नारायण पागल: NARAYAN PAGAL – This social Hindi story is about Narayan , who become mad due to certain conditions and behavior of the society towards him.
कहने लिखने में कोई संकोच नहीं है कि वो एक पागल था । अलमस्त दुनिया से अलग अपने रंग में रंगा हुआ शांत सा रहने वाला मस्त मौला । ऐसे व्यक्तित्व को अक्सर दुनिया पागल , बावरा आदि शब्दों तराज़ू में तौल देती है ।
कोई नहीं जनता वो था , कहाँ से आया था , उसका परिवार कौन था ,क्यों वो अकेला था । बस लोगों कि नज़रें उसके घने बालों और उलझी लटों में खोये शून्य आवरण और फटी पुरानी वेश – भूषा को भेदती चली जाती थी और उसे असामाजिक प्राणी अथार्त पागल घोषित कर जाता था । उसकी लटों से ढके झुरियतों से भरे मुख विषाद कि कालिख पुती थी । बहुत कठोर आघात कि पीड़ा से मुख कि क्षीणता का ज्ञान होता था । दो काले कांच टुकड़ो में अभी भी कोई आस थी । मैली नासिका और होंठों में हमेशा कि तरह कम्पन हुआ करता था । और इन सभी में उसके फटे कम्बल और फटे कुर्ते में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके कारन लोग उसकी ओर जरा सा भी ध्यान दे ।
वह तो राह पे चलने वालों का ,खेलते बच्चों का ,व्यवसाइयों का एक उपहास का केंद्र था । लेकिन एक गली थी चिमस्य नौला नाम से प्रसिद्ध थी, प्रायः मुख्या बाज़ार और सामान्य बाज़ार को जोड़ती हुई एक गली जिसमे बहुत से लोगों का जाना होता था, उसे प्रिय थी ।
उसे लोगों के मध्य रहना अच्छा लगता था, इसलिए प्रायः वो बच्चों द्वारा किये जेन वाली शैतानियों और सज्जन कहे जाने वाले लोगों के गालियों को भी वो सह जाता था ।लेकिन अत्यधिक क्रोध आने अथवा खुद को बचाने के सम्बन्ध में वो एक बिच्छू घास, एक प्रकार कि वनस्पति जिसे छू लेने से शारीर में तीव्र जलन होने लगती है, को अपना हथियार बना लेता था।
उसके सम्बन्ध में प्रचलित कुछ भ्रांतियां कुछ कथाएं थी , जिनमे ज्यादा भ्रांतियां थी , कि वो पागल कैसे बना । ये भ्रांतियां किसी भी प्रकार से सच को उजागर नहीं करती थी । फिर भी नारायण पागल के प्रति नकारात्मक भाव से सभी का इन सब में तीव्र विश्वास था । फिर भी बहुत पुराने समय से उस स्थान पर रह रहे लोगों से ज्ञात हुआ कि किसी समय उसका भी एक परिवार था , अच्छा व्यक्तित्व उसकी पहचान थी , खेत और ज़मीन सभी कुछ था उसके पास , कृषि उसका व्यवसाय था । पत्नी थी , एक बेटी थी , लेकिन ने धोखे से उसकी ज़मीन कब्जे में कर ली और इससे नारायण को तीव्र आघात लगा । उसने उबरने कि थकित कोशिश कि लेकिन दूषित जल के संपर्क में आने से उसकी बेटे पीलिया ग्रस्त हो गयी और इलाज़ के लिए सम्भव धन का आभाव होने के कारन उसकी पुत्री का निधन हो गया । एक और आघात उसे लग चूका था । अपनी रोजी रोटी का कोई जुगाड़ बनते न देख उसने बड़े शहर कि ओर करना बेहतर समझा और बड़े शहर में कोई ठिकाना न होने के कारण पत्नी को घर में रखना बेहतर समझा ।
