बेटों से प्यार, बेटियों का तिरस्कार! – Hindi Short Story on Gender Discrimination by Parents
सुजाता की शादी उसके माता-पिता ने बीस साल की छोटी उम्र में ही कर दी! वह अपना ग्रैज्युएशन भी पूरा नहीं कर पाई थी कि सौरभ से उसकी शादी की बात चल पडी! सौरभ एक सरकारी कर्मचारी था और किसी सरकारी दफ्तर में हेड-क्लर्क था! सुजाता से दस साल बड़ा था फिर भी रिश्ता तय हो गया और दो महीनों के भीतर शादी भी हो गई! बेचारी सुजाता मन मार कर रह गई!
सुजाता से छोटी दो बहनें और एक भाई भी था सो सुजाता के माता-पिता ने सुजाता को ससुराल भेज कर एक बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली! सुजाता के पिता कपडे की एक दुकान पर मुनीम थे. उनकी कम तनख्वाह में ही यह परिवार अपना गुजारा कर रहा था! अब माता-पिता का सारा ध्यान सुजाता से छोटे लड़के वसंत पर था! वसंत पढ़ाई में सामान्य ही था,बारहवी क्लास में पढता था. उसे मोटी फीस वाले इंग्लिश मीडियम के स्कूल में उन्होंने दाखिल करवाया था!डॉक्टर जो बनाना चाहते थे! उसकी पढ़ाई पर वे खुल कर खर्चा करते थे. महंगे टयूशंस भी उसके लिए उपलब्ध कराए गए थे! सोच रहे थे वह डॉक्टर बनेगा तो बहुत कुछ कमा लेगा. उनकी सारी परेशानियां दूर हो जाएगी. जीवन में सुख ही सुख होगा. बेटियाँ क्या ख़ाक देती है!
सुजाता की दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई पर या उनके लालन-पालन पर माता-पिता खास ध्यान देते ही नहीं थे. वे कहते थे ‘लड़किया है. सरकारी स्कूल में जितनी पढ़ाई कर लेगी ठीक है. उम्र में आने पर उनकी भी शादियाँ कही ना कही कर ही देंगे. आखिर बेटियाँ बोझ ही तो होती है. और भगवान ने हमें तीन तीन बेटियाँ दे दी. पता नही कौन से जन्म के पाप की सजा है ये!
बेटा वसंत बारहवी भी, दो बार परीक्षा दे कर पास हुआ! डॉक्टर कहाँ से बनना था? कोलेज में भी पढ़ने में फिसड्डी ही साबित हुआ. बी.ए. भी पास नहीं कर पाया. अब पिताजी ने अपनी सारी जमा-पूंजी खर्च कर के और अपना मकान तक गिरवी रख कर कर वसंत के लिए रेडिमेड कपड़ों की दुकान ले ली और काम शुरू करवा दिया! आखिर उनका बेटा ही तो था! बेटियों की तरह सिर पर बोझ थोड़े ही था?
सुजाता की एक बहन नताशा. बारहवी पास कर के किसी दुकान पर सेल्स गर्ल का काम करने लगी. अब माता पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी. शादी पर आने वाले खर्च की चिंता भी सताने लगी. लेकिन नताशा ने अपने लिए खुद ही लड़का ढूंढ लिया और आर्य समाज मंदिर में शादी भी कर ली! उसकी शादी की चिंता अब दूर हो गई थी!
वसंत की रेडिमेड कपड़ों की दुकान अच्छी चल पडी लेकिन अब वह माँ-बाप की बिलकुल ही इज्जत करता नहीं था. रोजाना घर में झगडे होते थे. वह कहता था कि माँ-बाप ने मुझ पर एहसान थोड़े ही किए है. जो कुछ किया वह करना तो उनका फर्ज था! यह परिवार अब किराए के मकान में रह रहा था! बड़ी बेटी सुजाता अब दो बेटियों की माँ बन चुकी थी. उसका कभी-कभार आना भी माँ-बाप को अखरता था! दूसरी बेटी नताशा कभी माँ-बाप से मिलने आती ही नहीं थी! तीसरी बेटी नम्रता पढ़ाई में बहुत ही अच्छी साबित हुई. वह स्कॉलर-शिप ले कर पढ़ती रही और सी.ए. बन गई! उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई और बाद में उसने एम्.बी.ए. भी कर ली!
वसंत ने एक अमीर बाप की बेटी से लव्ह-मैरिज कर ली और अलग से फ़्लैट ले कर रहने लगा! अपने सास-ससुर से उसकी पत्नी की बनती नहीं थी! अब माता-पिता के साथ छोटी बेटी नम्रता ही रह गई! वही घर चला रही थी. उसकी तनख्वाह से घर अच्छी तरह चल रहा था! किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन उसके माँ-बाप को अब नई चिंता सताने लगी कि अगर नम्रता शादी कर लेती है तो उनका क्या होगा? उनका खर्चा कैसे चलेगा? वे कहाँ रहेंगे?
अब माता-पिता पछतावे की आग में जल रहे है कि बेटे और बेटियों में उन्होंने फर्क क्यों किया? बेटियों को प्यार क्यों नहीं दिया? बेटियों को कुछ दिया ही नहीं है तो उनसे अपेक्षा भी क्या कर सकतें है? क्या नम्रता को शादी कर के ससुराल जाने से रोक सकतें है? इस कहानी का कोई अंत नहीं है. हां! इस कहानी से बेटे और बेटियों में फर्क करने वाले माता-पिता शिक्षा जरुर ले सकतें है कि बेटियों को भी मान, सम्मान, प्यार और इज्जत देना उनका फर्ज है. बेटियाँ भी बेटों की तरह, उन्ही की संतान है!
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