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Mountain Of Problems (Part-5)

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag marriage | money

People spends money on daughter’s marriage taking loan beyond capacity only for pump and show. Later on face problems and lose peace of mind. Read Hindi social story

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Mountain Of Problems (Part-5)
Photo credit: sssh221 from morguefile.com

एक अंगरेजी में बहुत ही लोकप्रिय कहावत है – “ Cut your coat according to your cloth . ” लेकिन कितने लोग हैं हमारे बीच , जो इसके अर्थ को समझते हैं , या समझ भी गये तो इसे अपने दैनिक जीवन में उतारते हैं , अपने आचरण व व्यवहार से आनेवाली पीढी – अपने बाल – बच्चों व बच्चियों में इस बाबत एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करते हैं . ऐसे लोगों की संख्या या प्रतिशत हमारे समाज में कितनी है , इनकी पहचान क्या है , बताने की आवश्यकता नहीं महसूस हो रही है . ये आपको किसी अवसर विशेष पर औकात या सामर्थ्य से अधिक व बहुत अधिक खर्च करते हुए मिल जायेंगे .

हम अपने दैनिक जीवन के बातचीत में न जाने ऐसे कितने कहावत व मुहावरों का प्रयोग करते हैं . उन्हीं में से एक है उपरोक्त कहावत – “ Cut your coat according to your cloth . ” शाब्दिक अर्थ है,जो बिलकुल स्पष्ट है , कि अपने कोट को इसके के लिए जो कपडे हैं , उसको ध्यान में रखते हुए ही काटिए . यदि बिना सोचे – समझे कपड़े कम या ज्यादा काट दिए तो लेने के देने पड़ सकते हैं . यह तो हुआ शब्दार्थ , लेकिन भावार्थ कुछ और है , जो व्यापक है : आप अपने सामर्थ्य या औकात के अनुसार या मुताबिक ही कोई काम कीजिये . इसके भावार्थ में एक हल्की – फुल्की चेतवानी (Warning ) भी छुपी हुयी है . चेतवानी यह है कि यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा , फिर बर्बाद होने से अपने आपको रोक नहीं सकते . इस कहावत में जो जिन्न है , वह चेतवानी के लहजे में अपनी बात व्यक्त कर देता है. आप उसकी इस बात को माने या न माने आप पर निर्भर करता है . वक़्त रहते मान लिए तो आप का भला होगा , दूसरी ओर , न माने तो आप को बुरा होगा . सही या गलत निर्णय करना आप का काम है , मेरा ( जिन्न का ) नहीं .

अब ऐसे लोगों को खोजने के लिए विदेश – यात्रा पर जाने की कोई जरूरत नहीं , हमारे देश में ही ऐसे एक नहीं , दो नहीं , बल्कि सैकड़ों , हज़ारों लोग मिल सकते हैं वो भी हमारे आस – पास . तो देर किस बात की ? चलिए मेरे साथ इस मुहीम में …

यह शहर का वी आई पी सामुदायिक केंद्र है . यहाँ आज गुप्ता जी की लडकी की शादी है. रिसेप्सन भी है. शहर और शहर के बाहर के माननीयों को आमंत्रित किया गया है . विशिष्ट अतिथियों का विशेषरूप से ख्याल रखा गया है. कई होटलों के कमरे इनके रहने – सहने , खाने – पीने एवं सेवा – टहल के लिए आरक्षित हैं . दूल्हा और उनके प्रिय पात्रों के लिए पांच तारा होटल में समुचित व्यवस्था की गयी है. बारातियों के ठहरने के लिए अतिथि गृह में उपयुक्त व्यवस्था की गयी है. मुख्य द्वार से ही रंग – विरंगे बल्बों एवं झालरों से सजावट की गयी है . प्रवेश द्वार से लेकर मंच तक सजावट और रख – रखाव पर दिल खोलकर खर्च किये गये हैं .

केटरर और खाने बनानेवाले बाहर से मंगाए गये हैं . वेज व ननवेज – सभी तरह के व्यंजन एवं पेय पदार्थों की व्यवस्था की गयी है. आगंतुकों के मनोरंजन के लिए आर्केस्ट्रा पार्टी मंचासीन है. नृत्य – संगीत का दौर चल रहा है . ‘ तू चीज बड़ी है मस्त – मस्त ’ से लेकर ‘ तुम्हीं हो बंधू सखा तुम्हीं ’ पर युवक युवतियां थिरक रहे हैं . जवान और बूढ़े लुत्फ़ उठा रहे हैं . चारों तरफ वाहवाही ! बारात मध्यरात्रि के करीब बाजे – गाजे के साथ नाचते – गाते द्वार लगती है . शुभ मुहूर्त में शादी होती है – शुबह होते ही लड़की की विदाई हो जाती है. लड़की की विदाई हो जाने के बाद के दृश्य से सभी अवगत हैं , इसलिए इस पर प्रकाश डालना मैं आवश्यक नहीं समझता .