लेकिन घर में रह रही पत्नी सुरक्षित नहीं थी । उसका बड़ा भाई अपनी बहु पर कु दृष्टि रखने लगा और एक बार वह अपने प्रयोजन में सफल भी हो गया और नारायण के पत्नी को खुद का अस्तित्व को बचने के लिए खुद को नष्ट करना पड़ा। उसने खुद पैर मिटटी तेल डालकर आग लगा दी, वो एक दरदनाक मौत से गुजरी । नारायण के घर लौटने पैर जब उसे यह बात पता चली तो इस बार लगे आघात को वो सहन नहीं कर पाया और ग़म को अपने अंदर सहमे एक आवारा समाज से बहिष्कृत एक पागल बन गया । कुछ और कहानियाँ थी जो उसके बड़े भाई द्वारा खुद को बचने के लिए फैलायी गयीं थी ।
उसने शहर छोड़ दिया था । इस सहर में नारायण का न तो कोई दोस्त था न कोई दुश्मन । उसे खाने कि चिंता थी न रहने कि । उसका कोई सहारा नहीं था सिवाय उस कुत्ते के जो समय समय पर उसके सा कोई उस कुत्ते को रोटी दे देता तो नारायण को भी रोटी मिल जाती थी । और नारायण को रोटी मिलती तो वो उस कुत्ते को खिलाना नहीं भूलता था । इस प्रकार वो एक दूसरे पर निर्भर थे । लेकिन इन सभी एकाकी क्षणो में कोई ऐसा भी क्षण भी आया जब कोई उससे सहानुभूति भी रखता था ।
सुदूर किसी गाओं से आया एक विद्यार्थी जो आगे कि शिक्षा के लिए उस सहर में पढ़ने के लिए आया था, उसका नाम रमेश था । रोज अपने कोचिंग इंस्टिट्यूट से आते समय रमेश उसे खाने के लिए रोटी तथा कभी कभी पहनने के लिए कपडे दिया करता था ।उसका इंस्टिट्यूट उस गली से कुछ ही दुरी पर था । वो उससे इस कदर घुल मिल गया कि लोगों को रमेश और नारायण की दोस्ती नागवार गुजरी । सभी विद्यार्थी उसे चिढ़ाने लगे , लोग उसपे हस्ते रहे , लेकिन रमेश पे कोई असर नहीं पड़ा, उनकी दोस्ती बनी रही । इसी बिच नरायनॉर रमेश कि दोस्ती पर पूर्णविराम लग गया । रमेश कि एक पागल से दोस्ती के वाकये से उसके घर में खलबली मच गई, बात यहाँ तक पहुच गयी कि रमेश को शहर छोड़कर जाना पड़ा ।फिर से नारायण अकेला पद गया । और एक बार फिर संकीर्ण मानसिकता से घिरा संसार जीत गया । उसके बाद फिर वही क्रम उसपे समाज हँसता , कोई मारता और कोई भद्दे मज़ाक करता। एक दिन जब वह समाज कि संकीर्ण मानसिकता से परे दुनिया को अलविदा कहते शुन्य को तकते नेत्र शुन्य में विलीन हो जाते हैं ।
आज पहली बार नारायण का नाम सबके जुबान पर है । सभी उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक कि कहानियां गढ़ रहे हैं । उसके नाम पर प्रचलित भ्रांतियां, कहानियां फिर से रही हैं ग़म किसी को भी नहीं है । फिर भी अफ़सोस सभी जाता रहे हैं । सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सभी मित्र एक दूसरे को यह सन्देश पंहुचा रहे हैं ।सभी RIP लिखकर अपने दुःख के दिखावे को इस प्रकार व्यक्त कर रहे हैं जैसे नारायण के जीवन के सहचरी वही थे । अपने स्टेटस अपडेट डालकर खुद के लिए सहानुभूति बटोर रहे हैं जैसे एक समय में वो उसके निकट मित्र रह चुके हैं । इस समाज में वो आज मर चूका है और एक दिन के लिए विख्यात हो चूका है । भले ही जीवन भर वह दुखी रहा लेकिन मरने के बाद इस एक दिन का झूठा मनन शायद उसकी आत्मा को शान्ति दिला दे ।
***
नेहा सामंत