Hindi Story of a girl who made contrary to the rules of society by moving dared to dream. Despite facing so much opposition made her dream come true.
आज अस्पताल के वार्ड नंबर एक में काफी चहल पहल थी. मीडिया और लोगों से चारों तरफ से घिरी हुई लगभग 36-37 साल की लड़की अपने नवजात शिशु के साथ बेड पे लेटी हुई थी. ऐसा मालुम पड़ रहा था जैसे वो कोई सेलेब्रिटी हो लेकिन वो एक आम लड़की थी. एक छोटे से शहर की एक सरकारी टीचर…संगीता! उसकी हिम्मत ने उसे आम से ख़ास बना दिया था. बेड के बगल में खड़ी उसकी बूढ़ी माँ की आँखें ख़ुशी से चमक रही थी. इंटरव्यू लेते मीडिया वाले और तमाशा देखने वालों की भीड़ धीरे धीरे अब छट चुकी थी. कितना विरोध सहा था उसने. घरवालों से ले के पड़ोसी रिश्तेदार और यहा तक कि अस्पताल के डॉक्टर्स का भी. ये सब बातें उसे बेचैन करती पर अपनी नन्ही सी जान को देखते ही उसकी आँखों में संतोष उतर आता और चेहरे पे मुश्कान खेलने लगती. आज उसकी ममता की जीत हुई थी.
” अम्मा ! मैंने कहा था न कि समाज अपने बनाये नियमों के विपरीत चलने पर विरोध अवश्य करता हैं पर बाद में उसी समाज के लोग उसे सहर्ष स्वीकार करने से तनिक भी हिचकिचाते नही हैं. आज वही हुआ हैं अम्मा !”
अम्मा को संगीता की कही बातों पर विस्वास हो चला था इसलिए बिना किसी सवाल जवाब किये हा में सर हिला रही थी. अम्मा आज भी नही भूली थी कि कैसे उसने बिन ब्याह बच्चा जनने का निर्णय सुनाया था और इस बात को सुनते ही कैसे उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गई थी. संगीता ने जबसे अखबार में किसी अस्पताल का ivf तकनीक से बच्चा जनने का इश्तहार पढ़ा था तब से उसके अंदर की ममता हिचकोले खाने लगी थी और जैसे जिद्द ही पकड़ ली कि वो अब माँ बन के ही रहेगी.
” देख बिटिया ! इ बेकार की जिद्द छोड़ दे. इ सोचा है कि समाज का कहि. फिर कुवारी माँ के बच्चे को सब गाली देत हैं. पहिले ब्याह कर ले फिर बच्चा भी जन लेना. ” अम्मा की आँखों में तो जैसे चिंता और भय के बादल ही उमड़ आये थे.
” अम्मा ! किस समाज की बात कर रही हो. तुम भूल सकती हो पर मैं नही. कैसे बाबूजी के देहांत बाद इसी समाज के लोगों ने हमसे मुंह फेरा था और रिश्तेदारों ने तो नाता ही तोड़ लिया कि कहि हम उनसे मदद न मांग ले. मैंने बीटीसी ना की होती तो आज हम सब भूंखे मर गये होते. दोनों भाइयों को पढ़ा लिखा काबिल बना कर ब्याह दिया. पूरी जिंदगी तुम सब की जिम्मेदारी उठाई. कभी खुद के बारे में न सोचा. ब्याह की उमर तो कब की निकल गई अम्मा ! थक गई हूँ जिम्मेदारी उठाते उठाते. अब दुसरे घर की जिम्मेदारी न उठा सकुंगी. पर…अपने अंदर छिपी ममता का गला नही दबा सकती. एक ही तो ख़ुशी चाही हैं अम्मा ! और तुम उसे भी ना बोल रही हो !”
संगीता तो जैसे बिफ़र ही पड़ी. आंसू तो थमने का नाम ही नही ले रहे थे.
