A Short Story in Hindi about hardship of the life of an autistic child in her own words.
मेरा नाम दिशा है, और मेरा आज हैप्पी बर्थडे है । मम्मी ने याद कराया है कि अब मैं आठ साल कि हूँ और क्लास दो में पड़ती हूँ । आज मैंने एक नया शब्द सीखा है , “आत्मकथा” – इसका मतलब होता है अपनी लाइफ कि कहानी । मुझे कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता है । मम्मी सुनाती है ऐलिस कि कहानी , जिसकी दुनिया और बच्चों कि दुनिया से अलग हैं – जादू कि दुनिया ! लेकिन वो वहाँ सपनो में जाती है । किसी से कहना नहीं , यह एक सीक्रेट है । और मेरी कहानी .. वो कोई सीक्रेट नहीं, सुनोगे मेरी कहानी।
मैं जब छोटी सी थी तब मेरा सर बहुत बड़ा था । मम्मी और पापा बहुत परेशान थे क्यूंकि मैं चलती नहीं थी बस एक जगह बैठी रहती थी । डॉक्टर ने बताया मेरे दिमाग में बहुत सारा पानी है और मुझे ठीक करने के लिए ऑपरेशन करना पड़ेगा । डॉक्टर ने जब मम्मी से पूछा कि मैं उनका पहला बच्चा हूँ तो मम्मी रोने लगी । मम्मी क्यों रोने लगी ? मेरी वजह से ना । मैं भी तो रोऊँगी अगर मुझे टूटा खिलौना दोगे । ऑपरेशन के बाद मम्मी पापा बहुत खुश थे । मुझमे अचानक से बहुत बदलाव आ रहे थे । मैंने घुटने घुटने चलने कि कोशिश शुरू कर दी थी । देर से ही सही पर मैंने तीन साल कि उम्र में चलना शुरू कर दिया ।
मम्मी मुझे बहुत कुछ सिखाना चाहती थी , मुझसे बहुत सारी बात करना चाहती थी , मेरी बचकानी बाते सुनना चाहती थी । पर मैं अपने में ही सिमटी रहती और अपने खिलौनों को पटक कर ही खुश हो जाती । मुझे ऐसा लगता जैसे मैं एक जादू कि दुनिया में रहती हूँ जहाँ मुझे कोई तंग नहीं कर सकता था, मुझे अपने आसपास हो रही बातो से मतलब नहीं होता पर दरवाजे कि आहट मैं तुरंत सुन लेती । मम्मी मुझे आवाज देती, “दिशा .. आजा”, पर मुझे क्या पता कि मैं ही दिशा हूँ । तो मैं भी दोहराती “दिशा .. आजा”।
मम्मी पापा से कहती, “दिशा मुझसे आँख मिला कर नहीं बात करती, कही इसकी आँखों में कोई कमी, जैसे कि भैंगापन तो नहीं ” ।
ओहो मम्मी ऐसा नहीं था , लो मैं तुम्हे राज कि बात बताती हूँ – मुझे किसी से भी बात करने के लिए बहुत ध्यान लगाना पड़ता है , जो मैं किसी स्थाई चीज को देख कर ही लगा पाती हूँ । तुम कभी मुझे मेरी गुडिया से बात करते हुए देखो , उसकी आँख में आँख डाल कर ही बोलती हूँ । तुम कितने सारे सवाल लिए मुझे देखती हो मेरा ध्यान भटक जाता है ना । पर देखो मैं कितनी होशियार थी , टीवी पर दिखाए जा रहे विज्ञापन मुझे मुह्जबानी याद हो जाते। सब हंस कर मुझे कहते तोता है बिलकुल। धीरे धीरे मम्मी को यह एहसास हो गया कि मैं कुछ समझ नहीं पाती हूँ , बिना शब्द का मतलब जाने एक तोते कि तरह रट लेती हूँ । फिर से डॉक्टर के चक्कर लगने लगे । डॉक्टर ने बोला, “आटिज्म” , मैंने भी आदतन शब्द दोहराते हुए कहा “आटिज्म”।
मम्मी कंप्यूटर के माध्यम से आटिज्म के बारे में अनगिनत जानकारी इकठ्ठा करने में लग गयी ताकि मुझे जान सके, समझ सके । मुझे मेरी जादुई दुनिया से बाहर निकाल कर वास्तविक दुनिया से जोड़ सके । बाल मनोवैज्ञानिक और अपने माता पिता की मदद से मैंने दुनिया से जुड़ने का माध्यम, यानि कि, “भाषा” सीखनी शुरू करी । “भाषा”, जो आप सब बचपन में कितनी आसानी से सीख जाते हो , मुझसे पूछो कितना मुश्किल होता है इसको सीखना और मेरे माता पिता से पूछो कितना मुश्किल होता है सिखाना । मेरे शब्दकोष में शब्द तो अनेक थे अब मुझे उनके सही अर्थ को समझना था । अपनी बात कहना सीखना था । अपने सवालो को पूछना सीखना था । और यह राह आसान नहीं थी ।
जैसे जैसे मैं बड़ी हो रही थी, नित नयी चुनौती सामने आ रही थी । मेरे दोस्त नहीं बन पाते क्यूंकि मैं उनके खेल नहीं समझ पाती । मुझे नहीं समझ आता छुपन छुपाई या घर – घर खेलना, मम्मी भी मुझे अकेले छोड़ने से डरती थी क्यूंकि मैं रास्ता भूल जाती या बिना सोचे कही भी किसी के भी साथ चल देती । अकेली होने कि वजह से मैं जिद्दी भी होती जा रही थी। मैं भीड़ से घबरा जाती और अकेला रहना पसंद करती । मम्मी और पापा में मेरी वजह से झगड़े होते। पापा चाहते मम्मी मुझे बाहर पार्क में ले जायें , पर मम्मी शायद अकेले मुझे संभाल नहीं पाती थी । एक दिन मम्मी ने किसी आंटी को मुझे पागल कहते सुन लिया, और मैंने पूछा , “पागल मतलब” । मम्मी घर आकर फूट फूट कर रोई । औटिस्टिक बच्चों को सिखाने का तरीका सीख कर फिर मुझे सिखाना , बार बार कोशिशों के बावजूद मेरा न समझ पाना या देर से समझना । सिर्फ मेरी ही नहीं मेरे परिवार के लिए भी डगर काटों भरी थी ।
लेकिन कहते है ना हर मुश्किल का हल मिल जाता है, भगवान् ने मुझे छोटी बहिन दे दी, “नव्या”। उसकी नन्ही उंगली पकड़ कर मैं चल दी तुम्हारी दुनिया में शामिल होने । उसी से मैंने लड़ना, रूठना, मनाना, बाँटना, झूठ बोलना, कितना कुछ सीखा । अब मैं अकेली नहीं थी ।
आज मेरा बर्थडे है । मेरे और नव्या के दोस्त आये हैं । मैंने मोमबती बुझा कर केक काटा, सबने ताली बजा कर मुझे बधाई दी । मैं बहुत खुश हूँ । मैं मम्मी, पापा और नव्या को थैंक यू कह रही हूँ , बधाई देने के लिए या मेरा हाथ थामने के लिए, यह पता नहीं .. मम्मी ने सिखाया है कि अच्छे बच्चे थैंक यू बोलते हैं ।
अरे अभी मेरी कहानी ख़तम नहीं हुई है , इसमें और भी पन्ने जुड़ने बाकी हैं, अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
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