Sr. Clerk always pretends busy, not doing his duty sincerely in office & house as well.Late in office Returns home late.Read Hindi social story
तू चीज बड़ी है मस्त – मस्त है.यह बात किसी युवती के लिए नहीं बल्कि युवक ( चाल्लिस – पैताल्लिस साल के लोग भी इस युग में अपने को युवक ही समझते हैं ) के लिए कह रहा हूँ . ये कार्यालय में वरीय लिपिक हैं ,जिनको बोलचाल की भाषा में बड़ा बाबू भी कहते हैं. ऐसे कार्यालय में काम करते हैं जिनका कोई देखने – सुनने वाला नहीं . सभी मालिक हैं , नहीं तो कोई नहीं . आप सुधी पाठक हैं , समझ गये होंगे कि भाई साहब कहाँ के सेवक हैं .साढ़े नौ तक कार्यालय पहुँच जाना चाहिए , लेकिन अभी तो सोकर उठे हैं . इनका दोष नहीं है कि ये देर से क्यों उठते हैं . इनको झूठी बातों से परहेज है . सच्ची बातों या घटनाओं में इनकी रुचि है . कहते हैं कि जबतक सावधान इंडिया न देख लें तबतक इनका पेट का पानी नहीं पचता . सीरियल की कथा व कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित होती है.
तो मेरे सुधी पाठक ! बड़े बाबू को सावधान इंडिया देखने की लत लग गयी है . रात्रि साढे दस से साड़े ग्यारह तक रोज देखते हैं . इतनी वक़्त तक इनकी पत्नी , बाल – बच्चे सभी सो जाते है. लेकिन बड़ा बाबू टकटकी लगाकर , करवट बदल बदलकर , देखते रहते हैं , तबतक जबतक क्लाईमेक्स चोटी पर चढ़कर फर्श पर चारो खाने चीत न हो जाय. इनको बड़ा मजा आता है. अब आप सोचिये , जो व्यक्ति रात को बारह , एक बजे तक जागते रहे , वह कब सोये और कब उठे ?
अब उठ कर बैठ गये हैं विछावन से . खैनी का डब्बा निकाल कर खैनी आहिस्ते – आहिस्ते मल रहे हैं . दो – चार बार ठोंक लगाए ही थे कि पत्नी एक प्याली चाय लेकर सेवा में हाजिर हो गयी. खैनी को सावधानी से पुडिया दिए , चाय की चुस्की लेने के बाद खैनी का आनंद उठाने का इरादा है. पत्नी का चेहरा रक्त सा लाल हो उठा है . भीतर ही भीतर पति पर गुस्सा आ रहा है , लेकिन क्या करे ? अबला जो ठहरी ! क्षण भर ठिठक गयी . कुछ और बात हो कहने के लिए पति के पास . लेकिन पति के पास अभी कुछ कहने के लिए नहीं है . नित्य क्रिया से निपट कर बड़ा बाबू तैयार हैं – ऑफिस जाने के लिए . बाईक की चाभी नहीं मिल रही , न ही ऑफिस की . घर को सर पर उठा लेते हैं . पत्नी पति की हर गलती से वाकिफ है . उनकी नस – नस पहचानती है . दोनों चाभियाँ तकिये के नीचे मिलती हैं . बड़ा बाबू इत्मिनान की सांस लेते हैं और ऑफिस के लिए कूच ( यही शब्द उपयुक्त प्रतीत होता है ) कर जाते हैं .
ऑफिस पहुँचने के साथ बड़ा बाबू का रौब शरू हो जाता है : मिशिर जी , हराधन ! नहीं देख रहा हूँ . बच्ची का फीस देने गये हैं . और दत्ता बाबू ? फोन आया था , थोडा लेट से आयेंगे , घर में कुछ गेस्ट आ गये हैं . साहब भी तो ! मन ही मन ( चलो जान बची ) सोचते हैं . मिशिर जी ! साहब भी तो अब तक नहीं आये . यह कहकर बताना चाहते हैं कि उसने आने में लेट की तो कोई गुनाह नहीं किया . साहब लोग भी तो ऑफिस लेट से ही आते हैं , वे .. साहब दौरे से देर रात को लौटे हैं , फर्स्ट हाफ में नहीं आयेंगे , कोई जरूरी काम हो तो बंगले पर ही … ? कई लोग ,जिनका काम सलटाने के लिए फाईल या आवेदन – पत्र बड़े बाबू के टेबुल पर पड़े हैं , इधर – उधर वक़्त काट रहे थे , वे दौड़ पड़े यह सुनते ही कि बड़ा बाबू का शुभागमन हो चूका है. सभी लोग टेबुल को घेरकर खड़े हो जाते हैं . बड़ा बाबू जो अपना सर नीचा किये हुए हैं , ऊपर नहीं उठा पाते. फाईलों को उलटाते – पुलटाते हैं , क्षणभर के लिए सर उठाते हैं और उबल पड़ते हैं . मिड डे मिल की फाईल खोज रहा हूँ , मिल नहीं रही हैं , बड़ा साहब ( साहब के साहब को बड़ा साहब कह सकते हैं .) ने तुरंत तलब किया है . और आपलोंगो को अपने काम की चिंता लगी है और इधर मेरी नौकरी जानेवाली है . आज जाईये , आज साहब भी आनेवाले नहीं हैं , तो ऑर्डर कौन देगा . मेरे फाईल बढ़ाने से भी कोई फायदा होनेवाला नहीं आज आप सब को. प्लीज़ कल आईये . कल हो जाएगा न ? कल आईये तो , फिर देखते हैं क्या कर सकते हैं ! एक सख्स साहस बटोरकर पूछ देता है : साहब सेकेण्ड हाफ में आनेवाले हैं . रूक जाऊं क्या , बड़ा बाबू ? आपकी मर्जी , लेकिन नहीं आये तो … बेमतलब के परेशान होंगे. तो कल हो जाएगा न मेरा काम ? कह दिया न हो जाएगा , फिर दिमाग क्यों चाटते हैं मेरा ? अंतिम आदमी भी निराश होकर लौट जाता है. बड़ा बाबू राहत की सांस लेते हैं . गोपू ( चपरासी है ) ! जी सर !
