This Hindi story is about a young women who faced acid attack but did not loose hope and in the process was helped by a good looking young man. This story shows that people from the society have to come forward and help those women who have faced atrocities.
“आज फिर से लेट हो गई..यक़ीनन आज मेरी बैंड बजने वाली हैं..!”
घबराहट ने मेरी चलने की स्पीड को और बढ़ा दिया था. एक लड़की..जो उस भीड़ में हो के भी सबसे अलग सी दिखी. वो भी मेट्रो से अभी अभी उतरी थी..शायद! ना चाहते हुए भी मेरी आँखें उसके चेहरे को उत्सुकतावश भेदने की कोशिश करती रही. इसी कोशिश ने मेरी स्पीड कुछ कम कर दी थी. उसने अपने चेहरे को दुपट्टे से लपेट रखा था. फ़िर भी उसकी आँखें उस दुपट्टे के पीछे छुपे रहस्य की चुगली करती दिखी. उस चुगली करती आँखों ने मेरे अंदर और ज्यादा उत्सुकता भर दी थी और मेरे कदम मेट्रो स्टेशन के मेन गेट की तरफ़ बढ़ने के बजाय उसकी तरफ़ मुड़ गए.मुझसे रहा नही गया और…बड़ी हिम्मत करके आगे बढ़ी और अगले ही पल, “सुनो..!”
वो फिर मेरी तरफ मुड़ी, “हा! बोलिए..!”
मैंने उसकी आँखों में करीब से झाँका, वो आँखें दुपट्टे के पीछे छिपे रहस्य को उजागर करती दिखी. फिर भी, “क्या?..तुम्हारे साथ?…और कब?” मेरे अंदर तो जैसे सवालों का बवंडर ही उठ खड़ा हुआ. मैंने अपनी भावनाओं को तुरंत नियंत्रित करने की कोशिश की कि कही वो मेरे इन सवालों के बौछार से आहत ना हो जाये.
“आप जो भी मेरे बारे में सोच रही हैं…बिलकुल सही सोच रही हैं. मुझ पर एसिड अटैक हुआ था..!”
एक पल में ही मेरी आँखों की पुतलिया फ़ैल गई और कान तो जैसे सुन्न से हो गये. पता नही पर एक हृदयाघात सा महसूस हुआ. उन शब्दों ने मुझे ऊपर से नीचे तक हिलाकर रख दिया था. कुछ वक़्त लगा सामान्य होने में.
” आइ ऍम वेरी सॉरी! मेरा वो मतलब नही..मैं तो बस…जिज्ञासावश..ही..पुछा था..!”
उसने मेरा हाथ थामा और सहलाते हुए मुश्कुराकर बोली..”इट्स ओके! मुझे बुरा बिलकुल भी नही लगा…ये सवाल मेरे लिए नया नही हैं. पिछले 3 सालों से सुनती आ रही हूँ..! आप पूरा सच जानना चाहती हैं ना..!” मेरे हाथों को खींचते हुए एक कोने पे जा रुकी और चेहरे से दुपट्टा हटा के बोली, ” ये देखिये..मेरा पूरा सच…!”
उफ़! उसका विकृत पिघला हुआ चेहरा देख मेरा दिल तार तार हो गया. मैं पूरी जड़वत हो चुकी थी. ऐसा लगा जैसे उसके नही मेरे चेहरे पे किसी ने तेज़ाब फेंका हो और मुझे मेरा ही चेहरा जलता हुआ महसूस हुआ.मैं उस पल ये भूल ही चुकी थी कि मुझे ऑफिस भी जाना था. मेरे गालों पे आँसू ढुलक रहे थे और वो निर्वरत ही मेरे चेहरे पे निरंतर आते जाते भावों को चुपचाप देख रही थी. मैंने उसे सीने से लगाया और उसका चेहरा दुपट्टे से लपेटते हुए बोली, “मैं तुम्हारा नाम नही जानती फिर भी..दोस्त! तुम्हें कभी भी मेरी जरुरत पड़े..बस ये नंबर घुमाना मैं हाजिर हो जाऊँगी!”
मैंने फटाफट नंबर और अपना नाम एक पेपर पे नोट करके उसे थमाया. “मेरा नाम सुधा हैं और आपका..?”
“सारिका सिंह..!” हमदर्दी ने हमें एक पल में ही अच्छा दोस्त बना दिया था. एक दूसरे को अलविदा कर सुधा अपनी मंजिल की ओर बढ़ गई पर…मेरा मन बहुत बुझ सा गया था. ऑफिस जाने की मेरी हिम्मत ना हुई इसलिए सर को फ़ोन पे “हेलो सर! मैं आज ऑफिस नही आ पाऊँगी। तबियत ठीक नही लग रही। प्लीज! सर ररर..!! ओके! थैंक यू सर…!” वापस घर आ गई.
