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Auto Wala

Published by nupur mishra in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag interview

In this world of self centered people who care about nothing but themselves these are still some people who help others selflessly. Read moral Hindi story,

Pink Tulip Flower With Dew Drops

Hindi Moral Story – Auto Wala
Photo Credit: www.cepolina.com

ट्रेन प्लेट फॉर्म नंबर एक पे आ चुकी थी। मैंने जल्दी जल्दी सामान उठाया और स्टेशन के बाहर आ गई। बाहर आते ही ऑटों वालों ने घेर लिया. ये तैय करना मुश्किल था किसकी ऑटो ली जाये। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो की।

” भैया ! होटल तक चलोगे ?”

उसने हाँ में सिर हिलाया और ऑटो में बैठने का इशारा किया। मैंने सारा सामान पीछे वाली सीट पे डाला और चलने को कहा। मौसम अपने मिज़ाज में था। होटल के गेट तक आते आते ज़ोरों से बारिश होने लगी। मैंने फटाफट ऑटो वाले को पैसे दिए और जल्दी जल्दी सामान ले कर बारिश से बचने के लिए होटल के अंदर भागी। एक रात के लिए रिसेप्सनिस्ट के पास जा कर रुम बुक कराया और फिर सामान सहित रुम के अंदर दाख़िल हुई। सामान जैसे ही रखा सामने बेड को देखते ही टूटते बदन को जैसे आराम करने का बहाना मिल गया।

पर…मैंने देखा उन सामान में मेरा डाक्यूमेंट्स का फोल्डर गायब हैं। मेरा दिल धक् से हो गया। मैं भागती हुई बाहर आयी तब तक ऑटो वाला जा चुका था। मैं एकदम सन्न रह गई। बारिश की परवाह किये बगैर बदहवास सी बहुत दूर तक उस ऑटो वाले को ढूंढने के लिए भागी. कुछ ऑटो वालों को रोक रोक के पूछ तांछ भी की। पर..कोई फायदा नही हुआ क्योंकि वो तो जा चुका था और इतने बड़े शहर में एक ऑटो वाले को ढूँढना इतना आसान नही था। मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया. मेरे सपने मेरा करियर और घरवालों की उम्मीदें सब एक एक कर के कांच की माफ़िक ज़मीन में गिर के टूट कर बिखरती हुए दिखी। मेरी एक गलती ने मेरी ज़िन्दगी भर की कमाई एक झटके छीन ली थी। आँखों में तो जैसे आंसुओं की झड़ी सी लग गई। ये समझना मुश्किल था कि वो बारिश की बूँदे थी या आँसू ही थे।

अचानक मैं इस उम्मीद से होटल के अन्दर भागी कि शायद फोल्डर मिल जाये..पर वहाँ भी नही मिला। एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह वापस रुम में आ गयी. पूरी रात इस तकलीफ़ में गुजरी कि घरवालों को अब क्या मुंह दिखाउंगी. मेरा करियर लगभग तबाह हो चुका था. एक मन किया सुसाइड कर लूँ. पर…वो भी करने की हिम्मत कहा थी मुझमें. बेबस हो चुकी थी. रोते रोते कब आँख लग गई पता नही चला. माँ के फ़ोन से आँख खुली.

” बेटा ! उठो..टाइम तो देखो..9 बज रहा हैं. जल्दी से रेडी हो वरना इंटरव्यू के लिए लेट हो जाओगी. मैं एक घंटे में फ़िर फ़ोन करुंगी. ”

” ठीक हैं माँ ! आप टेंशन मत लीजिये मैं टाइम पे रेडी हो जाऊँगी. ”

” ओके ! अपना ध्यान रखना और घबराना मत. बाय बेटा. ”

” थैंक यू माँ ! बाय. ”

माँ की आवाज़ सुनते ही मन किया कि फूट फूट कर रोऊँ. पर..चाह के भी ऐसा नही कर सकती थी. घड़ी की तरफ़ एक सरसरी निगाह डाली तो सुबह के 9:45 हो रहे थे.वक़्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा था. कुछ समझ ही नही आ रहा था कि क्या करु. पता नही पर…दिल के कोने से एक आवाज़ आई कि मुझे ऐसे ही सही पर इंटरव्यू देने जरुर जाना चाहिए. फिर फटाफट रेडी हुई और मेसेज पे दिए आर्गेनाइजेशन के पते पर पहुँच गई. बड़ी हिम्मत कर के अंदर गई. हाल में इंटरव्यू के लिए आये हुए लोगों की काफी भीड़ थी. उन सभी के हाथों में फ़ोल्डर था और मैं बिना किसी हथियार के निहत्थी जंग लड़ने निकली थी. मेरी घबराहट मेरे चेहरे पे साफ़ दिख रही थी. मेरा सारा आत्मविस्वास उस फ़ोल्डर के साथ कब का जा चुका था फ़िर भी हिम्मत कर सबसे आख़िरी वाली बेंच पे जा बैठी.

बैठी ही थी कि अचानक किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे थपथपा कर मुझे आवाज़ दी. मैं चौंक गई फिर मैंने पीछे मुड़ कर देखा. उसे देखते ही मेरे चेहरे की रंगत बदल गई. ये तो वही ऑटो वाला था.

” गुड़िया ! ये लो तुम्हारा फ़ोल्डर. कल मेरे ऑटो में भूल गई थी. सुबह ऑटो की सफाई में मिला. फ़ोल्डर खोल के देखा तो सबसे ऊपर इंटरव्यू का कॉल लैटर पड़ा हुआ था. उसमें यही का पता लिखा था और मुझे लगा कि तुम यही पे मिलोगी इसलिए यही देने आ गया. ”

उस फ़ोल्डर को देखते ही अनायास ही आँखों में आँसू छलक आए. उस ऑटो वाले को देख कर इन आँखों को भरोसा ही नही हुआ कि दुनिया में ऐसे अच्छे लोग भी होते हैं जो अजनबी हो कर भी बिना किसी स्वार्थ के देवदूत की तरह मदद करने आ जाते हैं.

” थैंक यू भैया ! आप नही जानते आपने ये फ़ोल्डर लौटा कर मेरे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया हैं. मेरा करियर बर्बाद होने से बचा लिया. थैंक यू सो मच भैया. ”

” नही गुड़िया ! ये तो मेरा फर्ज़ था. मुझे बेहद ख़ुशी हुई ये जान कर कि मैं किसी के काम तो आया. अच्छे से इंटरव्यू देना. मुझे पूरी उम्मीद हैं कि तुम पास जरुर होगी. अच्छा अब मैं चलता हूँ. बेस्ट ऑफ़ लक ! ”

” ठीक हैं भैया !थैंक यू सो मच भैया ! ”

मैं उस ऑटो वाले को कृतज्ञता भरी नजरों से जाते हुए देखती रही जब तक कि वो नज़रों से ओझल नही हो गया. वो मुझे यकीन दिला गया कि दुनिया में आज भी लोगों में इंसानियत अब भी ज़िन्दा हैं. फिर वापस अपनी सीट पे जा बैठी और उसी आत्मविस्वास से लबरेज अपनी बारी का इंतज़ार करने लगी.

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