This story is selected as Editor’s Choice and won INR 500
यह एक कल्पित कथा है। इस कथा में प्रयुक्त नाम, चरित्र, स्थान, एवं घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना पर आधारित हैं या काल्पनिक रूप से प्रयुक्त हैं। अगर इनका किसी वास्तविक, जीवित या मृत व्यक्ति, किसी घटना या स्थान से कोई संबंध पाया जाता है तो वो एक संयोग ही माना जाएगा।
लेखक के द्वारा सन 2015 में स्वयं प्रकाशित
कॉपीराइट
सर्वाधिकार सुरक्षित। इस कथा का लेखक की लिखित अनुमति के बिना व्यावसायिक अथवा अन्य किसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इस कथा का आंशिक रूप से पुनः प्रकाशन या पुनः प्रकाशनार्य अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने, इसका अनुदित रूप तैयार करने अथवा इलेक्ट्रोनिक, यान्त्रिकी, फोटोकोपी और रिकॉर्डिंग आदि किसी भी तरीके से इसका उपयोग करने हेतु लेखक की पूर्वानुमति अनिवार्य है।
———————————————
“अगर वास्तविक अर्थ मे जाएँ तो पाएंगे कि हमारे दो मस्तिष्क है एक वो जो सोचता है और एक वो जो महसूस करता है” ― डेनियल गोलमैन
1
एक बार किसी जिले के एक प्रसिद्ध कॉलेज में व्यवसाय प्रबंधन की एक कक्षा चल रही थी। कक्षा के भवन का आंतरिक ढांचा एक सामान्य कक्ष जैसा कम और एक सिनेमा हॉल जैसा ज्यादा था। विध्यार्थियों के बैठने के लिए कुर्सी-मेजें ऊपर वाली सीढ़ी से होते हुये नीचे वाली सीढ़ी तक क्षैतिज पंक्तियों में लगी हुयी थी ये और पंक्तियाँ चार लम्बवत खंडों में बंटी हुयी थी।
कक्षा में शिक्षकों के व्याख्यान के लिए मंच पर एक लकड़ी का चमकदार पोडियम रखा हुया था तथा तह की हुयी प्रॉजेक्टर स्क्रीन, सफ़ेद बोर्ड के बिलकुल ऊपर, विध्यार्थियों के सामने की तरफ लगी हुयी थी।
इस वातानुकूलित कक्ष में मेधावी छात्र अपने नोट्स पढ़ रहे थे, सामान्य छात्र गप्पें मार रहे थे और फिसड्डी छात्र शोर मचा रहे थे।
एक निर्धारित विषय के शिक्षक के आगमन के साथ ही कक्षा में शांति का भी आगमन हुया। विध्यार्थियों ने अपनी कॉपियों और निर्देशों को खोलना शुरू किया परंतु उस दिन हाजरी का कार्य खत्म करने के बाद शिक्षक ने आश्चर्यजनक रूप से कक्षा का प्रारंभ किसी व्याख्यान या स्क्रीन पर दी जाने वाली उबाऊ प्रस्तुति से नहीं करा बल्कि चेहरे पर एक असामान्य भाव के साथ बोलना आरंभ कर दिया।
‘प्रिय विध्यार्थियों, कल शाम को मुझे अपने पड़ोस मे हुयी एक दुखद घटना का पता चला। मेरी कॉलोनी के बाहरी छोर पर बहुत गरीब परिवार में 18 वर्ष की एक लड़की रहती है। इस लड़की की शादी इसी महीने के आखिरी दिन होनी तय की गयी थी परंतु दुर्भाग्यवश उसके पिता जोकि एक मजदूर थे उनका दिल के दौरे के कारण कल शाम को देहांत हो गया। ‘वह अपने पीछे एक बूढ़ी माँ, एक विवाह योग्य बेटी और 13 वर्ष का बेटा छोड गया है,’ शिक्षक ने दुखी होकर बोलना बंद कर दिया।
सभी छात्र उन्हे ध्यानपूर्वक सुन रहे थे तथा कुछ तो काफी विस्मय के साथ एक दूसरे की तरफ देख रहे थे।
कुछ समय बाद शिक्षक ने दृढ़ आवाज के साथ पुनः बोलना आरंभ किया।
