गर्म करके आती और बदले में मैडम शीना पूजा को एक्स्ट्रा में कोई छोटा-मोटा रोल दिलवा देती । फ़िल्म इंडस्ट्री का इतना भयानक और भद्दा सच अगर किसी भी समझदार माता-पिता को पहले से ही ज्ञात हो तो शायद ही वो अपने बच्चों को इस रास्ते पर चलने की सलाह दे । धीरे-धीरे उषा को यह एहसास होने लगा कि इस तरह के छोटे-मोटे रोल तो उसकी बेटी को दिल्ली में उसके पिता कि पहचान से ही मिल जाते थे इसलिए अब उसने मैडम शीना पर कोई बड़ा रोल दिलवाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया । इसी बात को कहने के लिए वह एक दिन मैडम शीना से फिर से मुलाक़ात करने उनके घर जा पहुँची ।
उषा ,” मैडम करीब दो साल से पूजा इसी तरह से एक्स्ट्रा में खड़ी होती है । अब उसके लिए कोई अच्छा और टिकाऊ कैरियर होना अनिवार्य है । ”
मैडम शीना हँसते हुए बोली ,”टिकाऊ कैरियर ……हाँ ,हाँ जरूर । कल से एक काम करना उषा जी ,पूजा भी अब चौदह की तो हो ही गयी है । कल से उसे भी अपने साथ काम पर ले जाना । ये फ़िल्म इंडस्ट्री बड़ी ही मस्त चीज़ है । यहाँ जितना ज्यादा बिस्तर गर्म करोगे …उतना ही ज्यादा काम आपके कदमो में होगा । माँ-बेटी दोनों मिलकर शायद अपने सपने को पूरा करने में कामयाब हो सको । अब तुम जा सकती हो । पूजा के लिए ग्राहकों का बंदोबस्त मैं कर दूँगी । मेरा नंबर जब चाहो मिला देना । सोचने के लिए तुम्हारे पास एक हफ्ते का समय है । ”
मैडम शीना की बात सुनकर उषा आवाक सी खड़ी रह गयी । उसके पावों से तो मानो ज़मीन ही खिसक गयी थी । उसने सपने में भी कभी पूजा के लिए ऐसा नहीं सोचा था । ये सच है कि उसने पूजा के लिए खुद को बर्बाद किया था मगर पूजा की बर्बादी ……. शायद वो उसकी पेट की जाया नहीं होती तो एक बार ये ख़याल उसके मन में आ भी जाता मगर एक माँ इतनी निर्दयी नहीं हो सकती । उम्र के साथ अब उषा की डिमांड भी कम होने लगी थी । लोग बिस्तर पर गर्मी पसंद करते थे ना कि उषा जैसी कोई अधेड़ और ठंडी औरत । आज पहली बार उषा को अपनी बेफ़कूफी का एहसास हुआ था । सामने खड़ी मैडम शीना उसे नए ज़माने की किसी कोठे की मालकिन से कम नहीं लग रही थी जो मज़बूर और बेसहारा औरतों को अपने जाल में इस तरह से फँसाकर अपना प्रोडक्शन हाउस चलाती थी । उषा बिना कुछ कहे ही वहाँ से चुपचाप निकल गयी ।
घर पहुँच कर उषा ने पूजा से सामान बाँधने को कहा क्योंकि अब उसने दिल्ली वापस जाने का निर्णय ले लिया था । इन दो सालों में बहुत कुछ बदल गया था । पूजा भी अब काफी खोई -खोई सी रहने लगी थी । दिल्ली पहुँच कर उषा ने अपने घर की राह पकड़ी ,वही घर जिसको उसने दो साल पहले छोड़ दिया था । दिल्ली की सड़कें अब उसे उसकी बीती हुई ज़िंदगी की याद दिला रही थी ।
उषा लाल w /o किशोरी लाल ,नेमप्लेट पढ़ते ही उषा कि आँखों से आँसू बह निकले । किशोरी लाल का प्यार और विश्वास अब भी उसके साथ ही जुड़ा हुआ था और उसका विश्वास और प्यार दोनों ही वह अब खोकर वापस आयी थी । अपने घर के दरवाज़े पर खड़े हुए उसने जैसे ही घंटी बजाई तो आधी रात को आँखों में नींद लिए जैसे ही किशोरी लाल ने दरवाजा खोला तो उषा और पूजा को देखकर वह एकदम से दंग रह गए । दो साल पहले ऐसी ही एक रात को उनकी बसी-बसाई दुनिया उजड़ गयी थी जिसके दुबारा बसने की उम्मीद अब वो लगभग खो चुके थे । उन्होंने अब तक उषा को दिल से भुला दिया था मगर अपनी बेटी पूजा को वो नहीं भुला पाये थे । पूजा को देखते ही वो उसके गले से लगकर रो पड़े । पूजा भी अपने पिता से ऐसे चिपकी थी मानो वो मौत से झूझ कर वापस आयी है ।
इससे पहले कि बाप-बेटी एक-दूसरे को कुछ कह या समझा पाते ,उषा फर्श पर धम से गिर पड़ी । किशोरी लाल ने दौड़ कर उसे अपनी बाहों में ले लिया मगर उषा की साँसें अब मानो ख़तम सी होने लगी थीं । उषा ने ज़हर खा लिया था । किशोरी लाल अब फूट-फूट कर रो पड़े । उन्होंने उसे बाहों में भर कर उससे सिर्फ इतना पूछा ,” उषा ,बताओ मेरी गलती क्या थी जो तुम मुझे छोड़ कर उस तरह से चली गयी थीं ?”
उषा ने हाथ जोड़कर उनसे माफ़ी माँगी और सिर्फ इतना ही वह कह पायी ,” अपराधी तुम नहीं हो , मैं हूँ ,जिसने सबके बिस्तर गर्म किये सिर्फ इस चाहत में कि तुम्हे नीचा गिरा सकूँ मगर उस गर्म बिस्तर को छोड़ दिया जहाँ तुमने और मैंने कई साल एक-दूसरे को एक ठंडक का एहसास दिया था । ”
यह कहकर उषा की आँखें हमेशा के लिए बंद हो गयी और किशोरीलाल इस तरह से भटकती हुई रूहों को एक गंतव्य को पाने की चाह करते हुए भगवान के आगे नतमस्तक होकर झुक गए ॥