पिंजरे के पंछी रे , तेरा दर्द न जाने कोय !- Pain of a Parrot in the Cage!( This Hindi story is a satire on today’s political situation in India. Few ministers of central government are facing corruption charges and CBI is helpless.)
रामखेलावन पुराना तावा बजाते हुए , ‘ मेरे पिया गये रंगून , वहां से किया है टेलीफून , तुम्हारी याद सताती है , जिया में आग लगाती है . चौपाल में घुसा तो मैं कोमेंट किये बिना अपने को रोक नहीं सका :
बड़ा चहक रहे हो , रामखेलावन ! क्या बात है ? रेल मंत्री या कानून मंत्री बनने के फिराक में तो नहीं हो ?
हुजूर ! आप भी मुझे दिवास्वप्न दिखाने में कोई कौर – कसर नहीं छोड़ते . मैं न तो लोकसभा का , न ही राज्य सभा का , सदस्य हूँ , तो कैसे बन सकता ?
क्यों नहीं बन सकते ? तुम मंत्री की बात करते हो , प्रधान मंत्री तक बन सकते हो .
वो कैसे ? हुजूर !
अल्ला मेहरवान तो गदहा पहलवान – यह कहावत तुमने सुनी है ?
हाँ , हुजूर ! ई तो हमको मालूमे नहीं था . अपुन नहीं बनेंगे तो कोई के लिए तो गोटी सेट …
हाँ , कोई के लिए तो गोटी सेट कर ही सकते हो . वही होता है , जो मंजूरे खुदा होता है . आख़िरकार सोनिया जी को हस्तक्षेप करना ही पड़ा और दोनों के दोनों …
कौन – कौन ? जरा हिंदी में बताने का कष्ट करे.
आज का हेडलाईन न्यूज़ है , और तुम्हें कुछ पता नहीं , अजीब बात है !
बंसल जी और अश्विनी जी दोनों को हाँ – ना , हाँ – ना के खेल में अपने – अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ा .
हुजूर ! नहीं देते तो क्या होता ?
क्या होता ! संसद का कार्य सुषमा जी चलने नहीं देती . साक्षात चंडी का रूप धारण किये हुए थी . कटारी और खप्पर ले कर . छोटा – मोटा बिल भी पास नहीं होने देती . संसद का बहुमूल्य वक़्त बर्बाद होता सो अलग .
बहुमूल्य कैसे ? हुजूर !
इसी तथ्य से जानो कि संसद का एक घंटे का व्यय ( खर्च ) पचास लाख रुपये है . तो न्यूनतम आठ घंटे का क्या हुआ ?
चार करोड़ .
वो भी चाहे संसद चले या न चले . व्यय का मीटर उठता जाता है .
जैसे किसी ओटो में चढो , जाम रहे , ओटो खडी भी रहे , तो मीटर उठता रहता है.
बाप रे ! बाप ! रोज इतना खर्च !
इतना पैसा आता कैसे है ? सरकार हमारे और तुम्हारे से यैन – कैन – प्रकारेन वसूलती है.
खून – चूसवा की तरह .
हाँ .
ई सब एकाएक कैसे घटित हो गया ? पा जी तो नहीं चाहते थे कि कोई …..
पार्टी कमान का आदेश था . उसे हर हाल में मानना ही था.
हुजूर ! सब खेल करनटकआ का खेल है . उधर पार्टी की भारी जीत हुयी . जनता का विश्वास मिला. तो इस कदम को उठाकर पार्टी ने जनता के विश्वास को और मजबूत कर दिया . साबित कर दिया कि हम इन्साफ पसंद हैं. जनता की भावना का हम क़द्र करते हैं . सामने चुनाव है . विपक्ष हाथ धोकर पीछे पड़ा हुआ है – पटकनिया देने के लिए . हुजूर ! तो ऐसी हालत में पार्टी क्या करे ! सात – सत्तर साल का तजुर्बा है , उनका तो सही वक़्त में सही तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए न !कांग्रेस पार्टी खून – पसीना एक करके इस मुकाम तक पहुँची है , ऐसे ही राज – काज को अपने हाथ से गैर के हाथों में जाने देगी.