दो कप चाय लेते आ .
गोपू जानता है कि एक अपने लिए और दूसरा मिशिर जी के लिए . बड़ा बाबू के देर – सबेर न आने पर मिशिर जी ही ऑफिस बखूबी मैनेज करते हैं , बड़ा बाबू पर किसी तरह की आंच नहीं आने देते हैं . तीन बजे के करीब साहब का आगमन होता है . ऑफिस में जान आ जाती है. चहल – पहल से ही मालूम पड़ने लगता है कि ऑफिस में साहब मौजूद हैं . गोपू स्टूल खींचकर साहब के चेंबर के सामने बैठ जाता है . वह हर आने – जानेवाले पर निगाह टिकाये हुए है. अब वह किसी की बात सुनने से गुरेज करता है . बड़ा बाबू के बुलाने पर भी इशारे से बता देता है कि अन्दर साहब बैठे हुए हैं न जाने कब घंटी बजा दे . कोल attend न करने से शायद खफा हो जाय . वह अपनी जगह पर प्रहरी की तरह मुस्तैद है. साहब भी इस बात से वाकिफ हैं कि जबतक वे चेबर में रहेंगे , गोपू हिलेगा नहीं.
बड़ा बाबू को मुतने ( पेशाब करने ) की फुरशत नहीं है. अभी तक दस बार बुला चुके हैं साहब उनको किसी न किसी मसले पर . मिशिर जी पर खीज उतार रहे हैं कि मिड डे मिल की फाईल नहीं मिल रही है. मिशिर जी कहते हैं :
आप विगत शनिवार को स्टडी करने फाईल घर ले गये थे , याद कीजिये .
हाँ , याद आया , टेबुल की दराज में …
जीप लेकर जाईये और लाकर पुट – अप कर दीजिये . चिंतामुक्त हो जाईये .
बड़ा बाबू जीप लेकर क्वार्टर जाते हैं और फाईल लाकर साहब को थमा देते हैं . जान में जान आ जाती है. सर का पसीना पोंछते हुए , होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए कुर्सी पर धम्म से बैठ जाते हैं . मिशिर जी की तरफ मुखातिब होकर बोले : साहब को बड़े साहब ने बुलाया है मिड डे मिल की फाईल लेकर – वे गये , पता नहीं कब तक आयेंगे . मिशिर बाबा ! ( जब बड़ा बाबू ज्यादा खुश होते हैं तो मिशिर जी की जगह मिशिर बाबा से संबोधित करते हैं ) आज आपने नौकरी बचा दी , सस्पेंड तो हो ही जाते .
एक बात कहूं , बुरा तो नहीं मानेंगे ?
खखस ( खुले दिल से )से बोलिए .