” देख बिटिया ! भले बच्चा गोद ले ले पर बिन ब्याह बच्चा जनने की बेकार जिद्द छोड़ दे. तू क्यू नही समझती बिन ब्याही माँ को दुनिया जीने नाहि देगी. ”
” ना अम्मा ! मुझे खुद का जना बच्चा ही चाहिए बस ! ”
संगीता पैर पटकते हुए अम्मा के कमरे से निकल गई. अम्मा के चेहरे की झुर्रियों से भरी सिकुड़न चिंता और तनाव से और भी गहरी हो चली थी. भाइयों, भाभियों और अम्मा सबकी अपनी-अपनी चिंता गुस्सा और तानों को दरकिनार कर अस्पताल पहुंच गई थी.
” देखिये संगीता जी ! एक डॉक्टर होने के नाते आपका ivf करने में हमें कोई प्रॉब्लम नही हैं लेकिन एक महिला होने के नाते मेरी यही सलाह हैं कि ये करने की जगह एक बच्चा गोद ले लीजिये आपके लिए अच्छा होगा. ये एक बोल्ड डिसिशन हैं. हमारा समाज एक कुंवारी लड़की को ऐसा करने की इजाजत नही देता. लोग आप दोनों का जीना हराम कर देंगे बाकी आपकी मर्जी. आप एक बार फिर से सोच लीजिये. ”
” डॉक्टर ! मैंने ये फैसला सोच समझ के ही लिया हैं. मुझे लोगों की कोई परवाह नही हैं. मैं एक सेल्फ डिपेंडेंट लड़की हूँ. इतना तो कमाती ही हूँ कि अपने बच्चे की अच्छी परवरिश और देखभाल कर सकू. आप बस प्रोसेस स्टार्ट कर दीजिये. ”
महीनों अस्पताल के चक्कर लगाने के बाद बड़ी मुश्किल से डॉक्टरों ने हामी भरी थी. संगीता ने उन नौं महीनों में क्या नही बर्दास्त किया था. लोगों की गालियाँ, ताने, तिरिस्कार, अपमान और यहाँ तक कि चरित्र हनन तक का भी आरोप लगा पर….वो तो जैसे पत्थर की हो चुकी थी उसको तो जैसे दिखाई देना और सुनाई देना सब बंद हो चुका था.
अम्मा संगीता के इस फ़ैसले से नराज़ ज़रुर थी पर माँ की ममता ने उसे अपनी बेटी का साथ देने के लिए मजबूर कर दिया था. प्रसव पीड़ा से से तड़पती अपनी बेटी को देख बूढ़ी माँ की आँखों से आँसू छलक पड़े थे. डिलेवरी रुम में जाते देख अपने आँसू पोंछ आँखें मूंदे भगवान की प्रार्थना में तब तक बुदबुदाती रही जब तक कि जच्चा बच्चा सही सलामत बाहर ना निकल आये. अम्मा ने राहत की सांस ली और दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् को मन ही मन धन्यवाद बोला और तभी किसी ने अम्मा के कंधे पे जोर से थप थापाया. अम्मा चौंकी क्योंकि तब तक वो अतीत के गलियारों से बाहर आ चुकी थी.
” अम्मा ! कहाँ खो गई? सामान बांधों घर चलना हैं. डॉक्टर ने छुट्टी दे दी हैं..! ”
” ह्ह्हम..हाँ ! ”
जल्दी जल्दी सामान बांधा और नर्स से जन्म प्रमाण पत्र और छुट्टी का कागज़ ले कर झोले में डाला और रिक्शा पकड़ कर घर आ गई. रिक्शे से उतरकर दरवाजें तक आयी तो देखा कि दोनों भाई और भाभियाँ खड़े हैं.
” दीदी ! हमें माँफ नही करोगी !” छोटे भाई ने आँखें झुका के बोला.
” मैं तुम लोगों से नाराज़ कब थी. ये लो पकड़ो अपने भांजे को गोद में.” ख़ुशी से भाई की गोद में अपने बच्चे को देते हुए संगीता बोली.
नफ़रत और गुस्से की धुंध अब छट चुकी थी और सामने रिश्तों की मजबूत दीवार दिखलाई पड़ने लगी थी. सबने संगीता और उसके बच्चे का खुले दिल से स्वागत किया. एक साथ इतनी सारी खुशियाँ पा कर संगीता बहुत ख़ुश थी आख़िरकार उसने अपने हिस्से का एक मुट्ठी आसमान जो पा लिया था…!
__END__