‘जैसा कि आप लोग जानते है कि विवाह हर व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण अवसर होता है फिर आप ये भी जानते होंगे कि इस अवसर पर काफी धन की आवश्यकता होती है और हाँ विशेषतया हमारे देश में जहां निम्न वर्गीय और मध्यम वर्गीय परिवार पर लड़की की शादी करने की लिए कितना आर्थिक और सामाजिक दवाब होता है जैसे कि दहेज का इंतजाम करना, दोनों तरफ के महमानों के लिए खाने और ठहरने की व्यवस्था करना, साज सज्जा और दूसरे अनुष्ठानों पर होने वाला खर्च, आदि। इस दुनिया में पैदा होने से लेकर मरने तक हर कदम पर धन कि आवश्यकता होती है,’ शिक्षक ने बोलना जारी रखा।
‘मुझे ये भी पता चला कि लड़की का पिता ही घर मे अकेला कमाने वाला सदस्य था और कहीं से उधार लेकर अपने बेटी का विवाह करने वाला था परंतु दुर्भाग्यवश इससे पहले ही उसका देहांत हो गया। फिलहाल उनके घर में कमाने वाला अब कोई नहीं है और उधार मिलने की संभावना बहुत कम है। चूंकि उस बेचारी लड़की का विवाह होना अब टाला नहीं जा सकता है और इसमे केवल 15 दिन ही शेष बचे है तो मैंने और मेरे कुछ पड़ोसियों ने इस विवाह कि लिए विभिन्न स्रोतों से चंदा इकठ्ठा करने का निश्चय किया है,’ शिक्षक ने ऐसा कहकर एक लंबा विराम लिया।
कुछ पलों बाद शिक्षक ने पुनः बोलना आरंभ किया परंतु इस बार उनकी शारीरिक मुद्रा में आज्ञा कम और विनती ज्यादा नजर आ रही थी।
‘मेरा आप सभी विध्यार्थियों से अनुरोध है कि कृपया उस गरीब लड़की के विवाह के लिए व्यक्तिगत रूप से कुछ रुपयों का सहयोग करें’
उनके इस अनुरोध ने कक्षा मे फुसफुसाहट कि एक लहर शुरू कर दी।
‘कृपया शांत हो जाएँ,’ शिक्षक ने कक्षा को आज्ञा दी परंतु इस बार उनका स्वर उनकी सामान्य आवाज की तुलना में थोड़ा धीमा था।
कक्षा मे शांति की वापसी हुयी।
‘मैं जानता हूँ आप लोग अभी विध्यार्थी है और केवल आपके अभिभावक ही आपकी आय का स्रोत हैं फिर भी आप लोग अपनी इच्छा और सामर्थ की अनुसार इस पवित्र कार्य में सहयोग कर सकते है। कोई भी विध्यार्थी स्वयंसेवी बनकर अन्य विध्यार्थियों से चंदा इकट्ठा कर सकता है,’ शिक्षक ने अपना कथन पूरा किया और शांत होकर विध्यार्थियों की तरफ देखने लगे।
शिक्षक को ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा क्योंकि अचानक ही अंतिम पंक्ति से एक लड़का उठा और पाँच सौ रुपए का नोट मेज पर दृढ़ता से रखते हुये बोला,
‘सर, मैं अपनी तरफ से पाँच सौ रुपए का सहयोग देता हूँ ‘
इस लड़के की छवि विध्यार्थियों और शिक्षकों के बीच एक फिसड्डी और नालायक की थी शायद इसका कारण उसका अँग्रेजी भाषा में खराब उच्चारण, पाठ्यक्रम के प्रति गंभीर न होना, कक्षा मे ज्यादा गैर हाजिरी और कभी कभी शिक्षकों के प्रश्नों का अजीब उत्तर देना था। चूंकि बुद्धू, नालायक, और फिसड्डी का मतलब अँग्रेजी में डफर भी होता है इसलिए ज़्यादातर विध्यार्थी उसे मज़ाक में मिस्टर डफर कहकर भी बुलाते थे।