आप फाईलों को क्यों जमा कर के रखते जाते हैं ? क्यों नहीं वक़्त पर निपटा देते हैं ? चंद चांदी के सिक्कों के लिए ? देर से ऑफिस आते हैं – सभी लोग भले न बोले आपके सामने , लेकिन आपको अच्छी नज़र से नहीं देखते हैं . देर तक ऑफिस में रहते हैं किस माया – मोह से . सुना है बच्चे सब पढने – लिखने में फिसड्डी हैं . विषयवार टीयुसन लगा दिए हैं ,फिर भी . हीरक रोड में घर बनवा रहे हैं . घर नहीं – कोठी – क्या जरूरत पडी है आपको अभी , सीमेंट वाले , छड़ वाले , ईंट वाले , राशन वाले आदि -आदि शुबह व शाम पैसे वसूलने आ धमकते हैं . आप ने खुद अपने ऊपर मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर लिया है. आप प्रतिभावान छात्र रहे , मेरिट के बल पर नौकरी ली , और आप के बाल – बच्चे ऐसे बिलो एवेरेज . आप किसके लिए जमीन – जायदाद खरीद रहे हैं ? दौलत जमा कर रहे हैं ? न आप ऑफिस का काम ठीक से करते हैं न ही घर का , सच्चाई कडवी होती है , लेकिन हकीकत यही है. बुरा न माने . मैंने एक दिन भी आपको सुख – शांति में नहीं देखा , न ही पाया . आपके रहते या भगवन न करे , आप के न रहते लड़के लायक न निकले तो ऐसी दौलत , संपत्ति किस काम की ?
किसी कवि ने इस सन्दर्भ में लाख टके की बात कही है :
का सपूत , का धन संचय ,
का कपूत , का धन संचय |
अर्थात सपूत यदि है तो धन संचय करने की क्या आवश्यकता है ? अर्थात कोई आवश्यकता नहीं है. सपूत तो स्वं धन अर्जित कर लेगा . दूसरी ओर यदि कपूत निकल गया तो जितना भी धन अर्जित करके रख लिए हैं , वह कुछेक समय में ही नष्ट ( बर्बाद ) कर देगा . ये दो बातें हैं : आप की समझदारी पर निर्भर करती है कि आप किसे चुने – पहला या दूसरा .
बड़ा बाबू ! अब भी वक़्त है , सुधरने का , नहीं तो … ?
मुझे देखिये , कहीं दूसरी जगह जाने की जरूरत नहीं है . मैं वक़्त पर आता हूँ और वक़्त पर अपने सभी कामों को पूरा करते हुए चला जाता हूँ . साहब भी मुझे रोक नहीं सकते .
घर के काम को भी उसी मुस्तैदी से करता हूँ . मेरा बड़ा लड़का आई . आई . टी . खड़गपुर में पढता है. दूसरा लड़का डी. पी . एस . में एलेवेन का छात्र है. बच्ची भी डी. पी. एस. की आठवीं की छात्रा है. मेरी सेलरी आप से ज्यादा नहीं है , लेकिन मैं हिसाब से चलता हूँ . अपनी औकात के मुताबिक खर्च करता हूँ . आप समझदार हैं ,नेक इंसान भी हैं . आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि अब से ही , आज से ही , अपने को बदल दीजिये . उठिए और घर चलिए .
ऑफिस का वक़्त ख़त्म हो चूका था . मिशिर जी उठकर जाने लगे तो बड़ा बाबू भी साथ हो लिए .
बड़ा बाबू को शाम ढलने से पहले घर आने पर पत्नी पड़ोस से दौड़ कर आ गयी. लड़के , जो एलसीडी में गेम खेल रहे थे , भौंचक रह गये पापा को अचानक देखकर वो भी इतनी जल्द . पत्नी नास्ता बनाने में लग गयी और बच्चे होमवर्क बनाने बैठ गये . घर का माहौल , महज एक दिन में ही , बदला – बदला सा नज़र आने लगा . बड़ा बाबू ने खैनी का डब्बा उठाकर फेंक दिया और बजरंगवली को साक्षी मानकर कसम खाई कि अब से अपने पर , बच्चों पर , परिवार पर और ऑफिस के कामों पर ही ध्यान केन्द्रित करेंगे , दूसरी चीजों पर कदापि नहीं .
यहीं स्टोरी ख़त्म नहीं होती है . अगले दिन बड़ा बाबू अहले शुबह उठ गये. नहा – धोकर हनुमान चालीसा का पाठ पूरी भक्ति एवं श्रद्धा के साथ किये , लड्डू चढ़ाये और प्रसाद स्वरुप अपने एवं आस – पड़ोस के बच्चों को बाँटें . पहली वार जीवन में सुख – शांति की अनुभूति हुयी उनको . समय पूर्व ही ऑफिस पहुँच गये . मिशिर जी पहले से ही उपस्थित थे और अपने कामों को निपटाने की सूची बना रहे थे . बड़ा बाबू को देखते ही समझ गये कि उनकी बातों का असर हो गया है . वे निहायत खुश थे इस बात से कि एक बिगड़ता हुआ परिवार समय रहते ही सम्हल गया है .
बड़ा बाबू मिशिर बाबा के समीप नतमस्तक खड़े हो और चरण छूने ही वाले थे कि वे ( मिशिर जी ) उठकर खड़े हो गये और बड़ा बाबू को अपने सीने से लगा लिए , गोपू पीछे खड़े – खड़े मुस्कुरा रहा था इस दृश्य को देखकर .
लेखक : दुर्गा प्रसाद, गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २७ जुलाई २०१३ . दिन : शनिवार |
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