Hindi story of an Indian woman, who suffered a lot. Even after performing all her duties perfectly, she could not get love and support of anybody.
Copy Right :Ritu Asthana
सायंकाल की लाली रात्रि की कालिमा में बदलने लगी। सूरज अंधकार के विशाल सागर में डूबने लगा था। लोग दौड़भाग में लगे थे। आजमगढ़ (उत्तरप्रदेश का एक शहर) की कुछ झोपड़ियो में आग लगने से कई लोग गंभीर रूप से जल गए थे। सरकारी अस्पताल में लोग अपने परायो की देखभाल में लगे थे।देव भी अपने पड़ोस की एक वृद्धा , जो अकेली रहती थी, को अस्पताल ले गया। हालाँकि वह वृद्धा अधिक नहीं जली थी, अपितु उसकी हालत पहले से ही गंभीर थी। एक डॉक्टर पास आया और उस वृद्धा के बारे में पूछा तो देव तो कुछ बता न सका किन्तु बुढ़िया धीरे से बुदबुदाई “श्रीमती श्यामादेवी उम्र ६० साल″
केवल देव ही नहीं डॉक्टर भी चकित रह गए थे क्योकि बुढ़िया तो उन्हें लगभग ९० वर्ष से कम नहीं लूग रही थी।उसकी दवा प्रारम्भ हो गयी थी। थोड़ी बहुत चोट हाथ में आई थी तो डॉक्टर ने दवा दे दी थी।
प्रातःकाल देव बोला ,”अम्मा मैं जरा फैक्ट्री होकर आता हूँ। ” कहकर वो निकल गया।
बुढ़िया की आँखों से गंगाजल बह चला।उसे प्रतीत हुआ कि इतने बड़े संसार में उसका ध्यान रखने वाला भी कोई है।देव ना होता तो वो संभवतः वो जीवित ही नहीं बचती। मन ही मन ढेरों आशीर्वाद दे डाला देव को उसने।ऐसे ही कई दिन बीत गए पर बुढ़िया की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। उसे देखकर लगता था कि समय की मार ने उसे समय से पहले ही तोड़ दिया है।देव अक्सर सोचता कि कैसे इनके सम्बन्धियों को सूचित करूँ और कहा है वो लोग ?
एक दिन बुढ़िया के दूर का सम्बन्धी आ पहुँचा और उसने बताया कि बुढ़िया का पुत्र अमेरिका में रहता है उसे सूचित कर दो। बुढ़िया के प्राण मानो किसी की प्रतीक्षा में ही रुके हुए थे। प्रातःकाल के ४ बजे थे घडी की टिक-टिक के बीच बुढ़िया की नींद उचट गयी ,उसे लगा कि जैसे उसका अंतिम समय आ गया है। हाथ पैर बिलकुल ठन्डे पड़ गए थे. अपना शरीर भी अपना सा नहीं लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आज उसे समस्त दुःखों से छुटकारा मिल जायेगा। बुढ़िया के प्राण मानो किसी की प्रतीक्षा में ही रुके हुए थे।
तभी उसे लगा कि पंख पखेरू उड़ जाने से पहले क्योँ न एक बार अपना जीवन फिर से कुछ पलो के लिए जी लें। और उसने ईष्वर से प्रार्थना की कि उसे कुछ समय और दे दे जिससे कम एक बार एक बार वो अपने मन की आँखोंसे अपने पुत्र को निहार लें। हृदय और मस्तिष्क ,जीवन में बहुत महत्व रखते है। जहाँ मस्तिष्क शरीर और मन में संतुलन बनाए रखता है वहीं हृदय भावनाओं को गति देता है। इन दोनों तंत्रों के सहारे बुढ़िया सवयं को ४० वर्ष पूर्व ले गयी।