पूरी कक्षा उस लड़के की शिक्षक को दी गयी प्रतिक्रिया से हैरान थी और उसके इस कार्य ने विध्यार्थियों में फुसफुसाहट की दूसरी लहर भी पैदा कर दी इसी दौरान मिस्टर डफर ने अपने पास वाले लड़के को चंदा इकठ्ठा करने के लिए मना लिया।
चंदा इकठ्ठा करने वाले लड़के ने अपने 100 तथा मिस्टर डफर के 500 रुपए चंदे में डाले और अन्य छात्र और छात्रायों की तरफ चंदा इकठ्ठा करने के लिए बढ़ गया। अन्य विध्यार्थी चंदे में सहयोग दे रहे थे परंतु न 100 रुपए से कम और न 300 रुपए से ज्यादा। कुछ विध्यार्थियों ने अपने साथियों से उधार लेकर भी चंदे में सहयोग किया।
तीसरी लहर अभी आनी बाकी थी। चंदा इकट्ठा करने वाला लड़का अब एक अव्वल विध्यार्थी के पास पहुंचा जोकि सबसे आगे वाली पंक्ति में बैठी हुयी थी। ये छात्रा कॉलेज की आंतरिक और विश्वविध्यालय की परिक्षाओं में उच्चतम अंक लाने के कारण कक्षा मे मिस टॉपर के नाम से मशहूर थी। वह एक समृद्ध परिवार से आती थी और पिछले सभी स्तरों पर जैसे कि दसवीं, बारहवीं और स्नातक कक्षायों में भी उच्चतम अंकों के साथ अव्वल रही थी
‘कृपया इस चंदे में अपना सहयोग करिए,’ चंदा इकठ्ठा करने वाले छात्र ने मिस टॉपर से विनती की।
‘मुझे उस लड़की के साथ ढेर सारी सहानभूति है,’ मिस टॉपर ने मुंह सिकोड़ते हुये जवाव दिया, तथा उसने एक सिक्का भी उस चंदे में नहीं डाला।
चंदा इकट्ठा करने वाले लड़के के साथ साथ पूरी कक्षा भी मिस टॉपर की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गयी। कुछ देर बाद चंदा इकठ्ठा करने वाला लड़का आगे बढ़ गया।
इस कक्षा से मिस टॉपर की सहानभूति और मिस्टर डफर के 500 रुपयों को मिलाकर करीब 10,000 रुपए का चंदा इकठ्ठा हुया। शिक्षक ने इसी पाठ्यक्रम की दो अन्य कक्षायों से भी चंदा इकठ्ठा करवाया और अंत में उस दिन तीनों कक्षायों से 15,000 तथा शिक्षक विभाग से 5,000 मिलाकर भोजन के समय तक कुल 20,000 रुपए इकट्ठे हुये।
***
2
भोजन का समय होने के कारण कॉलेज की कैंटीन विध्यार्थियों से भरी हुयी थी। छात्र और छात्राएँ बर्गर, समोसा, पेस्ट्री, परांठा, चाय, कॉफी, सॉफ्ट ड्रिंक की कैन और अन्य चीजें बाजार से अधिक मूल्य पर खरीद रहे थे इसकी वजह ये थी कि कॉलेज के आस पास कोई दूसरी दुकान नहीं थी।
मिस टॉपर ने एक प्लेट चाइनीज़ हक्का नूडल और एक कप कोल्ड कॉफी 120 रुपए में खरीदी। कैशियर ने उसके 200 रुपयों मे से 80 रुपए भी उसे वापस लौटाए। उसके बाद वो कैंटीन के मध्य मे रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी और नूडल खाते हुये अपने स्मार्ट फोन पर बातें करने लगी।
कैंटीन के ही एक कोने में मिस्टर डफर चंदा इकठ्ठा करने वाले छात्र के साथ बैठा हुया था जो कि उसका मित्र भी था,
‘जहां तक मुझे पता है कि सुबह तुम्हारे बटुए में केवल 500 ही रुपए थे तो फिर तुमने अपना सारा पैसा चंदे में क्यूँ दे दिया जबकि किसी ने भी 300 से ज्यादा नहीं दिये?’ चंदा इकठ्ठा करने वाले लड़के ने मिस्टर डफर से पूछा।