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मैंने इन घटनाओं के बारे में हमेशा अखबारों में और न्यूज़ चैनल्स में ही देखा और पढ़ा था और औरों की तरह “बेचारी” “बहुत बुरा हुआ ” जैसे शब्दों का प्रयोग कर खाली अफ़सोस ही ज़ाहिर किया. हम सभी के लिए वो महज एक घटना होती हैं और उस लड़की के लिए…पूरी जिंदगी का अंत..! उसके बाद उस लड़की के बारें में हममें से कोई भी ये जानने का बिल्कुल भी प्रयास नही करता कि उस के बाद उसका क्या हुआ? मेरा मन हमेशा ऐसे लोगों के प्रति घृणा से भर जाता हैं जो औरतों को खाली “उपभोग की वस्तु” या उसपे अपना “एकाधिकार” समझते हैं और विरोध करने का परिणाम हत्या, बलात्कार, किडनैपिंग और एसिड अटैक के रुप में भुगतना पड़ता हैं. पहली बार मुझे मौका मिला था ऐसी जिंदगी को करीब से झाकने का. भला कैसे हाथ से जाने दे सकती थी. सुधा के बारें में जानने की लालसा भी थी और जिज्ञासा भी.
सुधा मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन चुकी थी. हम अक्सर CCD’ में मिलते या फिर GIP मॉल’ में. वो अपनी हर बात मुझसे साझा करती और मैं…चुपचाप सुनती. कभी उसके दर्द को सुन के आँखों से आंसू छलक आते और कभी उसके प्यार के किस्से सुन के हंसी आ जाती. सबकुछ कितना अजीब था पर एक चीज बहुत अच्छी थी उसका प्यार…गोविन्द..! वो मेरे लिए कोतुहल का विषय था. आज सुधा मुझे गोविन्द से मिलवाने लाई थी.
“नमस्ते सारिका जी…!” गोविन्द तुरंत कुर्सी छोड़ मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ. मैं तो दंग रह गई कि इतना सुंदर लड़का सुधा जैसी वीभत्स कुरुप चेहरे वाली लड़की से कैसे प्यार कर सकता हैं और शादी जैसा बड़ा फ़ैसला भी कैसे ले सकता हैं भला? क्या वास्तव में भी रियल लाइफ हीरो होते हैं? मेरी आँखों को तो जैसे भरोसा ही नही हो रहा था पर जो सामने था उसे मैं कैसे झुटला सकती थी. मैंने भी मुश्कुराकर अभिवादन किया. हमने साथ में कॉफ़ी पी और बहुत सारी बातें भी की. दोनों पिछले 5 सालों से साथ में हैं. कभी एक दूसरे का साथ नही छोड़ा, उस घटना के बाद भी नही और अब शादी भी जल्द ही करने वाले हैं.
वो दोनों मेरे लिए किसी सेलिब्रिटी से कम ना थे. पिघले हुए मांस से बाहर निकलने को आतुर उन आत्मविश्वास से भरी आँखों की चमक बयाँ कर रही थी कि कितनी मेहनत लगी थी गोविन्द को उन्हें वापस लाने में. ये सब देखने के बाद दिल को कितनी ठंडक मिलती हैं और एक सुकून का एहसास होता हैं. ऐसे लोग वाकई में एक सच्चे मोती की तरह होते है जो हमें जीवन के हर मोड़ पे हर बार एक नई सीख दे के जाते हैं.
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आज बहुत ही ख़ास दिन हैं मेरे लिए…क्योंकि…आज मेरे सेलिब्रिटीज की शादी जो हैं. आज मेरा उत्साह देखने लायक था. फटाफट ऑफिस का काम ख़त्म कर सीधे मार्केट पहुँची. सोचा क्या दू जो उन दोनों के लिए यादगार रहे. तोहफ़ा पसंद करते करते एक घंटा बीत गया. नज़र घड़ी पे दौड़ाई तो शाम के साढ़े सात बज रहे थे. लेट होने के डर ने मुझे मेरे पसंद का तोहफ़ा दिला ही दिया था. मैं ख़ुशी ख़ुशी घर पहुंची और फटाफट अपनी पसंदीदा पिंक कलर की साड़ी पहन कर तैयार हुई जाने के लिए. शादी बड़े सादे समारोह में हो रही थी. शादी में केवल दोनों पक्षों लोग थे और कुछ ख़ास दोस्त भी मौज़ूद थे. सुधा लाल रंग के जोड़े में बहुत सुंदर लग रही थी. मुझे देखते ही सुधा बहुत खुश हुई. मैंने तोहफ़ा दिया और साथ ही दोनों को शादी की ढेरों शुभ कामनाएं भी दी. इतनी दुखद घटना होने के बाद जिंदगी हर किसी को सवरने का सुनहरा मौका नही देती. पर वो मौका सुधा को मिला था गोविन्द के रुप में एक अच्छा जीवन साथी पाकर…! मैं उन दोनों को साथ देख कर बहुत खुश थी. ‘एक दुखद घटना का एक सुखद अंत…!’ पर वो अंत कहा था…वो तो बस शुरुवात थी…एक अच्छी शुरुवात!
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