उसने विवाह के एक वर्ष पश्चात ही एक पुत्र प्राप्त किया था। पूरे घर में गहमागहमी थी. लोग बधाइयाँ दे रहे थे। श्यामा खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रही थी। पति का स्नेह भी छिपा नहीं था। कुल मिलाकर ईश्वेर ने श्यामा पर मानो हर्ष की वर्षा कर दी हो। पुत्र नयन , श्यामा की आँखों का तारा था। वो प्रसन्न होता तो वे होती और वो दुखी होता तो दुःखी। इन्ही दिनों श्यामा के पति को किसी कार्यवश दुबई जाना पड़ा। कुछ दिनों तक उनके पत्र आते रहे कि अभी नहीं आ सकता हूँ। किन्तु कुछ दिनों के बाद केवल रुपये ही आने लगे। हृदय में जो प्रेम का मंदिर श्यामा ने बनाया था वो धीरे धीरे बिखरने लगा। धीरे धीरे उसे विश्वास हो गया कि वो अब कभी वापस नहीं आएगे। अपने पुत्र के प्रति केवल माँ का ही नहीं अपितु पिता का कर्त्तव्य भी उसने भलीभाँति निभाया। कैसे दिन ,मास और वर्ष व्यतीत हो गए कुछ पता ही नहीं चला।
नयन अब १८ वर्ष का एक नौजवान था। एक दिन नयन बोला, “माँ ,हमने एक परीक्षा दी है ,संभवतः हमें आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका जाना पड़े। ”
श्यामा ने तो साफ मना कर दिया कि ,”मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती हूँ। पहले तुम्हारे पिताजी गए थे जो अब तक वापस नहीं आये।नहीं-नहीं तुम नहीं जाओगे।”
नयन प्यार से बोला ,”माँ मैं तो पढ़ने जा रहा हूँ। और पैसोँ की भी चिन्ता मत करना वो तो मुझे वहीं मिलेंगे। बस पढाई पूरी करके वापस आ जाऊँगा और फिर हमारे सारे कष्ट दूर जाएँगे।”
नयन की प्यारी बातों में श्यामा आ गई। और नयन चला गया ।एक वर्ष,दो वर्ष और तींन वर्ष व्यतीत हो गए। किन्तु नयन नहीं आया। प्रतिदिन श्यामा को नयन की ही प्रतीक्षा रहती कि अब नयन कभी भी वापस आ सकता है किन्तु ह्रदय,नैन और जीवन सभी प्रतीक्षारत रह गए। नयन नहीं आया ।धीरे=धीरे श्यामा ने मन को समझाया कि वो तो मेरे हृदय का टुकड़ा है,अपनी माँ को नहीं भूल सकता किन्तु श्यामा का भृम ,भृम ही रह गया। नयन ने वहीँ विवाह भी कर लिया था। उसने अपने परिवार का फोटो भेज दिया था।
श्वास उखड़ने लगी थी,शरीर कांप रहा था। क्या हमारा अंत ऐसे ही हो जाएगा?मेरा पुत्र नहीं आ पाएगा। ये मरे अमेरिका वाले ही नहीं आने देते होँगे ,मेरे लाल को। वो बेचारा क्या करे।
देव शीघ्र ही डॉक्टर को बुला लाया ,”देखिये डॉक्टर साहेब देखिये,बूढ़ी अम्मा को क्या हो गया है?”
डॉक्टर बोले “आप इनके घर वालोँ को बुला लीजिए। अब और समय नहीं है इनके पास। ”
देव ने कहा ,,”सूचना तो दे दी है डॉक्टर साहेब। जाने कब आएंगे आएँगे। इनका पुत्र अमेरिका में रहता है. माँ यहाँ मर रही है और बेटे को चिंता ही नहीँ है। .”
