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Dairy of my Grandmother

Published by varuni in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag principal | theif

This Hindi story is part of my grandmother’s diary. This is a true life incident where the teachers taught right path of life to her by behaving differently.

Work diary with pen on table

Moral Hindi Story – Dairy of my Grandmother
Photo credit: earl53 from morguefile.com

जीवन में कई ऐसी घटनायें अनायास  घटित  हो  जाती  हैं  जो  हमारे  व्यक्तित्व , सोच  को  ही  परिवर्तित  कर  देती  है , चाहे  वह  घटना  बाल्यावस्था की हो  या  युवास्था  की या  प्रोढावस्था की. ऐसी  ही  एक  घटना  ने  मुझे राह दिखलाई, जो  भुलाये  नहीं  भूलता। जीवन  के  साठवें  दशक  में  भी  वह  घटना  चल-चित्र  की  तरह  एक-एक  दृश्य को मानस -पटल पर  चित्रित करती है।

बहुत  पुराना  समय  शायद  १९५३  का  था  जब  मै  छठवीं  कक्षा  की  छात्रा  थी  . एक  वर्ष  पूर्व  ही  मेरी  माता  जी  का  देहान्त  हुआ  था। पिता  जी  से  किसी  काम  के  लिए  पैसे  मागने  में  भय  एवं  संकोच  होता  था। वैसे  पिता  जी  हम  सभी  बहनों  की  आवश्यकताओं   का  पूरा -पूरा  ध्यान  रखते  थे।  मुझे  कापी  की  आवश्यकता  थी  पर  उनके  लिए  पैसे  मांगने  की  हिम्म्त  मैं  कर  नहीं  पाई।  विद्यालय  आई।  पैसे  कहाँ  से  लाऊं ? सोचती  रही । फिर  ध्यान  आया  कि  कक्षा  की  एक  छात्रा  रोज अधिक पैसे लेकर आती है। पहले भी मैने एक  बार  उसके  पैसे  चुराये  थे।  आज  भी  दुर्बुद्धि  ने  साथ  दिया।

” मैं  कक्षा – कैप्टन  हुँ  , मेरे  ऊपर  किसी  को  संदेह नहीं  होगा ”  यह  सोच  कर पैसे चुराने का  निर्णय मन में ले लिया। प्रार्थना की घंटी बजने पर और छात्राओं के प्रार्थना -स्थल पर चले जाने पर मैंने उस छात्रा क़े डेस्क से एक रुपया चुरा लिया। उस समय एक रुपये की कीमत बहुत थी। चार आने में स्कूल शॉप से ही कॉपी पेंसिल ख़रीदा। अब बारह आने पैसे बचे रहे -उसका क्या करुँ, समझ में नहीं आया। अतः उसे डेस्क में रख लिया।

मेरी क्लास टीचर अनुपस्थित थीं ,अतः हाजिरी लेने एक नयी अध्यापिका आयीं। छात्राओं के पैसे चोरी हो जाने की सूचना उन्हें मिली। उन्होंने एक सब -इंस्पेक्टर की तरह कार्यवाही शुरू की। सबकी तलाशी ली गयी। मेरे डेस्क में से बारह आने पैसे और एक दूसरी छात्रा के पास से आठ आने पैसे मिले। “इतने पैसे कहाँ से आये ” पूछने पर हमलोगों ने बताया कि घर से लाये हैं। लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हुआ और वह प्रधानाचार्या जी के पास ले गयीं।  प्रधानाचार्या जी ने मुझे अपने पास बुलाया और मेरे सर पर हाथ फेर कर पुचकारते हुए मुझे सच बोलने को कहा।

उनके प्यार भरे कर -स्पर्श ने मेरे बालमन को अलौकिक आंनद से भर दिया। फिर मैंने उन्हें सच बता दिया और रोती रही। उन्होंने चुप कराकर कहा कि “उनके टेबल पर हमेशा पैसा रखा रहता है ,मै जब चाहूँ तब ले सकती हूँ ,पर कभी भी चोरी ना करूँ। “

उन्होंने छात्रा और अध्यापिका से ढृढ़ता से किसी को बताने से मना किया कि मैंने चोरी की है। प्रधानाचार्या के इस सद -ब्यवहार और स्नेह से मैं अभिभूत हो गयी। उनकी यह आज्ञा मेरे लिए संजीवनी – सुधा बन गई। दूसरे दिन विधालय आई। पश्याताप एवं शर्म से सिर झुकाकर कक्षा में बैठी। अपनी क्लास टीचर आई। मै  प्रतीक्षा कर रही थी कि वह मेरा नाम लेकर कक्षा – कैप्टन के पद से हटायेगी , किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कक्षा की कुछ मेधावी अनुशासित छात्राओं से चोरी के विषय में पूछा। ” चोरी किसने की  है ” यह भी पूछा। पर सभी ने अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की।

मै आश्चर्यचकित, अवाक रह गई।सभी झूठ बोल रही थी। पर यह कैसा झूठ था जो मेरी अंतरात्मा को सत्य से आप्लावित कर रहा था। मुझ अपराधिनी के कलंक को असत्य से निष्कलंक बना रहा था। मै इस सत्य – असत्य के उहापोह में थी , तभी कक्षाध्यापिका की आज्ञा सुनी ” निर्मला , रजिस्टर रख आना । ”

उस वाक्य ने मुझ में नई चेतना , विश्वास , साहस भर दिया। मेरा अपराध – बोध विगलित हो गया। मेरी चिर – स्मरणीया प्रधानाचार्या ने , कक्षा – ध्यापिका ने और मेरी कक्षा की छात्राओं ने मुझे ऐसा ज्योतिर्मय संदेश दिया , जो मेरे कंटकमय , जीवन में ‘ पाथेय ‘ बन गया।उन सभी के विश्वास,स्नेह की रक्षा हेतु मैं भगीरथ – प्रयत्न में लग गयी। कालांतर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर जब मैं प्रवक्ता बनी तो मैंने भी अपनी छात्राओं को वही सब दिया ,जो मैंने अपनी शिक्षा-अवधि में पाया था।

***

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