कहने का मतलब ईंट से ईंट बजाना पड़े तो, तो बजा देगी परन्तु …..
परन्तु गद्दी नहीं छोड़ेगी . हुजूर ! अब मैं पास हो गया न समझदारी की परीक्षा में .
इसमें भी कोई शक की बात है क्या ? डिसटिंकसन के साथ उत्तीर्ण हुए . राजनीति में कभी हाथी , तो कभी घोड़ा , तो कभी शेर , तो कभी सियार आते रहते उदहारण के तौर पर . इस बार तो कोयले के घोटाले के मामले में कहाँ से तोता टपक पडा . बेचारा ! कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट में बदलाव किया गया था – सरकार इसे मानने को तैयार नहीं थी.लेकिन सीबीआई निदेशक के हलफनामे के बाद सच्चाई सामने आ गयी. सरकार की तो बोलती बंद हो गयी. लगा कि अब खटिया खडी होगी कि तब . सुपीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी और कड़े रूख के बाद सरकार को अपने दोनों मंत्रियों को हटाना पड़ा. सबसे मजे की बात यह है कि बीच में बेचारा तोता फंस गया .
वो कैसे ? हुजूर !
वो ऐसे कि हमारे यशवंत भाई को मशाला मिल गया . एक बार तो मौनी बाबा और नब्बे चोर की बात कह ही चुके थे . दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पनी के बाद उनके पेट में गैस हो गया . गैस को दबाना सेहत के लिए अच्छी बात नहीं . फिर ?
फिर क्या हुआ , हुजूर ?
वही हुआ जो हमें डर था .
पहेलियाँ मत बुझाइये , साफ़ – साफ़ बतलाइए वो भी हिंदी में .
यशवंत जी ने अपनी सहमति जाहिर कर दी :
” सीबीआई पिंजड़े में बंद तोता है .”
हुजूर ! इसका अर्थ यह हुआ कि तोता का कोई मालिक होगा और उसका तोता – पढाया – सिखाया हुआ , अपने मालिक की भाषा में बात करता होगा .
इसमें क्या शक है . पहले जनता – जनार्दन को शक था , लेकिन हलफनामे के बाद दूर हो गया . लगता है ऐसा देश में पहली बार हुआ . विदेशीलोग तो कहते फिरते हैं – ” If there is democracy anywhere in the world , it is in India . ” अर्थात यदि कहीं विश्व में प्रजातंत्र है तो वह भारत में है . ”
क्या खूब कहा आपने , सरकार !
रामखेलावन ! हमारा देश ऋषी – मुनियों का देश है. युग – युगों से यहाँ दूध का दूध पानी का पानी होते आया है .
बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिए आज . मेरा माथा चाटे सो अलग . अब इसी खुशी में एक दूसरा तावा बजा दो .
यह तावा १९५७ का है , सहेज कर रखा हूँ . फिल्म का नाम है ‘ नागमणी ‘ गायक और गीतकार का नाम है प्रदीप . तो सुनिए :
लय, सूर व ताल के साथ गाना शुरू हो गया :
पिंजरे के पंछी रे , तेरा दर्द न जाने कोय …
बाहर से तू खामोश रहे तू ,
भीतर – भीतर रोये रे ,
भीतर – भीतर रोय . तेरा दर्द न जाने कोय .
कह न सके तू अपनी कहानी , तेरी भी पंछी क्या जिंदगानी रे ,
किसी ने तेरी कथा लिखी , आँसू में कलम डूबोय ,
तेरा दर्द न जाने कोय , तेरा दर्द न जाने कोय |
गाने की प्रासंगिक बोल सुनकर हम एक अलग ही दुनिया खो गये .
और रामखेलावन चाय बनाने के लिए व्यस्त हो गया .
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , ११ मई २०१३ , दिन : शनिवार |
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