बुढ़िया ने आँखे खोली और देव की ओर ताका . मन ही मन बोली कि मेरे बेटे को कुछ मत कहो। किन्तु अंतिम समय में उसने ईश्वेर से प्रार्थना की कि अगले जन्म में उसे देव जैसा ही बेटा देना। डॉक्टर की सलाह पर देव ,बुढ़िया को घर ले आया। आस-पास की औरतें एकत्रित हो गई थी।कोई स्त्री गीता का पाठ कर रही थी, तो कोई बुढ़िया के मुँह में गंगाजल डाल रही थी। किन्तु बुढ़िया के मन प्राण जैसे किसी की आहट सुनने ले लिए व्याकुल थे। कितने दिन और कितने समय बुढ़िया अपने प्राणो को रोके रखती।
एक दिन पुनः उसकी साँसे उखड़ने लगी,शरीर हल्का हो गया,मस्तिष्क सुन्न पड़ गया था। आस पास वाले क्या कर कुछ पता नहीं था। आज विधाता स्वयं उसके कष्टों का निवारण करने द्वार पर खड़े उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।होंठों से तो नहीं किन्तु हृदय ने पुकारा ,”भगवन वो नहीं आया ,मेरा बेटा। ”
भगवन जी हर्ष से बोले ,” देखो तो कौन खड़ा है मेरे पास। ”
भीगे नेत्रों से श्यामा ने देखा कि उसका पुत्र ,अपनी पत्नी एवं बच्चे के साथ खड़ा है। सारे कष्ट दूर हो गए बुढ़िया के समस्त आँसू मोती बनकर पिघलने लगे और बुढ़िया का मन शांत हो गया। मन ही मन उन तीनो को आशीर्वाद दिया और प्रभु से कहा ,”चलिए प्रभुजी ,अब मैं आपकी शरण में हूँ। ”
प्रभुजी मुस्कुराकर बोले ,”यदि हमारी शरण में पहले ही आ गई होती तो मैं पहले ही तुम्हारा उद्धार कर देता , किन्तु संभवतः निश्चित समय पर ही ये सब संभव था। ”
देव, नयन और बाकी लोग रो रहे थे। देव को पता था कि आज नयन सपरिवार आ रहा है. वो बुढ़िया के कान में बोला।,”अम्मा चिंता न करो। सब लोग आ रहे हैं। ”
किन्तु कुछ समय पूर्व देखा था कि अम्मा ने दरवाजे ओर अपने दोनों अशक्त हाथ उठाए थे। मानो अपने बच्चे को गले लगा रही हों और फिर प्रसन्न मुद्रा में सो रही हों। देव को नहीं पता था कि बुढ़िया तो अब ईश्वरीय हो चुकी थी। उसके अधखुले नेत्रों से पिघले मोती अभी भी बाहर आ रहे थे।
नयन तेजी से चिल्लाया ,”अम्मा ! मै आ गया। देखो अम्मा तुम्हारी बहु औए पोता भी आए हैं। आँखें खोलो अम्मा। .” नयन फूटफूटकर रोने लगा। “अम्मा मुझे माफ़ कर दो। मैंने बहुत देर कर दी आने में। अम्मा मै तुम्हारा बच्चा हूँ ,मुझे माफ़ कर दो। ”
उसे लगा कि अम्मा अपनी अधखुली आँखों से उसे देख रही हैं और पूछ रही हैं कि पुत्र को जन्म देकर ,उसे सीने से लगाकर ,प्यार से पालपोस्कार क्या उसने कोई अपराध तो नहीं किया था।बुढ़िया के आँसू ,पिघले मोती में बदल गए थे ,जो अमूल्य थे। बहुत रॉया ,तड़पा नयन किन्तु अम्मा नहीं थी उसे चुप कराने के लिए। ये अपराधबोध कब तक उसे सालेगा कोई नहीं जानता। उधर देव का भी रो -रोकर बुरा हाल था।
बुढ़िया की अर्थी को फूलों से सजाकर देव और नयन दोनों ने पुत्रधर्म निभाया। ‘इस मृत्युलोक के ऊपर भी यदि कोई लोक है तो हे! इश्वर इस बुढ़िया को सारी खुशियाँ देना ‘,देव मन ही मन ये विनती कर था। नयन अब चाहे कुछ भी कर ले किन्तु उसकी अम्मा सदा के लिए विदा हो चुकी थीं। यदि माँ -बाप ,अपने बच्चे को प्रतिपल प्यार दुलार एवं सहारा दे सकते हैं तो क्या बच्चे समय आने पर माँ बाप का सहारा नहीं बन सकते। ये कहानी एक सवाल है हमारी युवा पीढ़ी से।
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