मानव मन में आग भी रहता है और अमृत भी। सब मानव एक जैसे नहीं होते। कुछ कौवे जैसे होते हैं तो कुछ उल्लू जैसे होते हैं। कौवे दिन में शोर मचाकर अपनी ताकत जताते हैं और उल्लुओं की ताकत रात में ज्यादा होती है।
उल्लुओं का राजा का नाम था उलूकमणि। उसके साथ उसके सब सेवक और उसकी प्रजा एक गुफा में रहते थे। वे रात में खूब मेहनत करते थे और दिन में उसी गुफा में आराम करते थे। उन्हें सुख की नींद बहुत पसंद थी। दिन में वे निद्रा सुख का आनंद पाते थे।
उस गुफा के बाहर अनेक कौवे पेडों पर निवास करते थे। दिन में उनके संतोष का कोई आर-पार नहीं होता था। वे दिन में बहुत शोर मचाते थे। दिन में बहुत काम करना और संतोष से विचरना कौओं की जन्मजात आदत थी। ऱात में खूब काम करके, दिन में आराम करना उल्लुओं की जन्मजात आदत थी।
एक दिन कौओं का त्योहार काक-दशहरा आया। उस त्योहार के दिन कौवे सुबह ही उठकर, नदी में नहाकर आते हैं। फिर अच्छा खाना एक जगह में रखकर, उसके चारों और कौवे बैठ जाते हैं। फिर कौवे गाना गाने लगते हैं। पुराने गाने हों, या नये फिल्मी गाने, वे कुछ भी गा सकते हैं। जो ज्यादा देर तक अपने गाने गाते हैं, वे श्रेष्ठ कौवे कहलाते हैं। इस प्रकार गाते समय, वे जितना चाहे खा सकते हैं, फिर गाना गा सकते हैं। खूब खाकर खूब गाना इस त्योहार की विशेषता थी।
वे जहाँ बैठे थे, वह जगह ठीक उल्लुओं की गुफा के सामने थी। उल्लुओं का परिवार गुफा में गहरी नींद में था और बाहर कौओं का गानामृत हवा में गूंज रहा था।
“यह क्या शोर है?” उलूकमणि ने पूछा।
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“बाहर कौओं की गान-सभा हो रही है। आज उनका काक-दशहरा पर्व है।” उलूकमणि का अनुचार कृष्णउलूक ने कहा।
“क्या काक-दशहरा रे, हमारे उलूक-दशहरे पर हम ने ऐसा शोर कभी नहीं मचाया था ना?” उलूकमणि ने मन की पीड़ा को दबाकर कहा।
“जी हाँ, हम उलूक-दशहरे पर मौनव्रत का आचरण करते हैं, सर्फ़ संकेतों से हमारा काम पूरा करते हैं। यह हमारी उत्तम बुद्धि का उदाहरण है। कौवे नीच जाति के हैं। अपनी जाति की निम्न बुद्धि का वे इस प्रकार प्रदर्शन कर रहे हैं।” कृष्णउलूक ने कहा।
अब उलूक राजा ने खूब सोचकर, कौओं के अंत की एक उत्तम प्रणाली बनायी और कौओं पर हमला करने का शुभ दिन का निश्चय भी कर लिया।
दिन में दशहरे के कार्यक्रमों से थककर सब कौवे रात में सुख की नींद में डूबे हुये थे। अब उल्लुओं की सेना ने उन पर खुलकर हमला बोल दिया। वे कौंओं को अपनी नुकीला चोंचों से मार मारकर, उन्हें पेड़ों से नीचे गिरा देने लगे। कई कौवे हाहाकार करते हुए मर जाने लगे।
युद्ध का नतीजा बुरा होता है। इस से कई प्राणों की हानि का परिणाम होता है। कई कौवे मर गये। सिर्फ़ काक-दशहरा मनाने के शुभकार्य का यह बुरा परिणाम हुआ। वायस विद्वानों ने वायस राजा उड़नमित्र से कहा कि इस का डटकर प्रतिकार करना चाहिये और उलूक जाति का सर्वनाश होना चाहिये। उलूक दुष्ट पक्षी है जो सर्प भक्षण करता है, दिन का प्रकाश नहीं देख सकने से रात पर राज्य करता है। रात्रि संचार करने वाले राक्षस होते हैं, इस लिये उलूक भी राक्षस जाति के हैं।
विद्वानों की बातों से वायस राजा उड़नमित्र कृद्ध हुआ, उसने उलूक संहार करने का निश्चय कर लिया। लेकिन कैसे? इस विचार पर पंडित काक मित्रों से सलाह-मशविरा किया। तब काकभुशुंडी नामक एक युवा काक वीर उठा और बोला कि इस का वह कोई अच्छा उपाय निकालेगा और उलूकों में वह घुस जायेगा। वक्त आने पर उन पर हमला करने के लिये वह उनको सूचित कर देगा।
वास्तव में काकभुशुंडी एक ब्राह्मण था, जिसे लोमश ऋषि ने शाप दिया था। इस शाप के प्रभाव से वह काकभुशुंडी कौआ हो गया था। कौवों में रहने वाला एक मात्र बुद्धिमान कोआ वही था।
काकभुशुंडी ने अपने विनम्र वचनों से उलूकमणि का दिल जीत लिया। फिर उस के साथ उसी गुफा में रहने लगा। वह उल्लुओं का मन जीतने पर लगा हुआ था। उल्लुओं के मंत्री को उस पर संदेह हुआ।
“महाराज, वायस हमारे शत्रु हैं। शत्रुओं पर विश्वास करना उचित नहीं है।“
उलूक मंत्री श्वेतउलूक ने जब यह कहा तो उलूकमणि चकित हुआ। तभी कृष्णउलूक ने राजा को शांत किया और कहा, “महाराज, सब वायस हमारे शत्रु नहीं होते। काकभुशुंडी एक महात्मा हैं।“
उलूकमणि को कृष्णउलूक की बातें सही लगीं। इस तरह काकभुशुंडी उलूकों का मित्र बन गया।
एक दिन काकभुशुंडी ने एक प्रकार के ऩशीले फल लाकर सब उल्लुओं को खाने के लिये दिये। वे फल बहुत ही स्वादिष्ट थे, इस लिये उन्हें खाकर सब उल्लू होश खोकर, दिन में गहरी नींद में डूब गये।
तब काकभुशुंडी सीधे उड़नमित्र के पास आकर कहा, “वायस महाराज, यही सही समय है। अब हमारी सेना को आज्ञा दीजिये कि वे उलूकों पर अपना प्रतिकार ले ले।“
वायस राजा ने अपनी अपार काक सेना को बुलाकर आज्ञा दी कि वे तुरंत उल्लुऔं पर घोर हमला कर दे।
कौओं ने सूखी घास-फूस, पत्ते और सूखी लकिडयों को लाकर उलूकों की गुफा में भर दिये और आग लगा दी। उन अग्नि ज्वालाओं में सब उल्लू जलकर, राख हो गये। उलूक परिवार नष्ट हुआ।
प्रतिकार की आग कभी नहीं बुझती। इस आग से जो लोग मुक्त होते हैं, वे सुखी होते हैं। इस आग से सुलगने वालों को किसी भी क्षण मौत की गोद में जाकर, अपने प्राणों को त्यागना पड़ता है।
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