इतना अवश्य कहता हूँ कि घर के सभी लोग जहां जगह मिली वहीं फ़्लैट ( सो जाना ) हो गये हैं . भूख – प्यास व नींद अपने वश में नहीं होते. लेकिन गुप्ता जी जाग रहे हैं , चाहे सुख से हो या दुःख से हो , पर जाग रहे हैं – जागना पड़ रहा है . आप ने कभी अपनी लड़की की शादी की होगी तो आपको इसका कटु अनुभव होगा . बाजे गाजेवाले, आरकेष्ट्रावाले , केटररवाले – इन सब को गाड़ी पकड़नी है. फूल पेमेंट के लिए द्वार पर धरना दिए हुए हैं . घंटे भर की हुज्जत से बाकी राशि की भुगतान चाहे हंसकर हो या रोकर हो गुप्ता जी को करनी पड़ती है . लोकलवालों को ‘ कल आना ’ कहकर जान छुड़ा पाते हैं . लड़की की शादी एक महीने पहले ही तय हो गयी थी. जिससे मिलते एक ही राग अलापते , ‘ लड़की की शादी है अगले महीने , लड़का इंजिनियर है बैंगलोर में किसी एम एन सी . बीस पेटी ( बीस लाख रुपये ) का डिमांड था , लेकिन पंद्रह ही में ही मान गये . बड़े अच्छे लोग हैं . घर – वर दोनों ही मनलायक मिला . पंद्रह पेटी तो तिलक में ही ले लिए – पांच पेटी खर्च – वर्च के लिए बड़ी मुश्किल से छोड़ा पाए.

बंगला में एक लोकोक्ति ( कहावत ) है , ‘ भीतोरेर मार सहदेवे जाने.’ अर्थात भीतर की मार सहदेव ही जानते हैं . किन – किन लोगों से और किस – मद में गुप्ता जी ने ‘ लड़की की शादी है ’ कहकर कर्ज लिए हैं , वे ही जानते हैं . कोई दूसरा नहीं .

एक दिन काफी परेशान थे . कुछ गुर्गे उधार की रक़म वसूलने आ धमके थे और बुरे परिणाम की धमकी देकर भी गये थे . मुझसे मिलने चले आये और सोफे पर धंस गये . अपना दुखड़ा सुनाने लगे :
नेहा की माँ ने दो लाख के जेवर ले लिए – एक लाख बकाया है. कपड़ेवाले पचास हज़ार पाते हैं . राशनवाले को सत्तर हज़ार देना है. डेकोरेटरवाले अपने दोस्त ही ठहरे , लिहाज़वश नहीं तगादा करते हैं . उनको भी एक लाख से ऊपर ही बकाया होगा . किसी दिन मांगने आ सकते हैं . बग्घीवाले को दस हज़ार देना है . शाम को आ धमकेगा . मेरे पास अभी दस कौड़ी भी नहीं है . दोनों दामाद से पांच – पांच पेटी पहले ही ले चूका हूँ . अब मेरा और मांगने का मुंह नहीं है.
कैलाश जी ! आप से क्या छुपाना ? आप तो मेरी माली हालत से …
मेरे ऊपर मुशीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है . समझ में नहीं आता कि क्या करूं , क्या न करूं ?

गुप्ता जी ! आपने तीसरी लडकी की शादी में औकात से बाहर खर्च कर दिया . कई अच्छे लड़कों का रिश्ता आपने ठुकरा दिया . एक तो मैंने ही बताया था आपको – लड़का डीपीस में अध्यापक था. आपकी लडकी एम.ए. बी.एड. है – एक ही प्रोफेसन के – सुख से कटती जिन्दगी दोनों की , लेकिन … कोई विशेष मांग भी नहीं थी , तीन – चार पेटी में ही काम चल जाता , लेकिन आपने रिजेक्ट कर दिया , आपके सर पर तो इंजिनियर का भूत सवार था. अभी तो … आगे – आगे देखिये होता है क्या ? आपने अपनी लडकी के भावी जीवन के बारे नहीं सोचा . मैंने कई बार आपको याद दिलाया , लेकिन आपने एक नहीं सूनी . अब तो जो मुशीबतों का पहाड़ सर पर है , उसे तो ढ़ोना ही पड़ेगा , कोई विकल्प नज़र नहीं आता . मेरा सुझाव है कूल माईंड से , जो भी समस्या आ जाए , उसे समाधान करना है , वो भी आपको ही . रहा दस हज़ार रुपये की बात , मैं दे देता हूँ , लेकिन एक बात गाँठ में बाँध लीजिये कि आज से , अब से कोई काम औकात के बाहर नहीं करेंगे . मिथ्याभिमान और दिखावे से परहेज करेंगे . चढ़ाने वाले ताड़ पेड़ ( Palm Tree ) पर चढ़ा देते हैं , लेकिन उतरना खुद पड़ता है.

मैं घर के भीतर गया और दस हज़ार रुपये लाकर गुप्ता जी को , मुशीबत की घड़ी में , थमा दिया . गुप्ता जी तो चले गये खुशी – खुशी , लेकिन मैं सोच में पड़ गया कि … ?
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : ३१ जुलाई २०१३ , दिन : बुधवार |
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