ख़ामोशी : (Silence) This Hindi short story is of an Indian woman who keeps silence despite being tortured from husband & in-laws for dowry. But what was the result of silence?
“ बेटी, लक्ष्मी, अग़र पढ़ाई ख़त्म हो गई हो तो ज़रा छत पर कपड़े सुखने के लिए डाल दे | ”
“ जी, माँ ! ”
बैजनाथपुर नामक एक छोटे से गाँव में रहनेवाली १८ वषीय लक्ष्मी जितनी मन से पवित्र थी उतनी ही विचारों से भी । सुशील और संस्कारी होने के साथ ही उसमें खाना बनाने, कपड़ा सिलने आदि जैसे अन्य गुण भी विद्यमान थे ।
लक्ष्मी के पिता शमशेर यादव एक किसान थे और माता गीता देवी एक गृहिणी । इनकी एक ही संतान थी, एकमात्र लाडली लक्ष्मी । माता और पिता दोनों लक्ष्मी से बहुत प्यार करते थे । उसकी इच्छाओं का सम्मान करते, जो बन पड़ता, उसके लिए करते । लक्ष्मी की पढ़ाई दसवीं कक्षा तक हुई और पिता ने उसकी शादी दूर के विलासपुर गाँव में तय कर दी ।लड़के का नाम पंकज था और उसी गाँव में किराना दुकान चलाता था । पंकज के पिता भोला यादव भी एक किसान थे एवं माता यशोधरा देवी भी एक गृहिणी ही थीं । पंकज अपने माता-पिता का एकलौता संतान था ।
शमशेर यादव ने बेटी की शादी धूमधाम से की । जो कुछ भी बन पड़ा , उसके विवाह के लिए किया, अपने तरफ से कोई कमी नहीं की । लक्ष्मी अब अपने ससुराल में थी । नया घर, नये लोग, सबकुछ नया ही था । शादी के दिन से ही उसने नये घर को मंदिर , सास को मां , ससुर को पिता एवं पति को ईश्वर का दरजा दिया ।
शादी के चार दिन पश्चात ही उस पर अत्याचार शुरू कर दिए गए । शादी के दो महीने तक उसे ताने सुनने मिले और तत्पश्चात उसे मारा-पीटा जाने लगा । उसे मायके जाने की भी इजाजत नहीं दी जाती और जब भी उसके पिता उससे मिलने आते, पंकज उससे पहले ही कह देता, “ अगर अपने बाप को कुछ भी बताया तुमने, तो तुझे तलाक दे दूंगा और अफवाह फैलाउंगा कि तेरे किसी और के साथ शारीरिक संबंध हैं फिर क्या करेगी तू ! तू और तेरा परिवार फिर कहीं के नहीं रह जाएंगे । ” बेचारी लक्ष्मी करती भी क्या ! पिता के सामने अपनी झुठी मुसकुराहट से ये बयां करती कि वह बहुत खुश है । पिता के जाने के साथ ही उसे फिर प्रताड़ित किया जाता ।
जब लक्ष्मी का पति ही़ उसे सताता , उसे बात-बात पर मारता- पिटता तो और कौन था वहाँ उसका अपना जिसे वह अपने दिल की बात कह सके । सास-ससुर तो दूर जिसे उसने अपना ईश्वर माना वही उसका साथ ना देकर उसपे अत्याचार करता था लक्ष्मी कभी अपने ससुराल वालों की शिकायत कभी भी किसी से नहीं करती थी क्योंकि उसे लगता था कि अगर वो किसी को कुछ बताएगी तो उसके ही परिवार की इज्जत जाएगी । इतना जुल्म सहने के बाद भी वो अपने ससुराल वालों के सम्मान का खयाल रखती क्योंकि उसे उम्मीद थी कि एक दिन सभी उसे अपना लेंगे ।
एक दिन विलासपुर गाँव में पुलिस आयी । पुलिस को किसी गाँववाले से ही खबर मिली थी कि भोला यादव एवं उसका परिवार लक्ष्मी पर जुल्म करता है, पुलिस सीधे लक्ष्मी के पास पहुँची ।
“ लक्ष्मी,बताओ कि क्या तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हे यातना देते हैं ? देखो डरने की कोई जरूरत नहीं है, जो सच है, बताओ हमें । ”
पुलिस के इस कथन को सुनते ही सभी परिवार वाले डर गए । उन्हें लगा कि कहीं अगर इसने सच कह दिया तो जेल की चक्की पिसनी पड़ेगी।
थोड़ी देर खामोश रहने के बाद लक्ष्मी ने कहा, “ नहीं साहब ! ऐसी कोई बात नहीं है । मुझ पर किसी तरह का अत्याचार नहीं होता बल्कि सब मुझे बेटी जैसा ही मानते हैं, बहुत प्यार करते हैं । ”
पुलिस लक्ष्मी का कथन सुनकर चली गई । घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिए वह खामोश रही । इतना होने के बावज़ूद भी ना तो सास-ससुर के व्यवहार में कोई परिवर्तन हुआ ना ही पंकज में कोई बदलाव आया ।
एक दिन पंकज के घर से आवाज़ आयी, “ राम नाम सत्य है । ” कफ़न से ढकी लाश और घर में मातम का माहौल ।
“ कौन मर गया भाई ? ”, एक ग्रामीण ने पूछा पंकज से ।
“ लक्ष्मी ”,पंकज ने जवाब दिया ।
ग्रामीण ने जब पूछा कैसे तो पंकज ने कहा,
“ उसने खुदकुशी कर ली क्योंकि उसके किसी और के साथ संबंध थे, उस लड़के ने किसी और के साथ शादी कर ली तो उससे सहा नहीं गया, गंदे चरित्र की औरत थी वह । ” सच्चाई तो यह थी कि लक्ष्मी की मौत खुदकुशी की वजह से नहीं बल्कि उसे जहर देके मारा गया था ताकि पंकज की दुबारा शादी हो सके और दुबारा दहेज मिल सके पर ये सच्चाई खामोश रह गई।
जिस स्त्री ने आजीवन सबके सम्मान का ध्यान रखा उसके साथ इस तरह की नाइंसाफी हुई । जिस स्त्री ने अपने पति को ईश्वर का दरजा दिया उसी ने अपने परिवार के साथ मिलकर उसकी जान ले ली, उसे अपवित्र कहा । लक्ष्मी ने उस परिवार की इज्जत के लिए खुद को सदा खामोश रखा । लक्ष्मी की मौत का कारण उसका परिवार कम उसकी ख़ामोशी अधिक बनी । अंत में वही ख़ामोशी छोड़ गई सदा की चुप्पी, सदा की ख़ामोशी ।
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-नेहा