‘मेरे दोस्त, मैंने तो केवल अपने सामान्य व्यावहारिक ज्ञान का प्रयोग किया और चंदे की शुरुआत एक बड़ी राशि से कराई। अगर मैंने इस चंदे की शुरुआत केवल 100 रुपए या 50 रुपए से की होती तो कोई भी विध्यार्थी 10, 20 और 30 रुपए से ज्यादा का व्यक्तिगत सहयोग नहीं देता और हम इस पवित्र कार्य के लिए एक उपयोगी रकम कभी नहीं जुटा पाते। मैंने उन सब के लिए 500 रुपयों को एक मानक-स्तर बना दिया और तुम जानते हो कोई भी व्यक्ति मानक-स्तर से बहुत नीचे नहीं जाना चाहता,’ मिस्टर डफर ने मुसकुराते हुये जबाव दिया।
‘वो सब तो ठीक है परंतु अब तुम घर जाने के लिए बस का टिकिट कैसे खरीदोगे?’ चंदा इकठ्ठा करने वाले छात्र ने संशय के साथ पूछा।
‘जिस तरह से तुम जानते थे कि मेरे पास केवल 500 रुपए है उसी तरह से मैं भी जानता हूँ कि तुम्हारी जेब में केवल 150 रुपए थे। जिसमे से तुमने 100 तो चंदे में दे दिये और तुम्हारे पास अब भी 50 रुपए बचे है और जहां तक बस की टिकिट का सवाल है तो 30 रुपए हम दोनों की टिकिट के लिए काफी होंगे उसके बाद भी तुम्हारे पास 20 रुपए बच जाएंगे तो अब जाओ और उन 20 रुपयों की बढ़िया सी दो कप चाय लेकर आयो,’ मिस्टर डफर ने उसके संशय को दूर करते हुये कहा।
‘तुम कभी नहीं सुधरोगे!’ चंदा इकठ्ठा करने वाले लड़के ने हँसते हुये कहा और चाय लेने चला गया।
***
3
उस गरीब लड़की की दादी की आँखें आँसुओ से भरी हुयी थी जब उन्होने शिक्षक से चंदे के 20,000 रुपए स्वीकार किए। उस बूड़ी औरत को शिक्षक को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे परंतु उसकी बहती आँखें सब कुछ कहने के लिए काफी थी।
कोई नहीं जानता कि मिस टॉपर की सहानभूति उस लड़की तक पहुंची या नहीं परंतु जो धनराशि उस गरीब परिवार को मिली वो उनके लिए एक बड़ा सहयोग था क्योंकि अब वो लोग कम से कम विवाह में होने वाले कुछ खर्चे तो वहन कर सकते थे।
निश्चित तारीख को चंदे की धनराशि तथा कुछ अन्य लोगों के सहयोग से उस गरीब लड़की का विवाह सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया।
कॉलेज के आखिरी साल के अंत में मिस टॉपर ने फिर से हर विषय में उच्चतम अंक प्राप्त किए और उसे विश्वविध्यालय कि तरफ से स्वर्ण पदक भी मिला। उसे कॉलेज में आयी एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी भी मिल गयी।
मिस्टर डफर को केवल औसत अंक ही मिले और इस कारण कॉलेज मे आयी किसी अच्छी कंपनी के साक्षात्कार में उसे बैठने का मौका नहीं मिला परंतु कुछ दिनों बाद उसे वायु सेना में चुन लिया गया और वो भी केवल उसके सामान्य व्यावहारिक ज्ञान के कारण जोकि आजकल समान्यतः देखने को नहीं मिलता है।
***
मैं यह महसूस करता हूँ कि आपको यह जानना चाहिए कि उन दिनों वो शिक्षक कौनसा विषय पढ़ा रहे थे।
वो विषय था “कॉर्परेट सोशल रेस्पोन्सिबिलिटी” मतलब कि एक व्यवसाय का लाभ और हानि से परे समाज के प्रति दायित्व और हाँ, मिस टॉपर ने इस विषय में भी उच्चतम अंक प्रप्त किए थे।
***
“आपका जीवन तब तक सार्थक नहीं है जब तक कि आपने किसी ऐसे के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है जिसे वह आपको कभी नहीं लौटा सकता”
-जॉन बुनयन